भारतीय मसालों की महक से पूरी दुनिया सदियों से महक रही है। अगर कहा जाए कि ये भारतीय मसाले ही थे जिनकी वजह से सुदूर पश्चिमी जगत के लिए पूरब के समुद्री द्वार खुले तो कुछ ग़लत नहीं होगा। भारतीय मसालों में एक खास जगह है राई की। एक भी ऐसा भारतीय परिवार न होगा जिसकी रसोई में राई न पाई जाती हो।
छौक तड़के की माया
छौंक या तड़का है। जब तक यह न हो भोजन का आनंद ही नहीं आता । किसी भी कुशल गृहिणी या रसोइये के लिए भोजन को जायकेदार बनाने की जो रस्म होती है वह है तड़का या छौंक। यह कोई आसान काम नहीं है। बहरहाल , बात राई की चल रही थी। राई रबी की तिलहनी फसल है।
राई शब्द बना है संस्कृत के राजिका से जिसका मतलब होता है काली सरसों , पीली सरसों ।
काली राई और सरसों को आमतौर पर वे लोग अलग अलग पदार्थ समझते हैं जिन्हें पाकशास्त्र मे दिलचस्पी नहीं है, मगर मूल रूप से ये एक ही हैं। सरसों और राई एक ही जाति की फसलें हैं , किस्में कई तरह की होती हैं।
राजिका शब्द बना है संस्कृत के राजि या राजी से । इसका अर्थ होता है पंक्ति , कतार धारी , रेखा आदि। इससे मिलते जुलते खेत , क्यारी जैसे अर्थ भी इसके हैं। अब गौर करें कि यूं तो सभी फसलें खेतों में ही उगती हैं और करीब-करीब कतार में ही बोई जाती हैं मगर कतार वाले अनुशासन से जुड़ा नाम पाने का सौभाग्य सिर्फ राई यानी राजिका को ही मिला।
बात रायते की
यह एक ऐसी भारतीय डिश है जिसकी धूम देश-विदेश में उतनी ही है जितनी कि पुलाव की । रायता शब्द के नामकरण में राई का ही कमाल है। रायता दरअसल दही के अंदर उबली सब्जियों से बना वह पदार्थ है जिसे राई से बघारा गया हो। रायते की खासियत ही है उसके जायके में एक खास किस्म की तेजी जो सिर्फ राई से ही आती है। आज सैकडो़ तरह के रायते प्रचलन में हैं मगर जो बात राई के तड़के और हींग के धमार वाले रायते में है , वो और किसी में नहीं। रायता चाहे जितना स्वादिष्ट हो मगर जब फैल जाता है तो न सिर्फ फैलाने वाले की शामत आती है बल्कि बनाने वाले का भी माथा घूम जाता है । और फिर पूरे माहौल का अंदाज़ा लगाना कुछ मुश्किल नहीं।
कहावतों में आई राई
सामाजिक-भाषिक संस्कृति में भी राई का एक अलग ही महत्व है। चश्मेबद्दूर के लिए भी राई का उपयोग आम है । छोटे बच्चों, कम उम्र लड़कियों को नज़र न लग जाए इसके लिए आमतौर पर उनकी माँ राई की पोटली उनकी क़मर से बांधती हैं या कपड़ों में खोंस देती हैं। कहावतों में भी यह बात नज़र आती है जैसे राई नोन करना यानी नज़र उतारना। राई से जन्मी कुछ अन्य कहावतें भी प्रचलित हैं मसलन राई रत्ती का हिसाब, राई का पहाड बनाना या राई रत्ती का हाल जानना। जाहिर है कि इसमें राई के सूक्ष्म आकार को महत्व दिया गया है।
कैसा लगा राई का हाल, तरबूज़ करके बताएं तो जानें।
आपकी चिट्ठियों का हाल जानें अगले पड़ाव में ।
Saturday, January 26, 2008
चश्मेबद्दूर ... रायता फैल गया...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 4:01 AM
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7 कमेंट्स:
ओहो, कहां-कहां की छौंक लगाते हैं आप भी?
बढ़िया!
शुक्रिया।
एक बात तो है , हर जगह या हर हाथ के रायते में मजा भी नही आता।
मजा आ गया ,रायता मुझे बहुत प्रिय है -खासकर लौकी का राई की छौक के साथ ...और महाकवि देव की एक पंक्ति भी याद आ गयी -
पूरित पराग सो उतारा करे राई लोन ,कंज कली नायिका लतान सिर सारी दे ,
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि प्रातही लावत गुलाब चटकारी दे !
लोग तो राई का पहाड़ बनाते हैं, आप ने तो टीले पर ही छोड़ दिया।
बड़े भाई द्विवेदी जी ,
पूरी कविता यूँ है -
डार द्रुम पालन बिछौना नव पल्लव के सुमन झगूला सोहे तन छवि भारी दे
पवन झुलावे केकी कीर बतरावे देव ,कोकिल हिलावे हुल्सावे करतारी दे
पूरित पराग सो उतारा करे राई लोन ,कंजकली नायिका लतान सिर सारी दे
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि प्रात हिये लावत गुलाब चटकारी दे
देखिये यहाँ भी राई की मदद से नजर उतारने का उल्लेख है ,
शुक्रिया ..
बड़े भाई द्विवेदी जी ,
पूरी कविता यूँ है -
डार द्रुम पालन बिछौना नव पल्लव के सुमन झगूला सोहे तन छवि भारी दे
पवन झुलावे केकी कीर बतरावे देव ,कोकिल हिलावे हुल्सावे करतारी दे
पूरित पराग सो उतारा करे राई लोन ,कंजकली नायिका लतान सिर सारी दे
मदन महीप जू को बालक बसंत ताहि प्रात हिये लावत गुलाब चटकारी दे
देखिये यहाँ भी राई की मदद से नजर उतारने का उल्लेख है ,
शुक्रिया ..
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