दंड धारण करने वाले सन्यासी को दंडीस्वामी कहा जाता है। दंड धारण करने की परंपरा प्रायः दशनामी सन्यासियों में प्रचलित है। शंकराचार्य परंपरा के ध्वजवाहक मठाधीश भी दंडधारण करते है। प्राचीन धर्मशास्त्र मे दंड का महत्व इतना अधिक था कि मनुस्मृति में तो दंड को देवता के रूप में बताया गया है। एक श्लोक है-
दण्डः शास्ति प्रजाः सर्वा दण्ड एवाभिरक्षति।
दण्डः सुप्तेषु जागर्ति दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः।।
( दंड ही शासन करता है। दंड ही रक्षा करता है। जब सब सोते रहते हैं तो दंड ही जागता है। बुद्धिमानों ने दंड को ही धर्म कहा है।)
राजनीतिशास्त्र का ही दूसरा नाम दंडनीति भी है। पुराणों में उल्लेख है कि अराजकतापूर्ण काल मे ही देवताओं के आग्रह पर ब्रह्मा ने एक लाख अध्यायों वाला दंडनीति शास्त्र रच डाला था।
दंड और डंडे की तरह ही लाठी शब्द भी हिन्दी में खूब प्रचलित है लाठी का मतलब है बांस की लंबी लकड़ी जो चलने के लिए सहारे का काम करे या हथियार के रूप में काम आए। मुहावरा भी है कि बुढ़ापे की लाठी होना। गौर करें की दण्ड का निर्माण प्राचीनकाल से आज तक ज्यादातर बांस से ही किया जाता रहा है। साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे मुहावरा भी खूब मशहूर है।
यही लाठी शब्द बना है संस्कृत के यष्टिः या यष्टी से जिसका मतलब होता है झंडे का डंडा, सोटा, गदा, शाखा या टहनी आदि। इससे बने यष्टिका का प्राकृत रूप हुआ लट्ठिआ जो लाठी में बदल गया । लाठी के यष्टि रूप से बना एक शब्द हम खूब परिचित हैं वह है देहयष्टि । कदकाठी के अर्थ में देहयष्टि शब्द प्रयोग में भी लाया जाता है। संस्कृत मूल से जन्मे लाठी शब्द से अंग्रेजी राज में एक नया शब्द जन्मा लाठीचार्ज। यह आज भी पुलिसिया जुल्म के तौर पर ही जब-तब सामने आता है।
डंडे से बना डंड बैठक शब्द व्यायाम के अर्थ में प्रयुक्त होता है उसी तरह उत्साह, खुशी आदि के प्रदर्शन के लिए बांसों उछलना या बल्लियों उछलना जैसे मुहावरा भी आम है।
Sunday, December 30, 2007
डंडे का धर्म और धर्म का दंड
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:32 PM
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2 कमेंट्स:
दण्डं धर्मं विदुर्बुधाः..... सत्य वचन प्रभु. दंड ही शासन करता है. एक दंडक अरण्य भी था. उसका जिक्र नहीं किया आपने.
अजित भाई हमारे इधर एक कहावत है: सफ़ा डंड सफ़ा भुस्स!! यानी ... नक्की कर यारा!!
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