दु अथवा द्रु धातुए हैं जिनमें तीव्र गति का भाव शामिल है। द्रु का मतलब है भागना, बहना , हिलना-डुलना, गतिमान रहना आदि। द्रु से बना द्रावः जिससे हिन्दी में बना दौड़ या दौड़ना। अब दु से बने दूत
और द्रु से बने द्रुत शब्द पर गौर करें तो भाव दोनों का एक ही है। द्रुत का मतलब है तीव्रगामी, फुर्तीला, आशु गामी आदि। यही सारे गुण दूत में भी होने चाहिए। द्रा और द्राक् का मतलब भी तुरंत , तत्काल , फुर्ती से और दौड़ना ही होता है। जान प्लैट्स ने द्राक् से ही हिन्दी के डाक शब्द की व्युत्पत्ति मानी है । दूत के अर्थ में एक अन्य शब्द पायक या पायिकः भी है। यह भी पैदलसिपाही के अर्थ में है । पैदल तेज तेज भागना।
द्रु से ही बना है द्रव जिसका मतलब हुआ घोड़े की भांति भागनाया पिघलना, तरल, चाल, वेग आदि । द्रव का ही एक रूप धाव् जिसका मतलब है किसी की और बढ़ना, किसी के मुकाबले दौड़ना। मराठी में धाव का मतलब दौड़ना ही है। धाव् से बने धावक हुआ दौड़ाक यानी जिसका काम ही दौड़ना हो। जाहिर है यही तो प्राचीनकाल में दूत की प्रमुख योग्यता थी। द्रु के तरल धारा वाले रूप में जब शत् शब्द जुड़ता है तो बनता है शतद्रु अर्थात् सौ धाराएं। पंजाब की प्रमुख नदी का सतलज नाम इसी शतद्रु का अपभ्रंश है।
2 कमेंट्स:
सतलज के बारे में तो यह नई जानकारी दे दी आपने. अपने पूर्वजों की भूमि से जुड़ी जानकारी हमेशा मूल्यवान होती है. अच्छा यह तो बताएं क्या द्रव का कहीं कोई संबंध द्रविड़ (राहुल नहीं) से भी है?
कई बार आपकी दी हुई जानकारी चकित कर देती है. आज का लेख भी मेरे लिए कुछ ऐसा ही है. कभी कभी दुःख भी होता है कि मातृ-भाषा के बारे मे मेरा ज्ञान कितना सीमित है लेकिन दूसरी तरफ़ ये एक सुखद अहसास भी है कि आप जैसे गुणी लोगों के सहयोग से सुधार हो रहा है और आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आगे भी होता रहेगा.
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