Saturday, December 22, 2007

संत की पतलून [किस्सा-ए-यायावरी -8 ]

दुनियाभर में पुरुषों के अधोवस्त्र के तौर पर सर्वाधिक लोकप्रिय पोशाक पेंट या ट्राऊजर ही है। इस विदेशी शैली के वस्त्र से भारत के लोग पंद्रहवी सदी के आसपास यूरोपीय लोगों के आने के बाद ही परिचित हुए। अठारहवी-उन्नीसवीं सदी में भारत के पढ़े-लिखे तबके ने इसे अपनाया और शहरी समाज में इसे स्वीकार कर लिया गया । इसकी लोकप्रियता के पीछे अंग्रेजी शिक्षा और फैशन का हाथ था तो दूसरी ओर धोती की तुलना में इसका आरामदेह होना भी था। गौरतलब है कि भारतीय समाज में अंग्रेजों के आने से पहले धोती ही पुरुषों की आम पोशाक थी। आज भी गांवों में
इसे पहना जाता है। पेट का देशी रूप हो गया पतलून। पतलून उच्चारण दरअसल उर्दू की देन है। आखिर इस शब्द के मायने क्या हैं?
यह बात अजीब लग सकती है कि जिस पेंट या पतलून को नए ज़माने की चीज़ कहकर किसी ज़माने में बुजुर्ग नाक भो सिकोड़ा करते थे, उसके पीछे एक यूरोपीय यायावर- संत का नाम जुड़ा है। चौथी सदी के वेनिस में पेंटलोन नाम के एक रोमन कैथोलिक संत रहा करते थे । वे अपने शरीर के निचले हिस्से में ढीला-ढाला वस्त्र पहनकर यहां वहां घुमक्कड़ी करते थे। कुछ कथाओं के मुताबिक ये संत बाद में किसी धार्मिक उन्माद का शिकार होकर लोगों के हाथों मारे गए। कहा जाता है कि जब वेनिसवासियों को अपनी भूल का एहसास हुआ तो पश्चाताप करने के लिए कुछ लोगों ने संत जैसा बाना धारण कर लिया। बाद मेइस निराली धज को ही पेंटलोन का नाम मिल गया जो बाद में पेंट क रूप में संक्षिप्त हो गया।
पेंटलोन शब्द का रिश्ता इटली के पॉपुलर कॉमेडी थिएटर का एक मशहूर चरित्र रहा है जिसे अक्सर सनकी, खब्ती बूढ़े के तौर पर दिखाया जाता रहा। यह अजीबोगरीब चरित्र भी अपने चुस्त अधोवस्त्र की वजह से मशहूर था। जो भी होसंत पेंटलोन सच्चे यायावर थे।
यायावर की कथा का फिलहाल यहां अंत होता है।

आपकी चिट्ठी

सफर की पिछली कड़ी अजब पाजामा, ग़ज़ब पाजामा पर सर्वश्री दिनेशराय द्विवेदी, आलोक पुराणिक, संजय , संजीत त्रिपाठी और बालकिशन जी की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभार। संजय जी नेताओं की कुलीनता पर न जाइये, आजकल की शादियों को देखिये और फैशन जगत पर निगाह दौड़ाइये तो ये लफ्ज सही मालूम होंगे। दिनेश जी , सफर में साड़ी, धोती सब बनेंगे पड़ाव। बस, आप साथ बने रहें।

6 comments:

  1. पेंटलोन का जिक्र अच्‍छा लगा. लेकिन ट्राउजर शब्‍द के बारे में और जानने की इच्‍छा पैदा हो गई... ढूंढता हूं कुछ अपने लिए. वैसे एक कहावत है पतलून ढीली होना, इसका संदर्भ भी लेते अजित भाई तो मजा आता. यायावर की इस श्रंखला में आपने बहुत सी रोचक और नई जानकारियां दीं. इस ज्ञानवर्द्धक सिलसिले के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया. अगले पड़ाव पर मिलेंगे.

    ReplyDelete
  2. हमारा प्रिय तो पायजामा ही है - नॉन सरकारी यायावरी के लिये। पर पता नहीं - वह भी कहीं पैण्ट या पतलून से जुड़ा न हो! :-)
    शब्द इतने जबरदस्त गिरगिट साबित हो रहे हैं कि कौन कब कौन सा रंग बदल जाये - कहना कठिन है।

    ReplyDelete
  3. अजित जी, आप ने तो मजा बांध रखा है, शब्दों के साथ इतिहास का सफर। लगता है कि शब्दों ने ही सब से पहले दुनियां को वसुधैव कुटुम्बकम् बनाया हुआ है।

    ReplyDelete
  4. चलो जी मालूम तो चला कि यह पतलून किधर से आया है। शुक्रिया

    ReplyDelete
  5. आप जिस उत्साह के साथ सामान्य जीवन से संबंधित, लेकिन सामान्यतया अज्ञात, जानकारी खोजबीन कर पठनीय भाषा में प्रस्तुत कर रहे हैं, यह हम सब के लिये उपयोगी है.

    इन दस्तावेजों की कम से कम दो प्रतियां सहेज कर रखना न भूलें क्योंकि ये भावी पीढियों के लिये बहुत उपयोगी सिद्ध होंगी.

    ReplyDelete
  6. आपका शब्दों का सफ़र अच्छा लगता है,जब भी आती हूँ कुछ न कुछ रोचक पढ़ने को मिलता है। धन्यवाद

    ReplyDelete