
सिर्फ महिलाओं का परिधान नहीं स्कर्ट

शार्ट माने शर्ट, स्कर्ट , कुर्ता
शर्ट शब्द की व्युत्पत्ति अंग्रेजी के शॉर्ट [short] से हुई है जिसका जन्म भी sker से ही हुआ है। प्राचीन जर्मन में इसका रूप हुआ skurta जिसने प्राचीन अंग्रेजी में sceort का रूप लिया और शॉर्ट में ढल गया। आज की जर्मन में शॉर्ट के अर्थ में इसका रूप kurz या kurtz है। आज के दौर में भी छोटी पतलून को शॉर्ट्स कहा जाता है। किसी ज़माने में कोई ताज्जुब नहीं कि कपड़े को काटने, छोटा करने के भाव ने ही शॉर्ट का रूप लिया और वही कालांतर में एक वस्त्र के रूप में शर्ट में बदल गया। अंग्रेजी के skirt की व्युत्पत्ति और आकार की बात आसानी के साथ समझ में आ जाती है कि ये क्यों छोटा होता है। कुर्ता तुर्की शब्द है और यह भी इंडो-यूरोपीय परिवार की भाषा है। sker धातु से जन्में शॉर्ट के अर्थ वाले जर्मन शब्द skurta से तुर्की कुर्ता की [kurta] समानता देखें। कुर्ता कुल मिला कर शर्ट की तरह पहना जानेवाला वस्त्र ही है । फर्क़ सिर्फ लंबाई का है ।
बुशर्ट यानी ढीली-ढाली जेबों वाली कमीज़
आमतौर पर भारत में शर्ट के लिए बुशर्ट, बुश्शर्ट शब्द ज्यादा चलता है

यूं पहुंची हिन्दुस्तान
बुश सफारी के लिए खास किस्म के शर्ट को डिजाइन किया गया जो कि घने जंगलों, ऊंची घास के मैदानों में अभियानों के दौरान सुविधाजनक रहे। इसकी विशेषता थी आगे की तरफ दो जेबों का होना। उसके बाद प्रथम विश्वयुद्ध जब छिड़ा तो बड़े पैमाने पर इस किस्म की शर्ट फौजी वर्दी का हिस्सा बन गई। बाद में थोक के भाव भारतीय बाजारों में न सिर्फ फौजियों की उतरन बिकने लगी बल्कि इसका विदेशी कपड़ों के भारत आने का सिलसिला सा चल पड़ा और बुशर्ट लोकप्रिय हो गई। शर्ट का एक प्रकार टी शर्ट भी होता है जिसे यह नाम उसके T आकार के चलते मिला क्योंकि ये पहले सिर्फ आधी बांह की ही होती थी।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली चार कड़ियों पर 29 साथियों की कुल 44 टिप्पणियां मिली। जिन साथियों ने हमारे प्रयास की सराहना की है उनमें हैं सर्वश्री अनूप शुक्ल ,डॉ प्रवीण चोपड़ा, मीत, ज्ञानदत्त पाण्डेय, डॉ चंद्रकुमार जैन, अफ़लातून, मीनाक्षी, संजीत त्रिपाठी, लावण्या शाह, तरुण, दिनेशराय द्विवेदी , आशा जोगलेकर, जोशिम, घोस्टबस्टर, हर्षवर्धन, अजित, आशीष, संजय, प्रमोदसिंह, पंकज अवधिया, रजनी भार्गव, परमजीत बाली, अनूप भार्गव, संजय पटेल, देबाशीष , ममता, सुजाता और सागरचंद नाहर । आप सबका बहुत बहुत आभार
@देबाशीष- आपने जिन मुहावरों का उल्लेख किया है देबूभाई, वो हमारी हिटलिस्ट
में हैं । जैसे ही सफ़र में कहीं टकराएंगे हमें फौरन उनका तअर्रूफ़ आपसे कराया जाएगा। याद दिलाने के लिए शुक्रिया।
@घोस्टबस्टर- आपका साथ अच्छा लग रहा है और आपने नाम ही घोस्ट बस्टर रखा है सो चाहते हैं कि साथ लंबा चले। आपने जो सिलाई मशीन के आविष्कार की कहानी बताई वो न सिर्फ दिलचस्प थी बल्कि प्रासंगिक भी थी। शुक्रिया।
@ममता/सागर नाहर- आपने बुशर्ट की बात कही और लीजिए बुशर्ट की व्युत्पत्ति पेश है। इसी तरह साथ बना रहे आपका।
अजितजी,
ReplyDeleteस्काटलैंड में स्कर्ट को किल्ट कहते हैं और यदि गलती से स्कर्ट मुंह से निकल जाये तो स्काटलैंड वासी तनिक खफ़ा से हो जाते हैं :-)
अब तो बुश्शर्ट शब्द सुनने में आए बरसों बीत गए। शर्ट ऑफीशियल हो चुकी है, और टी-शर्ट कैजुअल।
ReplyDeleteचलिए आगे से हम स्कर्ट के छोटेपन पर व्यंग्य नहीं लिखेंगे. हम उसके छोटेपन को ही उसका बड़प्पन मानेंगे.
ReplyDeleteमुझे लगता है की आपके लिए कुछ दो चार शब्द हमेशा लिखता रहू. लाजवाब, बेजोड़, वाह वाह, क्या बात है! जिस किसी को पढता हू स्वाभाविक रूप से यही निकलता है
ReplyDeleteRajesh Roshan
धन्यवाद अजित जी । बहुत ही रोचक लगा बुश्शर्ट के बारे मे जानना ।
ReplyDeleteरोचक रहा सफर का यह हिस्सा!!
ReplyDeleteशुक्रिया!!
बहुत बढिया है ये उत्पत्तियों का सिलसिला.. आप लिखते रहें.. अच्छा लगता है आपका लिखा पढना..
ReplyDeleteअजीत जी,
ReplyDeleteस्कर्ट की कमतर होती लंबाई की बात पर
आपका यह जानदार पोस्ट पढ़कर
छ्त्तीसगढ़ के कवि रामेश्वर वैष्णव की ये पंक्तियाँ
बरबस याद आ गईं जिन्हें मैने क़रीब
उनसे २५ साल पहले सुना था .
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नोनी बेंदरी ओ ! नोनी बेंदरी ओ !
सारी अउ पोलखर नई मिलिस तोला
लपेटे हवस ते ह चेन्दरी ओ, नोनी बेंदरी !
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कन्या को साड़ी की जगह चिथड़े यानी चिन्दी
लपेटे देखकर उक्त व्यंग्य किया गया है !
अब तो स्कर्ट सचमुच चिन्दी ही नज़र आते है.
ये जुदा बात है उनमें लोग फॅशन तलाश रहे हैं .
बहुत दिनों बाद बुशर्ट नाम पढ़ा.
ReplyDeleteतस्वीर देखते ही बैगपाइपर्स का मधुर संगीत याद आ गया.
द्विवेदी जी ने सही कहा कि आजकल तो टीशर्ट और शर्ट ही आम बोलचाल में सुनाई देता है.
बेहतरीन सूचनाओं से भरपूर है आपकी यह पोस्ट अजित भाई. मेरे नानाजी बुशशर्ट को बुकसट कहा करते थे और उसे पहनते नहीं थे बल्कि लगाया करते थे. आम तौर पर वे दर्ज़ी के यहां की बुनी बण्डी पहना करते थे जिसे फ़तुही कहा जाता था. बाहर जाने की सूरत में वे बुकसट लगा लिया करते थे.
ReplyDeleteअसल में शब्दों के साथ साथ आप बहुत सारी अंतरंग यात्राओं पर भी जब तब ले जाया करते हैं. सदा की तरह आपका काम उम्दा है यानी कि फ़र्स्ट क्लास.
अरे वाह बुशर्ट..... बरसों बाद यह शब्द सुन कर आनंद आ गया. धन्यवाद अजित भाई.
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