
प्राचीनकाल से ही कपड़े की कपास यानी रुई से गहरी रिश्तेदारी है। कपास यानी एक पौधा जिसके फल पकने पर शुभ्र-धवल-रेशेदार फ़सल मिलती है जिसे कातने पर सूत बनता है और फिर बुनकर उससे कपड़ा तैयार करता है। कपास बना है संस्कृत के कर्पासः से जिसका मतलब होता है वह पौधा जिसके डोड़ें से रुई निकलती है। इसी तरह एक अन्य शब्द है कर्पटः या कर्पटम् जिसका मतलब है फटा-पुराना, जीर्ण-शीर्ण कपड़े का टुकड़ा , थेगली लगा वस्त्र आदि। कर्पटः का ही बिगड़ा रूप है कपड़ा जो हिन्दी में अपने मूलार्थ की तुलना में सुधर गया और सामान्य वस्त्र के अर्थ में ढल गया। कर्पासः और कर्पटः दोनों ही बने हैं कृ धातु से । यह वही कृ धातु है जिससे संस्कृत हिन्दी में कई तरह के शब्द बने हैं । कृ का मतलब होता है करना, निर्माण करना, बनाना, रचना, धारण करना , पहनना, ग्रहण करना आदि। रुई की धुनाई, कताई ,सुताई से लेकर कपड़ा बनाने और फिर वस्त्र निर्माण सम्पन्न होने से लेकर उसे धारण करने तक की क्रियाओं में ये सभी अर्थ स्पष्ट हो रहे हैं। गौरतलब है कि कपड़े का मराठी-गुजराती रूप कापड़ होता है। व्यवसाय आधारित समूदायों की पहचान वाले

अब आते हैं कपड़े यानी कर्पटः के मूल अर्थ यानी जीर्ण-शीर्ण और फटे हुए वस्त्र पर । हिन्दी में आमतौर पर ऐसे कपड़ों के लिए एक शब्द खूब प्रचलित है चीथड़ा अर्थात फटा – पुराना, थिगले-पैबंद लगा हुआ वस्त्र। ज्यादा इस्तेमालशुदा वस्त्र या पुराना वस्त्र आमतौर पर इसी गति को प्राप्त होता है। यह बना है संस्कृत के छिद्र से जिसका मतलब होता है दरार, सूराख, कटाव, दोष या त्रुटि आदि। यह बना है छिद् से जिसमें काटना, खंड-खंड करना और नष्ट करना जैसी क्रियाएं शामिल हैं। जाहिर सी बात है ये सब लक्षण जीर्ण-शीर्ण अवस्था ही जाहिर करते हैं। कपड़े के सन्दर्भ में छिद्र ने छिद्र > छिद्द > चिद्द > चीथ आदि रुप बदले होंगे।
[कुछ अन्य मिलते जुलते संदर्भों पर अगली कड़ी में चर्चा]
कपड़ा-कर्पट से..अजीब लगता है.
ReplyDeleteज्ञानवर्धन होता जा रहा है. आभार.
अजित जी,
ReplyDeleteआज, कपड़े और चीथड़े पर की गई
इस चर्चा से गुज़रते मुझे दुष्यंत का
एक मशहूर शे'र याद आ गया.
मुलाहिज़ा फरमाइए -
वो नुमाइश में मिला था चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिंदुस्तान है.
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शे'र पुराना हो सकता है,लेकिन ये तस्वीर
आज पहले से कहीं ज़्यादा नई दिखती है.
आभार
डा.चंद्रकुमार जैन
ज्ञानवर्धन होता जा रहा है।
ReplyDeleteजिन चीजों के नाम पर कभी ध्यान भी नही देते थे उनके बारे मे यहां पता चल रहा है।
चिथडा से गुदडी याद आ गया... और फिर 'गुदडी का लाल' ये कैसे आए ? ये भी बताएं जरा !
ReplyDeletemera bhi vahi savaal hai jo abhishek ka hai..
ReplyDeleteनिश्चित ही हिन्दी ब्लागिंग में आपका ब्लाग एक महत्वपूर्ण ब्लोगों में से है. जहां एक ओर बकलम खुद को पढना नयी ताजगी देता है वहीं भाषा विग्यान पर मह्त्वपूर्ण जानकारी उपलब्ध रह्ती है. मेरी ढेरों शुभकामनायें.
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