Thursday, August 28, 2025

क्षत्रप और छत्रपति: दो अलग सत्ताएँ

शब्दकौतुक
एक शब्द, कई रूप

अक्सर हम एक जैसे लगने वाले शब्दों को एक ही परिवार का मान लेते हैं, खासकर जब उनका उच्चारण मिलता-जुलता हो। 'क्षत्रप' और 'छत्रपति' ऐसे ही दो शब्द हैं, जिन्हें कई बार एक-दूसरे से जोड़कर देखा जाता है। इसकी एक बड़ी वजह है 'क्ष' का '' की तरह उच्चारण होना, जिससे 'क्षत्रप' को 'छत्रप' सुन लिया जाता है। लेकिन भाषा और इतिहास की गहराई में उतरने पर पता चलता है कि ये दोनों शब्द दो अलग-अलग दुनिया से आते हैं। इनकी कहानियाँ हमें प्राचीन ईरान से लेकर मध्यकालीन भारत तक की यात्रा कराती हैं और दिखाती हैं कि शब्दों का सफ़र कितना रोमाञ्चक हो सकता है।

क्षत्रप: ईरान से भारत तक एक शाही सफ़र'

क्षत्रप' शब्द की जड़ें हमें प्राचीन ईरान तक ले जाती हैं। यह शब्द प्राचीन ईरानी (अवेस्ता) के 'क्षथ्रपावन' (xšaθrapāvan) से निकला है, जिसका अर्थ है 'राज्य का रक्षक'। यह दो हिस्सों से बना है: 'क्षथ्र' (xšaθra) यानी 'राज्य' या 'शक्ति' और 'पावन' (pāvan) यानी 'रक्षक'। जब यह शब्द प्राचीन यूनान (ग्रीस) पहुँचा, तो इसका उच्चारण 'सत्रपेस' (satrapes) हो गया। सिकंदर महान ने जब ईरान को जीता, तो उसने इस प्रशासनिक व्यवस्था को अपना लिया और भारत के विजित प्रदेशों में अपने गवर्नर नियुक्त किए, जिन्हें 'क्षत्रप' कहा गया। बाद में, मध्य एशिया से आए शक शासकों ने इस उपाधि को पश्चिमी और मध्य भारत में स्थापित किया, जहाँ बड़े शासक 'महाक्षत्रप' और छोटे शासक 'क्षत्रप' कहलाए।

शहर से लेकर ख़ातून तक'

क्षत्रप' का पहला हिस्सा, 'क्षथ्र', अपने आप में एक दिलचस्प कहानी कहता है। यही 'क्षथ्र' शब्द समय के साथ बदलकर आधुनिक फ़ारसी का 'शहर' बन गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि 'राज्य' या 'शक्ति' ('क्षथ्र') का केंद्र 'नगर' ही होता था। 'क्षथ्र' संस्कृत के 'क्षेत्र' का ही समरूप है। 'त्र' के स्थान पर 'थ्र' के अन्तर को पहचाना जा सकता है। संस्कृत का 'मित्र' अवेस्ता में 'मिथ्र' हो जाता है, दोनों का अर्थ सूर्य है। प्राचीन ईरानी और फिर फ़ारसी में 'क्षथ्र' का रूप बदला। 'क्ष' व्यंजन से '' ध्वनि का लोप हुआ और शेष रहा ''। फिर 'थ्र' से '' ध्वनि का लोप हुआ और '' ध्वनि का वियोजन होने से '' और '' ध्वनियाँ छिटक गईं। इस तरह 'क्षथ्र' का फ़ारसी रूप हुआ 'शह्र', जो उर्दू में भी 'शह्र' और हिन्दी में 'शहर' बनकर प्रचलित है।

नामवाची क्षेत्र जैसे कुरुक्षेत्र

स्थान नाम के साथ 'क्षेत्र' शब्द का इस्तेमाल हमारे यहाँ होता रहा है। 'खेत' इसका ही रूपान्तर है, जैसे सुरईखेत, छातीखेत, साकिनखेत, रानीखेत। ये सभी स्थान उत्तराखण्ड में आते हैं। हरियाणा के कुरुक्षेत्र में यह अपने मूल स्वरूप में नज़र आ रहा है। शहर की खासियत होती है उसका फैलाव। प्राचीन पारसी अगर अपने देश को 'आर्याणाम-क्षथ्र' कहते थे तो उसमें आर्यों के विशाल क्षेत्र में फैलाव का भाव ही था, जो सिन्धु से लेकर वोल्गा तक विस्तृत था। वैदिक शब्द आर्यावर्त को इसके समानान्तर देखा जा सकता है।

शहरियत, शहराती, शहरबान

रूपान्तर की प्रक्रिया से आज हिन्दी-उर्दू में इस्तेमाल होने वाले शब्द जैसे 'शहरपनाह' (शहर की रक्षा करने वाली दीवार), 'शहरियत' (नागरिकता) और 'शहराती' (शहर में रहने वाला) उसी प्राचीन 'क्षथ्र' से जुड़े हैं। यहाँ तक कि 'शहरबान' (नगरपाल) शब्द भी सीधे 'क्षथ्रपावन' का ही वंशज है, जिसमें 'बान' प्रत्यय संस्कृत के 'वान' (जैसे- धनवान) का ही रूप है। इस शब्द का एक और हैरान करने वाला रूप है 'ख़ातून'। माना जाता है कि शक शासकों द्वारा बोली जाने वाली सोग्दी भाषा में 'क्षत्रप' का रूप 'ख्वातवा' (भूमि का स्वामी) बना, और इसी का स्त्रीलिंग रूप 'ख़ातून' (रानी या कुलीन महिला) तुर्क और मंगोल साम्राज्यों तक पहुँच गया।

'क्षत्र': क्षत्रिय, खत्री और क्षेत्रपाल

जिस समय ईरान में 'क्षथ्र' शब्द प्रचलित था, ठीक उसी समय भारत में उसका सजातीय भाई 'क्षत्र' (katra) मौजूद था, जिसका अर्थ भी 'शासन', 'शक्ति' और 'प्रभुत्व' ही था। इसी 'क्षत्र' से 'क्षत्रिय' शब्द बना, जो शासक और योद्धा वर्ण को दर्शाता है। भाषा के स्वाभाविक विकास में संस्कृत का 'क्षत्रिय' शब्द पंजाबी में 'खत्री' और नेपाली में 'छेत्री' बन गया। शक्ति और शासन का संबंध हमेशा भूमि से होता है, इसलिए 'क्षत्र' से ही वैचारिक रूप से जुड़ा एक और शब्द है 'क्षेत्र', जिसका मतलब है 'इलाका' या 'खेत'। इसी आधार पर 'क्षेत्रपाल' (क्षेत्र का रक्षक) जैसी उपाधि भी बनी, जो अर्थ में 'क्षत्रप' के बहुत करीब है।

छत्रपति: पूरी भारतीय पहचान

अब आते हैं 'छत्रपति' पर, जिसका 'क्षत्रप' से दूर-दूर तक कोई रिश्ता नहीं है। 'छत्रपति' शब्द संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बना है: 'छत्र' और 'पति'। यहाँ 'छत्र' का अर्थ है छाता या छतरी, जो प्राचीन भारत में राजसी संप्रभुता और सम्मान का प्रतीक था। राजा के सिर पर लगने वाला राजकीय छत्र उसकी शक्ति और प्रजा के प्रति उसके संरक्षण का चिह्न होता था। 'पति' का अर्थ है 'स्वामी' या 'प्रमुख'। इस प्रकार, 'छत्रपति' का सीधा-सादा अर्थ है 'राजकीय छत्र का स्वामी' या वह सम्राट जिसके ऊपर राज-छत्र धारण किया जाता है। यह एक विशुद्ध भारतीय उपाधि है, जिसे मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी महाराज ने लोकप्रिय बनाया।

'छत्र' का अपना अलग परिवार

'छत्र' शब्द जिस भाषाई परिवार से आता है, वह 'क्षत्र' से पूरी तरह अलग है। 'छत्र' से बने शब्द संरक्षण और आवरण का भाव देते हैं। उदाहरण के लिए, 'छतरी' (बारिश से बचाने वाला छाता), 'छत' (घर का ऊपरी आवरण), 'छाजन' (छप्पर), 'छाया' (परछाईं) और यहाँ तक कि फ़ारसी का शब्द 'साया' भी इसी मूल से जुड़ा माना जाता है। ये सभी शब्द किसी न किसी रूप में ढकने या आश्रय देने का भाव रखते हैं, जो राजकीय छत्र के 'संरक्षण' के प्रतीक से मेल खाता है।

भ्रम की वजह और उसका निवारण

तो फिर यह भ्रम पैदा क्यों होता है? इसकी एकमात्र वजह उच्चारण की समानता है। आम बोलचाल में जटिल संयुक्त अक्षर 'क्ष' को अक्सर '' बोल दिया जाता है। इस वजह से 'क्षत्रिय' को 'छत्रिय' और 'क्षत्रप' को 'छत्रप' कहना आम हो गया है। जब कोई 'क्षत्रप' को 'छत्रप' कहता है, तो ध्वनि की समानता उसे 'छत्रपति' की याद दिलाती है और वह अनजाने में दो अलग-अलग मूल और अर्थ वाले शब्दों को एक मान लेता है।

शब्दों की दुनिया को सही पहचानें

अंत में, यह स्पष्ट है कि 'क्षत्रप' एक विदेशी मूल का शब्द है जो एक प्रशासनिक पद (गवर्नर) को दर्शाता है और इसका सफ़र ईरान से शुरू होकर यूनान और शक शासकों के ज़रिए भारत पहुँचा। वहीं, 'छत्रपति' एक विशुद्ध भारतीय उपाधि है जो 'राजकीय छत्र' की अवधारणा से जुड़ी है और संप्रभु सम्राट का प्रतीक है। एक 'राज्य का रक्षक' है तो दूसरा 'छत्र का स्वामी'। शब्दों की इस यात्रा को समझना केवल भाषाई ज्ञान नहीं, बल्कि संस्कृतियों के इतिहास को समझना भी है। हर शब्द के पीछे एक कहानी छिपी होती है, और सही जानकारी हमें इस भाषाई और ऐतिहासिक भ्रम से बचा सकती है।

 

 

3 comments:

  1. बड़ी दुविधा का समाधान।

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  2. अरविंद कुमार सिंहAugust 29, 2025 at 9:42 AM

    आपने दशकों का मेरा भ्रम तोड़ा है और सुधारने का मौका दिया है। आपका आभार अजित भाई

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