
उर्दू-हिन्दी में समान रूप से प्रचलित बचपन और बछड़ा तथा संस्कृत के संवत् जैसे शब्दो में एक अनोखी रिश्तेदारी है जिसे इन शब्दों के अलग-अलग अर्थों को देखते हुए तत्काल समझ पाना मुश्किल है। एक तरफ बचपन अवस्थासूचक शब्द है वहीं संवत् कालसूचक। अलबत्ता बछड़ा शब्द का संबंध बचपन से जरूर जुड़ता है। बछड़े की आयु या अवस्था उसे बचपन से जोड़ती है।
दरअसल उर्दू-हिन्दी में प्रचलित बच्चा शब्द संस्कृत के वत्स से ही बना है जिसके मायने हैं शिशु। वत्स के बच्चा या बछड़ा बनने का क्रम कुछ यूं रहा है - वत्स-वच्च-बच्च-बच्चा या फिर वत्स-वच्छ – बच्छ - बछड़ा। संस्कृत का वत्स भी मूल रूप से वत्सर: से बना है जिसका अर्थ है वर्ष, भगवान विष्णु या फाल्गुन माह। इस वत्सर: में ही सं उपसर्ग लग जाने से बनता है संवत्सर शब्द जिसका मतलब भी वर्ष या साल ही है। नवसंवत्सर भी नए साल के अर्थ में बन गया। इसका एक अन्य अर्थ शिव भी है। संवत्सर का ही एक रूप संवत् भी है।
वत्सर: से वत्स की उत्पत्ति के मूल में जो भाव छुपा है वह एकदम साफ है। बात यह है कि वैदिक युग में वत्स उस शिशु को कहते थे जो वर्षभर का हो चुका हो। जाहिर है कि बाद के दौर में (प्राकृत-अपभ्रंश काल) में नादान, अनुभवहीन, कमउम्र अथवा वर्षभर से ज्यादा आयु के किसी भी बालक के लिए वत्स या बच्चा शब्द चलन में आ गया। यही नहीं मनुश्य के अलावा गाय – भैंस के बच्चों के लिए भी बच्छ, बछड़ा, बाछा, बछरू, बछेड़ा जैसे शब्द प्रचलित हो गए।

जाहिर सी बात है कि ये सभी शब्द वत्सर: की श्रृंखला से जुड़े हैं। इन सभी शब्दों में जो स्नेह-दुलार-लाड़ का भाव छुपा है, दरअसल वही वात्सल्य है। इतिहास-पुराण के सन्दर्भ में देखें तो भी वत्स शब्द का रिश्ता संतान, पुत्र से ही जुड़ता है। पुराणों में वत्स देश का जिक्र है। काशी के राजा दिवोदास के पुत्र वत्स ने इसकी स्थापना की थी जिसकी राजधानी वर्तमान इलाहाबाद के पास कौशांबी थी। बौद्धकालीन भारत ( पांचवी-छठी सदी ईपू ) के प्रसिद्ध सोलह महाजनपदों मे भी वत्स प्रमुख गण था और बुद्ध का समकालीन उदयन यहां का शासक था। महाभारत काल में वत्स गण ने पांडवों का साथ दिया था।
अच्छा है, मज़ा आया. जागना सुफल हुआ.
ReplyDelete"बात यह है कि वैदिक युग में वत्स उस शिशु को कहते थे जो वर्षभर का हो चुका हो।"
ReplyDeleteयह मजेदार बात/सूत्र है समय और शैशव को जोड़ने का!
तीन दिन के अवकाश (विवाह की वर्षगांठ के उपलक्ष्य में) एवं कम्प्यूटर पर वायरस के अटैक के कारण टिप्पणी नहीं कर पाने का क्षमापार्थी हूँ. मगर आपको पढ़ रहा हूँ. अच्छा लग रहा है.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया..
ReplyDeleteआपके शोध परख लेखों को किताब की शक्ल में लाये जाने की जरूरत है.
ReplyDeleteकहॉ से आप ये जानकारी लाते है। बहुत अच्छा कार्य कर रहे है।
ReplyDeleteआज पहली बार पता चला मकर सक्रांति का दूसरा और शुद्ध नाम....
ReplyDeleteएक कविता आपके लिए......
शब्दों का संसार.....
मिलता आपके द्वार......
हर शब्द में छुपा ज्ञान,
हर वाणी में प्यार.
क्या कहूँ? किस शब्द से,
मै खड़ा लाचार....
कुछ सिखने आया
सीधे आपके द्वार.
शब्दों से आपका प्यार..
झलकता बारम्बार.
अंकित
प्रथम: हिन्दी ब्लॉग्गिंग फॉरम