यायावर की व्युत्पत्ति पर अगर गौर करें तो भी यही बात सही साबित होती है। इस शब्द का संस्कृत में जो अर्थ है वह है परिव्राजक, साधु-संत , सन्यासी आदि। साधु-संतों के व्यक्तित्व में नदियों के से गुणों की बात इसी लिए कही जाती है  क्योंकि उनमें जो सदैव बहने की , गमन करने की वृत्ति होती है वही साधु में भी होनी चाहिए। इसी भ्रमणवृत्ति से वे अनुवभवजनित ज्ञान से समृद्ध होते हैं और तीर्थस्वरूप कहलाते है अब मनमौजी हुए बिना भला भ्रमणवृत्ति भी आती है कहीं ? गौर करें कि नदी तट के पवित्र स्थानों को ही तीर्थ कहा जाता है।
क्योंकि उनमें जो सदैव बहने की , गमन करने की वृत्ति होती है वही साधु में भी होनी चाहिए। इसी भ्रमणवृत्ति से वे अनुवभवजनित ज्ञान से समृद्ध होते हैं और तीर्थस्वरूप कहलाते है अब मनमौजी हुए बिना भला भ्रमणवृत्ति भी आती है कहीं ? गौर करें कि नदी तट के पवित्र स्थानों को ही तीर्थ कहा जाता है।
यायावर बना है संस्कृत की या धातु से । इसमें जाना, प्रयाण करना, कूच करना, ओझल हो जाना, गुज़र जाना ( यानी चले जाना-मृत्यु के अर्थ वाला गुज़र जाना मुहावरा नहीं ) आदि भाव शामिल है। अब इन तमाम भावार्थो पर जब गौर करेंगे तो आज ट्रांसपोर्ट के अर्थ में खूब प्रचलित यातायात शब्द की व्युत्पत्ति सहज में ही समझ में आ जाती है। या धातु से ही बना है यात्रा शब्द जिसका मतलब है गति, सेना का प्रयाण, आक्रमण, सफर , जुलूस, तीर्थाटन-देशाटन आदि। इससे ही बना संस्कृत में यात्रिकः जिससे ही यात्री शब्द बना। घुमक्कड़ वृत्ति के चलते ही साधु से उसकी जात और ठिकाना न पूछे जाने की सलाह कहावतों में मिलती है। खास बात यह भी है कि यातायात और यायावर चाहे एक ही मूल से जन्मे हो मगर इनमें वैर भाव भी है। साधु-सन्यासियों (यायावर ) के जुलूस, अखाड़े और संगत जब भी रास्तों पर होते है तो यातायात का ठप होना तय समझिये।
अगले पड़ाव में जानेंगे यायावर से जुड़े कुछ और संदर्भ-
यह आलेख कैसा लगा, टिप्पणी लिखेंगे तो सफर में और आनंद आएगा। 
Friday, December 14, 2007
मनमौजी जो ठहरा यायावर ! [किस्सा-ए-यायावरी 1]
हिन्दी का यायावर बड़ा खूबसूरत शब्द है। घुमक्कड़ के लिए सबसे सबसे प्रिय पर्यायवाची शब्द यही लगता रहा है मुझे। एक अन्य वैकल्पिक शब्द खानाबदोश भी है। मगर भाव के स्तर पर अक्सर मैने महसूस किया है कि खानाबदोश में जहां दर दर की भटकन का बोध होता है वहीं यायावर अथवा घुमक्कड़ में भटकन के साथ मनमौजी वाला भाव भी शामिल है।
प्रस्तुतकर्ता
अजित वडनेरकर
पर
4:00 AM
 
 
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10 कमेंट्स:
यायावर शब्द का उल्लेख आते ही कोलंबस और वास्को डि गामा के साथ हिंदी साहित्य के यायावर यानि राहुल सांकृत्यायन की बरबस याद हो आती है. लेकिन यह शब्द अपने आप में बहुत विस्तार लिए हुए है. शब्दों का सफर भी एक प्रकार की यायावरी ही तो है. बुद्ध ने कभी अपने शिष्यों को संदेश दिया था,'चरथ भिक्खवे' शायद इसका अर्थ है-'भिक्षुओ, घुमक्कड़ी करो!'
रोचक जानकारी के लिए शुक्रिया. अगली कड़ी की प्रतीक्षा रहेगी.
यायावर अपने आप में मजेदार शब्द है। अज्ञेयजी की कविता- अरे ओ यायावर, रहेगा याद।हम लोगों ने जब साइकिल से भारत यात्रा की थी तो अपने अभियान का नाम जिज्ञासु यायावर रखा था। आपके अगले लेख का बेसब्री से इंतजार है।
सुन्दर विवेचना..
यायावर कहते ही कैसी जादू की दुनिया खुलने लगती है । आगे भी बताईये ।
सफरी झोले से और माल-मत्ता बाहर निकालिए..
"साधु-सन्यासियों (यायावर ) के जुलूस, अखाड़े और संगत जब भी रास्तों पर होते है तो यातायात का ठप होना तय समझिये।"
बहुत अच्छे और रोचक तरीके से आने बात कही.
ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद.
1998 से 2001 के बीच मैं महीने के 20 दिन यात्रा पर होता था...यायावर के मन को समझ सकता हूँ...
अनूप भाई
क्या इस नाम की अज्ञेय जी की कोई कविता है...
बहुत सुन्दर!
मुझे लगता है कि यायावर शब्द हिन्दी को अज्ञेयजी की देन है. उनके बाद बहुत से लोगों ने इसे इस्तेमाल किया है.
आज यायावर का मतलब एवं व्युत्पत्ति स्पष्ट हुई. आभार !!
यह ब्लॉग एक सचमुच बहुत ही अच्छा प्रयास है. शब्दों का सृजन , उनका निर्माण , उनकी उत्पत्ति और उनकी साड़ी यात्रा हमारी ही यात्रा का एक अभिन्न हिस्सा है. शब्दों को जानना अपने ही एक अंश से परिचित होने जैसा है. इस अंश से इतने सटीक तरीके से परिचय कराने के लिए आपका शुक्रगुजार हूँ. - मंदार पुरंदरे
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