पाएजामः, पाजामः, पाजामा
संस्कृत और प्रोटो इंडोयूरोपीय भाषाओं के बहनापे वाली शब्दावली में ही आते हैं अंग्रेजी के फुट, पैड और हिन्दी के पद, पैर, पांव जैसे शब्द । पायजामा भी इसी श्रंखला की कड़ी है। यह बना है फारसी के पाए+जामः से मिलकर । फारसी में पैर के लिए पा शब्द है जो अवेस्ता के पद से बना है। जामः यानी वस्त्र । यह शब्द हिन्दी में जामा के अर्थ में भी प्रचलित है । याद करें , जामा तलाशी वाला मुहावरा। गौरतलब है कि इंडो-इरानी भाषा परिवार की संस्कृत और अवेस्ता सगी बहनें हैं। संस्कृत के पद से इसकी समानता से यह जाहिर है। फारसी में पाएजामः का मतलब है एक खास किस्म का अधोवस्त्र। फारसी में ही इसका एक अन्य रूप पाजामः भी मिलता है। हिन्दी में इसके पजामा, पाजामा, पायजामा जैसे रूप चलते हैं।
शक हमलावरों का बेहतरीन तोहफा
गौरतलब है कि भारत मे पायजामा शकों के द्वारा तीन सदी ईसा पूर्व ही लाया जा चुका था। शक मूलतः मध्यएशिया के घुमक्कड़ , खानाबदोश लड़ाके थे जो अक्सर अपने शानदार घोड़ों पर अभियानों के लिए निकलते थे। यहां अभियान के खोजयात्रा और चढ़ाई दोनों अर्थों को आप समझ सकते हैं। घोड़ों पर लंबी लंबी यात्राओं के लिए शकों की यह बेहद दूरदर्शितापूर्ण खोज थी कि ऐसा वस्त्र बनाया जाए जिसे पहन कर घोडे की पीठ पर सवार हुआ जा सके।
अधिकांश सभ्यताओं के आदिकाल में वस्त्र संस्कृति के नाम पर शरीर को कपड़े के एक ही टुकड़े से ढकने का चलन था। बाद में शरीर के निचले हिस्से को अधोवस्त्र के रूप में एक अलग कपड़े से ढंकने की परिपाटी सुविधानुसार शुरू हुई। रोमन स्कर्ट, भारतीय साड़ी या धोती जिसे स्त्री-पुरुष दोनों ही धारण करते हैं , इसी का प्रमाण हैं। धोती को जब देवता, ब्राह्मण या गुणीजन धारण करते है तो उसे पीतांबर कहते हैं।
तो घुड़सवारी के लिए यह धोती अनुपयुक्त थी। शकों ने इतना ही किया कि एक ही कपड़े से दोनों पैरों को ढंकने की तरकीब को थोड़ा आधुनिक बना दिया और उसे दो हिस्सों में बांट कर सिलाई कर दी जिससे ट्राऊजर या पायजामा बन गया।
अंग्रेजी राज की देन नहीं
मध्यएशिया के इन दुर्दान्त यायावरों की इस अनोखी सूझ ने उनकी यात्राओं को कुछ सुविधाजनक बनाया। ये शक ईरान होते हुए भारत में दाखिल हुए और पायजामें समेंत भारतीयों ने थोड़ी नानुकर के बाद शकों को भी अपना लिया। सदियों बाद तक आज भी भारतीयों का विदेशी हमलावरों के साथ यही रवैया है। भारतीय संस्कृति में सबको समो लेने की अद्भुत क्षमता है।
आज से एक सदी पहले अंग्रेजी राज के प्रभाव में आने वाले भारतीय युवाओं के चालचलन पर जो बुजुर्ग कुढ़ा करते थे उसकी खास वजह पेंट-शर्ट जैसा पहनावा थी। वे नहीं जानते थे कि वो पतलून या पेंट खुद यूरोपीय लोगों की भी नहीं थी। सदियों पहले शकों ने ही यूरोपीय लोगों को भी यह पायजामा या ट्राऊजर पहनाना सिखा दिया था वर्ना वहां तो अर्से तक स्कर्टनुमा पोशाक ही अधोवस्त्र के तौर पर जानी जाती थी।
बिछौना धरती को कर ले, अरे आकाश ओढ़ ले...
लोग कहते हैं कि यायावरी के लिए पोशाक मायने नहीं रखती , सिर्फ इरादा चाहिए। प्राचीन भारत में तो सन्यासियों , भिक्षुओं को ही यायावर कहा गया और पोशाक के नाम पर उन्हें कम से कम वस्त्र पहनने की पाबंदी थी। दिगंबर जैन पंथ में तो एक भी वस्त्र धारण नहीं किया जाता है। दिगंबर बना है दिक्+अंबर अर्थात् दिशाएं ही जिसका वस्त्र हो-इसीलिए दिगंबर श्रमण , मुनि निर्वस्त्र रहते हैं। मगर तारीफ करनी चाहिए उन शक यायावरों की जिन्होने अपनी घुमक्कड़ी को और सुविधाजनक बनाने के लिए दुनिया को पायजामे जैसा शानदार वस्त्र दे दिया।
आपकी चिट्ठी
यायावरी की पिछली कड़ी-प्यून का पदयात्रा अभियान पर सर्वश्री ज्ञानदत्त पाण्डेय, सृजनशिल्पी, दिनेशराय द्विवेदी और शिवकुमार मिश्र की उत्साहवर्धक टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभारी हूं।
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7 कमेंट्स:
कुलीन और अभिजात्य? नेताओं के बारे में क्या ख्याल है? यही बिरादरी पायजामे की सबसे बड़ी ग्राहक है पर न कुलीन है न अभिजात्य. लेकिन पायजामा सबसे आरामदायक है, इससे सहमत. इसलिए सिर्फ सोते वक्त ही पहनता हूं.
वैसे तस्वीरों में बड़े धांसू घुड़सवार दिखाए हैं और शकों वाला संदर्भ खूब ढूंढा. यह पोस्ट काफी विस्तार से दी आपने, अच्छी लगी.
आप शानदार जानकारियां दे रहे हैं। कृपया भारतीय साड़ी के बारे में बताऐं। मैंने पढ़ा है कि यह मूलतः यूनानी है। मौर्य साम्राज्य की किसी यूनानी रानी के साथ यह पोशाक भारत आई और आज भारतीय नारी की पहचान बन गई है।
आप शानदार और अच्छी जानकारियां दे रहे हैं। आपको धन्यवाद.
आजकल "हंगामा चैनल" पर एक एक पाजामा कार्यक्रम भी शुरू हुआ है जिसमे खतरनाक पजामों के बरे मे बताया गया है.
समय मिले तो जरुर देखें.
शुक्रिया ज्ञानवर्धन के लिए!
कल ई मेल पर ज्ञानदत्त जी से बातचीत के दौरान एक शब्द आया "गोरखधन्धा"। हमने सोचा इस शब्द के बारे में आपसे पूछ लिया जाए अगर जानकारी मिले तो।
भई बढ़िया है।
पाजामे से बाहर निकलना एक मुहावरा भी बना है।
एकदम नई जानकारी. आभार !!
संजय जी की टिप्पणी से पूरी तरह सहमत हूँ.।
धन्यवाद...
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