Saturday, March 29, 2008

हिन्दी ब्लागिंग यानी इंडिया ! [बकलमखुद-10]

बकलमखुद के इस तीसरे पड़ाव और दसवें सोपान में मिलते हैं लावण्या शाह से । लावण्या जी का ब्लाग लावण्यम् अंतर्मन विविधता से भरपूर है और एक प्रवासी भारतीय के स्वदेश से लगाव और संस्कृति प्रेम इसकी हर प्रस्तुति में झलकता है। देखते हैं सिलसिले की अंतिम कड़ी।


अमरीका के समाज को इस दौरान काफी नज़दीक से देखने का,राजनीति, कानून,व्यवस्था को समझने का भरपूर अवसर मिला। मेरी सोच विस्तार पाने लगी । अपने आप से अलग होकर तटस्थता से हर पहलू को परखने की आदत हुई। इस तरह मैं अपने गुण-दोषों को भी देख पाई और जो कमिंयां नज़र आईं उन्हें प्रयत्न करके सुधारने की कोशिश भी की। जीवन किसी शांत मगर वेगवान नदी की तरह आगे बढ़ता रहा। बच्चे भी बडे हो गये और उनके ब्याह हुए। बिटिया ने अमरीकन पति ब्रायन का चुनाव किया। तब समझ पाई कि इन्सान अच्छे और बुरे हर देस मे हर कौम मे होते हैं किसी के माथे पे लिखा नही होता कि वह कैसा होगा !

बच्चों की शादियां और यूं बढ़ा कुनबा

अनुभव से ही हम असलियत जानते हैंऔर संसार तो परस्पर के प्रेम व आदर पर ही टिका रहता है। यह सब मैं इसलिए लिख रही हूं क्योंकि हमें अपने अमरीकी समधी भी ले लोग ही मिले। आमतौर पर भारतीय संस्कारों में पगा परिवार विदेशियों को संस्कारों के मामले में गठजोड़ बिठा पाने के नाकाबिल ही महसूस करता है इसीलिए हमारा अनुभव महत्वपूर्ण है। हमारे बेटे सोपान का ब्याह हुआ सौ.मोनिका देव के साथ और हिन्दू जाट परिवार से नाता जुडा। मेरे अनुभवों को समृद्ध करने नाति नोआ जी का भी जन्म हो गया जो आज मुझे नानी पुकारता है और उसकी भोली मुस्कान में मेरे अपने बच्चों का शैशव झलकता है। हाँ, इन सारी घटनाओँ के बीच, कविता लेखन, ब्लोग , काव्य पाठ, कवि सम्मेलन,ब्याह,व्रत त्योहार,रसोई,दुनिया की सैर,यह भी चलता रहा है।

कम्प्यूटर से दोस्ती और नेट पर घुमक्कड़ी

मेरा पुत्र सोपान ही पहले कम्प्यूटर सीखा था और कम्प्यूटर घर पर आया तब मैंने उसका विरोध भी किया था कि इसकी क्या जरुरत है। फिर एक दिन सोपान ने मुझे ईमेल करना सिखाया और कुछ महत्वपूर्ण बातें बताईं तब तो मेरे आश्चर्य ने हर्षातिरेक का स्थान ले लिया। हिन्दी की वेब साईट जैसे काव्यालय पर कई उम्दा हिन्दी रचनाएँ पढीं । अभिव्यक्ति , अनुभूति तथा बोलोजी में मेरी कविताएं कहानियां भी छपने लगीँ तब आनंद और उत्साह द्विगुणित हो गया।

ये ब्लोग क्या बला है भाई !

एक बार हिन्दी की पहली वेब साइटों पर भी सर्फ करते हुए पहुँची तो कुछ अलग अंदाज़ के जालस्थलों से साबका पड़ा। अचरज़ हुआ कि ये क्या है भई ? ये ब्लोग क्या बला है ? जानना शुरु किया । हमारा तकनीकी ज्ञान तो बिल्कुल ज़ीरो है यानी ००००१% ! तो समझ में तो आया नहीं कुछ कि ये क्या है परंतु याद है किसी ब्लोग पर यात्रा विवरण पढा था और जीतू चौधरी जी का ब्लोग देखा था। कहीं एकाध गाना भी सुना था ! अभिव्यक्ति पर कृत्या पत्रिका की संपादक रति सक्सेना का आलेख पढा - सावधान ! ब्लोगिये आ रहे हैं । उसी में पढ़ा कि मानोशी तथा प्रत्यक्षा भी ब्लोग-लेखन करती हैं। ऐसा पढा और मैं उनकी साहित्यिक प्रतिभा के संपर्क में आई। इस बीच भाई अनूप भार्गव और राकेश खंडेलवाल जी के ई-कविता ग्रुप से भी परिचय हो गया था।

अपना भी ब्लाग बना एक अफ़साना

एक रात घर का काम निपटा कर यूँ ही कुछ पढते हुए ब्लोग की तरफ ध्यान आकर्षित हुआ और पढकर खुद ब खुद अंग्रेज़ी में मैने अपना ब्लोग अन्तर्मन आरँभ कर दिया । समीरलाल जी ने (उडनतश्तरी फेम) कहा लावण्यादी, आपका ब्लोग पसंद आया परंतु हिन्दी में लिखिये ना ? मैने कहा, अभी सीख रही हूँ। सीखते ही, कोशिश करती हूं । तभी होली के अवसर पर हिन्दी ब्लाग अन्तर्मन पर एक व्यंग पढ़ा- होली पर मेरा चिट्ठा भी चोरी !! उनका इशारा हमारे ब्लाग के नाम अंतर्मन को लेकर था। अब हम इतनी ज्यादा सर्फिंग तो नहीं कर पाए थे कि अपने ब्लाग के लिए ऐसा कोई नाम सोचते जो किसी और ने नहीं लिया हुआ था। बहरहाल उनकी बात तो सही थी। मैंने उन्हें धीरज बंधाते हुए कहा आप का नाम पहले है सो, मैं ही बदलाव करती हूँ । इस तरह मेरा ब्लोग लावण्यम् - अंतर्मन् रख कर एक नया अध्याय शुरु किया।

हिन्दी की ब्लाग दुनिया ही भारत है

समीर भाई ने ब्लोगवाणी, नारद, तथा चिट्ठाजगत में नाम लगवाने में मेरी सहायता की जिसके लिये उनकी बहुत बहुत आभारी हूँ। हाँ, अनिताकुमार जी की तरह कभी चेट किया नही ! समयाभाव ही शायद कारण हो ! संपर्कसूत्रों में ईमेल ही ज्यादा इस्तेमाल किया है और उसी ओर त्वरित गति से संवादों का आदान-प्रदान होता रहता है । मेरी गतिविधियां साथी ब्लागरों के उत्साहवर्धन से धीरे-धीरे बढ़ती रहीं हैं। इनदिनों मैं चोखेर बाली रेडियोनामा पर भी लिखती हूं। साँस्कृतिक, सामाजिक परिवेश से जुडी बातों के बारे में लिखना और पढना दोनों बातों को पसंद करती हूं और उसी से जुडी बातें साझा भी करती हूँ। यात्रा विवरण भी प्रिय हैं और भारतीय ग्रामीण परिवेश के बारे में अक्सर खोज कर पढ़ती हूं। चूँकि ग्राम्य जीवन जिया ही नही कभी ! और यहाँ अमरीका में भारत की याद आती है । घर की याद आती है सो ब्लोग विश्व एक तरीके से भारत का पर्याय सा बन चुका है। यानी आप कह सकते हैं कि यहां सुदूर अमरीका में मेरे लिए इंडिया का दूसरा नाम है हिन्दी ब्लागिंग! है न मज़ेदार ! पर मेरे लिए सचमुच यह बहुत सुखद है।

शुक्रिया हिन्दी ब्लागजगत का ...मिलते रहेंगे...

आधुनिक उपकरणोँ की सहायता से गृहकार्य में आसानी रहती है। पति दीपक जी व अन्य सभी का सहकार-स्नेह भी बल देता रहा है। बस्स, ऐसी ही साधारण सी है मेरे जीवन की यात्रा । हिन्दी ब्लोग जगत के साथियों से परिचय तथा उनके विचार जानकर पढकर। बहुत कुछ नया सीखा और देखा है। अत: आप सभी को भी स्नेह धन्यवाद कहना चाहती हूँ ...अगर आपके मन में कोई प्रश्न हो तब अवश्य पूछें। सही सही उत्तर देने का वादा करते , अब आज्ञा बहुत स्नेह के साथ...[समाप्त ]

[ तकनीकी समस्या के कारण आपकी चिट्ठियों का हाल अगले पड़ाव पर- अजित ]

19 comments:

  1. एक अच्छे आत्मपरिचय का उत्तरार्ध। बहुत अच्छा लगा।

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  2. सुन्दर। लावण्याजी वसुधैव कुटुम्बकम की अलख जगा रही हैं।

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  3. लावण्या जी से अधिक की उम्मीद थी, मिला बहुत कम। उन से शिकायत रहेगी। वे अमरीका में बसी हैं। उन से हम वहाँ के जीवन के बारे में जानने की इच्छा ही रखते हैं। खैर, उन के खुद के ब्लॉग पर उन की प्रतीक्षा रहेगी।

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  4. "यहां सुदूर अमरीका में मेरे लिए इंडिया का दूसरा नाम है हिन्दी ब्लागिंग! है न मज़ेदार ..."

    *****
    विदेश में अपने देश की याद और मोह कैसे सताता है इस वाक्य से पता चलता है । बहुत अच्छा लगा आपके बारे में यहाँ पढकर ।
    चूंकि निजी प्रश्न पूछना इस परिचय माला के लिए सही नही है,जितना कोई बताना चाहे उतना ही सुनना चाहिये । इसलिए सवाल तो नही पूछ रही ,बस एक जिज्ञासा है कि बिटिया के ब्रायन से विवाह को पहली ही बार में मन से स्वीकार किया था आपने ,निर्द्वन्द्व !
    सादर ....

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  5. लावण्याजी का शब्दों का सफर थोड़ा और लंबा होना चाहिए था। कुछ और अनुभव, यहां से वहां तक पहुंचने का सफर और जिंदगी में बदलाव को थोड़ा विस्तार से आना चाहिए था।

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  6. ऐसी ही साधारण सी है मेरी जीवन यात्रा...!
    लावण्या बहन,आपकी इस अभिव्यक्ति में
    विनम्र सर्जक की भारतीय गरिमा सहज
    बोल रही है. कायनात के सारे
    बिखरे टुकड़े ,बिखरकर भी जुदा कहाँ हैं ?
    अजित जी के इस सफर ने
    आपकी जीवन यात्रा के मध्यम से
    भारतीयता के विश्व-वैभव का
    नए सिरे से परिचय कराया है.
    आपके संस्मरण को जीते हुए
    नीरज जी का एक गीत गुनगुनाने लगा.
    हमराहियों को भी कुछ पंक्तियाँ सुना देता हूँ -

    कोई नहीं पराया जग में
    धरती रैन बसेरा है
    इसकी सीमा पश्चिम में
    तो मन का पूरब डेरा है
    --------------------------
    तट तट रास रचाता चल
    पनघट पनघट गाता चल
    प्यासी है हर गागर दृग की
    गंगा जल ढलकाता चल.....

    मंगल कामनाओं सहित
    डा. चंद्रकुमार जैन

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  7. अपनी भाषा को लेकर लावण्या जी की जिजीविषा उत्साहवर्धक भी है और आशा बढ़ाने वाली भी. बढि़या सीरीज़ चल रही है आजकल आपके सफ़र में अजित भाई! जारी रहे सफ़र! दुआएं!

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  8. दोनों भाग पढ़के आनन्द आ गया.

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  9. साथियों , यह सिलसिला आपको पसंद आ रहा है इसका शुक्रिया। लावण्याजी के पास यक़ीनन अनुभवों का जो विरल ख़जाना है , उसकी बस, एक झलक ही उन्होंने दिखलाई है। उन्होंने हमें सूचना दी है कि स्वास्थ्य ठीन न होने से उन्होने ज्यादा नहीं लिखा। फिलहाल इतने में ही संतोष करने को कहा है उन्होंने और भरोसा दिलाया है कि आगे कभी विस्तार से भी लिखेंगी। हम उनकी इच्छा का सम्मान करते हुए यही चाहते हैं कि वे जल्दी ही स्वस्थ हों ,उनमें जीवन के प्रति ऐसी ही ऊर्जा हमेशा जीवंत रहे । शुक्रिया लावण्याजी...

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  10. लावण्या जी हम भी आप के स्वास्थय के लिए मंगल कामना करते हैं। जल्दी से स्वस्थ हो अपने बारे में और लिखे।
    अजीत जी तो मुबारकबाद के हक्क्दार है ही।

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  11. बढ़िया लगा पढ़कर!!
    सुजाता जी ने जो सवाल पूछा है वह एक पल के लिए हमारे भी दिमाग मे कौंधा, अच्छा लगेगा अगर लावण्या जी इस बारे में कुछ कहें!

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  12. अजित जी बहुत-बहुत आभार. आपके यहा सामान्य जीवन की ऎसी कथाये पढ्कर मजा आ जाता है.

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  13. लावण्‍या जी ब्‍लॉगिंग की दुनिया ने ही आपसे परिचय करवाया । कितनी कितनी बातें पता चलीं । इस सिलसिले को पढ़कर बहुत अच्‍छा लगा । जिस तरह आप ममता और मुझे आशीष देती हैं वो बहुत भला सा लगता है ।

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  14. युनूस भी व ममता बहन को,
    स स्नेह आशीर्वाद

    सदेव ...मेरे ..
    .-- लावण्या

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  15. -युनूस भी व ममता बहन को सा स्नेह आशीर्वाद

    सदेव ...मेरे ...


    - लावण्या

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  16. अपनी प्रिय ब्लॉगर के विषय में पढ़ना बहुत अच्छा लगा....! अजीत जी का शुक्रिया जो हमें वे उन बातों से परिचित करा रहे हैं जिनकी हमें जिग्यासा थी

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  17. कंचन जी ,

    आपका भी बहुत बहुत आभार ~

    स्नेह,

    -लावण्या

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  18. bahut sahi likha aapne--hindi blogging hi mera bharat hai'aisa laga jaise mere bhi dil ki baat kah di ho--sach mein bharat se duur aisa hi mahsuus hota hai-aap ke anubhavon ko jaan kar achcha laga.-abhar sahit

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  19. अल्पना जी आपका भी
    ( देर से ही सही )
    ( sorry about my delayed response )
    आभार कहते खुशी हो रही है --

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