Tuesday, May 20, 2008

बेजी का पसंदीदा पड़ौस-ब्लागजगत [बकलमखुद-38]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र और अफ़लातून को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के आठवें पड़ाव और अड़तीसवें सोपान पर मिलते हैं दुबई निवासी बेजी से। ब्लाग जगत में बेजी जैसन किसी परिचय की मोहताज नहीं है। उनका ब्लाग मेरी कठपुतलियां हिन्दी कविताओं के चंद बेहतरीन ब्लाग्स में एक है। वे बेहद संवेदनशील कविताएं लिखती हैं और उसी अंदाज़ में हमारे लिए लिख भेजी है अपनी वो अनकही जो अब तक सिर्फ और सिर्फ उनके दायरे में थी।

घर-परिवार में रम गए...

शादी के बाद का सफर भी कम दिलचस्प नहीं था। मैं पुरानी हिन्दी की हीरोइन्स से पूरी तरह इन्सपायर्ड थी। सो घर का काम बड़ा दिल लगाकर करती। जब तक जयसन घर नहीं पहुँचते खाना नहीं खाती।
अजीब सी बात थी। पाँच बहनों के दुलार में बड़े जयसन को लड़की और लड़के का फर्क बिल्कुल समझ नहीं आता। जिस दिन मुझे देर होती वो भी भूखे प्यासे बैठे रहते।
जयसन को बच्चों से बेहद लगाव है। उनकी तरफ की जिम्मेदारियों की तरफ वो बहुत सजग हैं। काम में अपना सहयोग देना कर्तव्य समझते हैं। नहीं कर पाते तो दुखी भी हो जाते हैं।

म में से कोई भी धर्म को लेकर धुनी नहीं है। दोनों को धर्म के भीतर के चिंतन में ज्यादा रुचि है। जो दिल को भा जाता है याद रख लेते हैं। जयसन को बाईबल, रामायण, महाभारत के बारे में मुझसे ज्यादा पता है। जानना हम दोनो चाहते हैं।
त्योहार सभी मनाते हैं। दुबई में भी।
बहुत कुछ साथ साथ देखा। प्लेग, गुजरात का साइक्लोन, भूकंप, दंगे.... । नर्मदा बचाओ की गर्मी देखी...उसपर नया पुल बनते देखा, नर्मदा की गोद में किश्ती में झूलकर देखा।

बसे मुश्किल मेरा दुबई में आकर काम करना रहा। जयसन अभूदाबी में कार्यरत थे। मैं चाह कर भी कहीं काम नहीं कर पा रही थी। हज़ार झंझट थे। फिर से एक्साम लिख कर क्वालिफाई करना। फिर काम ढूँढना। अँधाधुँध काम के लिये अप्लाई किया। दुबई में नौकरी मिली। सवा साल की गुड़िया और चार साल का जोयल। दुबई का द भी मालूम नहीं था। जुलाई की गर्मी। कार एकही थी जो जयसन के पास थी । जयसन के काम की जगह से चार घंटे का रास्ता था। आना जाना हफ्ते में सिर्फ एक बार।
पर मैं अड़ी थी। बहुत मुश्किल था ऐसे में ऐसे जज़्बाती निर्णय को समर्थन देना। पर जयसन ने दिया।
एक साल में अकेले एक नये देश में जीना सीखा। कार खरीदी। सड़के और रास्ते सीखे। बच्चों को जैसे तैसे सँभाला। काम किया। किसी तरह अपना आत्मविश्वास बनाये रखा।

रीब तीन साल दूर रहने के बाद....हर हफ्ते अप डाउन करने के बाद आज हम सब दुबई में साथ हैं।
भाई (http://www.blogger.com/profile/08211042258385059443) आइ बी एम, माइक्रोसॉफ्ट और फिर इंटेल पहुँचा। भाभी भी स्टेट्स में भाई के साथ। मम्मी पापा ने पाँच बेडरूम बड़ा सुंदर बँगला बना लिया।
मैने क्लीनिक की नौकरी साल भर के बाद छोड़ दी। यहाँ स्कूल में जब बच्चों की सँख्या 1500 से अधिक हो जाती है तो डॉक्टर लाजिमी होता है। जोयल और गुड़िया के स्कूल में जब जगह बनी मैंने भर दी।
दुबई में अपने शौक नहीं छोड़े। बैडमिन्टन, टेबलटैनिस स्कूल में अक्सर अब भी खेलती हूँ।

गुड़िया भरतनाट्यम और कर्नाटिक म्यूसिक सीखती है। जोयल कीबोर्ड सीखता है। दोनो सी बी एस ई स्कूल में जाते हैं। ऑप्शनल लैंगुएज हिंदी है।
जयसन जो हिन्दी बिल्कुल नहीं जानते थे अब मलयालम एक्सैंटेड हिन्दी फर्राटे से बोलते हैं। लक्ष्मी और प्रीती आज भी साथ है। कॉलेज में जास्मिन, वैशाली , शशि और ममता मिले। लक्ष्मी बरोड़ा में। कल ही जन्मदिन के लिये एक पार्सल आया। प्रीती भी बरोड़ा में। साउदी से वापस जाते जाते दुबई होकर गई। वैशाली और ममता भी नहीं छूटे। [जयसन के मम्मी-पापा के साथ]
दोस्ती के मामले में हमेशा कंजूसी की। बहुत सोच समझ कर....और एक बार हो गई तो कभी छूटी नहीं।
पिछला साल बहुत अजीब रहा। जीवन में जो कोई – पहचान, ख्याल, सपना....कहीं छूट गया था वापस मिल गया। फिर से रूबरू होना अपने आप में एक अनुभव था।
खुद भावनाओं के उतार चढ़ाव पर रही। जयसन ना जाने कैसे संयत होकर समझते रहे।

मैं और तू



मैं

समंदर बवंडर
मैं हलचल चंचल

गहरे में उतरती
उथले में उभरती

लहरों में सँभलती
साहिल पर छलकती

बहकती चहकती
सिमटती बिखरती

चाँद की चाह में
ललक से उछलती

सीपी सी शर्माई
मोती सी भर्राई

तूफान हूँ
मन का ऊफान हूँ

बोतल में राज़
की राजदार हूँ


डुबोया भी है
और उभारा भी है

मैं बेचैन हूँ
स्वप्निल नैन हूँ

तू

वो आगोश है
जिसके होश में
सँभलती भी हूँ
संवरती भी हूँ

जहाँ सिमट कर
आराम से
नींद की छाँव में
ठहरती हूँ मैं

मैं समंदर हूँ
तरंगों भरा....
तू वो तल है
जो इसको लेकर खड़ा....



और ब्लागिंग की सतरंगी दुनिया में बेजी

दो साल हुए ब्लागिंग को। भाई ने ही रास्ता दिखाया था। काफी लिखा, वहुत पढ़ा।
मेरे पसंद के कई ब्लॉग हैं। सबसे पसंदीदा ब्लॉगर से ही हैं-

अजदक, अनामदास, अजगर, अनिल, अभय, अजित, अफलातून, अनुराग आर्या, अनुराग अन्वेषी, अनिताजी, अनूप भार्गव और अरुण
अविनाश की कवितायें पसंद है
ब्लॉगर दंपति- आभा और बोधिसत्व ,.अनूप और रजनी, मसीजीवी और नीलिमा
आलोक जी के फैन हैं हम...
अज़दक, मीत और पारुल की आवाज़ बेहद पसंद है
उड़न तश्तरी का जवाब नहीं...जब कभी उड़ना हो तो हाज़िर और रेस्क्यू ऑपरेशन्स से भी परहेज नहीं...
फुरसतिया जी की चिट्ठाचर्चा और लंबी पोस्ट्स...पता नहीं क्यों पर फुरसतिया शब्द दिमाग में कौंधते ही वे साईकल पर दिखते हैं...
मनीष जोशी की कलम, प्रत्यक्षा दी का लेखन, रविश जी की रिपोर्टिंग और मीनाक्षी दी के हाईकू...
मनीष जी की शामें , सृजन जी की संयत कलम और विमल जी की ठुमरी
प्रियंकर जी की पसंद, कवितायें और टिप्पणी,
पर्यानाद, बलविंदर जी , दिनेश जी और शास्त्री जी की सजग कोशिश...
संजीत, प्रशांत , बालकिशन और अजय कुमार झा का तारीफ करने का अंदाज़
घोस्ट बस्टर जी का चित्र, ज्ञानदत्त जी की रेलगाड़ी और शिव कुमार जी की बंदूक
घुघूति जी का अंदाज़, लेखन और परिपक्व सोच...
चोखेरबालियाँ...

नये लोगों में पल्लवी, रश्मि प्रभा, महक, कंचन
दो दो - रचना, नीलिमा, बेंगाणी ब्रदर्स
स्वप्नदर्शी , लावण्या जी ,आशा जी, ममता और रजनी जी का शालीन व्यक्तित्व
देबू दा, जीतू जी, गीतकार –पुराने ब्लॉग साथी
अशोक जी का कबाड़खाना, सस्ता शेर,युनुस जी का रेड़ियो , इरफान जी की टूटी बिखरी और काकेश की काँव काँव
इन ब्लाग्स के पीछे के लोग काफी दिलचस्प लगे। सभी के पीछे एक व्यक्ति साफ नज़र आता है।
हमेशा लोगों को समझने का शौक रहा। भाषा की खूबी से ज्यादा कौन किस परिस्थिति में किस प्रकार की प्रतिक्रिया देता है जान सकी।

कितने विवाद हुए - ब्लॉग जगत के लगभग हर विवाद में हिस्सा लिया ....
हिंदू मुसलमान- सारा को खत
पत्रकार क्यों बने ब्लॉगर
नारी क्या करे क्या नहीं..

मेरे लिये ब्लॉगजगत मेरा पसंदीदा पड़ोस है....दोस्त भी हैं, अच्छे लोग भी है, अपने भी है, सपने भी...सीखने की काफी गुंजाइश..... अनामदास ने एक बार कहा था आज का कॉफी हाउस...
बकलम पर डॉ चँन्द्रकुमार जी की टिप्पणियों ने खुश किया।
खुद टिप्पणी करने में कितनी भी कंजूसी की हो...मुझ पर सभी मेहरबान रहे हैं...
विजय शंकर जी भी...

त्रकार एक ऐसा जीव था जिसके बारे में सिर्फ अज्ञान था। यहाँ चैनल्स और अखबार के पीछे काम करने वाले दिल और दिमाग को जाना। अलग अलग स्त्रियों के भूगोल को समझा।
मेरे दोस्तों के लिस्ट में इतनी तेजी से कभी अपडेटिंग नहीं हुई।
मीनाक्षी, अर्बुदा, मनीष जोशी, पूर्णिमा वर्मन , श्वेता सभी से मिलना हुआ। मीनाक्षी दी , अर्बुदा और मनीष जी से दोस्ती हो गई। [अगली कड़ी में समाप्त]

21 कमेंट्स:

ghughutibasuti said...

वाह ! मान गए बेजी जी आपको ! इतने नाम याद कैसे रखे ? लगभग ७१ नाम हैं। काश हम छूट जाते तो कुछ विशेष तो महसूस करते ! खैर यह तो था मजाक। बैजी, आपको पढ़ना बहुत अच्छा लगा और जैसी कल्पना आपकी की थी बिल्कुल वैसी ही इन लेखों में मिलीं। सदा ऐसी ही बनी रहना, भावुक, स्नेहिल, उत्साही व सबकी मददगार और भी न जाने कितनी सारी खूबियाँ हैं आपमें, उन्हें ऐसे ही स्वयं में समेटे रहना।
सस्नेह,
घुघूती बासूती

Udan Tashtari said...

ये लिजिये बेजी जी, आ गये उड़ते हुए. :)

क्या बतायें -अंतिम वाक्य देख कर बड़ा दुख हुआ कि अगली कड़ी में समाप्त.

आनन्द आ जाता है बह कर पढ़ने में.

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

बेजी जी,
आप इतना काम करतीँ हैँ तो समय तो कम पडता होगा !
उसके बावजूद,
आपने लिखना, पढना
जारी रखा है और हिन्दी ब्लोग जगत को आबाद किया है ये बहुत बडी बात है -
बहुत खुशी हुई,
आपका लिखा पढकर :)
सारे परिवार को,
मेरा स्नेह व शुभ कामना -
स स्नेह,
-लावण्या

विजय गौड़ said...

किसी व्यक्ति का खुद को व्यक्त करने का यह विचार ही खूब सूरत है. बकलमखुद को लगातार पढता रहा हूं. एक बात साफ़ दिखायी दे रही है, जो उल्लेखनीय भी है कि प्रिंट में छपी हुई तमाम लेखकों की आत्मकथाओं की बजाय इधर ये बकलमखुद ज्यादा सहज और स्वाभाविक लग रही हैं. अपने तरह की मासूमियत इनमें ताजगी के रुप में मौजूद है. बेजी की यह आत्मकथा भी उसी मासूमियत और सादगी का नमूना है.

अनूप शुक्ल said...

बेहतरीन तरीके से अपने भाव व्यक्त किये। हर बार की तरह इस बार भी अद्बुत के अलावा और कुछ लिखना सूझ नहीं रहा है। अगले अंक का अभी भी इंतजार है।

सुजाता said...

अरे , देखते ही देखते आकहिरी कड़ी की बारी आ गयी !
बहुत आनन्द आया ।

काकेश said...

"पत्रकार क्यों बने ब्लॉगर" में बेजी जी को "भैन जी" बनाया था ..फिर से वो बात याद आ गयी.सारा को लिखा खत भी याद आया...

निश्छ्ल प्रस्तुति. शुक्रिया.

azdak said...

मैं भी यही लिखूं अगली कड़ी का इंतज़ार है? या और जिस-जिसका इंतज़ार है वह भी लिख डालूं? मगर फिर क्‍या फ़ायदा होगा, आप फिर कुछ कविता ठेलकर आगे बढ़ जायेंगी?

PD said...

मैं आपके पिछले अंक को पढकर पूछने वाला था की आपने अपने सास-ससुर की इतनी तारीफ तो की मगर फोटो नहीं दिखाया.. मगर ना जाने क्या सोचकर नहीं पूछा.. लेकिन लगता है आप मन की भाषा भी पढना जानते हैं.. :)

वैसे पता है, मुझे अपना नाम आपकी लिस्ट में देखकर हैरानी हुई, मैं तो सोचता था की आप मुझे नहीं पढती हैं.. :)

डॉ .अनुराग said...

ये इस ब्लॉग का ही चमत्कार था की १० बरसों बाद बेजी से मुलाकात एक दिन संयोग वश हुई जब मैं अपनी एक अन्य प्रिय ब्लोगर मित्र पारुल जी के ब्लॉग पर टिपण्णी करने गया ओर वहां कही किसी कोने मे बेजी नाम पढ़ा ....तो कुछ कौंध गया .....एक माउस क्लिक्क ओर .....हू बहू वैसी ही जैसी पहले थी ..... ये तो अपनी बेजी है.....

mamta said...

बेजी आपकी पोस्ट मे अपना नाम देख कर खुशी भी हुई और आश्चर्य भी हुआ। आपका लिखा हमेशा पढने मे अच्छा लगता है। पहली बार आपके सरल व्यक्तितव के बारे मे दुबई मे हुई आप लोगों की ब्लौगर मीट से पता चला था जिसकी फोटो यहां आपने लगाई है।

Dr. Chandra Kumar Jain said...

बकलमखुद पर मेरी टिप्पणियों ने खुशी बाँटी
इतना पढ़ना सब बहुत कुछ पा लेने के समान है.
=================================
ऐसे दौर में जब हर शख्स अपनी ही दुनिया में
मशगूल हो .....खुशी की साझेदारी का
आपने बक़ायदा नोटिस लिया
इससे बड़ी खुशी और क्या हो सकती है ?
===================================
.......पर, अजित जी इस संवाद
और सहभागी आयोजन के
आधार और सूत्रधार हैं.
लिहाज़ा खुशी के ये सारे पल
हम उनकी नज़र करते हैं.
==================================
शुक्रिया आपका डाक्टर साहिबा और
शुभकामनाएँ आपके और
परिवार के प्रशस्त पथ के लिए.
लेकिन अभी तो एक और पड़ाव की
खुशी जीना बाक़ी है.
इंतज़ार रहेगा.

सफ़र का सुधी साथी
डा.चंद्रकुमार जैन

Sanjeet Tripathi said...

क्या बात है!
चलिए खुशी हुई कि हमारा भी नाम शामिल है।

Ghost Buster said...

जयसन जी के बारे में और जानना अच्छा लगा. सशक्त व्यक्तित्व हैं, आपको बहुत बधाई. जोबि के ब्लौग्स भी देखे. टेक्नोलोजी ब्लॉग काफ़ी इंटरेस्टिंग लगा. लिंक के लिए धन्यवाद. बिटिया बहुत प्यारी है.

लिस्ट में अपना भी नाम देखकर थोड़ा आश्चर्य और बहुत हर्ष हुआ.

अजित जी को फिर से धन्यवाद. अभी तक के सभी बकलमख़ुद बड़े रोचक रहे हैं. ऐसा कंसेप्ट ही अपने आप में अनूठा है.

Abhishek Ojha said...

अंदाज-ए-बयाँ बहुत पसन्द आया

Anita kumar said...

बेजी जी किसी वजह से आप की पिछ्ली पोस्ट पहले नहीं पढ़ पायी थी आज पढ़ी, आप के जयसन और हमारे विनोद मुझे काफ़ी कुछ एक जैसे लगे शायद इस लिए कि दोनों केरल से हैं। आप की हर पोस्ट में कुछ न कुछ ऐसा पाया जो मुझे आश्चर्यचकित कर गया, इस पोस्ट में भी आप के पसंदीदा ब्लोगरस की लिस्ट में अपना नाम देख कर हैरान हूँ। अगर आप की पिछली पोस्ट्स से आप के व्यक्तित्व के बारे में कुछ अंदाजा न होता तो मान लेती कि सिर्फ़ ओपचारिकता निभाने के लिए आप ने उन सब के नाम यहां डाल दिए जो आप की पोस्ट्स पर टिपिया कर गये पर अब आप को जानने के बाद ऐसा नहीं लगता कि सिर्फ़ इस कारण से आप कोई नाम अपनी लिस्ट जोड़ेगी। खैर किसी को हम पंसद आये तो सुखद अनुभूति तो होती ही है और इसके लिए हम शुक्रगुजार हैं पर असली खुशी हमें तब होगी जब हमारी दोस्ती आप से भी ऐसी हो जाए जैसी मिनाक्षी जी से हो गयी है। उस दिन के इंतजार में…………

rakhshanda said...

इतनी बिजी लाईफ होते हुए भी ब्लोगिंग का इतना खूबसूरत सफर कैसे तै किया आपने, मुझे तो यही सोच कर हैरानी हो रही है,लेकिन फिर सोचती हूँ,कुछ करने का जूनून हो तो शायेद कुछ भी नामुमकिन नही होता..आप अपने इस सफर को ऐसे ही खूबसूरती से जारी रखें और नई नही मंजिलें तलाश करती रहें,खुदा से बस यही दुआ है (आमीन)एक सफर का आगाज़ (शुरुआत) मैंने भी किया है ,देखें कहाँ तक चल पाते हैं...

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

नामों की सूची दम साध कर पढ़ रहा था. लगा कि अपन तो 'आदि-इत्यादि' में निबट जायेंगे! लेकिन नहीं, बेजी जी ने बचा लिया. मारे खुशी के खुराक बढ़ गयी और 8 रोटियाँ ज्यादा खा गया. हाहाहा!

कंचन सिंह चौहान said...

sach kaha aap ne aap ki yaddashta bahut achchhi hai...kuchh bhi to nahi chhutane diya aapne..parents,bhai, frnds, spouse kids sab ko shamil karte hue bhi pravah nahi rukne diya..really it's amazing.... dil se kah rahi hu.n

aur ha.n mamata ji ki tarah apna naam dekha kar khushi bhi hui aur ashcharya bhi kyo ki kabhi laga hi nahi ki hame vo beji janti bhi ho.ngi jinki koi bhi kavita mujhase nahi chhutati

Asha Joglekar said...

वाह बेजी जी मजा़ आगया । आपको पढ कर ऐसा लगता है जेसे एक प्रवाह में बहे जा रहे हों । अगले कडी में समापन की बात उदास कर गई। आपको और अजित जी को बहुत बहुत बधाई ।

अनूप भार्गव said...

अरे ! इस में तो हमारा नाम भी आ गया ....:-)
अच्छा लिखा है ....

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