
साल भर से ज्यादा का देहरादून का मेरा समय अब तक की पत्रकारिता का सबसे यादगार समय रहा है। कई बड़ी खबरें ब्रेक कीं। ये, अलग बात है कि टीवी और दिल्ली, मुंबई में न होने की वजह से ब्रेकिंग न्यूज लाने वाले रिपोर्टर का तमगा नहीं मिल सका।
टीवी की नौकरी

लेकिन, इंसान की फितरत होती है कि कितना भी मिले उससे ज्यादा चाहिए। टीवी की नौकरी और ज्यादा पैसे कमाने का मन अखबार की नौकरी पर भारी पड़ गया। टीवी चैनलों के चक्कर लगाए। और, नौकरी जनरल न्यूज चैनल में काम करने निकला था। नौकरी मिली अनोखे कॉन्सेप्ट वाले चैनल सीएनबीसी आवाज में। जब अप्वाइंटमेंट लेटर मिला तो, बस ये पता था कि टीवी एटीन हिंदी में कुछ अलग सा शुरू कर रहा है, चैनल का नाम भी नहीं पता था। चैनल शुरू होने के बाद आज चार साल बाद कंज्यूमर नाम की बला से इतना परिचित हो गया हूं कि अब लगता है इसी में कुछ खास करूं। इकोनॉमिक्स में एमए करते वक्त सोचा भी नहीं था कि कभी ये नौकरी की योग्यता में शामिल होगा। वैसे, अभी भी राजनीति और अपराध की रिपोर्टिंग खूब लुभाती है। आठ साल से ज्यादा समय इलाहाबाद से बाहर रहते हो गया नहीं तो, पहले तो पूर्वी उत्तर प्रदेश के ज्यादातर विधानसभा-लोकसभा के जातीय-सामाजिक-राजनीतिक समीकरण जुबानी याद थे।
मुंबई अब भी बहुत अपनी नहीं लगती
जब 2004 में नौकरी ज्वाइन करने आया तो, तीन घंटे देर से आई फ्लाइट और होटल के रास्ते में सड़क किनारे भरी पड़ी झुग्गियों ने मन मार दिया। मायानगरी की मन में बसी छवि चकनाचूर कर दी। इससे पहले बचपन में एक बार मैं मुंबई आया था। मन में मुंबई की छवि फिल्मी टाइप की थी। लेकिन, दिखा ट्रैफिक जाम, लोकल की मारामारी, हर जगह लंबी कतार, मुश्किल से मिलती छत और वो, भी बेहद महंगी। लगा जीवनस्तर कभी यहां बहुत अच्छा हो ही नहीं पाएगा। जितना तनख्वाह बढ़ती, उससे तेज अनुपात में मकान का किराया बढ़ जाता। एक फिल्म अगर दो लोग साथ देखें तो, हजार रुपए की चपत पड़ जाती है। तय किया 6 महीने से ज्यादा इस शहर में नहीं रहूंगा। खैर, उस 6 महीने के आठ सेमेस्टर बीत गए लेकिन, मुंबई की पढ़ाई पूरी नहीं हो पाई है। अब मुंबई ठीक लगने लगी है लेकिन, इतने समय तक यहीं रहने के बाद भी बहुत अपनी नहीं लग पा रही है। बंबई न आता तो, पता नहीं अभी तक ब्लॉगिंग कर रहा होता या नहीं लेकिन, मुंबई में आने के बाद लगा कि यहां नहीं आता तो, जिंदगी के कई फलसफे अधूर रह जाते। मुंबई ने टीवी का उस्ताद (खुद को लगने लगा है, पता नहीं अभी कितने उस्तादों से पाला पड़ना है) बना दिया। और, यहीं शशि सिंह से मुलाकात के बाद ब्लॉगिंग का चस्का लगा। मैंने ब्लॉग बनवा दिया (अब तो, मेरी भी गिनती शायद कुछ अच्छे ब्लॉगर्स में होने लगी हो, वैसे धुरंधरों के आगे टिकना बड़ा मुश्किल है। यहां भी बड़ा मुकाबला है, भई)।
हनीमून से निकली पहली ब्लॉग पोस्ट लगती
बड़ी मजेदार बात है कि, मेरी पहली ब्लॉग पोस्ट मेरे हनीमून से लौटने के बाद तैयार हुई। इसे पढ़ने के बाद मेरे कुछ मित्रों ने कहा- बिजनेस चैनल में हो तुम्हें हर जगह बिजनेस और बाजार ही दिखता है। शादी के बाद माताजी ने कहा वैष्णोदेवी जरूर हो आओ। देवीजी का आशीर्वाद लेकर आओ। गोवा, पोर्ट ब्लेयर कैंसिल हुआ। और, हनीमून के लिए देवी दर्शन के बाद श्रीनगर जाना तय हुआ। श्रीनगर, गुलमर्ग घूमने के दौरान वहां की आबोहवा में दिखे बदलाव को शब्दों में बदल दिया और शुरू हो गया ब्लॉगिंग का सफर। फिलहाल, जिंदगी एकदम से पटरी पर तो नहीं कह सकता वो, जद्दोजहद तो बनी रहेगी। लेकिन, घर-परिवार, दोस्तों का अच्छा साथ और अब अपने मन के मुताबिक पत्नी, कुल मिलाकर जिंदगी अच्छी ही चल रही है। अब तक का सफर तो यही है। फिर कभी किसी मोड़ पर आगे की दास्तान। और, तो जिंदगी का सफर है वो, तो चलता ही रहेगा ... [समाप्त]
बहुत बढ़िया रहा हर्षवर्धन भाई को उनकी कलम से जानना. बस, ऐसा लगा कि कुछ और आना था. खैर, जितना जाना, उतना ही बढ़िया. अजीत भाई, आपका बहुत आभार इस कार्य को करने के लिये.
ReplyDeleteहर्ष जी को जानना, बाकी सब लोगों को जानना। बकलम खुद के जरिए बहुत ही उपयोगी रहा। शेष चिट्ठाकार भी इस से बहुत कुछ सीख रहे हैं और पाठक भी। सचमुच यह बकलम एक परिवार में तब्दील कर रहा है इस चिट्ठाकारों को।
ReplyDeleteचलिये इस पोस्ट के बहाने हर्ष का सपत्नीक चित्र मिला।
ReplyDeleteमेरी अपनी पसन्द - बिजनेस रिपोर्टिंग जनरल/पोलिटिकल रिपोर्टिंग से ज्यादा उर्वर है। और ज्यादा वास्तविक भी।
Humaree taraf se aap dono ko Mumbai nagree mei jeevan ki safalta ke liye shubh kaamna ...
ReplyDeleteBakalamkhud ke liye bhee ..
ajit bhai ko special thanx
शशि सिंह से मुलाकात के बाद ब्लॉगिंग का चस्का लगा। मैंने ब्लॉग बनवा दिया (अब तो, मेरी भी गिनती शायद कुछ अच्छे ब्लॉगर्स में होने लगी हो, वैसे धुरंधरों के आगे टिकना बड़ा मुश्किल है। यहां भी बड़ा मुकाबला है, भई)।
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भई ये तो आपने ब्लागर्स के
विषय में बहुत महत्त्वपूर्ण
बयान दिया है. माया नगरी के
छोटे परदे के उस्ताद को
अगर ब्लॉग-लेखकों का
किरदार बड़ा दिखता है
तो मैं देख रहा हूँ इसमें
बड़ी संभावनाएँ हैं..
बहरहाल हर्ष जी !
हमारी मंगल कामनाएँ
स्वीकार करें.
जीवन के प्रति संतोष और
अनागत का सामना करने की
तैयारी की बात भी अच्छी लगी.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
padhkar acchha lagaa...shubhkaamnaayen
ReplyDeleteहिम्मत वाले है साहब की हनीमून से आने के बाद ब्लॉग्गिंग करते है....दरअसल इसका श्रेय तो भाभी जी को जाता है...पर अपनी इस सौतन से वो दुखी जरूर हुई होगी....मुंबई से मेरा भी मोह भंग हुआ था अपने नानावती हॉस्पिटल के प्रवास के दौरान....पर चैनल में जॉब करने के बाद भी आप में ठेट भारतीय अभी बचा हुआ है.....इसे बचाये रखिये
ReplyDeleteहर्ष जी के बारे में पढ़कर जाना. अच्छा लगा. जीवन के तमाम पहलू देखने को मिले. हर्ष जी को हमारी शुभकामनाएं.
ReplyDeleteहर्ष जी को पढना अच्छा लगा. मन के मुताबिक जीवन साथी के साथ ज़िन्दगी की पटरी से कभी उतरना और कभी सही चलना...इसी में ही जीने का मज़ा है..आप दोनो को हमारी शुभकामनाएँ.
ReplyDeletebaklamkhud padhkar kafee maja aa raha hai. is mamale men pahle ajeetjee ko dhanvad aur sath hee apne jeevan ka har moë kee kahnee apnee kalam se gahdte blagger sathee ko badhayee.
ReplyDeleteबहुत बढ़िया... देखियेगा कहीं ये मुंबई वाली बात राज ठाकरे तक न पहुच जाय... :-) वैसे भी इलाहबाद वालों से उन्हें बहुत प्रेम है.
ReplyDeleteटी वी के उस्ताद कैसे बने वो तो बताया ही नही। आगामी जीवन के लिए शुभकामनाएं
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