हिन्दी में आमतौर पर मनमानी करने , अपनी ही चलाते रहने या हर तरफ से लाभ उठाने की सोचने वाले के लिए एक कहावत है-
चित भी मेरी पट भी मेरी । यह कहावत बनी है
चित-पट से । अंग्रेजी में इसे
हैड्स टैल्स भी कहते हैं। जब कभी कोई बात तय करनी होती है तो आमतौर पर सिक्के को उछाल कर देखा जाता है कि वह किस तरफ गिरता है। इसमे एक तरफ का हिस्सा
चित कहलाता है और दूसरी ओर का पट। आज भी दो समूहों में खेले जाने वाले खेल में पहले पारी की शुरुआत इसी ढंग से होती है। इसे टॉस करना भी कहा जाता है। अब अगर कोई व्यक्ति सिक्के के दोनों पहलुओं पर अपनी ही बात पर अड़े तो उसे मनमानी ही कहेंगे न ? इसीलिए
चित भी मेरी, पट भी मेरी जैसी कहावत का जन्म हुआ। लेकिन कभी कभी सिक्का किसी भी पहलू पर गिरने की बजाय खड़ा ही रह जाता है ! इस स्थिति में अनुभवी लोगों ने लगभग तानाशाह किस्म के लोगों के लिए कहावत में कुछ जोड़ दिया है –
चित भी मेरी , पट भी मेरी , खड़ा मेरे बाप का !!! है न मज़ेदार !

बहरहाल, देखते हैं कि क्या है
चित-पट के मायने।
चित या चित्त (मन या अन्तःकरण वाला चित्त नहीं) बना है संस्कृत के
चित्र से जिसका अर्थ होता है उज्जवल, स्पष्ट, धब्बेदार, तस्वीर, छवि। आदि। चित्र का अर्थ आकाश भी होता है क्योंकि इसमें भी बादलों के धब्बे या आकृतियां नज़र आती हैं। इस चित्र का
चित-पट कहावत में अर्थ स्पष्ट है।
चित-पट सिक्के से ही किया जाता है। गौर करें कि प्राचीनकाल से ही सिक्के राज्यसत्ता द्वारा ही चलाए जाते रहे हैं और हर सत्ताधीश सिक्कों पर अपनी तस्वीर ढालने के मोह से बच नहीं पाया है। सिक्के के जिस पहलू में शासक का चित्र अंकित रहता है उसके लिए ही
चित शब्द प्रचलित हुआ और दूसरा हिस्सा
पट कहलाया।
पट यानी सिक्के का वह पहलू जो
सपाट हो या चित्रविहीन हो। यह पट बना है संस्कृत की
पत् धातु से । पत् यानी गिरना, नीचे आना, फेंकना आदि। इससे ही बना है हिन्दी का पड़ना अर्थात गिरना शब्द। पत् का अपभ्रंश रूप ही हुआ पट। गौर करें कि इस पट का संस्कृत के ही
पट्ट यानी वस्त्र से कोई लेना देना नहीं है। पत् से ही हिन्दी का
पत्ता ( जो वृक्ष से गिरता है)
पतित, पतन-अधोपतन जैसे शब्द बने हैं। कुश्ती में काम आने वाले
पटखनी या धोबीपाट 
जैसे शब्द भी इस
पत् या पट की देन हैं। मगर पटखनी वाले अर्थ में जो
चित्त शब्द है उसका इस चित (चित्र )से कोई लेना देना नहीं है। सपाट, पटकी, पटकना आदि शब्द भी इसी मूल से जन्मे हैं। कुल मिलाकर पट सिक्के का वह पहलू जो पूरी तरह से सपाट होता है। तो इस तरह सामने आए सिक्के के दोनो पहलू चित और पट और उससे बनी अर्थगर्भित कहावत
चित भी मेरी , पट भी मेरी ( खड़ा मेरे बाप का ! ) [इसी से मिलते-जुलते कुछ अन्य संदर्भों पर अगली कड़ी मे चर्चा ]
वाह जी,चित भी मेरी , पट भी मेरी ..भी जान गये. आपके चलते कुछ दिन में अपने नाम के आगे ज्ञानी न लगाने लग जाऊँ.
ReplyDeleteभाषायी जानकारी और ब्लागरों की कारगुजारियों को खोजना हो तो आपका ब्लाग निश्चित ही एक सही ठीकाना है॒/होगा-भविष्य में भी.
ReplyDeleteअजीत जी क्षमा करें आज की पोस्ट का शीर्षक कुछ गलत ध्वनि उत्पन्न कर रहा है ।
ReplyDeleteआपका पोस्ट नहीं पढ़ता तो चित पट के बारे में ज्ञानवर्धन नहीं हो पाता। इतने रोचक अंदाज में जानकारी देने के लिए धन्यवाद।
ReplyDeleteअरे वाह आजतक बिना जाने ही सिक्का उछालते रहे।
ReplyDeleteवाह जी आज आँख खुली है हमारी.....
ReplyDeleteबढ़िया है.
ReplyDeleteरोचक।
ReplyDeleteभाई जी, शीर्षक अश्लील लग रहा है...
ReplyDeleteआप भाषा के मर्मज्ञ हैं... कृपया इसे बदल दीजिए...
ऐसी भाषा भडासियों के लिए छोड दीजिए...
शेष पोस्ट हमेशा की तरह तारीफ के काबिल है...
बेनामी टीपने के लिए क्षमायाचना सहित...
------ अनामिका
वाह ! आगे से सिक्का उछालते समय आपकी बातें दिमाग में जरुर आएँगी.
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteमेरी नज़र तो वो आसमान से बातें करते
सिक्कों की उड़ान पर टिकी रहीं.
कहते हैं कि पैसे पेड़ में नहीं लगते
लेकिन आसमान से टपक तो सकते हैं !
उम्मीद नहीं खोना चाहिए ...
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...यह भी कि सिक्के के दोनों पहलू
जुदा कहाँ होते हैं ?
लिहाज़ा अपना चित्र उभरा हुआ देखने वाले
हर इंसान को दूसरे पहलू,यानी
जीवन के सपाट सच को भी
स्वीकार करना चाहिए.
बहरहाल,खनकदार पोस्ट का शुक्रिया.
सफ़र के हर चित्र में
पूरे चित्त के साथ
डा.चंद्रकुमार जैन
अजीत भाई, आप तो समां बांधने के विशेषज्ञ हैं. हमारे इधर कहा जाता है: "चित भी मेरी, पट भी मेरी, अंटा मेरे बाप का".
ReplyDeleteवाह बहुत ही उम्दा जानकारी उपलब्ध कराई आपने धन्यवाद..
ReplyDeleteसर जी.. बहुत मस्त जानकारी दी है आपने..
ReplyDeleteवैसे मुझे तो पसंद है चिट मैं जीता, पट तू हारा.. :)
काश, ये सिक्कों की बरसात मेरे घऱ में !!!
ReplyDeleteअजित भाई,
ReplyDeleteचित-पट की व्याख्या आज समझ में आई वरना कभी सोचा ही नहीं कि टॅास के समय सब लोग चित ही क्यों चाहते हैं।आख़िर राजसी अहसास जो जुड़ा रहता है। बचपन से इस कहावत को यौं सुना है-चित भी मेरी,पट भी मेरी,अंटा मेरे बाप का। वैसे तो अंटा शब्द का प्रयोग अँगूठा,कौड़ी,आखिरी दाँव,काँच की गोली और बिलियर्ड के लिए भी किया जाता है,यहाँ यह निरर्थक तो नहीं सारगर्भित ज़रूर होगा। पर खड़ा शब्द से स्पष्ट हो रहा है कि चित,पट तो मेरा है ही यदि सिक्का खड़ा रह गया तो मेरे बाप का यानि निर्णय तो तब भी मेरे ही हिस्से में होगा। कहावत के नवीनीकरण और हमारे ज्ञानवर्धन के लिए धन्यवाद्।
प्रभा.