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मूलतः प्रभु के अर्थ में जो ईश्वरीय भाव है वे उजागर होने , दृष्यमान होने से जुड़े हैं। जिसमें जगत को प्रकाशित कर उसे उजागर करने की शक्ति है जो प्रभात लाता है, जो प्रभाकर है, भास्कर है, जिसके प्रभाव से भूलोक आभासित है वही प्रभु है ।
ईश्वर के अनगिन नामों में एक नाम प्रभु है जो रोज़मर्रा में हम खूब इस्तेमाल करते हैं। प्रभु के परभू और पिरभू जैसे रूप भी गांव देहात में बोलने-सुनने को मिलते है और इससे बने कई नाम भी हिन्दी में प्रचलित हैं जैसे प्रभुलाल, प्रभुदयाल, प्रभुनाथ, प्रभुसिंह,प्रभुदास और प्रभुशरण आदि।
प्रभु शब्द में भ वर्ण महत्वपूर्ण है क्यों कि प्र तो उपसर्ग है। भ वर्ण या धातु में इंडो यूरोपीय भाषाओं के दर्जनों शब्दों के जन्मसूत्र मिलते हैं। प्रभु शब्द में भी सूर्य, प्रकाश, कांति अथवा अग्नि की महिमा ही नज़र आती है । यह शब्द भी इस बात का प्रमाण है कि मनुष्य के आदिदेव सूर्य ही है। संस्कृत की भू धातु का अर्थ होता है जो पहले नहीं था अर्थात घटित होना। जो कुछ अब सामने है, उसके होने से यहां तात्पर्य है। भू यानी उगना, उदित होना, उदय होना, फूटना आदि। यहां स्पष्ट संकेत सूर्य से है। सूर्य यानी प्रकाशपुंज जिसके उदित होने से जग के होने का बोध होता है। अंधकार में जगत का बोध नहीं होता।
भू में प्र उपसर्ग लगने से बना प्रभु जिसका मतलब होता है सर्वशक्तिमान। जिसके न होने से सृष्टि का आभास न हो , जिसके उदित होने से विश्व जागृत लगता है वही प्रभु है। प्रभु शब्द का प्रयोग यूं व्यवहार में बलवान, शक्तिशाली, अधिपति, स्वामी, शासक के तौर पर भी किया जाता है। महर्षि के लिए भी महाप्रभु शब्द प्रचलित है। भू से बने भूः का अर्थ होता है भूमि, धरती । गौर करें कि भूमि के पृथ्वी, वसुधा, वसुंधरा, अचला आदि कई नाम हैं। मगर भूः या भूमि में वहीं है जो उदित है, प्रकाशमान है, सूर्य के सम्मुख है, दृष्यमान है।
भू के बाद एक अन्य धातु है भा जिसका अर्थ प्रकाश, कांति, चमक, दीप्ति आदि है। सूर्य के लिए भास्कर शब्द इसी से बना है। भास् यानी प्रकाश, रोशनी, किरण आदि। भास्कर का अन्य अर्थ नयक , अग्नि अथवा प्रतिबिंब भी होता है। आ उपसर्ग लगने से बना आभा जिसका अर्थ भी कांति ही है। प्रकाश की उपस्थिति से ही जगत् की प्रतीती होती है जिसे आभास कहते हैं। बुद्धि की चमक ही प्रतिभा है। सूर्य की किरण को प्रभा कहते हैं। प्रभामंडल ही दरअसल ईश्वरीय संकेत है। प्रभा यानी एक अप्सरा जिसका सौन्दर्य सूर्यकिरणों की तरह अतुलनीय था। प्रभा यानी देवी दुर्गा जिनका तेजोमय रूप वर्णनातीत है। सुबह के लिए प्रभात का जन्मसूत्र भी इसी भा से जुड़ा है। प्रभात यानी जो होने लगा है, स्पष्ट है , व्यक्त है । अर्थात सुबह ।
संस्कृत में भर्ग और भर्ज का अर्थ होता है चमकदार, प्रकाश, सूर्य का तेज आदि। भृगु शुक्रतारे को कहते हैं जो अपनी चमक के लिए ही प्रसिद्ध है। विद्वानों ने इससे मिलती-जुलती धातु प्राचीन इंडो-यूरोपीय भाषा परिवार में खोजी है bhereg जिससे भारतीय, ईरानी और यूरोपीय भाषाओं में कई शब्द बने हैं। अरबी में आसमानी बिजली के लिए एक शब्द है बर्क़ । यह हिब्रू में बराक़ के रूप में मौजूद है मगर भाषाविज्ञानी इन्हें सेमेटिक मूल का न मानते हुए भारोपीय मूल से गया शब्द ही मानते हैं। बर्क़ फारसी का शब्द है और इसके बल्क, बर्ख़, वर्क़ जैसे रूप भी ईरान में प्रचलित हैं। अंग्रेजी का ब्राइट और जर्मन का ब्रेनॉन इसी कड़ी में आते हैं।
आपकी चिट्ठियां - डाक्टर साहब , आपको लेख गरिष्ठ लगा इसका मुझे अफ़सोस है। क्योंकि एक तरह से मैं यहां अपने उद्देश्य में असफल रहा हूं। मेरी कोशिश है कि इस शब्द व्युत्पत्तियों पर मैं आमफ़हम को समझ में आने लायक आलेख लिखूं। अगर आप जैसे प्रबद्ध को यह गरिष्ठ लगा है तो मुझे और मेहनत करनी होगी। कठिन लिखना आसान है, आसान लिखना कठिन। कोशिश करूंगा कि सफर में सुपाच्य सामग्री परोस सकूं। बने रहें साथ। प्रिय भाई, आपकी पहली बात को सिर माथे लेता हूं। आपको मेरे प्रयास सार्थक लग रहे हैं इससे बड़ी बात और प्रसाद मेरे लिए कुछ और नहीं है। दूसरी बात एकदम सही है। भाषा विज्ञान में शास्त्र ज्यादा है। मुझे लगता है कि सामान्य विद्यार्थी के लिए भाषा की जानकारियां शास्त्रीय ढंग से न दी जाकर रोचक शैली में ही दी जानी चाहिए। शास्त्र तो उसके लिए है जिसने इस क्षेत्र में काम करने की ठानी है। व्युत्पत्ति तो शब्दार्थ को समझने का पहला चरण है। मगर उसे भाषा विज्ञान के साथ चस्पा कर दिया गया और आम हिन्दीवाला भी इस दिलचस्प क्षेत्र से दूर है। प्रियभाई, आपकी चुपके से ब्लाग पढ़ने की साफ़गोई पसंद आई। कृतघ्नता वाली बात इसलिए नहीं क्योंकि यह तो मैं ही अपनी मर्जी से साझा कर रहा हूं क्योकि इसमें ही आनंद है। आपकी दसपना वाली व्युत्पत्ति एकदम सटीक है। पक्की एकदम। बने रहें सफर में । अजीब बात है। जब मैं स्टार न्यूज़ में था तब सिर्फ एकबार हमारी मुलाकात दिल्ली में हुई। और अब आप चुपचाप सफर में आते हैं , और बिना मिले चले जाते हैं। ये ठीक है ? -ajit wadnerkar |
12 कमेंट्स:
आपका यह ब्लॉग और स्वयं आप भी भास्कर की तरह ही हें जो ज्ञान का प्रकाश निरंतर बिखेर रहे हैं. आपके इस ज्ञान से मुझ जैसा कमबुद्धि वाला इंसान भी आभासित हैं.. शुक्रिया अजित भाई. एक और ज्ञानवर्द्धक पोस्ट के लिए.
मैं डॉ अमर कुमार की उस टिप्पणी से सहमत नहीं हूं जिसमें उन्होंने लेखन शैली का जिक्र किया. यह सहज शब्दावली से रचा जा रहा उच्चकोटि का साहित्य है. कृपया इसे बनाए रखें.
Bhoo aur bha se nikale vibhinn shabdon kee aapne jis sahajta se wyakhya kee hai stuty hai. hamesha kee tarah mahiteeporn yah safar nirantar chalta rahe.
मूलतः प्रभु के अर्थ में जो ईश्वरीय भाव है वे उजागर होने , दृष्यमान होने से जुड़े हैं। जिसमें जगत को प्रकाशित कर उसे उजागर करने की शक्ति है जो प्रभात लाता है, जो प्रभाकर है, भास्कर है, जिसके प्रभाव से भूलोक आभासित है वही प्रभु है
जानकारी बढ़ी।
आप की इस (भगवान) श्रृंखला ने बहुत से शब्दों के मूल और अर्थ स्पष्ट कर दिए हैं। अनेक जिज्ञासाएँ शान्त हुईं और अनेक पैदा भी। ये जिज्ञासा ही ज्ञान को बढ़ाती हैं।
खूब आनँद लिया हमने भी
इस
"भगवान जी की खोज यात्रा का " जी ! :)
आगे उनसे इता निवेदन है कि,
" प्रभु मोरे अवगुण चित्त ना धरो "
-लावण्या
प्रतिभा-प्रसूत यह शब्द-शक्ति का
है प्रशस्त अनुपम उपहार,
आभा और प्रभा के वाहक
शुभ प्रभात करिए स्वीकार.
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आभार अजित जी !
चन्द्रकुमार
क्षमा करें..मित्र..
एक बार फिर क्षमा करें...बेटी निमिषा के एकाउंट से जवाब भेजने के लिए...पंकज श्रीवास्तव
bahut khoob,aisi hi jankari pradan karte rahen
जय हो प्रभु की !
प्रभु को जानने, उसकी व्याख्या करने में आदिकाल से ही सब साधु संत, बलवान्, पहलवान लगे हैं किन्तु जिस बखूबी आपने इस शब्द को बखाना है, हमारे ज्ञानचक्षु खुल गये. आपकी कलम को नमन.बहुत आभार.
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आपके स्नेह और सतत हौसला अफजाई से लिए बहुत आभार.
प्रभु से सम्बन्धित अब तक की सभी श्रृंखलाओं ने चमत्कृत कर दिया...
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