प्रकृति ही संगीत है। अंतर्मन की गहराई से अगर प्रकृति को अनुभव करें तो समूची सृष्टि में संगीत प्रवाह महसूस होगा। प्रकृति का सांगीतिक रूप शब्दों से भी उजागर होता है। भारतीय शास्त्रीय संगीत का एक चिर परिचित शब्द है नाद जिसका मूलार्थ है ध्वनि। इसके विशिष्ट अर्थों में घोष ,गर्जना, ऊँची आवाज़, दहाड़ अथवा चीख-चिल्लाहट भी शामिल हैं। सिंहनाद शब्द इससे ही बना है जिसका मतलब शेर की दहाड़ होता है। जयनाद जिसका मतलब है विजयी सेना का जयघोष , जीत की हर्षध्वनि। इससे ही बना हर्षनाद। प्राचीन काल से अब तक मांगलिक कार्यों अथवा किसी मनोरथ के पूर्ण होने पर उसकी दूर-दूर तक सूचना कराने के लिए शंख बजाया जाता रहा है। जयघोष के लिए तो शंखध्वनि अनिवार्य थी इसी लिए शंखनाद शब्द बना । जीत की हर्षध्वनि के लिए जयनाद शब्द भी है। नाद शब्द आमतौर पर अनुनासिक ध्वनि के लिए भी प्रयोग मे आता है। संगीत मे नादब्रह्म शब्द भी है जिसका मतलब है औंकार ध्वनि, अव्यक्त शब्द। अनुनाद यानि प्रतिध्वनि भी सांगीतिक शब्दावली का एक आम शब्द है। करुण पुकार के लिए आर्तनाद भी इसी कड़ी में है।
नदिया की धारा रे...
नाद बना है संस्कृत की धातु नद् से जिसमें यही सारे भाव समाए हैं। नद् से ही बना है नदः जिसका अर्थ है दरिया, महाप्रवाह, विशाल जलक्षेत्र अथवा समुद्र। गौर करें कि बड़ी नदियों के साथ भी नद शब्द जोड़ा जाता है जैसे ब्रह्मपुत्रनद। ग्लेशियर के लिए हिमनद शब्द इसी लिए गढ़ा गया। अब साफ है कि नद् शब्द से ही बना है नदी शब्द जो बेहद आम है। गौर करें कि नदी यानि सलिला, सरिता, धारा, तरला, नदिया, सिंधु निर्झरिणी आदि शब्दों के में उजागर प्रवाहवाची भाव पर ।
कलकल में ही छुपी है संगीत की आत्मा
सवाल उठता है नदी शब्द की उत्पत्ति नद् धातु से क्यों हुई जिसके तमाम अर्थ शोर, ध्वनि , गर्जना से जुड़ते हैं ? इसका उत्तर नदी के एक और पर्यायवाची में छुपा है। नदी को शैलबाला, पर्वतसुता या पार्वती भी कहा जाता है। ज्यादातर धाराओं का प्राकृतिक उद्गम पर्वतों से ही होता है। ऊँचे पर्वतों से जब जलधाराएं नीचे की ओर यात्रा शुरु करती हैं तो चट्टानों से टकरा कर घनघोर ध्वनि के साथ नीचे गिरती हैं। यह शोर है। यही गर्जना है। पहाड़ों से नीचे आने पर जब वे मैदानों में बहती हैं तो उनकी गति क्षीण ज़रूर हो जाती है मगर छोटी चट्टानों ,कंकर पत्थरों से संघर्ष तब भी जारी रहता है जिससे कलकल ध्वनि पैदा होती है। यही है संगीत। यही है नाद जिसमें छुपा है नदी के जन्म का रहस्य। और नदी शब्द में छुपा है नाद यानी संगीत का जन्म । चकराइये मत,सभ्यता के विकासक्रम में जब मनुश्य की वाचिक चेष्टाएं अर्थवान होने लगी थीं और भाषा का जन्म होने को था तभी मनुश्य ने पहाड़ी धाराओं की ध्वनि को नद् कहा और कालांतर में , भाषा के विकासक्रम मे इसके अन्य अर्थ विकसित होते चले गए।
यह पडाव कैसा लगा ज़रूर बताएं।
दरिया की सैर जारी है
आपकी चिट्ठी
सफर के पिछले दो पड़ावों शब्दों की तिजौरी पर ताले की हिमायत और क्या है माँ का ऐश्वर्य पर सर्वश्री मनीश जोशी(जोशिम), मीनाक्षी, दिनेशराय द्निवेदी, प्रशांत उदय मनोहर और शास्त्री जेसी फिलिप ,माला तैलंग, अनुराधा श्रीवास्तव, ममता, संजीत त्रिपाठी , पारुल और संजय की टिप्पणियां मिलीं। आप सबको दोनों आलेख पसंद आए इसका बहुत बहुत शुक्रिया।
Thursday, January 31, 2008
दरिया तो संगीत है.... [नदी-1]
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:23 AM
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8 कमेंट्स:
सीढ़ीयां उतरती है यहाँ पार्वती,
यह संगीत उसी का है
रात के सन्नाटे में गूँजता
यही नादब्रह्म है।
किसी पहाड़ी नदी के किनारे बसे गांव में रात बिताइए। रात भर इस नाद ब्रह्म से रूबरू होते रहेंगे।
गाय गोरू को कबार डालने को एक नाद का प्रयोग होता है। कोई को-रिलेशन है क्या?
जानकारी सटीक और नई है मेरे लिए, अजित जी अनहद का मतलब क्या होता है
वाह, मजा आ गया इसे पढ़ते पढ़ते मैं तो पहाड़ो की सैर भी कर आयी ,जहाँ कल -कल कलरव करते असंख्य झरने बह रहे थे। झरने को भी इसी श्रेणी मे रखेंगे क्या?
अच्छा है अजीत जी और आप जो कुछ कर रहे हैं वों तो ऐसा है कि उसके बारे में कुछ भी नहीं कहा जा सकता । कई सारे शब्द आपसे सीखने हैं ।
बहुत सुंदर!!
नाद है कि ब्रह्म है
ब्रह्म है कि नाद है
नाद ही ब्रह्म है
या फिर
ब्रह्म ही नाद है।
नवदुर्गा के रूपों से औषधि उपचार
नवदुर्गा के पांचवे स्वरूप स्कंदमाता की अलसी औषधी के रूप में भी पूजा होती है। स्कंद माता को पार्वती एवं उमा के नाम से भी जाना जाता है। अलसी एक औषधि से जिससे वात, पित्त, कफ जैसी मौसमी रोग का इलाज होता है। इस औषधि को नवरात्रि में माता स्कंदमाता को चढ़ाने से मौसमी बीमारियां नहीं होती। साथ ही स्कंदमाता की आराधना के फल स्वरूप मन को शांति मिलती है।
स्कंदमाता अर्थात् अलसी के संबंध में शास्त्रों में कहा गया है-
अलसी नीलपुष्पी पावर्तती स्यादुमा क्षुमा।
अलसी मधुरा तिक्ता स्त्रिग्धापाके कदुर्गरुः।
उष्णा दृष शुकवातन्धी कफ पित्त विनाशिनी।
अर्थात् वात, पित्त, कफ जैसी बीमारियों से पीडि़त व्यक्ति को स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए और माता को अलसी चढ़ाकर प्रसाद में रूप में ग्रहण करना चाहिए।
नवरात्रि में माँ दुर्गा के औषधि रूपों का पूजन करें
माँ जगदम्बा दुर्गा के नौ रूप मनुष्य को शांति, सुख, वैभव, निरोगी काया एवं भौतिक आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं। माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बैठाकर संसार के प्रत्येक दुख से दूर करके सुखी रखती है।
जानिए नवदुर्गा के नौ रूप औषधियों के रूप में कैसे कार्य करते हैं एवं अपने भक्तों को कैसे सुख पहुँचाते हैं। सर्वप्रथम इस पद्धति को मार्कण्डेय चिकित्सा पद्धति के रूप में दर्शाया परंतु गुप्त ही रहा। भक्तों की जिज्ञासा की संतुष्टि करते हुए नौ दुर्गा के औषधि रूप दे रहे हैं। इस चिकित्सा प्रणाली के रहस्य को ब्रह्माजी ने अपने उपदेश में दुर्गाकवच कहा है। नौ प्रमुख दुर्गा का विवेचन किया है। ये नवदुर्गा वास्तव में दिव्य गुणों वाली नौ औषधियाँ हैं।
प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी,
तृतीयं चंद्रघण्टेति कुष्माण्डेती चतुर्थकम।।
पंचम स्कन्दमातेति षुठ कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरति चाष्टम।।
नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा प्रकीर्तिता।
ये औषधियाँ प्राणियों के समस्त रोगों को हरने वाली और रोगों से बचाए रखने के लिए कवच का काम करने वाली है। ये समस्त प्राणियों की पाँचों ज्ञानेंद्रियों व पाँचों कमेंद्रियों पर प्रभावशील है। इनके प्रयोग से मनुष्य अकाल मृत्यु से बचकर सौ वर्ष की आयु भोगता है।
ये आराधना मनुष्य विशेषकर नौरात्रि, चैत्रीय एवं अगहन (क्वार) में करता है। इस समस्त देवियों को रक्त में विकार पैदा करने वाले सभी रोगाणुओं को काल कहा जाता है।
अलसी का वानस्पतिक नाम LINUM USITATISSIMUM
परिवार LINACEAE
अन्य नाम
संस्कृत Atasi, Auma, Budrapatni, Chanaka, देवी, Haimwati सैन, Kshauma, Kshaumi, Ksuma, Madagandha, Madotkata, Malina, Masina, Masrina, Masrind, Masrna, Masruna, Masuna, Mauverchala, Nilapushpi, Nilapushpika, Nilapuspi, पार्वती, Pichhila, Sunila, Tailottama, उमा, Lika
हिंदी Alsi, Tisi, Tisi, Alsi
इस पड़ाव पर ठहरना सुखद था .
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