Thursday, September 4, 2008
एक शायर का बड़बोलापन- ग़ालिब और मीर मुझसे जलते...
मैं तो बस एक ही व्यक्ति की गोद में बैठा था, बैठा हूं और बैठा रहूंगा जिनका नाम है अटल बिहारी वाजपेयी।
मप्र उर्दू अकादमी के चेयरमेन
बशीर बद्र से सीधी बात
भोपाल से प्रकाशित दैनिक भास्कर समूह के टैब्लायड डीबी स्टार में इसी हफ्ते श्यामसिंह तोमर ने यह साक्षात्कार लिया जिसे जस का तस हम यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
मप्र उर्दू अकादमी के आप 4 साल से चेयरमेन हैं, लेकिन इसके भी बाद उर्दू और शायरों की बेहतरी के लिए प्रदेश में कोई खास काम नहीं हुए ?
[विषय बदलते हुए दार्शनिक अंदाज में..]
देखिए, बेसिकली मैं संस्कृत के लेटेस्ट उर्दू एडीशन का शायर हूं। वक्त की आवाज को उर्दू कहते हैं। हिंदुस्तान में अभी तक मेरी करीब 6-7 किताबें प्रकाशित हो चुकी हैं जो कि बड़ी मशहूर हैं। वहीं पाकिस्तान में इनकी संख्या 50 से अधिक है। इसी तरह से मेरे ऊपर लिखी गईं किताबें भी बेहिसाब हैं वहीं शेरों की संख्या की संख्या भी हजारों में है। मप्र उर्दू अकादमी से पहले मैं मेरठ में प्रोफेसर था, और तब भी जमकर लिखा करता था।
-लेकिन मेरा सवाल तो बतौर चेयरमेन प्रदेश में उर्दू और शायरों के लिए गए प्रयासों के बारे में है ?
[मुस्कुराते हुए]
ये बात आपको मेरे दोस्तों... ने कही होगी। मेरा वश चलता और अगर कैफ जिंदा होते तो उन्हें महीने में दो बार और इशरत को साल में दो बार बुलाता, लेकिन अब मेरे पास इतना समय नहीं है। वैसे भी भोपाल के शायर और उनकी भाषा समय के साथ नहीं चल रहे हैं। हां ये माना जा सकता है कि कैफ की भाषा वही थी जो आज बशीर की भाषा है।
-आपको पता है कि आपके समकालीन और भोपाल के उस्ताद शायर रजा रामपुरी लंबे समय से बीमार चल रहे हैं ?
क्या कह रहे हैं, मेरा विश्वास जानिए, मुझे तो खबर ही नहीं कि रजा रामपुरी बीमार हैं वो लंबे समय से। मुझे माफ करें, गलती मेरी ही है। लेकिन अब मेरी भी तो लिमिटेशन हैं। सभी मेरे सगे भाई की तरह हैं। जब से व्यस्तता बड़ी है, समय ही नहीं मिल पाता। जब आजाद था तो आज से 5 गुना 'यादा आमदनी थी, मुझे एक-एक शेर का हजारों रुपए मिलते हैं। मप्र के गर्वनर और अटल जी वही पूर्व प्रधानमंत्री खुश होकर मुझे एक-एक शेर पर 15 हजार रुपए दिया करते हैं।
-आपके शायर दोस्त कहते हैं कि बशीर बद्र अब पहले जैसे नहीं रहे, बेहद मतलबी और आत्ममुग्ध हो गए हैं। केवल वही काम करते हैं जिससे पैसा और शोहरत मिले ?
देखिए दुनिया बदल रही है, उसके साथ जो नहीं बदला समझो वो तो गया। बदलने में बुरा क्या है, समय के साथ अपडेट रहता हूं और अपनी मर्जी की करता हूं। पैसा और शोहरत किसे अच्छे नहीं लगते। मेरा घर आपने शायद अभी भीतर से नहीं देखा, करीब 20 कमरे हैं और हर कमरे को अलहदा ढंग से लाखों खर्च सजाया है, हां हर कमरे में टीवी भी है। अल्लाह मुझ पर मेहरबान है तो ही तो मुझे यह सब दे रहा है न। मेरा एक बेटा है जो कि हमेशा 92 प्रतिशत नंबरों से इम्तिहान पास करता आ रहा है , शासन की ओर से उसे 500 रुपए का वजीफा मिल रहा है और जब तक वो पढ़ता है, मिलता रहेगा।
- रजा रामपुरी को तो शासन द्वारा शायरों के लिए दिए जाने वाले 1500 रुपए वजीफे के लिए आज तक एडि़यां घिसना पड़ रहा है, बीमारी का इलाज भी ढंग से नहीं हो पा रहा, क्या आप सरकार से उनके लिए कुछ प्रयास किया ?
हम ही तो हैं शासन, मैं उर्दू अकादमी में हूं किस लिए। पता नहीं उन्होंने अभी तक क्यों यह बात मुझे नहीं बताई। वो दस्तखत करके एक आवेदन दे दें,उन्हें वजीफा दिलवा दूंगा।
-मप्र उर्दू अकादमी पहले की तरह अब न तो शायरों के कलेक्शन छपवाती है और न हीं सालाना एक बड़ा मुशायरा करवाती , जब कि फंड की तो कोई कमी नहीं है?
नहीं साहब, फंड की तो अभी भी बेहद कमी है, मैं तो अपनी तनख्वाह भी नहीं लेता, हां इतना जरूर है कि वहां के बाकी कर्मचारियों को कोर-कसर नहीं रहने देता, उनको वेतन समय पर मिलता है।
-मप्र उर्दू अकादमी को सरकार से कितनी फंडिंग हो रही है ?
ठीक से याद नहीं कितनी फंडिग हो रही है लेकिन जितनी भी हो रही है वो बहुत कम है। बड़े मुशायरे न कराने की एक वजह तो फंड की कमी है और दूसरा मैं गवैए और खराब शायरों को तो हरगिज नहीं बुला सकता। जहां तक आयोजन का सवाल है तो अकादमी में हर पखवाड़े इसी तरह का एक बड़ा आयोजन होता है जिसमें करीब 500 लोग इकट्ठा होते हैं, इतना काफी है।
-इशरत कादरी का दर्द है कि उनके पास जो अदद लायब्रेरी है उसको वे जिम्मेदार हाथों में देना चाहते हैं लेकिन किसे दें, मप्र उर्दू अकादमी को तो वो हरगिज नहीं देना चाहते?
इशरत साहब को मैंने अपने पास से हजारों रुपए की किताबें दी हैं। अगर वो उनकी साज-संभाल नहीं कर पा रहे हैं तो मेरी अकादमी को दे दें, जितनी उनके घर में सुरक्षित हैं यहां भी रहेंगी, बाकी तो फिजूल की बाते हैं।
आपके शायर दोस्त कहते हैं कि बशीर बद्र हमेशा सरकार की गोद में बैठ जाते हैं?
ऐसे दोस्तों के लिए मुझे कुछ नहीं कहना, खुदा की कसम मैं तो बस एक ही व्यक्ति की गोद में बैठा था, बैठा हूं और बैठा रहूंगा जिनका नाम है अटल बिहारी वाजपेयी। मैं तो उनका बेटा हूं। अब लोग कुछ भी कहें मुझे इससे फर्क नहीं पड़ता।
-अगर आप सब कुछ ठीक कर रहे हैं तो क्या बाकी शायर आपसे जलते हैं?
देखिये मैं ऐसा कुछ नहीं कह सकता, हां ये जरूर है कि आज गालिब और मीर भी होते वो भी यकीनन जलते, यह तो हिंदुस्तान की रिवायत है। इसके साथ ही उन्होंने ऐसे शायरों के लिए ये शेर पढ़ा-
खुदा ने मुझको गजल का दयार बख्शा,
ये सल्तनत मैं मुहब्बत के नाम करता हूं।
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:45 AM
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26 कमेंट्स:
वाह सर..क्या बात है...पता नहीं यह इनका अज्ञान है या अहंकार.........
बड़ा गड़बड़झाला है, अहंकार तो बशीर बद्र को बहुत रहा है...आज से नहीं, पिछले बीसेक साल से. अज्ञान भी है लेकिन चापलूसी और अहंकार एक साथ चलें तो क्या मुरब्बा बनता है उसकी लाजवाब मिसाल है. अहंकार बेचारा उर्दू के मुफ़लिस शायरों के लिए है, शान से बता नहीं रहे कि बीस कमरों के सजे-धजे मकान में रहते हैं. चापलूसी है उनके लिए जो सत्ता में रहे हैं (देश और प्रदेश में, अब सिर्फ़ प्रदेश में, लेकिन फिर देश में आने की उम्मीद से हैं). ऐसे बहुत दबंग देखे हैं और उनका मिमियाना भी देखा है. बशीर बद्र उर्दू अदब के अमिताभ बच्चन हैं, शायरी में दम है, आदमी में नहीं.
>ठीक से याद नहीं कितनी फंडिग हो रही है लेकिन....
>हम ही तो हैं शासन...उन्होंने अभी तक क्यों यह बात मुझे नहीं बताई। वो दस्तखत करके ....
पता नहीं उन्हें किस बात का अहंकार है लेकिन उनकी ये बनावटी बातें किसके गले उतरेंगीं? ये वहीं (नाम) हैं जिन पर चुरा कर शेर अपने नाम से कहने का आरोप लगा तो कैफियत देते भी नहीं बनी थी... बस चीखते चिल्लाते रहे.
आज किसी मुकाम पर हैं तो विनम्र भी नहीं रह सकते... ऐसा घमंडी मिजाज भी किस काम का. और दावा किए हैं शायर होने का ... खुदा इन्हें अक्ल दे...
अनामदास जी ने कहा है : "बशीर बद्र उर्दू अदब के अमिताभ बच्चन हैं, शायरी में दम है, आदमी में नहीं." चलिए कम से कम शायरी में तो दम है... ये पोस्ट पढने के बाद मुझे तो भरोसा नहीं की शायरी में दम होगा... पर कभी पढ़ा नहीं. शायद मनीषजी के ब्लॉग पर एक बार पढ़ा था.
इतना घमंड, एक दिन तो जरूर टूटेगा।
हे राम! कहूँ, या राम! राम!...
मैने तो पढ़ा था कि फलदार वृक्ष की डालियाँ झुक जाती हैं। लेकिन यहाँ तो कुछ और ही नजारा है। यहाँ बाबा तुलसी याद आते हैं-
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
प्रभुता पाइ काहि मद नाहीं...
~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~~
लानत है इस मिजाज़े शायर पर
किसी को कुछ कहने की जरूरत है? जो कुछ है, आईने की तरह साफ है।
कहीं न कहीं कुछ गफलत है-विश्वास करने को जी नहीं करता. पुनः मुल्यांकन करना चाहिये परिस्थिती जन्य!!
-५ दिन की लास वेगस और ग्रेन्ड केनियन की यात्रा के बाद आज ब्लॉगजगत में लौटा हूँ. मन प्रफुल्लित है और आपको पढ़ना सुखद. कल से नियमिल लेखन पठन का प्रयास करुँगा. सादर अभिवादन.
यकीन नहीं कर पा रहा कि इतनी बेवकूफ़ाना बातें कोई यूँ खुलेआम कर सकता है। मुझे लगा स्पूफ़ टाइप इंटरव्यू है।
यकीन करना मुश्किल हो रहा है इस तरह की बातों पर ..झुकना ,विन्रम रहना कला को और निखार देते हैं ..पर जब अहंकार आ जाता है तो विनाश निश्चित है ...
यह सच्ची का इंटरव्यू है या कुछ मजाकिया, व्यंग्यात्मक टाइप। क्लियर करें जी।
खुदा ने मुझको गजल का दयार बख्शा,
ये सल्तनत मैं मुहब्बत के नाम करता हूं।
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मेरा इत्तिफाक़ शायर से ज्यादा
शायरी के मिजाज़ से है....लिहाज़ा
ऊपर प्रस्तुत जानदार शे'र के मुक़ाबिल
मैं किसकी चर्चा करुँ,सोचना पड़ रहा है !
फिर भी, मेरी दृष्टि में
साफ़गोई वही अच्छी कही जाएगी
जिससे आँखों से सामने का कुहासा दूर हो.
मोहब्बत की कलमगोई, दरम्यानी फासलों के
को मिटाकर ही दम लेती होगी, वह सियासत के
सहारों या सहारों की सियासत के सामने कभी
न झुक सकती है और न टूट सकती है !!
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अजित भाई ,
मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि यह सब क्या है? या क्या हो रहा है? शायरी से उर्जा और उजास पाने वाले क्या करें ,इस तरह का इंटरव्यू पढ़कर?
बड़ी गफ़लत में हूं,दद्दा मदद करो .SOS!!
आत्ममोहित होना और सनकी होना शायरों के लिये नई बात नहीं है. असुरक्षित होना और शासकों की चाटूकारी करने वाले शायरों की भी कमी नहीं है. बशीर बद्र भी उसी कडी का एक हिस्सा हैं.
रही बात मीर और गालिब से स्वयं की तुलना करने की - ऐसा तो ये मुशायरों के मंचों तक पर कर चुके हैं, मुझे आश्चर्य होता है कि ऐसे में बंदे का कोई साथी संगी खांस-खंखार के इशारा क्यों नहीं कर देता - कंट्रोल कर यार कंट्रोल कर!!
सच कहूं तो यकीन नही हो रहा कि जिनके एक एक शेर पर जमाना झूमता है वह शख्स इस कदर अहं से ग्रसित होगा।
चलो सुहाना भरम तो टूटा………
मेरा सवाल भी वही है, जो आलोक पुराणिक जी का है....या कहीं ऐसा तो नहीं कि निदा साहब का शेर याद कर लें...
हर आदमी में बंद हैं दस-बीस आदमी.....
.......................
अजित भाई,
इन स्वनामधन्य महाकवि का इसी टोन का इन्टरव्यू 'रविवार.कॉम' पर महीनों से लगा हुआ है. मैं तो तब से खिन्न हूं. यह रहा लिंक:
http://raviwar.com/footfive/F2_Basheer_badra_interview.shtml
एक बानगी देखिए:
*मुल्क की तरक्की (सवाल)
- मेरठ में मेरे पास ढाई कमरों का आशियाना था, अब 12 कमरों की हवेली है, जिसके हर कमरे में टीवी लगा है. तीन कारें हैं, चौथी देख कर आ रहा हूं. घर में केवल 3 लोग हैं, मैं, मेरी बेगम और मेरा बेटा. आज देश के ज्यादातर घरों में आपको टीवी, फ्रिज मिल जाएंगे, इसे आप तरक्की नहीं तो और क्या कहेंगे?
इस के बाद क्या कहने को बचता है आप ही बताएं.
ये एकदम सच्ची मुच्ची का मामला है इसीलिए आपके सामने है। शब्दों के सफर में सनसनी नहीं है भाई ! ये साहब ऐसा पहली बार कहते नहीं पाए गए हैं। बरसों से इसी किस्म के सन्निपात में हैं। उत्तर से दक्षिण का सफर , इतिहास गवाह है, बेहद गंभीर साबित होता है खास तौर पर ऐसी ही बातें मुंह से निकलने लगती है।....कुछ किस्से , कुछ मुहावरे पैदा होने लगते हैं....
अजीब बात है ना किसी भी लिखने वाले के नजदीक जाकर उसकी लिखा हुआ इतना मजा नही देता .....अलोक धन्वा बड़े क्रांतिकारी कवि रहे ...उनकी पत्नी ने जो कुछ उनके बारे में लिखा ...उसे पढ़कर उनकी कविता से नफरत हो गयी ..किसी भी पत्रिका को उठा कर देख लो 'हंस 'हो या "नया ज्ञानोदय "या कोई ओर साहितियिक पत्रिका सबके सब ऐसे लड़ते है.....हैरान हूँ ये इंटरव्यू अगर सच्चा है तो ...
"मुझे एक-एक शेर पर 15 हजार रुपए दिया करते हैं। ".....ये पढ़कर .सोचता हूँ उन किताबो का क्या करू जो मेरी शेल्फ में रखी है ...फिराक पर जौकी साहेब ने कहा था की वे भी बड़े मगरूर ओर बद दिमाग इंसान थे ....ओर कल ही पढ़ रहा था की विष्णु प्रभाकर कितने ईमानदार आदमी रहे है.......
शोहरत बड़ी अजीब चीज है .अपने साथ अंहकार भी ले आती है पर हर आदमी के बस में इसे संभालना नही होता .... मै भी अपने जीवन में एक दो मशहूर लोगो से मिला हूँ पर उनसे मिलकर जो लगा वो लिखा था
करीब जाकर छोटे लगे
वो लोग जो आसमान थे
पर आज आपने दिल दुखा दिया अजीत जी
अजी छोड़िए, बशीर साहब की शायरी का जवाब नहीं! लेकिन क्या कहें अंहकार की परिभाषा क्या है? अब हो भी सकता है कड़वा करेला वह नीम चढ़ा! क्यों?
शायर कोई देवता नही होता हाँ इतना ज़रुर है कि वो औरों से ज्यादा
संवेदनशील होता है लेकिन वो तब तक ही संवेदनशील होता है जब तक कोई ग़ज़ल कहता है उसके बाद हो सकता है कि आम आदमी से
भी ज्यादा गिर जाये और दौलत और शोहरत को हज़म करना इतना आसान नही होता.
ये सब बड़े शायर इन को अगर इनके रंग मे आप देख लो तो इन्हे पढ़्ना छोड़ देंगे आप. शराब और शबाब हर वक्त इनकी बगल मे रहता है. खैर हमे तो आम खाने से मतलब है पेड़ गिनने से नहीं.लेकिन इस शायर ने बाकई अपना छोटापन जा़हिर किया है.
dukh huaa..padhkar
"उसे बशर न जानिएगा कितना ही हो फ़हमोज़का ,
जिसे ऐश में यादेखुदा न रही जिसे तैश में खौफ़ेखुदा न रहा ।"
टिप्पणियां पढ कर बशीर साहब तो यही समझेंगे, मैं न कहता था मीर और गालिब भी होते तो मुझसे जलते। बहरहाल इंटरव्यू व्यंग्य के तौर पर पढा जाय तो खासा मनोरंजक है। अजीत जी धन्यवाद। लगे हाथ एक पसंदीदा शायर के बारे में भरम भी टूटा।
यह इन्टरव्यू सत्य है. इज्जत करता था. मैं उनकी दिमागी हालत अटल बिहारी वाजपेयी जी के दिनों से जानता हूँ. मुंबई में एक मुलाक़ात भी हुई थी. लेकिन अब बशीर बद्र नामक अहमक और जहन का तवाजुन खो चुके सांड से कहो कि वह क्यों शायरों की गर्वीली परम्परा को कलंकित करने पर तुला हुआ है... क्यों वैनुअल अकवामी सतह पर भारत के बड़े शायरों की मिट्टीपलीद करने पर आमादा है? ....और उससे डिमांड करो कि अब वह अपने से ही बेहतर एक अदद शेर कहकर दिखा दे! बड़े-बड़े बददिमाग शायर भारत ने देखे हैं लेकिन इस जैसा बेशर्म और छुद्र कोई न गुजरा...ग़ालिब का अंहकार सर्वविदित है. मीर ने ग़ालिब से ज्यादा घमंड बादशाह को दिखाया था..
शायर जब अपना जमीर बेच देता है वो शायर नही रहता ....आज बसीर साहब को ना शायर अच्छे लगते ना मुशायारी ..हर शायर उन्हें गवैय्या लगता है और मुशायरा बेकार की बात .. ...उन्हें अच्छा लगता है तो बस पैसा...और ठीक भी है ..धन और औरत तो अच्छे अच्छो का ईमान बिगाड़ देती है ..फीर भी एक अर्ज़ है बसीर साहब से जनाब मेरठ की उन गलीयो को मत भूलयेगा जहा से आपको चिरागों की रोशनी मिली..बसीर साहब ये जो 20 कमरों का आपका घर जिसे आप शायरी से ज्यादा तबज्जो दे रहे है ये आपको शायरी से मिला है ...शायरी सी आपको क्या मिला और शानो शौकत से आपको कितनी शायरी मिली ..ज़रा सोचना ..अगर बहतरीन घर और दौलत से शायरी मिलाती लिखने का हुनर मिलता तो आज शायद टाटा और बिरला का परिवार भारत का सबसे बड़ा साहित्यिक घराना होता ..मुझे आपका साक्षात कार कैसा लगा मेरे शब्दों से पता चल जायेगा...
इन कूप के अंधेरो में मत झांकिए हुजुर ..
मैंने देखी है यहाँ दोजख बेहिजाबी सदा .......
...सादर रिगार्ड्स बसीर साहेब ...गुरु कवी हकीम हरी हरण हथौडा
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