
किसी समूह-समाज के मुखिया के लिए भी चौधरी शब्द आमतौर पर इस्तेमाल किया जाता है। कहीं यह जातीय विशेषण है तो कहीं पदवी और रुतबे का प्रतीक। कहीं यह सिर्फ सरनेम या उपनाम है। कहीं यह आगे लगता है कहीं पीछे। अपने आसपास के नामों पर गौर करें तो इसे समझ सकते हैं मसलन चौधरी रामसिंह या रामसिंह चौधरी। कुल मिलाकर इससे जुड़ा महत्व और सम्मान का भाव ही उभर कर आता है।
चौधरी शब्द बना है संस्कृत के दो शब्दों चक्र + धर यानी चक्रधर या चक्रधारिन् से । इसका विकासक्रम कुछ यूं रहा होगा चक्रधर > चक्कधर > चउक्कधर > चव्वधर > चौधरी । गौरतलब है कि संस्कृत में चक्र का अर्थ गोल, घेरा या वृत्त के अलावा राज्य, प्रांत, जिला, सेना समूह, दल आदि समुच्चय से संबंधित भी होता है। धर यानी रखनेवाला या संभालनेवाला । इस नाते चक्रधर का मतलब हुआ राज्यपाल, शासक, प्रान्तपाल आदि। चक्रधर शब्द का एक मतलब होता है प्रभु या भगवान विष्णु। साफ है कि इस शब्द के साथ सम्मान शुरू से ही जुड़ा हुआ है। समझा जा सकता है कि राजाओं के जमाने में इलाका विशेष अथवा सेना या अन्य समूह के मुखिया के तौर किसी की नियुक्ति जब की जाती थी तो उसे चक्रधर की उपाधि दी जाती थी । इसी का बदला हुआ रूप चौधरी है जो समाज में अब सिर्फ सरनेम या जाति विशेषण के तौर पर नज़र आता है।
एक बात और ।

चौधरी शब्द से जुड़ी मुखिया की माया इस क़दर प्रभावी रही है कि आज देश की ज्यादातर जातियों में चौधरी विद्यमान है। तथाकथित सवर्ण और अवर्ण के नज़रिये से भी अपने आसपास देखने पर इसे समझ सकते हैं। यही नहीं, इसकी प्रभावशाली अर्थवत्ता ने चौधराहट जैसे मुहावरे को भी जन्म दिया है। यही नहीं चौधरी की पत्नी कहां पीछे रहती सो वो भी ठसक के साथ बन गई चौधराइन।
भाई, हम तो एक जीतेन्द्र चौधरी को ही जानते हैं, जो बकौल उनके ही, खड्डूसतम ब्लॉगर हैं! :)
ReplyDeleteपांडेयजी की टिप्पणी से यह बात निकलती है कि चौधरी खड्डूस तरह के लोग होते हैं उदाहरण के लिये जीतेंन्द्र चौधरी। आपका लेख अच्छा है। आपको शब्द चौधरी की उपाधि से नवाजा जाता है। :)
ReplyDeleteअगर मैं चुप रहना चाहूँ तो आपको कोई एतराज?? कृप्या बतायें?? आपकी भावना सर्वोपरी है.
ReplyDeleteसही है..
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