
दरअसल बेल्जियम निवासी प्रसिद्ध भूगोल शास्त्री जेरार्ड्स मर्केटर (1512-1596 ) ने नक्शों के एक संग्रह का प्रकाशन कराया था जिसके शुरू में पृथ्वी को कंधों पर उठाए एक दैत्य की तस्वीर थी और नीचे `एटलस´ लिखा था। तभी से स्वर्ग के खंभों का रखवाला यह यूनानी राक्षस नक्शों की किताबों में अमर हो चुका है। मर्केटर पहले गणितीय उपकरण बनाते थे मगर बाद में धातु पर नक्काशी का काम सीखने के बाद उनकी दिलचस्पी मानचित्रों में जागी। मानचित्रों की दुनिया में मर्केटर का असल काम जर्मनी के ड्यूसबर्ग शहर आने के बाद हुआ।

एटलस सेब लाने को तैयार हो जाता है मगर उसकी परेशानी है कि आकाश को उठाए वह यहां वहां कैसे जाए ? उसकी बात को वाजिब मान कर हरक्यूलिस उसका बोझ अपने कंधे पर ले लेता है। एटलस जब सेब ले कर आता है तो दूर से ही हरक्यूलिस को देखता है, जिसकी इतनी सी देर में ही आसमान के बोझ से हालत पतली हो गई है। पसीने के धारे बह रहे हैं, हांफनी चल रही है (अपने हिन्दुस्तान में तो बच्चे ही आसमान सर पर उठा लेते हैं और उन्हें नहीं , दुनिया को पसीने छूटते हैं)। वह सोचता है कि अब फिर ये बोझ उठाना होगा ,

उधर हरक्यूलिस उसके दिल की बात भांप लेता है सो एटलस से कहता है कि भैया , एक मिनट के लिए इसे पकड़ना, ज़रा कंधे के नीचे कुछ गद्दा-चुमली लगा लूं। एटलस फिर से अपने कंधे पर आसमान थाम लेता है। अपनी बेवकूफी से खुद बुलाई बला के टलते ही हरक्यूलिस ने तो वहां से दौड़ लगाने में ही भलाई समझी और मूर्ख एटलस को गधापन दिखाने यानी दोबारा बोझ उठाने का फल यह मिला कि वक्त के साथ वह पहाड़ में बदल गया जिसे आज मोरक्को के एटलस पर्वत के नाम से जाना जाता है।
मजाकिया अंदाज में अच्छी जानकारी दी।
ReplyDeleteहा हा!! भैया , एक मिनट के लिए इसे पकड़ना, ज़रा कंधे के नीचे कुछ गद्दा-चुमली लगा लूं और टिपिया दूँ, फिर वापस लेता हूँ अजित भाई. :) क्या अंदाजे बयां रहा.
ReplyDeleteवाह्! ये लफ़ड़ा है एटलस् का। मुझे पता ही न् था।
ReplyDeleteअच्छी जानकारी है । राहत इस बात की है कि 'एटलस' का न तो कोई शाब्दिक अर्थ है और न ही पर्याय वर्ना 'एटलस' ब्लाग विश्व में तूफान उठा देता ।
ReplyDeleteआपके परिश्रम को नमस्कार ।
एटलस कथा सुनाने के लिए धन्यवाद! रोचक प्रस्तुति है। दुनियाँ भर में और संभवतः दुनियाँ की सभी भाषाओं में एक समान रूप से प्रयोग में लाया जाने शब्द है यह। यह एक बात और बताता है कि शब्द किसी भाषा विशेष की जागीर नहीं होता और उन्हें उदारता पूर्वक उपयोगिता के आधार पर कोई भी अपना सकता है। किसी भी भाषा के विकास में इस उदारता का सर्वाधिक योगदान होता है।
ReplyDeleteरूखे विषय भी आप बहुत रोचक तरीके से कह जाते हैं.
ReplyDeleteबहुत बढिया.. बचपन से ही एटलस देखता पढता आया हूं.. उसमें खूब रूची भी रही है.. मगर सच्चा अर्थ आज पता लगा.. :)
ReplyDeleteअद्भुत जानकारी.
ReplyDeleteआभार
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डा. चन्द्रकुमार जैन
गज़ब है भाई. जानकारी तो है ही कमाल की, अंदाज़-ए-बयाँ भी लाजवाब.
ReplyDeleteवाह दिलचस्प था ...
ReplyDelete-ऋचा तैलंग
atlas aur harculis ki kahani to aaj pahli baar hi jani..sachmuch bahut rochak jankari rahi.
ReplyDeleteसच में आपकी विशद खोजपरक लेखों ने मुझे
ReplyDeleteवडनेरकर एडिक्ट बना दिया है ।
सराही जाने योग्य पोस्ट ।