
प्राचीनकाल से ही सभ्यताओं ने जलस्रोतों के इर्द-गिर्द विकास किया है। ये जलस्रोत न सिर्फ जीवन के लिए आधार बने बल्कि जीवन व्यापार का आधार भी बने। जल-प्रवाह ही मनुश्य के गतिशील होने का दूसरा सबसे बड़ा माध्यम बना। पहला माध्यम तो उसके पैर थे ही जिनके जरिये उसने जल स्रोत खोजे। जाहिर है नदी , सागर तट आदि शुरु से ही बसाहट के लिए

सदियों पहले मलेशिया में हिन्दू धर्म का प्रसार हो चुका था। मलेशियाई भाषा में वरूण ने बरूनाह का रूप अपना लिया जिसका अर्थ निकलता है बसने लायक जगह। करीब एक हजार साल पहले जब मलेशियाई यहां बसने आए तो यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से प्रभावित होकर उन्होने इस जगह को यही नाम दिया। तेरहवीं सदी तक यहां हिन्दू धर्म था। चौदहवी सदी में यहां राजा ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया और पंद्रहवीं सदी में यहां के दूसरे सुल्तान ने अपने देश का नया नाम बरूनाह की जगह रखा ब्रुनेई। इस तरह हिन्दी का वरुण हो गया ब्रुनेई।
आपकी चिट्ठी
सफर के पिछले तीन पड़ावों - दरिया तो संगीत है , औरत में सचमुच कुछ भी अश्लील नहीं और सदियां कुर्बान हैं पर जो चिट्ठियां मिली उनमें है - संजीत त्रिपाठी , माला तैलंग, पंकज सुबीर , आशीष महर्षि , ज्ञानदत्त पाण्डेय, संजय , अभय तिवारी , अनुराधा श्रीवास्तव, और लावण्याजी। आप सभी का आभार । सदियां कुर्बान वाली पोस्ट के लिए दिनेशभाई ने एक सुंदर शीर्षक सुझाया, ज्ञान-वाहक - उनका आभारी हूं।
वरुण के ब्रुनेई बनने की जानकारी रोचक है. यह जानकारी आश्चर्यचकित करने वाली है कि ब्रुनेई का राजा पहले हिंदू था. शुक्रिया
ReplyDeleteअजित, धन्यवाद ये सब पहली बार पता चला। वरूण और ब्रुनई कभी अंदाजा भी ना था।
ReplyDeleteकमाल का सम्बन्ध है.
ReplyDeleteआप तो ब्लॉग जगत की इन्सिक्लोपीदिया बनते जा रहे है। ऐसे शाधारण शब्दों का ऐसा नायाब संबंध।
ReplyDeleteबहुत बढिया और विचारणीय लेख
ReplyDeleteदीपक भारतदीप
क्या बात है, बड़ा ही रोचक है यह तो!!
ReplyDeleteजहां वित्त(डालर) है,वहां सब है - वरुण भी, इस्लाम भी, धर्म भी, अधर्म भी!
ReplyDeleteऋग्वेद में उसने सूर्य-चन्द्र बनाए और वही उन्हें नियम पूर्वक चलाता है वरुण मनुष्यों तथा देवताओं दोनों का सम्राट है, वह विश्व का अधिपति है। वह ऋत् का देवता है अर्थात प्रकृति की व्यवस्था का रक्षक है। वह मायावी भी है, उस का एक नाम असुर भी है। उस के नियम देवताओं पर भी लागू होते हैं। यहाँ तक कि आकाश में पक्षियों का उड़ना, सागर में पोतों का मार्ग, दूरगामी वायु का मार्ग सब उसे ज्ञात हैं। उस से कुछ नहीं छिपता, और तो और पलक का झपकना तक भी। अवेस्ता के अहुर-मज्दा और ग्रीक औरानोस से इस का साम्य है। उत्पत्ति की दृष्टि से वरुण को वृ धातु से जोड़ा जाता है।
ReplyDeleteअद्भुत् !!!ममता जी से पुर्णतः सहमत हूँ .... शब्दों के सफर में ऐसे कई रोचक और अचंभित् कर देने वाले पड़ाव अभी जारी रहेंगे ,इसी शुभेच्छा के साथ आभार......
ReplyDeleteबहुत बढिया जानकारी है और बहुत बढिया काम भी. मैं इस श्रंखला से बहुत प्रभावित हुआ!
ReplyDelete