पेश है भवानीप्रसाद मिश्र की एक खूबसूरत सी कविता-
सागर जैसा
जागता रहता है
मेरा मन
सोये हैं सब
जब इस आधी रात में
और घिरे हैं घन
जब आसमान में
तब भी झांकता रहता है
सूरज मुझ में
किसी एक रूप का
समझ में नहीं
आता
क्या करूं
इस आधी रात की धूप का !
Thursday, October 4, 2007
आधी रात की धूप...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 3:06 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
0 कमेंट्स:
Post a Comment