Tuesday, July 29, 2008

आप कहां से जुगाड़ करते हैं ?

महेन has left a new comment on your post "ग्राम, गंवार और संग्राम
हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक। सोच रहा हूँ आप कहां से जुगाड़ करते हैं इस सब का यदि भाषाविद् नहीं हैं तो।
सोमवार को ग्राम, गंवार और संग्राम पर महेन की यह टिप्पणी मिली। मैने उन्हें अपने काम और प्रक्रिया के बारे में निजी तौर पर पत्र लिख कर बता दिया। उन्होंने भी उसका जवाब दिया और इसे सार्थक संवाद के रूप में देखा । मुझे लगा कि हम दोनो में हुए संवाद को आप तक पहुंचना चाहिए। यूं भी महेन की टिप्पणी का उत्तर मैं ब्लाग पर ही देने वाला था। सफर के सुधि साथियों की ऐसी ही प्रतिक्रियाएं पहले भी आती रही हैं । बीते साल लावण्याजी ने भी ऐसा ही प्रश्न पूछा था जिसका उत्तर मैने ब्लाग पर ही दिया था। यहां भी वो बातें आ गई हैं।
प्रिय महेन,आपकी बात पढ़कर मज़ा आया। यक़ीनन भाषाविद, भाषाविज्ञानी या भाषाशास्त्री जैसा कुछ नहीं हूं। मैं तो खुद को वैसा पत्रकार भी नहीं मानता जैसा हर्षदेवजी ने लिखा है। बात शौक और जुनून की है। भाषाविज्ञान का विद्यार्थी होने के नाते में बीते करीब पच्चीस वर्षों से शब्दों की उत्पत्ति में दिलचस्पी रखता हूं। नौकरी के बाद समाज, संस्कृति, इतिहास और भाषा संबंधी साहित्य के अध्ययन के लिए जितना हो सकता है समय जुटाता हूं और शब्दों के सफर पर पर निकल पड़ता हूं। मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि संस्कृत अंग्रेजी  में कच्चा हूं। मगर संतोष यही है कि शब्दों के सफर में  यह कच्चापन बाधा नहीं बना है। दफ्तर के अलावा मेरा सारा वक्त इसी में जाता है। न यारी-दोस्ती, न मौज मस्ती।
अजित भाई,
आपने लिखा अच्छा लगा। ब्लोगजगत में सार्थक संवाद बना रहे तो वहाँ खर्च किया गया समय मूल्यवान लगता है खासतौर पर मेरे जैसे लोगों को जोकि हिंदीभाषी होकर ग़ैर-हिंदीभाषी जगह में रह रहे हैं। यही एक जरिया रह जाता है हिंदी से जुड़े रहने का। आप भाषाविद हैं या नहीं यह तो ज्ञान तय करता है डिग्री नहीं। मुझे आपके लेख पढ़कर कहीं से भी यह नहीं लगता कि कोई कमी रह गई हो। बग़ैर जटिलता और कृतिमता के आसान लहजे में दुरुह विषय को आप सहजता से प्रेषित कर देते हैं यह आपके उद्देश्य की सफलता है। मैनें वह टिप्पणी अपनी हैरत के लिये की थी क्योंकि 10-12 साल पहले तक मैं स्वंय शब्दों के विकास पर अपना ज्ञान बढ़ाना चाहता था मगर जब पढ़ना शुरु किया तो देखा कि मेरा हिंदी व्याकरण का ही ज्ञान शुन्य है और आधारभूत विषय जैसे लट् क्या होते हैं या धातु क्या होती है आदि के बारे में ही नहीं मालूम इसलिये इस ओर ज़्यादा समय खर्च नहीं किया। मैनें भाषा विज्ञान पर आजतक सिर्फ़ दो पुस्तकें पढ़ी हैं जिनमें से एक डा. हजारीप्रसाद द्विवेदी जी की लिखी हुई थी, वह भी इसलिये कि हिंदी में एम ए कर रहा था उस समय जोकि पूरा न हो सका और मेरी जर्मन भाषा की रुचि की भेंट चढ़ गया। तबतक भविष्य की योजनाओं में हिंदी की जगह जर्मन घुस चुकी थी। शब्दों का इतिहास मुझे शुरु से आकर्षित करता रहा है (वैसे समग्र इतिहास ही मेरा प्रिय विषय है और अब सोच रहा हूँ कि ढंग से पढ़ना शुरु कर दूँ जोकि आजतक अकसर काम की वजह से टलता रहा है।) और जब आपके ब्लोग पर पढ़ता हूँ तो अकसर सोचने बैठता हूँ कि कहीं आपसे कोई संबंधित शब्द छूट तो नहीं गया है; आजतक तो नहीं ढूँढ पाया। अस्तु। जहाँ तक हर्षवर्धन जी की टिप्पणी का सवाल है, आप किस कोटि के पत्रकार हैं इसके बारे में कुछ पत्रकार मित्रों से खबर मिलती रहती है। ;-) बाकी बातें तो होती ही रहेंगीं। तबतक के लिये नमस्कार। शुभम।
महेन
date Mon, Jul 28, 2008 at 6:33 PM
जैसा मैने अपने ब्लाग पर ''कुछ अपनी" में लिखा है, भाषा विज्ञानी भी किसी शब्द की उत्पत्ति पर ज़रूरी नहीं कि एकमत हों। यूं हिन्दी-संस्कृत शब्दों के क्षेत्र में उत्पत्ति को लेकर जर्मन, अंग्रेज विद्वानों ने काफी काम किया है। कई भारतीय विद्वानों ने उन्ही के काम को आगे बढ़ाया और कई ने प्राचीन ग्रंथों पर आधारित नवीन शोध किये। मगर ये सब काफी दुरूह और विषय विशेष से संबंधित ग्रंथों में ही कैद हैं। इसके बावजूद उनके द्वारा बताई व्युत्पत्तियां काफी महत्वपूर्ण हैं।
दिक्कत ये है कि ये तमाम बातें सामान्य हिन्दीवाले के गले नहीं उतरती क्योंकि इन व्युत्पत्तियों की कोई  व्याख्या नहीं की गई है। इसके अलावा ऐसे कई शब्द हैं जिनकी व्युत्पत्ति अभी तक मुझे किसी ग्रंथ में नहीं मिली। अब तक जो कुछ समझ पाया हूं उसके  आधार पर  उनके उत्स का अनुमान लगाता हूं और सही मूल तक पहुंचने के लिए मशक्कत चलती रहती है।
राठीभाषी हूं मगर  हिन्दी प्रेमी हूं। हिन्दी पत्रकारिता कर रहा हूं। आम हिन्दीवालों को शब्दों की उत्पत्ति आसान ढंग से समझा सकूं यह बात छात्र जीवन से मन में थी। ब्लाग के ज़रिये इसका अवसर मिला है सो अब उसमें जुटा हूं। हिन्दी , संस्कृत, अंग्रेजी, उर्दू , फारसी, अवधी, गोंडी आदि शब्दकोशों की मदद से शब्दों के उत्स को तार्किक परिणति तक पहुंचाने का मेरा प्रयास रहता है। हजारी प्रसाद द्विवेदी,  रामविलास शर्मा, हरदेव बाहरी, भोलानाथ तिवारी, रामचंद्र वर्मा, वासुदेवशरण अग्रवाल, रामधारीसिंह दिनकर, भगवतशरण उपाध्याय कितने ही विद्वानों की अलग अलग पुस्तकों में जो भी शब्द-संदर्भ मिलते रहे हैं उनसे मैने लाभ लिया है। इन्हें मैं बरसों से पढ़ता रहा हूं और इन पर मनन करता रहा हूं।  गौरतलब है कि ये सभी भाषा विज्ञानी नहीं हैं ।   भगवत शरण उपाध्याय के इतिहास-पुरातत्व संबंधी लेख से भी मुझे अपने मतलब का नज़र आ जाता है और हजारी प्रसाद द्विवेदी के ललित निबंधों में भी। श्रीकृष्ण वेंकटेश पुणतांबेकर की इतिहास संबंधी पुस्तक से भी मुझे शब्द-सूत्र मिले हैं और विश्वनाथ काशीनाथ राजवाड़े के शोधपूर्ण लेखों से भी। मगर इनका मिलना ही काफी नहीं था। आम हिन्दीवाले को इन्हें समझाने लायक व्याख्या कर सकूं यही मेरे लिए महत्वपूर्ण है। इसीलिए 350-400 शब्दों का एक आलेख तैयार करने में अमूमन मुझे तीन-चार घंटे लग जाते हैं। मेरे पास लिखा-लिखाया, या पका - पकाया कुछ भी नहीं है।
ब्दों की व्युत्पत्ति को लेकर विद्वानों के मतभेदों के बीच जो एक पक्ष मुझे सही लगता है वही मेरे लेख का आधार होता है। किन्ही शब्दों के जन्म का कोई आधार जब मन में कौंधता है तो सबसे पहले उसे शब्दकोशों में ही सत्यापित करने का प्रयास करता हूं, फिर भाषाविज्ञान , धर्म-संस्कृति की पुस्तकों में संदर्भ तलाशता हूं और फिर रोचक शैली में उसे लिखने का प्रयास रहता है। अरबी, तुर्की, फारसी, अंग्रेजी, हिब्रू आदि भाषाओं के संदर्भों के लिए इंटरनेट खंगालता हूं। काम की सामग्री मुझे इंटरपोल की साइट्स से भी मिली हैं। इसमें मैं कितना सफल हूं, ये तो आप जैसे सुधिजन ही बता सकते हैं। पत्रकारिता में यही सीखा है कि आमजन को आसान शब्दों में जानकारियां दी जाए।
छात्र जीवन से ही एक सुभाषित मन में गढ़ लिया था कि शब्दकोश मेरे गुरुग्रंथ साहिब हैं। आज भी इसे गांठ बांध कर रखा है। गुरुग्रंथ साहिब ही शब्दों के सफर में असली मार्गदर्शक हैं। किसी बड़े शब्दकोश के संपादक को भी शब्द का अर्थ जानने के लिए शब्दकोश की ज़रूरत पड़ती है। हमारा हर काम पूर्ववर्तियों के काम पर आधारित और उसे आगे बढ़ाने वाला होता है।  नवीनता तो उसके निष्कर्षों , व्याख्याओं , प्रस्तुति के निरालेपन और आमजन में उसकी उपयोगिता में खोजी जानी चाहिए। मुझे लगता है यही मैं कर भी रहा हूं। भाषा का क्षेत्र व्यापक है । मैने तो अपने लिए एक कोना  तलाशा है । जो कुछ वहां से देख पा रहा हूं, सबके सामने है।
शुभकामनाओं सहित
अजित

25 comments:

  1. अच्छा लगा आपकी मेहन से बातचीत को सुनना. काफी जिज्ञासायें थी इस विषय में. आभार.

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  2. आपकी लगन, मेहनत और समर्पण को सलाम...

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  3. आप की लगन और जुनून अनुकरणीय है.. ईश्वर आप को और ऊर्जा, समय और संसाधन दे!

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  4. महेन को उड़नतश्तरी जी ने मेहन कर दिया है। मैं इस में त और लगाता हूँ। बनता है मेहनत। इसी से उपजते हैं आप के आलेख। आप बहुत समय लगाते हैं। लेकिन तीसरा खंबा और अनवरत के आलेख भी इतना नहीं तो एक-दो घंटों का समय तो लेते ही हैं। यह समय लगाया जाता है, इस विश्वास के साथ कि लकडियाँ रगड़ने का श्रम कहीं तो ऊष्मा उत्पन्न करेगा।

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  5. आपकी लगन और मेहनत को हमारा नमन,,, हमारी शुभकामनाए हमेशा आपके साथ है

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  6. सच में यह मेहनत आपकी कबीले तारीफ है ..शब्दकोश मेरे गुरुग्रंथ साहिब हैं। आज भी इसे गांठ बांध कर रखा है। गुरुग्रंथ साहिब ही शब्दों के सफर में असली मार्गदर्शक हैं।यही वाक्य सब कुछ कह देता है ....बहुत बहुत शुभकामनाएं

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  7. बेशक.... निष्कर्ष, व्याख्या
    प्रस्तुति और उपयोगिता की कसौटी पर
    खरा है शब्दों का सफ़र ===========
    आपके कथ्य में इस यात्रा की रचना,
    गंतव्य और ध्येय की
    नितांत तटस्थ व ईमानदार चर्चा की गयी है.
    जिन विद्वानों का उल्लेख आपने किया है उनका
    योगदान प्रायः कालातीत और कालजयी भी है.
    सिर्फ़ डा.भोलानाथ तिवारी को लें तो हिन्दी संसार
    उनके 'भाषा विज्ञान' के लिए सदैव ऋणी रहेगा.
    अजित जी ============================
    भाषा विज्ञान में प्रवेश के पन्ने पर
    डा. तिवारी ने भाषा की परिभाषा की है -
    'भाषा वह साधन है जिसके माध्यम से हम सोचते हैं
    तथा अपने विचारों को व्यक्त करते है.'
    मैं यहाँ कहना चाहता हूँ कि
    'शब्दों का सफ़र वह साधन है
    जिसके माध्यम से हम बेहतर सोचने और
    अभिव्यक होने की नई ऊर्जा और दिशा प्राप्त कर रहे हैं'.
    एक अनुरोध यह भी ============================
    कि शब्दों के सफ़र की बात तो आपने की,
    कितना अच्छा होगा कि
    यह इस सिलसिले में आप हमें अपने जिंदगी के सफ़र की
    दास्तान भी सुनाएँ...बकलम ख़ुद.
    आभार
    डा.चन्द्रकुमार जैन

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  8. अजित भाई,
    महेन के साथ आपके संवाद को पढ़कर ढेर सारी जानकारी मिली. महेन के बारे में भी और आपके इस प्रयास के बारे में भी. लगा जैसे कुछ भी पढने से हमेशा लाभ ही होता है. शायद किताबों को इसीलिए सबसे अच्छा दोस्त कहा जाता है क्योंकि उनमें पढने के लिए कुछ न कुछ होता ही है.

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  9. आपको नतमस्तक प्रणाम.. शब्दवीर तो कहा जाता है... आप आज शब्दभक्त से भी लग रहे हैं.... आपको ढेरों शुभकामनाएँ

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  10. नमन है आपकी मेहनत को. धन्यवाद महेन को जिनके सवालों के सहारे कई जिज्ञासाएं पूरी हुई. इतना अध्ययन कर लिया और कहते हैं की भाषाविद् नहीं हूँ ! भाषाविद् क्या होता है एक दिन ये भी समझायें... :-) शब्दविद् ही मान लीजिये.

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  11. मेरा एक परम मित्र जिसकी प्रत्युन्नमति का मैं कायल हूँ। यदि वह इस बारे में टिप्पणी करता तो सबसे पहले कहता, "You too Brutus?" :-)
    उडन तश्तरी जी ने मुझे मेहन बना दिया और दिनेश जी ने उसका मेहनत कर दिया जोकि मैं करता नहीं।
    आपने मेरी बाल सुलभ सी जिज्ञासा को इतना महत्व दिया और वाकई इसे एक संवाद के परिपेक्ष्य में रखा यह बहुत महत्वपूर्ण है और इससे ब्लोगजगत के बाशिंदों को काफ़ी कुछ सीखना चाहिये।
    शब्दों के सफ़र में संवाद और ज्ञानवर्धन बना रहे।
    शुभम।

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  12. सच ही है.
    कई प्रश्नों के उत्तर भी मिले.
    आपका उदाहरण काफ़ी कुछ सिखलाता है.
    धन्यवाद.
    और अनेकानेक शुभकामनाएं.

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  13. अजित जी.. ये बिलकुल सच है कि जो भी मेहनत से अपने ब्लौग को सजाते हैं, लोग खुद ब खुद वहां खिचे चले आते हैं.. जिसमें आप माहिर हो चुके हैं..
    मैंने खुद देखा और पाया है कि जिस ब्लौग पोस्ट पर मैं ज्यादा समय दे कर लिखता हूं वो खुद पढना भी अच्छा लगता है.. नहीं तो मेरे जैसा आलसी आदमी तो बस 15-20 मिनट में एक ब्लौग लिख कर बिना उसे दोबारा पढे पोस्ट कर देता है..

    आपके शब्दों का सफर यूं ही बढता रहे.. आपके बाकलम-खुद के अगले फनकार कौन हैं? उसके भी इंतजार में हूं.. :)

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  14. *******आपके ब्लॉग पर शब्दों के सफर पर अच्छा लगा*******
    **आपको शुभकामनाएँ**

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  15. अजित भाई, मैं सोचता हूँ की बकलमखुद की अगली कड़ी आपके ही नाम हो। सबकुछ स्पष्ट हो जाएगा। कब लिख रहे है आप अपने बारे में ????? उत्सुकता है, कौतुहल है और है जिज्ञासा..........

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  16. अजित जी आप की लगन ओर मेहनत ही हे, जो हम सब को आप के बांल्ग पर आने को मजबुर करते हे, फ़िर सुन्दर ओर ढग से लिखे को पढने पर भी मजबुर करते हे, बहुत अच्छा लिखते हे आप. धन्यवाद

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  17. 'आमजन को आसान शब्दों में जानकारियां दी जाए।'
    सौ फीसदी सहमति

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  18. भाषा विज्ञान की विद्यार्थी रही हूँ, इसीलिए मैं भी थोड़ा- थोड़ा जानती हूँ पर आप तो हमसे भी बड़े वाले निकले. :)
    इसी प्रकार से लगे रहें और हम सभी को कुछ न कुछ सिखाते रहें. धन्यवाद.

    माफ़ कीजियेगा पर मुख-सुख ( प्रयत्न-लाघव ) के लिए आप का नाम अजित वेंडेकर कहना अच्छा लगता है.

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  19. आप की लगन और मेहनत को नमन है। अच्छा लिखते हैं आप... आपको शुभकामनाएँ !

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  20. .
    इतनी तारीफ़ों की झड़ी में एक मेरी कड़ी भी जोड़ दें, अज़ित जी ।

    यह शौक मुझे भी है..पर इलाकाई ज़ुम्लों में ज़ियादा दिलचस्पी बन
    गयी है, पर .. अपने निष्कर्ष को साबित करने में जो मुश्किल सामने
    आती हैं, उनसे तो आप भी वाक़िफ़ होंगे । जारी रहे यह सफ़र..

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  21. अब लिखने को बचा नही है ! सिर्फ़ आपको धन्यवाद देता हूँ !

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  22. हम भी बारम्बार यही कहेँगे...
    आप की मेहनत से
    हम सभी को लाभ हो रहा है ..

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  23. अजितजी,
    पिछले कुछ दिनों से व्यस्तता के चलते आपके चिट्ठे का केवल पाठन ही कर सका । आशा है आप अन्यथा नहीं लेंगे ।

    आज इस पोस्ट को लेकर आपसे कुछ निवेदन करने का लोभ संवरण नहीं कर सका । मैं भी प्राचीन भारत के इतिहास में काफ़ी रूचि रखता हूँ और इससे सम्बन्धित पढने में काफ़ी समय बिताता हूँ ।

    सिन्धु/सरस्वती घाटी सभ्यता की भाषा के बारे में आपके विचार जानने का इच्छुक हूँ । कुछ लोगों ने उस भाषा को प्राचीन ब्राह्मी और संस्कृत से जोडकर समझने का प्रयास किया है लेकिन वो प्रयास सफ़ल नहीं रहा है । इसके अलावा एक प्रकार का भाषायी गैप जो वैदिक और सिन्धु घाटी सभ्यता में है उसके बारे में आप क्या सोचते हैं । उदाहरण के तौर पर एक तरफ़ हम वैदिक लोगों को जानते हैं जिनकी भाषा संस्कृत थी और उन्होनें वेदों की रचना की लेकिन दूसरी और हजारो वर्ग किमीं में फ़ैली हुयी सिन्धु/सरस्वती सभ्यता है जिसकी भाषा एकदम अलग है । इस स्थिति में प्राचीन भारतीय इतिहास के परिपेक्ष्य में भाषा की Continuity कैसी जारी रही ?

    इस विषय में अन्य शंकाये भी हैं, सम्भवत: अपने चिट्ठे पर एक लेख लिखकर आप और अन्य लोगों से संवाद स्थापित करने का प्रयास करूँगा ।

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  24. आप भाषाविज्ञानी न सही पर आपका यह जनून हमें बहुत ज्ञान दे जाता है।

    महेन साहेब का तो मैं कायल हूं ही, बहुत ही कम समय में उन्होंनें ब्लॉग जगत में अपनी एक पहचान बना ली हैं उन्होनें।

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  25. अजीत जी आप सिर्फ़ पत्रकारिता के क्षेत्र में ही नहीं असली जीवन में भी कईयों के लिए प्रेरणादायी हैं, अब और इंतजार मत करवाइए, अगला बकलम आप खुद लिखिए अपने बारे में और वो भी ततकाल्…:)

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