
तो इसी बावर में इसमें `ची´ यानी 'वाला' प्रत्यय लगने से मतलब निकलता है भरोसेमंद या विश्वासपात्र। फारसी में बावर्ची का रूतबा रसोईघर के व्यवस्थापक का होता था। जाहिर है तत्कालीन राजनीति में षड़यंत्रों की भरमार के चलते हर कदम पर भरोसेमंद लोगों की दरकार थी। और जब बात खान-पान की हो तो सावधानी सबसे ज्यादा होनी चाहिए थी। इसीलिए शाही रसोइये के लिए नया शब्द चल पड़ा `बावर्ची´। शाही दौर बीत जाने के बावजूद `बावर्ची´ के लिए लज्जतदारी के साथ वफादारी आज भी पहली कसौटी है।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली आठ कड़ियों में हमें कुल 118 टिप्पणियां मिलीं जिनमें से 76 सिर्फ बकलमखुद की चार कड़ियों पर थी। यहां उन सबके नाम देना संभव नहीं है अलबत्ता बटुए में हुआ बंटवारा, अंटी में छिपाओ तो भी अंटी खाली, बहादुर कौन है और सरकारी खरीता और रेशमी थैली पर आई टिप्पणी करने वाले साथियों का जिक्र कर रहे हैं। सर्वश्री आशीष , प्रत्यत्क्षा, संजीत त्रिपाठी, दिनेशराय द्निवेदी, अफलातून,डा चंद्रकुमार जैन, अनूप शुक्ल , संजय , मीनाक्षी, अनिताकुमार, घोस्टबस्टर, पंकज अवधिया , परमजीत बाली और काकेश । आप सबका आभार ।
आप ने अपनी ट्यूबलाइट जला दी। अब जा कर फिल्म बावर्ची समझ आई।
ReplyDeleteअच्छा बताये आप! शुक्रिया!
ReplyDeleteयही बात थी फिल्म बावर्ची में, देखी तब थी लेकिन नाम का मतलब आज समझ आया।
ReplyDeleteलज़्ज़तदारी के साथ वफ़ादारी ! क्या बात कही !
ReplyDeleteबावरची के साथ जुड़े भरोसे की जानकारी देकर
आपने हमारे इन स्वाद -सेवकों का मान बढ़ाया है .
ये पोस्ट भी जायकेदार है अजीत जी !
धन्यवाद.
आजकल बावर्चियो की कमी हो गई है!!! केवल खानसामे मिलते हैं
ReplyDeleteRajesh Roshan
वाकई बावर्ची फिल्म देखना तो पहले हो चुका था लेकिन उसका भावार्थ अब समझ मे आया
ReplyDeleteमतलब अब अगर कहना हो कि वो मेरा भरोसे का दोस्त है तो कह सकते है वो मेरा बावर्ची है? …:)
ReplyDeleteचंद्र कुमार जैन जी आज से देवनागरी लिपि में लिख पा रहे हैं देख कर अच्छा लगा
एक बार फिर बेहतरीन जानकारी दी आपने. वैसे रसोइये के लिए महाराज शब्द का प्रयोग भी आम प्रचलन में है. प्रेमचंद की इस रचना में देखिये.
ReplyDeleteबावर्ची के साथ पिछले हफ्ते का माल आज छक कर पढ़ा - बकलमखुद बहुत अच्छी प्रस्तुति है - खरीता और बघातुर पहले सुना ही नहीं था - क्या बाघ भी बहादुर से जुड़ा है ? - मनीष [ अनुपस्थिति का कारण - छोटे बहादुर पिछले हफ्ते मैदान-ऐ-जंग में थे - वो बाद में बात होगी ]
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