
बरबाद हो जाएगा मैनेजर साहब का लड़का
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मैं पत्रकारिता के लिए ही बना था
इंजीनियरों और बाबुओं के सामने कमीशन के निपटान करते और किसी तरह घाटे को मुनाफे में बदलने की जुगत के लिए 100रुपए में से 40 रुपए का काम कराना मेरे जमीर को धक्का देने लगा और मुझे ये अच्छे से समझ में आने लगा था कि मैं ठेकेदारी जैसा काम नहीं कर पाऊंगा। मैंने ठेकेदारी को नमस्ते कर दिया। और, ये बहुत अच्छा लगता है कि मेरे बाद ठेकेदारी का काम शुरू करने वालों ने करोड़ो रुपए भले कमाए। लंबी गाड़ियों और असलहों के साथ घूमते हैं लेकिन, रोत रहते हैं कि यार, तुम्हारा काम बड़ा इज्जत वाला है।
चुनाव लड़वाना चाहते थे...
विश्वविद्यालय के दौरान की गतिविधियों से एकाध बार लोगों ने मुझ पर चुनाव लड़ने का भी दबाव डाला। लेकिन, मेरा मन पढ़ने-लिखने के काम में ज्यादा लगता था। और, मुझे ये भी लगता था कि मैं चुनाव का बहुत अच्छा मैनेजर हूं, सबको बांधकर रख सकता हूं लेकिन, शायद चुनाव लड़ना मेरे बस की बात नहीं। पढ़ने-लिखने की रुचि और लोकतंत्र के चौथे खंभे के प्रति मेरी रुचि ने मुझे पत्रकार बना दिया।
महाकुंभ में तगड़े सबक मिले
छिटपुट अखबारों में अपने ही शहर में काम करता था। कुछ थोड़ा बहुत फीचर, कैंपस पेजेज के लिए लिख देता था। 2000-2001 में इलाहाबाद में महाकुंभ होना था। इसी बीच पता चला कि प्रतापजी वेबदुनिया के साथ जुड़कर महाकुंभ पर कुछ अलग सा करने वाले हैं। उनके पास पहुंचा तो, उन्होंने दो विषयों में से किसी एक पर कुछ लिखने को कहा। माघमेला और इलाहाबाद विश्वविद्यालय। इलाहाबाद विश्वविद्यालय पर तो, मैं कभी भी कितना भी लिख सकता था। लेकिन, मुझे लगा कि महाकुंभ में काम करना है तो, माघमेले पर लिखना चाहिए। मेरे बाबा (हम दादू कहते थे) तब जीवित थे। उनसे पूछकर संगम, माघमेला, प्रयाग के कई श्लोक अपने लेख में जोड़ दिए। लेख को देखने के बाद प्रतापजी की वो, बात – कि तुम्हारी कॉपी 5-7 साल की पत्रिकारिता कर चुके लोगों से बेहतर है, मेरे लिए जिंदगी भर का संबल बन गई।
नेताओं-बाबाओं से मुलाकात

पत्रकारिता से देश दर्शन
और, इलाहाबाद से शुरू हुआ मेरा सफर दिल्ली पहुंचा। दिल्ली में इंडियाज मोस्ट वांटेड में कुछ दिन काम किया लेकिन, निहायत बकवास काम लगा। फिर, कानपुर जागरण में डेस्क की नौकरी का जुगाड़ लगा तो, कानपुर पहुंच गया, वैसे दिल्ली छोड़ना नहीं चाहता था। कुछ समय तो मजा आया। काफी कुछ सीखा लेकिन, फिर एडिट पेज की मात्रा, व्याकरण सुधारते, फीचर पेज के लिए बेतुके आर्टिकल लिखते (संगिनी के लिए कहीं से उड़ाकर एक सलाह ये भी लिखी थी कि सुहागरात का मजा बढ़ाने के लिए चादर को फ्रिज में रखें और फिर उसे बिस्तर पर बिछा दें। अब इस सलाह पर हंसी आती है) और जागरण डॉट कॉम की साइट संवारते मन ऊबने लगा। और, पहुंच गया देहरादून।
चारधाम यात्रा
देहरादून में अमर उजाला के लिए जमकर रिपोर्टिंग की। इंडियन मिलिटरी एकेडमी की पासिंग आउट परेड से लोकसभा चुनाव तक। साल भर से ज्यादा का देहरादून का मेरा समय अब तक की पत्रकारिता का सबसे यादगार समय रहा है। कई बड़ी खबरें ब्रेक कीं। ये, अलग बात है कि टीवी और दिल्ली, मुंबई में न होने की वजह से ब्रेकिंग न्यूज लाने वाले रिपोर्टर का तमगा नहीं मिल सका। चारधाम यात्रा के समय करीब डेढ़ महीने अमर उजाला का ऋषिकेश ब्यूरो चीफ भी रहा। ऋषिकेश, चारधाम यात्रा और वहां के लोगों के लिए कितनी बढ़ीं सुविधाएं- इस पर की गई मेरी खबरों की तर्ज पर सभी संस्करणों को वैसी ही खबर करने को कहा गया। त्रिवेणी घाट और परमार्थ निकेतन में शाम का समय अब भी याद आता है। [जारी]
बढ़िया रहा जी सफ़र अब तक.. सलाह भी बड़ी रोचक है आपकी..
ReplyDeleteअजीत जी का आभार
हर्ष जी के बारे में पढ़ना बहुत अच्छा लग रहा है. लगभग हर वो काम किया, जो उस क्षेत्र के छात्र करते हैं....पत्रकारिता में आपका अनुभव पढ़कर गजब लगा..आगे की कड़ियों का इंतजार है.
ReplyDeleteकभी इस धंधे को सदा के लिए अपनाने हम भी पहुँचे थे मुम्बई कि हमेशा के लिए तोबा कर आए।
ReplyDeleteबहुत बढिया रहा ये अंक.. बहुत कुछ जानने को मिला..
ReplyDeleteआपके बारे में जानकर अच्छा लगा। परमार्थ निकेतन, स्वर्गाश्रम तो बहुत बार जाकर रह चुकी हूँ।
ReplyDeleteघुघूती बासूती
सब रस में डूबते उतराते आज इंजिनियर साहब का बेटा आबाद है . सही है ये माइक वाला फोटो कुछ कुछ नाना पाटेकर से मिलता है , क्यों न एक बार उधर भी ट्राई करके फर्क देखा जाय .अगर नही तो कोई नाटक मंचन किया हो ,उसकी चर्चा करिए . दुसरे प्यार वयार की चर्चा एकदम नही किए, भला ऐसा कहीं होता है .
ReplyDeleteफ़िर भी रोचक है अबतक का जीवन चक्र . शुभकामना !
अजित भाई का आभार !
ह्म्म, रोचक होता जा रहा है बकलम खुद का यह सफर भी!
ReplyDeleteलंबी गाड़ियों और असलहों के साथ घूमते हैं लेकिन, रोत रहते हैं कि यार, तुम्हारा काम बड़ा इज्जत वाला है।
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सही है काम इज्जत का ही होना चाहिये। पर हर क्षेत्र में हर प्रकार के लोग पाये हैं। कीचड़ में कमल भी और बगिया में सांप भी!
मेरे बाबा (हम दादू कहते थे) तब जीवित थे। उनसे पूछकर संगम, माघमेला, प्रयाग के कई श्लोक अपने लेख में जोड़ दिए। लेख को देखने के बाद प्रतापजी की वो,बात कि तुम्हारी कॉपी 5-7साल की पत्रिकारिता कर चुके लोगों से बेहतर है, मेरे लिए जिंदगी भर का संबल बन गई।
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इसे कहते बुजुर्गों के
आशीर्वाद और
मार्गदर्शन का फल !
सफ़र का यह पड़ाव
ये संदेश सब तक
पहुँचाए, यही कामना है.
हर्ष जी,
आपकी लगनशीलता
और आत्म सम्मान के
प्रति दृढ़ता सराहनीय है, लेकिन
मीडिया के बदलते परिदृश्य में
उच्च संकल्पों पर
अडिग रहना भी एक चुनौती है.
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बधाई और आभार अजित जी का बार-बार !
डा. चन्द्रकुमार जैन
बढ़िया जीवन जी रहे हैं आप क्या अनुभव है ! अगली कड़ी का इंतज़ार.
ReplyDeleteमैं चुनाव का बहुत अच्छा मैनेजर हूं, सबको बांधकर रख सकता हूं ---ये नोट करके रख लियाह ै नाम और फोन नम्बर के साथ. :)
ReplyDeleteबेहतरीन चल रहा है-अगली कड़ी का इन्तजार.
सही जिये भाई आप तो....ओर बरबाद भी नही हुए ......जारी रखिये....
ReplyDeleteये स्मार्ट सा जवान दिखने वाला छोरा कौन है किसकी फ़ोटो डाली है ये आपने अपनी फ़ोटो की जगह , उस्का ब्योरा भी दीजीये जी :)
ReplyDeleteinteresting
ReplyDeleteहर्ष भाई यात्रा के साथ काम और इतने सारे अनुभव - इसी को तो जीवन यात्रा कहते हैँ -
ReplyDeleteआप जितनोँ से भी मिले सबसे ज्यादा किस व्यक्ति से प्रभावित हुए ? बतायेँगे ?
- लावण्या
Harsh Ji it is a great pleasure to know about you, and your blog is very interesting too.
ReplyDeletelife is a journey for all of us, which is more beautiful than final destination...
final destination is indeed end.
and your journey is interesting and enriching.
best wishes