Sunday, June 8, 2008

तो पंगेबाज को आप जान गए[बकलमखुद-48]

ब्लाग दुनिया में एक खास बात पर मैने गौर किया है। ज्यादातर ब्लागरों ने अपने प्रोफाइल पेज पर खुद के बारे में बहुत संक्षिप्त सी जानकारी दे रखी है। इसे देखते हुए मैं सफर पर एक पहल कर रहा हूं। शब्दों के सफर के हम जितने भी नियमित सहयात्री हैं, आइये , जानते हैं कुछ अलग सा एक दूसरे के बारे में। अब तक इस श्रंखला में आप अनिताकुमार, विमल वर्मा , लावण्या शाह, काकेश ,मीनाक्षी धन्वन्तरि ,शिवकुमार मिश्र , अफ़लातून और बेजी को पढ़ चुके हैं। बकलमखुद के नवें पड़ाव और सैंतालीसवें सोपान पर मिलते हैं फरीदाबाद के अरूण से। हमें उनके ब्लाग का पता एक खास खबर पढ़कर चला कि उनका ब्लाग पंगेबाज हिन्दी का सबसे ज्यादा पढ़ा जाने वाला ब्लाग है और वे सर्वश्रेष्ठ ब्लागर हैं। बस, तबसे हम नियमित रूप से वहां जाते ज़रूर हैं पर बिना कुछ कहे चुपचाप आ जाते हैं। ब्लाग जगत में पंगेबाज से पंगे लेने का हौसला किसी में नहीं हैं। पर बकलमखुद की खातिर आखिर पंगेबाज से पंगा लेना ही पड़ा।



जीवन मे हमेशा जो रास्ता नजर आया उस पर बिना सोचे समझे मैं चलता रहा. जोखिम उठाने मे अब कोई परेशानी भी नही थी. खोने को अब कुछ था भी नही. पाने की तमन्ना भी नही रही. मैने अपने को काम मे इतना व्यस्त कर लिया कि बुरे दिन तिल तिल कर कब गुजरे,मुझे पता ना चला.कब स्कूटर फ़िर आ गया, कब उसने अपने को दो से चार पहियो मे बदल डाला . आधे भारत का चक्कर लगाकर बाबा फ़रीदी के नगर मे आकर फ़िर से अपने सपनो कॊ दुनिया मे आ बैठा, जो सपने कभी किरच-किरच हो टूट गये थे,वापस जमीन पर उतर आये.

हां ऊपर वाले ने मेरे लिये शायद यही जगह सुरक्षित कर रखी थी. उसे मुझे यही ठेल कर लाना था.शायद इसी लिये जब भी मैने सोचा कि अब शायद मंजिल आ गई है, जब भी महसूस किया ठहराव आ गया है, मै लेटने के लिये जगह तलाश रहा होता, उपर वाला फ़िर पीछॆ से लात मार देता और मै मजबूरन चल पडता .एक महाआलसी आदमी को कुछ देने का शायद उसका यही तरीका होगा.

संघर्ष तो हर जगह है. सोच मे है.किसी के लिये हाथ से टुकडा तोड कर खाना भी मेहनत का काम है . जरा सोच कर देखिये टुकडा तोडो फ़िर सब्जी मे लगाओ फ़िर मुंह तक ले जाओ और फ़िर जबडे को दाये बाये उपर नीचे हिलाते रहो. बहुत मेहनत का काम है जी .कोई सोने से भी थक जाता है. चाहो तो आप सीढी चढते समय मजे लेकर चढ सकते हो और चाहो तो हर कदम पर सोच सकते हो कितनी मेहनत का काम है हर बार पैर को एक फ़िट उपर उठाओ फ़िर अपना वजन उपर उठाओ फ़िर पैर एक फ़िट उपर .

तसवीर जिंदगी की
बनाते है सब यहा
जैसी जो चाहता है
मिलती है लेकिन कहा
हर आरजू पूरी हो
होता ऐसा अगर
कांटों के साथ ना होता
फ़ूलो का ये सफ़र
बस यही है मेरा सफ़र



ब्लोगिंग

मैने एन डी टी वी पर नारद अक्षरग्राम की परिचर्चा के बारे मे सुना और मै सदस्य बन गया . परिचर्चा के दौरान वहां मुलाकात हुई घुघूती जी से ,मनीष जी से और पंडित जी से . मुक्कालात हुई अमित जी से, ये पैरोडी नही झेलना चाहते थे और मै जो कविता देखता उसी की तुकबंदी कर डालता .गिरिराज जी मुझे वाकई कवि बनाने के चक्कर मे लग गये. मै तो वही मस्त था, लेकिन मास्साब(श्रीश जी ) को कुछ ब्लोगर्स से पुराना हिसाब चुकाना था और उन्होने ये काम मेरे से कराने की ठान ली थी. जबरद्स्ती मुझे ब्लोग की दुनिया मे लेकर आये तब मैने ब्लोग बनाया चौपाल . तब तक मैने नारद पर ब्लोग देखे भी नही थे .मैने ब्लोग पर कुछ लिखा और मास्साब के बताये तरीके से नारद जी को चिट्ठी लिखी. जवाब आया कुछ ढंग का लिखिये तब छापेगे .मैने गुस्से मे ब्लोग उडा दिया.फ़िर एक दिन शाम को दुबारा दो पैग लगाकर ,मैने सोचा ये सब बडे बडे लिक्खाड़ है धुंरंधर है. तो क्या हुआ अपन भी इनसे पंगा लेते है,दुबारा ब्लोग बनाया गया नाम चुना पंगेबाज और फ़िर भेजा नारद को, अबकी बार नारद जी ने इसे पसंद कर लिया और ये ब्लोग नारद मे शामिल हो गया. इसलिये जिस किसी सज्जन को मेरे से कोई शिकायत शिकवा हो कृपया मास्साब यानी श्रीश जी को ही गरियाये, वो ही मुझे यहा लाये थे और अपना ये मकसद पूरा करने के बाद ब्लोगिंग की दुनिया को बाय कर गये .

बाद की कहानी तो आप सभी जानते है काफ़ी लोगों ने यहां सहायता की. जमने मे,महाशक्ति(प्रमेंद्र) ने मेरा ब्लोग सजाया. स्टेट काऊंटर लगा कर दिया.घुघुती जी ने साहस बढाया .जीतू जी से तर्क करते करते तर्कशील बन गये. देबाशीश जी ने हिंदी सिखाई, हम तो सीख गये बकिया वो भूल गये लेकिन इसके लिये हम जिम्मेदार नही है :) .नीरज जी ,ज्ञान जी, समीर भाईधुरविरोधी जी ,अभय जी,काकेश जी शिव जी नाहर भाई ,संजय/ पकंज बैंगाणी, चिपलूनकर जी और प्रमोद जी के पतनशील साहित्य को पढकर ब्लोग पर टिपियाते टिपियाते हमारी पंगो मे धार आई, और मैथिली जी ने आखिर कार हमे डाट काम तक पहुचा ही दिया.आलोक जी और मसीजीवी परिवार से हमे अपने शिक्षकों से रही नाराजगी को इनके उपर निकालने का अवसर मिला. भाई अध्यापक अध्यापक एक समान.

मै अकेला ही चला था,जानिबे मंजिल की और
लोग मिले पंगे लिये,हम प्रसिद्ध होते गये




आभार
जिसका मै सबसे ज्यादा ऋणी हूं अपनी पत्नी को,और बडे बेटे को जिसने हमेशा मेरा बोझ बाटने की कोशिशें की. जिसने बिना कोई सवाल किये मेरा साथ दिया ,जिसका वक्त पर उसका हक था मैने अपने कार्य को दिया,जिसने मेरी पारिवारिक और सामाजिक जिम्मेदारियों मे हमेशा मेरी कमी को पूरा किया. दुख बस यही है कि आज इस वक्त मेरे पिता मेरे साथ नही हैं,वो जब तक रहे हमेशा मेरे लिये परेशान रहे और आज जब मै वाकई मे अपने पैरों पर खडा हूं,उनके लिये संम्बल बन सका हूं, वो देखने मे लिये हमारे बीच नही है. पर उम्मीद करता हूं की वो जहा कही भी होंगे उनके आशीर्वाद की छत्र छाया हमारे परिवार पर हमेशा बनी रहेगी. समाप्त

26 comments:

  1. बहुत आनन्द आ गया. आदत सी बनने जा रही थी कि यहाँ आयें, पंगेबाज को पढ़े और यह क्या!! ये तो चल दिये.

    बहुत उम्दा रहा यह बकलमखुद भी.

    अरुण भाई, निश्चित ही पिता जी जहाँ भी होंगे, आशीष देते होंगे और बेटे का ज़ज्बा देख कर गर्व करते होंगे. वो कितना खुश होंगे, इसका अंदाजा भी आप हम नहीं लगा सकते हैं. बिना उनके आशीर्वाद के कहाँ कुछ हो पाता. सब उनका ही आशीष है.

    अजित भाई, पुनः बहुत आभार इस स्तंभ के लिए.

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  2. अरुण जी आपके बकलम खुद के सफर में हमसफर बन कर बहुत अच्छा लगा.
    अजित भाई की बहुत बहुत आभार इस लाज़बाब प्रस्तुति के लिये.

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  3. अरुण भाई से "बकलम्खुद " पे मिलना सुखद रहा - उनकी जीवनी साहस का पर्याय है - बच्चोँ को मेरे आशिष और आपकी पत्नी से हेल्लो कहियेगा -अजित भाई की ये पहल ऐसी है कि, सारे चिठ्ठोँ मेँ, यही सबसे पहले पढने को मन करता है ;-)

    स स्नेह्,
    - लावण्या

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  4. गेस्ट ब्लॉगर इस चिट्ठे में रास रंग घोल रहे हैं -यह उत्तरोत्तर ज्ञान प्रद और मनोरंजक होता जा रहा है -बधाई !

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  5. अरुण भाई, बहुत अच्छा लगा आपके बारे में जानकर. वो भी आपकी चिरपरिचित स्टाईल में. पंगेबाजी ऐसे ही चलती रहे, यही कामना है. मुझे लगता है कि जब भी जीवन में कठिन समय आएगा, आपका बकलमख़ुद पढ़कर रास्ता खोजने की कोशिश करेंगे.

    अजित भाई को बहुत-बहुत धन्यवाद.

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  6. जबरदस्त रहा. प्रेरणास्पद और मनोरंजक दोनों. अरुण जी और अजित जी दोनों को धन्यवाद.

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  7. अरुण जी आप के बारे में यहीं आ कर जाना और कहना ही होगा कि आप की जीवनी कइयों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत हो सकती है। आप का बकलम यहां से कॉपी कर के ले जा रही हूँ अपने जिन्दगी से हारते छात्रों के लिए, आशा है आप और अजीत जी बुरा नहीं मानेगें। आप का बकलम पढ़ अनूप जी के ब्लोग पर पढ़ी एक कविता दिमाग में कौंध रही है शायद सरवेश्वर दयाल की लिखी हुई है
    "हम तो बांस है जितना काटोगे हरियायेगें" शायद यही बात आप ने खुदा से कही।
    बहुत अच्छा लगा आप को जानना लेकिन आप के लास्ट पेराग्राफ़ को पढ़ने के बाद मन में इच्छा जागी है कि आप की पत्नी भी अगर अपने अनुभव हमारे साथ बांटे तो सोने पर सुहागा हो जाएगा और तस्वीर पूरी हो जाएगी।

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  8. श्रीमती अरुण और पंगेबाज जूनियर्स के साथ पंगेबाज का चित्र अच्छा लगा।

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  9. खोने को अब कुछ था भी नही. पाने की तमन्ना भी नही रही.========================
    तब ये हसरत थी कि हर शख्स पहचाने मुझको
    अब ये तमन्ना है कि कोई भी न जाने मुझको
    ================================
    ...लेकिन नहीं साहब !
    तमन्ना आपकी हो न हो
    लेकिन आपसे बहुत कुछ और पाने और
    जानने की हमारी तमन्ना तो बनी रहेगी.
    आपकी दास्तान बकलमखुद की धरोहर मात्र नहीं,
    जहाँ भी ज़िंदगी है, जीने की ललक है,
    चुनौतियों के पार चले जाने की तड़प है,
    और संकट में भी जहाँ संयम
    सहनशीलता की चमक है
    वहाँ तक असर पैदा करेगी.
    और वहाँ भी जहाँ ऐसे ज़ज़्बे के अभाव में,
    ज़िंदगी से इनकार की कसक है !
    कारवाँ के हम लोगों को भूल तो नहीं जाएँगे ?
    ===================================
    अजीत जी आपके लिए यही कि
    सफ़र में आप सिर्फ़ शब्द या कहानी नहीं
    यक़ीनन ज़िंदगी का तोहफा दे रहे हैं...आभार.
    सदैव सफ़र के साथ
    डा.चंद्रकुमार जैन

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  10. ब्लॉग में पंगा...कॉमा( भाषा वाला भी और अस्पताल वाला भी), फुलस्टौप से पंगा,...हारने से पंगा....

    पंगा लेने वालों का इत्ता अच्छा इम्प्रेशन इससे पहले नहीं बना।
    ढ़ेर सारी शुभकामनायें...!!

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  11. जिंदगी ख़ुद एक बड़ा पंगा है ओर आप उसके भी बहुत बड़े पंगेबाज है....सलाम

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  12. तो ये था पंगेबाज के हर हाल में पंगे (हास्य-व्यंग्य में मस्त रहने)लेते रहने का राज. जीवन की कठिनाइयों से पंगे लेने का उनका अलहदा अंदाज और उनका साहस सचमुच उद्धरण योग्य है.

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  13. best!!!!!!


    ajit bhai thank you!

    arun bhai(pangebaaz) bhai you are great.

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  14. पंगा जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी
    खोपड़ी में खुराफात, विकट विकट लंतरानी
    भईये जमाये रहो।

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  15. अरुण जी के जीवट का आशिक हो गया हूँ।
    पंगेबाजी को एक कला-विधा के रुप में स्थापित कर दिया है अरुण जी ने।

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  16. मैं अभी जीवन के एक कठिन दौर से गुजर रहा हूँ.. सच्ची बात कहता हूँ, आपको पढ़कर इससे बाहर निकालने मी बहुत सहायता मिल रही है..

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  17. बहुत खूब!
    सचमुच प्रेरणा दायक जीवन.
    आपको और आपके परिवार को उन्नत भविष्य के लिए बालकिशन की शुभकामनाएं.

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  18. आज मौका मिलने पर पिछली छूटी कडियाँ भी पढ़ डाली... सच है कि आपकी बकलम ख़ुद संघर्षों में एक आशा की सुनहरी किरण जैसी है.... ! आपके परिवार का चित्र बहुत प्यारा है...सबको प्यार और आशीर्वाद ...
    अनिता दी से हम भी सहमत हैं कि जीवन संगिनी के अनुभव भी दर्ज हों तो सोने पे सुहागा हो जाए ....

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  19. आज मौका मिलने पर पिछली छूटी कडियाँ भी पढ़ डाली... सच है कि आपकी बकलम ख़ुद संघर्षों में एक आशा की सुनहरी किरण जैसी है.... ! आपके परिवार का चित्र बहुत प्यारा है...सबको प्यार और आशीर्वाद ...
    अनिता दी से हम भी सहमत हैं कि जीवन संगिनी के अनुभव भी दर्ज हों तो सोने पे सुहागा हो जाए ....

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  20. बहुत ही अच्‍छा लगा जी....पंगेबाज के जीवन से रूबरू होना...वाकई पंगेबाज हो तो ऐसा.

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  21. मनोरंजक से लेकर प्रेरणादायक तक रहा यह सफर... अजित जी को एकबार और धन्यवाद.

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  22. हम तो कुछ भी नही थे, जो थे आप और आपका हमारे उपर विश्वास जो मै आपके साथ काम कर सका। कहा जाता है कि विश्वास में बड़ी तकत होती है वही ताकत आपने मुझे दी। आपके बारे में कोई कैसा भी सोचे हम तो अच्छा ही सोचते है और सोचेगें।

    महाशक्ति

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  23. आपसे रूबरू होना बहुत अच्छा लगा ।
    वो कहते है ना कि आग मे तप कर ही सोना खरा होता है।

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  24. आपके परिवार से मिल कर अच्छा लगा.

    शुभकामनाएं

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  25. यह काम पेंडिंग था, आज पूरी श्रृंखला एक साथ पढ़ी... सीखने को बहुत कुछ है इसमें, मुझ जैसे के लिए।
    शुक्रिया आपका और अजीतजी का।

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  26. 'जो लाक्षागृह में जलते हैं,वे ही सूरमा निकलते हैं'

    पंगेबाज ने सच में अपने जीवट और जिंदादिली से ही जीवन के बीहड़ वन में अपनी राह बनाई है .

    उनकी जीवन-गाथा प्रेरक रही . पंगेबाज परिवार को बहुत-बहुत शुभकामनाएं !

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