Friday, March 28, 2008

रूखेपन की रिश्तेदारियां....[संशोधित पुनर्प्रस्तुति]


संगीत मे आरोह-अवरोह बेहद आम और सामान्य शब्द हैं बल्कि यूं कहा जाए कि संगीत इन्हीं दो शब्दों पर टिका है तो गलत न होगा। सुरों के चढ़ाव-उतार से ही संगीत की रचना होती है। आरोह यानी चढ़ाव और अवरोह यानी उतार। आरोह-अवरोह बने हैं संस्कृत के रुह् से जिसका अर्थ है उपजना, चढ़ना, ऊपर उठना, विकसित होना, पकना आदि। इसी से बना है रोह: जिसका अर्थ है चढ़ना, वृद्धि-विकास और गहराई। चढ़ाई के लिए आरोहण शब्द भी इसी से बना है। राज्यारोहण, सिंहासनारोहण जैसे शब्दों से यह जाहिर है।

आरोही

संस्कृत के रोहः में उपसर्ग लगने से एक और शब्द की रचना होती है-आरोही । शाब्दिक अर्थ हुआ ऊपर की ओर जाने वाला (या वाली) मगर भावार्थ हुआ प्रगतिगामी। जो उत्तरोत्तर तरक्की करे। ऊंचे स्थान को हासिल करे, प्रतिष्ठित हो। आरोही से बननेवाले कुछ शब्द हैं अश्वारोही, पर्वतारोही आदि। गौरतलब है कि पहाड़ो पर चढ़नेवालों को हिन्दी में पर्वतारोही कहते हैं मगर नेपाली भाषा में पर्वतारोही को सिर्फ आरोही ही कहा जाता है। श्रीलंका के एक पहाड़ का नाम है रोहण: । जाहिर है रुह् में निहित चढ़ाई और गहराई जैसे अर्थ को ही यह साकार करता है।

रूहेलखंड

आज के उत्तरप्रदेश के एक हिस्से को रूहेलखंड कहा जाता है। इसका यह नाम पड़ा रुहेलों की वजह से। मुस्लिम आक्रमणकारियों के साथ पश्चिम से जो जातियां भारत आकर बस गईं उनमें अफगानिस्तान के रुहेले पठान भी शामिल थे। इसकी उत्पत्ति भी संस्कृत के रूह् से ही हुई है जो पश्तो ज़बान में बतौर रोह प्रचलित है। पश्तो में रोह का अर्थ पहाड़ होता है। सिन्धी जबान में भी पहाड़ के लिए रोह शब्द ही है। साफ है कि पहाड़ी इलाके में निवास करने वाले लोग रुहेले पठान कहलाए। रोहिल्ला शब्द भी इससे ही बना। भारत में आने के बाद ये अवध के पश्चिमोत्तर इलाके में फैल गए और इस तरह रुहेलों ने बसाया रुहेलखंड । दिल्ली के नजदीक सराय रोहिल्ला कस्बे के पीछे भी यही इतिहास है।

रूखा या रूक्ष

हिन्दी मे रूखा शब्द का अर्थ है खुरदुरा, कठोर , नीरस के अलावा इसका एक अर्थ उदासीन भी होता है। इस शब्द का उद्गम हुआ है संस्कृत के रूक्ष शब्द से जिसका मतलब है ऊबड़-खाबड़, असम और कठिन । रूक्ष की उत्पत्ति भी रूह् धातु से हुई है जिसका अर्थ है ऊपर उठना, चढ़ना आदि। गौरतलब है कि हिन्दी का ही एक और शब्द है रूढ़ जिसका जन्म भी रूह् धातु से हुआ है। इसके मायने भी स्थूलकाय, बड़ा या उपजना, उगना आदि हैं। कुल मिलाकर रूह् से जहां संगीत की सुरीली दुनिया के शब्द बने वहीं पथरीली-पहड़ी और ऊबड़-खाबड़ दुनिया के लिए भी रूक्ष और ऱूढ़ जैसे शब्द बने । गौर करें रूह् के ऊपर चढ़ने और उतरने जैसे भावों पर। ज़ाहिर है चढ़ने-उतरने के लिए धरातल का असम होना ज़रूरी है। अर्थात पहाड़ी या ऊबड़-खाबड़ ज़मीन। इसीलिए रूह् से बने रूक्ष शब्द में ये सारे भाव विद्यमान हैं और इससे रुखाई जैसे लफ्ज भी बन गए। इसी तरह रूह् के चढ़ने के अर्थ मे उगने-उपजने और बढ़ने का भाव भी छुपा है। गौर करें कि प्रथा के लिए रूढ़ि शब्द भी इससे ही बना है। इसमें भी बढ़ने और उपजने का भाव छुपा है।
[सफ़र की इस शुरूआती पोस्ट पर भाई अभय तिवारी और डिवाइन इंडिया की टिप्पणियां मिलीं थी। ]

आपकी चिट्ठियां

सफर की पिछली तीन पोस्टों पर सर्वश्री दिनेशराय द्ववेदी, संजय , विजय गौर, यूनुस, सजीव सारथी, संजीत त्रिपाठी, डॉ चंद्रकुमार जैन, अनूप शुक्ल, अनिता कुमार , अजित, मीनाक्षी, विमल वर्मा , लावण्या शाह,अनिल रघुराज , घोस्टबस्टर, मनीष,अफ़लातून, सुनीता शानू, घुघूती बासूती , अन्नपूर्णा, आशीष , जोशिम , अनामदास, राजीव जैन और उड़नतश्तरी की प्रतिक्रियाएं मिलीं। आप सबका बहुत बहुत आभार।

@आशीष महर्षि- भाई ध्वनिसाम्य ज़रूर है ख़ाला और ख़ला में । रोमन में लिखें तो हिज्जे भी एक समान हैं मगर दोनों में कोई अर्थसाम्य नहीं है। दूर का भी। अरबी में जहां तक मेरी जानकारी है खाला शब्द दरअसल खाला के रूप में उच्चरित नहीं होता है। इसका फारसी - उर्दू रूप ख़ाला होता है। अरबी में यह क़ और छ के बीच की ध्वनियों के साथ उच्चरित होता है। आप खुद भी सोच सकते हैं कि ख़ला मे व्याप्त रिक्तता, शून्यता, अंतरिक्ष, खात्मा, खालीपन जैसे भावों का मौसी जैसे रिश्ते से कोई मेल नहीं है।

@संजीत-वैसे तो मेरी खेलों में दिलचस्पी नहीं है मगर मुझे बताया गया कि खली के नामकरण के पीछे काली यानी देवी का रूप छिपा है। दरअसल अपने शुरुआती दौर में रिंग में उतरने से पहले खली के द्वारा काली शब्द का उच्चार करने की बात कही जाती है। इसे ही अमेरिकी मीडिया ने खली बना दिया। वैसे यह लोकप्रिय व्युत्पत्ति हो सकती है पर विश्वसनीय नहीं। ज्यादा जानकारी तो खली स्वयं ही दे सकता है या तमाम मीडिया चैनल जो देश-दुनिया की गंभीर ख़बरों को छोड़कर ख़ली के पीछे अपनी मूर्खता का प्रदर्शन कर रहे हैं।

11 comments:

  1. बड़ी रूहानी पोस्ट है! रूहें भी शायद पढ़ें इसे। :)

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  2. हमेशा की तरह एक और दिलचस्प सफ़र.

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  3. अजित जी ,
    यह संयोग से कुछ अधिक है मेरी नज़र में कि
    आपने सफ़र के शुरूआती दौर में ही
    आरोह -अवरोह के साथ रूखेपन की
    दीगर रिश्तेदारियों की सुध ली थी.
    एक तरफ सुरों का मेला तो दूसरी ओर
    बेसुरे-पथ पर चलकर भी
    उठने-उभरने का ज़ज़्बा!

    विरुद्धों का सामंजस्य ही जीवन है.
    आपका यह शब्दों का सफ़र भी
    अपने आरोही स्वभाव-संकल्प से
    प्रतिदिन नये अक्षर-अनुष्ठान करता रहे
    यही शुभकामना है.

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  4. अजित जी ,
    कवि की पीड़ा को जीते हुए
    काव्यानंद भी प्राप्त कर कर लेना
    सच्चे काव्य रसिक के लिए ही संभव है.
    मेरी कविता पर आपकी टिप्पणी
    इसकी मिसाल है
    धन्यवाद.

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  5. सराय रोहिल्ला के बारे में नई जानकारी पढ़ने को मिली.

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  6. हमेशा की तरह जानकारी से भरपूर्ण पोस्ट।

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  7. आरोह से रूखेपन तक का यह सफर विचित्र लगा। हिन्दी में वृक्ष को रूंख भी कहते हैं। हाड़ौती में रूँखड़ा शब्द है।

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  8. वृक्ष का दिखाई देने वाला हिस्सा सदैव रोशनी की और ही आरोहित होता है।

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  9. अजितजी,
    आरोह, अवरोह से रोह और रूखा तक का सफ़र दिलचस्प रहा । बात रोहिल्ला की हुयी है तो कुछ दिलचस्प बातें हम भी बताते हैं ।

    असल में भारत में रोहिल्ला, रूहेला, रोहिला लोगों का आगमन दो बार हुया है । और ये दोनों काल एक दूसरे से ८००-९०० वर्ष के अन्तर से हैं । अफ़गानिस्तान के रोह/रूह प्रदेश में रहने वाले सबसे पहले नवीं/दसवीं शताब्दि में तत्कालीन उत्तर/मध्य भारत में अफ़गानिस्तान पर मुस्लिम आक्रांताओं के हमले से बचने और हिन्दू बने रहने को आये ।

    बहुत से नही भी आये और वहीं रहे और सैकडों वर्षों के काल में मुस्लिम धर्म में हिल मिल गये । रोहिल्ला अफ़गानों का दूसरी बार भारत में आगमन १७वीं/१८वीं शताब्दियों में हुआ जब मुगलों ने खुद उन्हें भारत आमन्त्रित किया ।

    रुहेलखण्ड के भी दो भाग हैं, पुराना रुहेलखण्ड पीलीभीत के आस पास था और कहते हैं कि ये हिन्दू रोहिल्ला राजाओं की राजधानी थी । १७वीं शताब्दि में बरेली, बदायूँ के आस पास के क्षेत्र को रुहेलखण्ड की राजधानी के रूप में जाना जाता है । इस पर कोई स्पष्ट जानकारी नहीं है, १९७० के आस पास के. सी. सेन ने एक पुस्तक लिखी थी "History of Hindu Rajput Rohillas"

    मैनें उस पुस्तक को इंटरनेट पर भी डाल रखा है लेकिन इस विषय पर तबियत से शोध करने की इच्छा है । मैं स्वयं कई मुस्लिम रोहिल्ला भाईयों से मिल चुका हूँ और चर्चा में उन्होने माना कि दोनो का उद्गम एक ही है ।

    बडी लम्बी टिप्पणी हो गयी, लेकिन क्या करें बस लिख डाला :-)

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