
बहरहाल, छप्पन छुरी के बहाने से हम बात छप्पन की नहीं बल्कि छुरी और उसकी रिश्तेदारी वाले दूसरे शब्दों की करना चाहते हैं। छुरी यानी छोटा चाकू जिसे बंद भी किया जा सकता हो । कष्ट देना, सताना वाले अर्थों में छुरी चलाना, छुरी फेरना जैसे मुहावरे भी पैदा हुए हैं। छुरी या छुरा शब्द बने हैं संस्कृत की क्षुर् धातु से जिसका मतलब है काटना , खुरचना , गोड़ना आदि। इससे ही बना है क्षुरः शब्द जिसका मतलब होता है उस्तरा, चाकू आदि। क्षुरी या क्षुरिका का रूपांतर हुआ छुरी में।
क्षुर् से बने और भी कई शब्द हिन्दी में प्रचलित हैं। जानवरों के नाखूनों या सुम के लिए खुर शब्द भी इसी मूल से निकला है। संस्कृत में क्षुरिन् नाई को ही कहते हैं और हजामत के लिए क्षौर शब्द है। जाहिर सी बात है कि नाई का काम बाल काटना है और इसे वह उस्तरे से ही करता है जो एक प्रकार से छुरी (क्षुरिका) ही है।
खेती-किसानी के औज़ारों में खुरपी और खुरपा भी प्रमुख हैं। ज़मीन की निराई-गुड़ाई के लिए लोहे से बने इन्हीं उपकरणों का प्रयोग किया जाता है। खरपतवार काटने, उखाड़ने के लिए भी खुरपी ही काम आती है ये सभी शब्द बने हैं क्षुरप्रः से जिसका मतलब होता है अर्धचंद्राकार धारदार उपकरण। हिन्दी के ही एक और बोलचाल के शब्द खुरदरा या खुरदरापन की भी इससे ही रिश्तेदारी है। खुरदरा का मतलब होता है असमान सतह वाला, उबड़-खाबड़ आदि। गौर करें

गौरतलब है कि संस्कृत की धातु क्षः में मूलतः हानि, नाश, खेत, किसान आदि अर्थ समाहित हैं और इससे बने तमाम शब्दों में इसी की भाव उभरता है जैसे क्षर यानी पिघलना, नष्ट होना, क्षत यानी चोट लगना , क्षति यानी नुकसान आदि। जाहिर है कि क्षुर् भी इसी श्रृंखला की कड़ी
[इसे भी देखें- यूं ही नहीं आखर अनमोल]
aapke gyanvardhak blog par aakar achha laga, shukriya.aasha hai ki isi tarah achhargyan karate rahengen.
ReplyDeleteसीखते चल रहे हैं धीरे धीरे. आपका आभार.
ReplyDeleteकहाँ छोड़ दिया 'खुरचन' को, हम तो उस शैदाई हैं।
ReplyDeleteआपकी शब्दो की निराई गुडाई चालू रहे जी
ReplyDeleteछुरी के बारे में बहुत कुछ पढ़ने को मिला, बस यूँ ही शब्दों की मीठी छुरी चलाते रहिये और खुरपी से टिप्पणियों में कभी कोई खर-पतवार निकल आये तो उसे हटाते हुइ सफर चालू रखिये।
ReplyDeleteआपकी खुरदुरेपन की बातें भी
ReplyDeleteइतनी स्निग्ध व रसपूर्ण रहती हैं कि
छुरियाँ चल भी जाएँ तो
ज़ख्म का निशान नहीं उभर पाता !
छुरी की चर्चा भी
सफ़र के तेवर की धुरी पर कायम रही.
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आभार अजित जी...
अक्षत रहे यह महत् परम्परा.
आपका सफ़र-संगी
डा.चन्द्रकुमार जैन
आभार, बहुत ही सुंदर, सटीक, उम्दा एवं ज्ञानवर्धक लेख के लिए। ऐसे लेखों से ही हिन्दी चिट्ठाजगत फलता-फूलता है और गौरवान्वित होता है।
ReplyDeleteये एक ऐसी कक्षा है जहा जाने की जल्दी रहती है..
ReplyDeleteभई बढिया है जी।
ReplyDeleteअजित जी ! जानकारी देने के लिए आभार ! आपके यहां आना कभी व्यर्थ नहीं जाता !
ReplyDeletebahut bahut dhanyvaad hamara gyaan badhaane ke liye...isse pahle is shabdon ke baare mein kabhi socha hi nahi tha.
ReplyDeleteएक और शब्द का रोचक सफर रहा।
ReplyDeleteआजकी कक्षा की हाजिरी......
ReplyDeletebahut gyanvardhak. Mujhe hamesha hi sahbdo ki vayutpatti ke baare jaan-ne ka bahut kautoohal rehta hai. Ab lagta aapki is dainik kaksha me aakar bahut kuch seekhne ko milega
ReplyDeleteAbhaar sahit
छप्पन छुरी बहत्तर पेंच से याद आया... मैं स्विस से आया तो घर पे लोगो ने पूछा की क्या लाये हो.. मैं ने कहा छप्पन छुरी :-) लोग हंसने लगे की क्या कह रहा है... मैंने दिखाया तब को समझ आया ... की कौन सी छपन छुरी लाया था.. आप भी देखिये ये कैसी होती है :-) छप्पन छुरी
ReplyDeleteहिन्दी भाषा में आपका योगदान वन्दनीय रहेगा सर्वदा.आपके ब्लॉग पर आना जैसे मनपसंद विषय की कक्षा में आना है.कोटिशः धन्यवाद.शब्द का सही अर्थ भिज्ञ हो तो उपयोग में बड़ी सहूलियत होती है.
ReplyDeleteखुखरी?
ReplyDeleteहम सब का क्ष: हो जाएगा लेकिन ये ब्लॉग अजर-अमर है.
ReplyDeleteकोई आश्चर्य नही कि क्ष से टी बी अर्थात क्षयरोग नाम की उत्पत्ति।
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