सू चना, घोषणा, मुनादी या एलान का काम किसी ज़माने में ढोल-नगाड़े और भोंपू के साथ किया जाता था। इस संदर्भ में अब लाऊडस्पीकर शब्द का प्रचलन आम हो गया है क्योंकि ढोल-नगाड़े और भोंपू बीते ज़माने की बात हो गई है। कहने को तो यह अंग्रेजी भाषा का शब्द है और इसका अर्थ होता है ध्वनि विस्तार यंत्र या ध्वनि-विस्तारक मगर वाचाल और इधर की उधर करनेवाले इन्सान को भी अक्सरलाऊडस्पीकर के नाम से कीर्ति मिल जाती है क्योंकि वह अपनी आदत से मजबूर होकर किन्हीं तथ्यों का अनावश्यक प्रचार करता है। लाऊडस्पीकर शब्द का प्रचलन अब हिन्दी में धड़ल्ले से होता है। यह बना है लाऊड+स्पीकर से।
भारोपीय भाषा परिवार की खासियत है कि इसमे एक ही क्रम में आने वाले वर्ण आपस में अदला-बदली करते हैं जैसे श का बदलाव स में हो सकता है। य वर्ण ज में बदल सकता है। र की तब्दीली ल में हो सकती है वगैरह। संस्कृत में श्रुतः shrutah शब्द का अर्थ होता है सुनना या सुना हुआ। भारोपीय भाषा परिवार में सुनने, ध्वनि करने के लिए एक धातु है klutos. भाषाशास्त्रियों नें इन दोनों ही शब्दों में रिश्तेदारी मानी है। klutos में अंग्रेजी के k और shrutah से sh का लोप किया जाए तो जो ध्वनियां बचती हैं वे लगभग समान हैं यानी लुतस और रुतह। गौरतलब है कि संस्कृत का स व्यंजन ग्रीक में जाकर ह वर्ण में बदल जाता है। ठीक वैसे ही जैसे संस्कृत का सिन्धु, फारसी में हिन्दू बन जाता है। प्राचीन भारोपीय धातु क्लूतोस klutos से ही बना है लाऊड शब्द। इसका जर्मन रूप हुआ laut जो अंग्रेजी में जाकर loud हो गया। श्रुतः की मिसाल को कुछ और साफ
करने के लिए कहना चाहूंगा कि संस्कृत में एक अन्य धातु है रुद् जिसमें शोर मचाना, चीखना-चिल्लाना शामिल है। इस रुद् rud की रिश्तेदारी भी laut और प्रकारांतर से loud से नजर आ रही है। मेरा मानना है कि लाऊड की रिश्तेदारी रूद् से अधिक है। इसी रुद् से रूदन, अरण्यरोदन, रुदाली जैसे शब्द बने हैं।
गौरतलब है कि संस्कृत में रु धातु है जिससे रुद् की रिश्तेदारी है। रु में हर तरह की ध्वनि का भाव है यानी कोलाहल भी और संयमित ध्वनियां भी। कलरव भी और रूदन भी। आवाज़ या ध्वनि के लिए रव शब्द का मूल भी यही रु धातु है। संस्कृत में रव का एक रूप रावः है जिसमें हाहाकार, चींघाड़ अथवा भयानक ध्वनि का भाव है। राक्षसों में चीखने चिंघाड़ने की वृत्ति थी। राक्षस जाति के रावण को यह नाम इसी वजह से मिला। रु की निकटतम् वधातु में भी ध्वनि का भाव ही है। शिव के महाकाल रूप को रौद्र रूप भी कहा जाता है। रौद्र अर्थात भयानक जो इसी रुद् से आ रहा है। रौद्र शब्द बना है रुद्र से जिसका मतलब है भयानक आवाज़ करनेवाला। शिव का ही एक रूप रुद्रावतार है।
अंग्रेजी की क्रिया स्पीक speak में er प्रत्यय लगने से स्पीकर जैसी संज्ञा बनती है जिसका मतलब है कहनेवाला, बोलनेवाला, वक्ता। यह शब्द संसदीय प्रणाली में दाखिल होने के बाद निर्वाचित सदन के अध्यक्ष का पर्याय बनता है हालांकि वह खुद कम बोलता है क्योंकि सासंद या विधायक उसे बोलने का मौका ही नहीं देते हैं। स्पीक speak शब्द लैटिन मूल के स्पारजरे spargere शब्द से बना है जिसका मतलब है बिखेरना, फैलाना, प्रसारित होना आदि। गौरतलब है कंठ से निकलती ध्वनियां जीभ और तालू के स्पर्श से शब्द बनकर मुंह से झरती हैं, बिखरती हैं, प्रसारित होती हैं। इस तरह लाऊडस्पीकर शब्द में ध्वनि के विस्तार या प्रसार का भाव शामिल है।
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एक ही क्रम में आने वाले वर्ण आपस में अदला-बदली करते है ; भारोपीय भाषा परिवार की इस विशेषता को जान लेने से सफ़र और आसान हो गया | रौद्र और रूदन का सम्बन्ध कलरव के ''र'' से माना परन्तु रौद्र (रावण ) और रूद्र (शिव) की समानता विचलित करती है | र की यात्रा ''मंद्र'' के प्रथम बिंदु से ''तार'' के अंतिम छोर तक पहुँचती है | र की कल्याणकारी ऊर्जा विखण्डित हो कितना विनाश कर सकती है ; परमाणु के विखंडन (fission) का स्मरण हो आता है |
ReplyDeleteर पर अन्य सम्बंधित कड़ियाँ भी पढी, लगा कि इस अक्षर से सफ़र की डगर अभी बाकी है |
शब्द उत्पत्ति को लेकर प्रतिदिन आपकी पोस्ट ....।
ReplyDeleteहैरत में रहता हूं ।
अच्छा रहा यह सफर ।आभार...।
रोचक है - ’रु’ में हर तरह की ध्वनि का भाव है यानि कोलाहल भी और संयमित ध्वनि भी "।
ReplyDeleteकितनी गहरी अर्थ-यात्रा के साक्षी बन रहे हैं हम !
चर्चा अच्छी रही। आप ने तो मेरे उपनाम 'राव' की भी ऐसी ऐसी तैसी कर दी। हम रिसिया गए हैं ;)
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन लगा इसे पढ़ना और जानना!!
ReplyDeleteरावण गुणवाचक है इस पर ध्यान आज आप ने ही दिलाया।
ReplyDeleteवाह !
ReplyDeleteये भी खूब है भाई.
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डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बहुत खूब!
ReplyDeleteअच्छी उपमा दी है आपने।
स्पीक speak शब्द लैटिन मूल के स्पारजरे spargere शब्द से बना है जिसका मतलब है बिखेरना, फैलाना, प्रसारित होना आदि। गौरतलब है कंठ से निकलती ध्वनियां जीभ और तालू के स्पर्श से शब्द बनकर मुंह से झरती हैं, बिखरती हैं, प्रसारित होती हैं।
ReplyDeleteयह परिभाषा तो कमाल है .
यूनान जाके अपना व्यंजन बदल गया,
ReplyDeleteफारस जो पहुंचा सिन्धु भी हिन्दू में ढल गया,
रु से रुदन भी, रुद्र भी, निकले है रौद्र भी,
चिंघाड़ता हुआ... अरे! रावण निकल गया.
व्यथा कि स्पीकर को नही बोलना नसीब,
वड(word) नेरकर तो ढेर सी बाताँ उगल गया.
वाह ये तो बडी कमाल की जानकारी है.केवल कहने के लिये नहीं बल्कि सचमुच ही आप हम सब का खासतौर से जो शिक्षा से जुडे हैं उनका तो बहुत ही भला कर रहे हैं.
ReplyDelete@गिरिजेशराव
ReplyDeleteघबराइये नहीं श्रीमानजी। रावण से राव की रिश्तेदारी नहीं है। यह तो बड़ी महिमावाला शब्द है। राजकः का देशज रूप है यह। इस कड़ी के कुछ शब्दों का उल्लेख अन्यत्र लेखों में किया है। सम्पूर्ण आलेख अभी बनना बाकी है। मराठी और उड़िया उपनाम राऊत इसी तरह राजदूत का अपभ्रंश है।
गजब की जानकारी, गजब का काम्बिनेशन।
ReplyDelete-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
raavan kaa yah arth to pata hi nahi tha aajtak wait to lagta tha ki hame sabkuchh pataa hai
ReplyDelete"मेरा मानना है कि लाऊड की रिश्तेदारी रूद् से अधिक है।" मुझे आपकी इस बात में सन्देह लग रहा है । या हो सकता है ठीक तरह से स्पष्ट न हो पाया हो ? राव: के साथ ण कैसे जुड़ा ?
ReplyDelete@शरद कोकास
ReplyDeleteसंभव है मैं अपनी बात स्पष्ट न कर पाया हूं। वैसे भी यह मेरी अपनी निजी राय है। विद्वानों ने श्रुतः की बात कही है। मैने रुद् का विचार रखा है। श्रुतः में सुनने के भाव से लाऊड का रिश्ता तो है ही मगर नजदीकी शब्द रुद् भी है जिसमें ध्वनि सुनने की बजाय ध्वनि करने बोल (जोर से) का भाव स्पष्ट है। रावः तो क्रिया है। इसके साथ ण तो प्रत्यय की हैसियत से है जिससे रावण संज्ञारूप में शब्द बना। मूल संस्कृत में रावण का विग्रह होता है-रु+णिच्+ल्युट् (आपटे कोश के मुताबिक).