शब्दों के सफर में मेरे सभी हमराहियों को नए साल की शुभकामनाएं ...
कण-कण में समृद्धि मिले, क्षण-क्षण में मंगल हो...
नया साल, नववर्ष या नवसंवत्सर ऐसे शब्द हैं जिन्हें हर बरस दुहराने का मौका मिल जाता है। वर्ष शब्द का जन्म संस्कृत के वर्ष: या वर्षम् से हुआ। इन दोनों शब्दो का अर्थ है बरसात,
बौछार या मेघवृष्टि।
कण-कण में समृद्धि मिले, क्षण-क्षण में मंगल हो...
नया साल, नववर्ष या नवसंवत्सर ऐसे शब्द हैं जिन्हें हर बरस दुहराने का मौका मिल जाता है। वर्ष शब्द का जन्म संस्कृत के वर्ष: या वर्षम् से हुआ। इन दोनों शब्दो का अर्थ है बरसात,

जीवेत् शरदः शतम्
शरद ऋतु को भी प्राचीनकाल में साल से जोड़कर देखा जाता था। शरद का अर्थ संस्कृत में पतझड़ के अलावा वर्ष भी है। प्रसिद्ध वैदिक उक्ति जीवेत् शरद: शतम् में सौ बरस जीने की बात ही कही गई है। ऋतुबोध से कालगणना का एक और उदाहरण हेमन्त से मिलता है जिसका मतलब है जाड़े का मौसम। यह बना हिम् या हेम् से जिसका अर्थ ही ठंडक या बर्फ है। वैदिक युग में वर्ष के अर्थ में हिम् शब्द भी प्रयोग में लाया जाता था। संस्कृत उक्ति-शतम् हिमा: यही कहती है। लेकिन वर्ष, संवत्सर और बरस से भी ज्यादा इस्तेमाल होने वाला शब्द है साल जो हिन्दी में खूब इस्तेमाल किया जाता है पर हिन्दी का नहीं है। साल शब्द फारसी से हिन्दी -उर्दू में आया जिसका अर्थ पुरानी फारसी में जो बीत गया था। फारसी में इसका अर्थ वर्ष ही है और इससे बने सालगिरह-सालाना जैसे लफ्ज खूब बोले जाते हैं।
संवत् , संवत्सर, नवसंवत्सर
उर्दू-हिन्दी में प्रचलित बच्चा संस्कृत के वत्स से ही बना है जिसके मायने हैं शिशु। वत्स के बच्चा या बछड़ा बनने का क्रम कुछ यूं रहा है-वत्स>वच्च>बच्च>बच्चा या फिर वत्स>वच्छ>बच्छ>बछड़ा। संस्कृत का वत्स भी मूल रूप से वत्सर: से बना है जिसका अर्थ है वर्ष, भगवान विष्णु या फाल्गुन माह। इस वत्सर: में ही सं उपसर्ग लग जाने से बनता है संवत्सर शब्द जिसका मतलब भी वर्ष या साल ही है। नवसंवत्सर भी नए साल के अर्थ में बन गया। संवत्सर का ही एक रूप संवत् भी है।
नए साल का वात्सल्य
वत्सर: से वत्स की उत्पत्ति के मूल में जो भाव छुपा है वह एकदम साफ है। बात यह है
कि वैदिक युग में वत्स उस शिशु को कहते थे जो वर्षभर का हो चुका हो। जाहिर है कि बाद के दौर में (प्राकृत-अपभ्रंश काल) में नादान, अनुभवहीन, कमउम्र अथवा वर्षभर से ज्यादा आयु के किसी भी बालक के लिए वत्स या बच्चा शब्द चलन में आ गया। यही नहीं मनुश्य के अलावा गाय–भैंस के बच्चों के लिए भी बच्छ, बछड़ा, बाछा, बछरू, बछेड़ा जैसे शब्द प्रचलित हो गए। ये तमाम शब्द हिन्दी समेत ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मालवी आदि भाषाओं में खूब चलते है। फारसी में भी बच्च: या बच: लफ्ज के मायने नाबालिग, शिशु, या अबोध ही होता है। ये सभी शब्द वत्सर: की श्रृंखला से जुड़े हैं। इन सभी शब्दों में जो स्नेह-दुलार-लाड़ का भाव छुपा है, दरअसल वही वात्सल्य है।
शरद ऋतु को भी प्राचीनकाल में साल से जोड़कर देखा जाता था। शरद का अर्थ संस्कृत में पतझड़ के अलावा वर्ष भी है। प्रसिद्ध वैदिक उक्ति जीवेत् शरद: शतम् में सौ बरस जीने की बात ही कही गई है। ऋतुबोध से कालगणना का एक और उदाहरण हेमन्त से मिलता है जिसका मतलब है जाड़े का मौसम। यह बना हिम् या हेम् से जिसका अर्थ ही ठंडक या बर्फ है। वैदिक युग में वर्ष के अर्थ में हिम् शब्द भी प्रयोग में लाया जाता था। संस्कृत उक्ति-शतम् हिमा: यही कहती है। लेकिन वर्ष, संवत्सर और बरस से भी ज्यादा इस्तेमाल होने वाला शब्द है साल जो हिन्दी में खूब इस्तेमाल किया जाता है पर हिन्दी का नहीं है। साल शब्द फारसी से हिन्दी -उर्दू में आया जिसका अर्थ पुरानी फारसी में जो बीत गया था। फारसी में इसका अर्थ वर्ष ही है और इससे बने सालगिरह-सालाना जैसे लफ्ज खूब बोले जाते हैं।
संवत् , संवत्सर, नवसंवत्सर
उर्दू-हिन्दी में प्रचलित बच्चा संस्कृत के वत्स से ही बना है जिसके मायने हैं शिशु। वत्स के बच्चा या बछड़ा बनने का क्रम कुछ यूं रहा है-वत्स>वच्च>बच्च>बच्चा या फिर वत्स>वच्छ>बच्छ>बछड़ा। संस्कृत का वत्स भी मूल रूप से वत्सर: से बना है जिसका अर्थ है वर्ष, भगवान विष्णु या फाल्गुन माह। इस वत्सर: में ही सं उपसर्ग लग जाने से बनता है संवत्सर शब्द जिसका मतलब भी वर्ष या साल ही है। नवसंवत्सर भी नए साल के अर्थ में बन गया। संवत्सर का ही एक रूप संवत् भी है।
नए साल का वात्सल्य
वत्सर: से वत्स की उत्पत्ति के मूल में जो भाव छुपा है वह एकदम साफ है। बात यह है

कि वैदिक युग में वत्स उस शिशु को कहते थे जो वर्षभर का हो चुका हो। जाहिर है कि बाद के दौर में (प्राकृत-अपभ्रंश काल) में नादान, अनुभवहीन, कमउम्र अथवा वर्षभर से ज्यादा आयु के किसी भी बालक के लिए वत्स या बच्चा शब्द चलन में आ गया। यही नहीं मनुश्य के अलावा गाय–भैंस के बच्चों के लिए भी बच्छ, बछड़ा, बाछा, बछरू, बछेड़ा जैसे शब्द प्रचलित हो गए। ये तमाम शब्द हिन्दी समेत ब्रज, अवधी, भोजपुरी, मालवी आदि भाषाओं में खूब चलते है। फारसी में भी बच्च: या बच: लफ्ज के मायने नाबालिग, शिशु, या अबोध ही होता है। ये सभी शब्द वत्सर: की श्रृंखला से जुड़े हैं। इन सभी शब्दों में जो स्नेह-दुलार-लाड़ का भाव छुपा है, दरअसल वही वात्सल्य है।
आपकी चिट्ठी
सफर के पिछले पड़ावों -डंडे का धर्म और धर्म का दंड व डंडापरेड,दंडवत की महिमा पर संजय , अशोक पांडे,ज्ञानदत्त पांडेय ,मीनाक्षी और दिनेशराय द्विवेदी की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका आभार।
आप हिन्दी की सच्ची सेवा कर रहे हैं. इसका कहीं संग्रह कीजिये और पुस्तकाकार प्रकाशित करवाइए.
ReplyDeleteअनिल रघुराज जी की आज की पोस्ट पर आप के द्वारा दिए कमेंट और अंत में लिखे शेर को पढ़ ही मैं आप के ब्लॉग पर आने को utsuk हुआ. आप के ब्लॉग पर आना और पढ़ना मैं pichhle (२००७) साल की याद रखने योग्य घटना मानता हूँ. vilakshan pratibha और ज्ञान के dhani हैं आप. बहुत aanand आया आप को पढ़ कर. इस वर्ष से आप को पढ़ना अपनी aadat में shamil कर रहा हूँ.
ReplyDeleteनीरज
नए साल की बधाइयां बांटने के साथ बांटने के लिए और भी बहुत कुछ दे दिया। शुक्रिया। हैप्पी न्यू इयर।
ReplyDeleteआपके ब्लॉग के माध्यम से मेरे जैसे युवा पत्रकार को कई नए शब्द से होकर गुजरना पड़ा, जो कि वाकई मेरे लिए बहुत मजेदार और फायदेमंद रहा
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनाएँ,हमेशा की तरह दिलचस्प है.
ReplyDeleteनीरज गोस्वामी जी की टिप्पणी की स्पिरिट से पूरी सहमति। नया साल मुबारक।
ReplyDeleteआपको नववर्ष की ढ़ेरों बधाइयाँ…।
ReplyDeleteसाल मुबारक़ .
ReplyDeleteबहुत ही सामयिक जानकारी दी अजित भाई. नए साल की ढेरों शुभकामनाएँ. शब्दों का सफर निर्बाध जारी रहे....
ReplyDeleteआपको नव-वर्ष की हार्दिक शुभकामनाए।
ReplyDeleteआपका जीवन खुशियो से भर जाए।
नया वर्ष आप सब के लिए शुभ और मंगलमय हो।
ReplyDeleteमहावीर शर्मा
नए साल की शुभकामनाएं आपको भी।
ReplyDelete-- Lavanya & Family
नये साल में नई रोचक जान कारी लेने हम यहाँ आते रहेंगे । बहुत शुभकामनायें ।
ReplyDeleteचलता रहे
ReplyDeleteशब्दों का सफर यूं ही साल दर साल
टूटे ना नाता शब्दों से कभी
पढ़ें जब भी कोई शब्द
लगे बना हो अभी अभी।
नव वर्ष की शुभकामनाएं
आपके शब्दों के सफर में चलते चलते अपनी एक कविता याद आई और उसे दूसरी तरह कहने का जी चाहा .....
ReplyDelete"शब्दों का झरना बहे
अमृत की रसधार बहे
ज्ञान की ऊँची लपट बने
अवनि पर प्रतिपल जलती रहे !"
नव वर्ष मंगलमय हो..
अजित भाई,आप तो खास तरह के काम में जुटे पड़े हैं,और मेहनत भी अच्छी हो जाती होगी,आपके यहां बहुत कुछ सीखने को मिलता है,यही रूप सदैव बना रहे,
ReplyDeleteनया साल मंगलम हो !!!
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