ये संयोग ही था कि गुरूवार को सफर का पड़ाव था यजमान तो डूबा है जश्न में .....[जश्न-1] और इस पड़ाव पर ही हमारा जन्मदिन भी आने वाला है ये खयाल नहीं था। ब्लाग पर , फोन पर साथियों की मुबारकबाद ने दिन को खुशनुमा बनाए रखा । मगर देर शाम करीब आठ बजे मैथिलीजी की मेल में सृजन-सम्मान वाली सूचना मिली जिसने सचमुच मन मे जश्न वाला भाव पैदा कर दिया।
मैं छत्तीसगढ़ की साहित्यिक सांस्कृतिक संस्था सृजन-सम्मान का आभारी हूं कि उन्होने हिन्दी ब्लागिंग को एक घटना के रूप में देखा और उसे सम्मान-मान्यता दिलाने के लिए प्रतीक स्वरूप हर वर्ष कुछ नाम तय करने का काम शुरू किया है। संयोग से इस वर्ष मेरा नाम भी इसमें है। इसके लिए सृजन-सम्मान के नियामकों, निर्णायकों और सबसे ऊपर समूचे ब्लाग जगत का मैं आभारी हूं जिसने बमुश्किल छह महिने पहले शुरू हुए शब्दों के सफर की जबर्दस्त हौसला अफज़ाई की। निर्णायक श्री रविरतलामी जी ने एकदम सही कहा है कि-
हर चिट्ठाकार और उसका हर चिट्ठा महत्वपूर्ण है।वो हर मामले में परिपूर्ण होता है। कोई भी पुरस्कार या प्रशस्ति उसकी परिपूर्णता में बालबराबर भी इजाफ़ा नहीं कर सकती।
बालेंदुजी और रविजी ने चयनित तीनों ब्लागों का जिस आत्मीयता से परिचय दिया है उससे भी मैं अभिभूत हूं। मुझसे कोई बातचीत , पूर्वपरिचय हुए बिना जिस तरह से इन्होंने शब्दो के सफर के बारे में बातें कहीं हैं, वो सब जैसे मेरे ही मन की बातें हैं। संयोजक जयप्रकाश मानस को इस आयोजन के लिए बधाई।
वाद-विवाद होते रहेंगे। ये ज़रूरी भी है चीज़ों को सही परिप्रेक्ष्य में समझे जाने के लिए। मगर सृजन-सम्मान के उद्धेश्य में कोई खोट ढूंढना या निर्णायकों के परिश्रम में शॉर्टकट तलाशना बहुत ग़लत बात होगी।
शब्दों का सफर शुरू करने से पहले मैने नहीं सोचा था कि लोगों को इतना पसंद आएगा अलबत्ता इतना ज़रूर पता था कि यह लंबा चलेगा क्यों कि अपने काम के आकार का मुझे अंदाजा अब पहले से था।
सफर के एकदम शुरुआती दौर में मेरे साथियों अनूप शुक्ला , अभय तिवारी अनामदास, अविनाश, संजीत , हरिराम , शास्त्री जेसी फिलिप,और उड़नतश्तरी ने ( कुछ नाम छूट भी गए हों तो क्षमा करेंगे ) मेरी जबर्दस्त हौसलाअफ़जाई की जिसकी वज़ह से हर हफ्ते एक पोस्ट लिखने का मंसूबा बांधकर ब्लागिंग करने निकला यह यायावर बीते छह महिनों से क़रीब करीब रोज़ ही एक पोस्ट लिखने की हिम्मत जुटा सका है। आगे ये क्रम कब तक जारी रहेगा , कह नहीं सकता , मगर सफर तो चलता रहेगा। अनूप जी और ममता जी को भी मेरी ओर से हार्दिक बधाइया।
एक बार फिर आप सबका शुक्रिया.....
Friday, January 11, 2008
शुक्रिया ब्लागजगत का और सफर के हमराहियों का...
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 1:38 AM
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
29 कमेंट्स:
अजित भाई
ढेर सारी बधाइयाँ, नया साल आपके कठिन परिश्रम और लगन के लिए एक प्रोत्साहन लेकर आया है, आपका काम अनमोल है इसमें किसी शक की गुंजाइश नहीं है, जिसने भी आपकी हौसलाअफ़ज़ाई की है उसका आभार प्रकट करने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हम सब आपके सच्चे आभारी हैं शब्दों की गिरह खोलने और उनके तार जोड़ने के लिए, वह भी इतने सुंदर तरीक़े से. एक बार फिर ढेर सारी शुभकामनाएँ, अभी तक शब्दों का सफ़र शुरू ही हुआ है..चलते चलिए, हम साथ हैं.
(निजी माफ़ीनामा अलग से भेजा जा रहा है)
बधाई। वाकई आप इस सम्मान के योग्य हैं। निरन्तर एक महत्व के काम को करना आसान नहीं है। आप ने कर दिखाया। इस काम को जारी रखिए। इस काम की कोई सीमा नहीं हैं। जब तक मानव है शब्द सफर करते रहेंगे। आप भी थकें नहीं और अधिक ऊंचाइयां छुऐं, यही कामना है।
बहुत बहुत बधाई
बहुत बहुत बधाई मित्र।
बहुत बहुत बधाई सर. शब्दों का सफर यूँ ही चलता रहे, यही कामना है.
सृजन सम्मान के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई और अब तो जश्न होना ही चाहिऐ।
अजित सर को मेरी ओर से हार्दिक बधाई। अच्छे कामों का हमेशा अच्छा परिणाम होता है, एक बार फिर से बधाई, पार्टी लेने कब मुझे भोपाल आना है बताईए
आपका
आशीष
अजित भाई,ब्लॉगजगत में वाकई विशिष्ट कार्य के लिये आपका नाम हमेशा प्रमुखता से लिया जायेगा,इस अनूठे ब्लॉग से जुड़ हम भी सम्मानित महसूस करते हैं,जन्मदिन पर मेरी बधाई स्वीकार करें ॥
आपकी पोस्ट पढ़ते हुए हम समझ नही पाए थे कि आपने हमे क्यों बधाई दी थी पर जब अपना ई मेल देखा तो समझ मे आया कि आप ने हमे क्यों बधाई दी थी।
आपतो बधाई स्वीकारें और पार्टी-शार्टी की व्यवस्था करें. :)
बधाईयां स्वीकार करे!
ब्लॉग जगत में अक्सर हम या और कोई भी शब्दों से खेलते या खेलने की कोशिश करते दिख ही जातें हैं। पर आपने तो शब्दों से खेलते हुए ही इन्ही शब्दों की व्युत्पत्ति या चलन पर लिखा। इस पर आधारित आपका यह ब्लॉग अपनी विशेषताओं के कारण अन्य ब्लॉग्स से भिन्न है और जो भिन्न होता है उसकी पहचान अलग ही बनती है।
मेरी यह कविता आपको समर्पित क्योंकि यह कविता शायद आप पर ही खरी उतरती है।
शब्द और मैं
शब्दों का परिचय
जैसे आत्म परिचय
शब्द!
मात्र शब्द नही हैं
शब्दों में
मैं स्वयं विराजता हूं
बसता हूं।
मैं ही शब्द हूं
शब्द ही मैं हूं।
नि:संदेह!
मैं शब्द का पर्याय हूं
शब्दों की यथार्थता पर
लगा प्रश्नचिन्ह
मेरे अस्तित्व को
नकारता है
मेरे अस्तित्व की
तलाश
मानो
शब्द की ही
खोज है।
शुभकामनाएं
बधाई ! सभी विजेताओं को बहुत-बहुत बधाई !
हमारी बधाई स्वीकार कीजिए. सभी विजेताओं को ढेरो शुभकामनाएँ
अजित भाई, मेरी तरफ भी ढेर सारी बधाइयां स्वीकार करें।
आभारी तो हम सब आपके हैं कि शब्दों के ऐसे रोचक सफर पर हमें सहयात्री बनाया । सभी विजेताओं को बधाई ।
बहुत बहुत बधाई!!
बहुत-बहुत बधाईयाँ , चलता रहे किसी न किसी बहाने शब्दों का यह सफर !
भाई साहब दो तीन बातें कहनी हैं बधाई से पेले । एक तो जे के आप अपन के भो-पाल से इत्ता अच्छा काम कर रए हो, दूसरी जे के आपमें वो भोपाली जुनून है जो सबमें होना चाहिए,पर होता नहीं । वरना ऐसई कोई इत्ता अच्छा काम कर सकता हे, तो हाथ मिलाके बधाई ले लो ज़रा । भो-पाल आए तो इसकी एक वजह आप भी होंगे । अपन आपके चिटठे पर अकसर तफरीह करने आते हैं । जाजम बिठाकर बेठते हैं और ज्ञान बिड़ी पीते हैं । बहुत धन्यवाद बधाई और शुभकामनाएं ।
जमाये रहियेजी।
दिल्ली कब आ रहे हैं जी।
प्रिय अजित
आपके चिट्ठे को जो सम्मान मिला है उसके बारे में मुझे कोई ताज्जुब नहीं है. चिट्ठे का सामाजिक योगदान ही इतना अधिक है.
क्या आपने नोट किया कि आप सारथी को, ज्ञान जी को, एवं ऐसे कई लोगों को पीछे छोड गये जो आपसे ज्येष्ठ हैं. इसका एक मुख्य कारण है विषयाधारित चिट्ठों की शक्ति. अन्य चिट्ठों की तुलना में विषयाधारित चिट्ठों का योगदान अधिक होता है. बधाई हो कि आप इस छोटे से समय में इतने आगे निकल गये. अब दुगने समर्पण के साथ शब्दव्युत्पत्ति की साधना करते रहें.
हर लेख की दो प्रति अलग अलग सुरक्षित रखें. यह अमूल्य निधि है, एवं जो निधि को पहचानता है वह उसकी सुरक्षा भी करेगा.
बोलो अजित भाई की जय.....
आप खुश हुए, बधाई, महाराज..
वाह.. आप हैं ही इस योग्य.. बहुत बहुत बधाई.. मुझे खुशी है कि मैं आप का उत्साह बनाए रखने में सहयोग कर सका!
लिखते रहिये.. आगे मंज़िलें और भी हैं!
अजीत जी बधाइयों के गुलदस्ते में एक फूल मेरी ओर से भी खोंस दें। शब्दों का सफर जारी रहे.
अरुण
मैने ये पोस्ट शब्दों के सफर के सभी मेहरबान साथियों और ब्लागजगत को समर्पित की थी। इतने सारे सहयात्री शुभकामनाओं और आशीर्वचनों के साथ
मेरे नज़दीक हैं , देख कर खुशी से कुप्पा हो गया हूं। इतनी खुशियां देने के लिए आभार । आपको देने के लिए यही है कि शब्दों का सफर जारी रहे, आगे प्रभु मदद करेंगे। आमीन....
अजित जानो या न जानो बधाई तो ले लो। पहचानो या न पहचानो तो भी मिलते रहना। एक अंगुली से इससे अधिक लिखा नहीं जा सकता।
आपके कारण शब्दों के प्रति विशेष खोजपूर्ण लगाव पैदा हो रहा है। आपकी मेहनत, लगन और अध्यवसाय हम सब के लिए अनुकरणीय है। पुरस्कार और सम्मान की सार्थकता आप जैसे निष्काम कर्मयोगियों को महत्व देकर ही सिद्ध होती है।
आपको बहुत-बहुत बधाई। निर्णायकों के विवेक की तारीफ करनी होगी।
बहुत बहुत बधाई
मुझे तो पूरा विश्वास था कि एक दिन ये होना ही है ,मगर इतनी जल्दी होगा ये सोचा न था लेकिन पुलाव से मन पुलकित हो दुआऐ जरुर दे रहा था .. ढेरों बधाइयाँ ......... लगे रहो ।
Post a Comment