Monday, July 28, 2008

ग्राम, गंवार और संग्राम

india-photo0004-500a   ग्राम के झगड़े सुलझाने वाले पीठ या मंडल को पंचायत कहते हैं। कभी इसी व्यवस्था को संग्राम कहते थे।

फोटो साभार www.travelphoto.net

हिन्दी का गांव संस्कृत के ग्राम शब्द का ही एक रूप है। ग्राम शब्द के मायने हैं बस्ती, पुरवा या गांव और यहां के निवासी हुए ग्रामीण । आमतौर पर फूहड़, मूर्ख या उजड्ड व्यक्ति को गंवार कहा जाता है। मगर इसका मूल अर्थ वही है जो ग्रामीण का होता है। नागर सभ्यता के शिष्टाचारों ने ग्रामीण सभ्यता को हीन समझा। ग्रामीणों का सादगीभरा आचार-व्यवहार अशिष्टता का सूचक माना जाने लगा। फलतः गांव का व्यक्ति ग्रामीण से गंवार बन गया। इस मूल से ही हिन्दी को गंवारू, गंवई, गंवेली जैसे शब्द भी मिले। गंवार के लक्षणों के आधार पर गंवारूपन जैसा मुहावरा भी बाद में चल पड़ा। ऐसे ही कुछ अन्य लक्षणों के आधार पर दो वर्गों की पहचान बताने वाली कहावत-सिर बड़ा सरदार का, पैर बड़ा गंवार का भी प्रचलित हुई।

देखें, क्या है ग्राम से गंवार तक की शब्दावली का आधार। संस्कृत की एक धातु है ग्रस् जिसका अर्थ है निगलना , भसकना, भकोसना आदि। इससे बने ग्रास शब्द का मतलब होता है भोजन-पोषण का अंश, कौर, टुकड़ा। पकड़ने के अर्थ में भी इसका प्रयोग होता है जिससे ग्रस्त, ग्रसनम्, ग्रसित जैसे शब्द बने हैं। निवाला , कौर आदि को हम गुणवाचक रूप में और क्या नाम दे सकते हैं ? मुंह में रखने लायक भोजन अंश को जिस तरह समेट कर , पिंड बनाया जाता है उससे इसे समग्र या समुच्चय भी कहा जा सकता है। स्पष्ट है कि ग्रस् धातु में समुच्चय का भाव भी है।

मूलतः ग्राम शब्द का अर्थ भी समुच्चय से ही जुड़ता है अर्थात् किसी वंश, जाति या गोत्र के लोग। प्राचीन भारतीय समाज पशुपालकों और कृषकों का था। इनमें एक वर्ग योद्धाओं का भी था। जाहिर है जत्था या जाति-समूह के अर्थ में ही ग्राम शब्द का प्रयोग होता रहा। बाद में उस भूक्षेत्र को भी ग्राम कहा जाने लगा। गौरतलब है कि आज भी जाति समूह के नाम पर ग्रामों के नाम देखने को मिलते हैं जैसे रावतों की ढाणी या बामनटोला आदि। गौरतलब है कि ग्रामदेवी, ग्रामदेवता जैसी व्यवस्था से भी यही साबित होता है कि ग्राम पहले किसी जाति समूह को ही कहते थे। इस तर्ज पर नगरदेवता जैसी व्यवस्था कभी नहीं रही। वजह वही है कि नगर में जाति समूह का अर्थ निहित नहीं है।  किसी विवाद की स्थिति में जब एक साथ ऐसे कई जत्थे ( या ग्राम ) एकत्र होते थे तब इस जमाव को संग्राम (सम+ग्राम) कहते थे। बहुधा विवाद का हल लड़ाई के जरिये ही निकलता था इसलिए संग्राम का एक अर्थ युद्ध , रण अथवा लड़ाई भी हो गया। आज के दौर में ग्राम के झगड़े सुलझाने वाले पीठ या मंडल को पंचायत कहते हैं। कभी इसी व्यवस्था को संग्राम कहते थे। अलबत्ता ग्राम पंचायत में भी झगड़ा नहीं सुलझता है तो संग्राम आज भी होकर ही रहता है।

अपनी बात

रीब एक वर्ष पूर्व सफर के शुरुआती दौर में ग्राम ,गंवार और संग्राम शीर्षक से प्रकाशित  आलेख की यह संशोधित पुनर्प्रस्तुति है। यह पोस्ट गलती से डिलीट हो गई । इस पर  तब एक ही टिप्पणी आई थी जो वरिष्ठ पत्रकार हर्षदेव की थी।

हर्षदेव said...

u have done a wonderful work. my congrats. pl continue. u r not only "layak" but a brilliant journalist

13 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

वाह क्या बात है? पंचायत = संग्राम

Gyan Dutt Pandey said...

सभी शब्द अपने विपरीतार्थक की गोद में विश्राम पाते हैं!

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

Gramya - Shabd bhee , Yeheen aayega .
Bahut badhiya sanklan kiya hai shabdon ka -

- Lavanya

Dr. Chandra Kumar Jain said...

ग्रास....ग्राम....संग्राम !
कमाल है.
वैसे सादगी के गँवारूपन की
महिमा के सामने दिखावे के
अभिजात्य को कई बार पानी भरते
देखा गया है... 'रस्टिक ग्लैमर' की
बात ही कुछ और है...है न ?
===========================
शुभकामनाएँ
डा.चन्द्रकुमार जैन

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

हमेशा की तरह अच्छा विश्लेषण। गाँव में रहने वालों को गँवार मान लेने की प्रवृत्ति आज भी तथाकथित पढ़े-लिखे शहरी समाज के लोगों में देखी जाती है। यही दृष्टिकोण भोजपुरी भाषा बोलने वालों के साथ भी है। जबकि प्रगतिशील और विद्वान होने का संबन्ध इससे कत्तई नहीं है। अलबत्ता भारत के ग्रामीण समाज में विकास के अवसरों की भारी कमीं है। इसपर ध्यान दिया जाना चाहिए।

Prabhakar Pandey said...

सुंदरतम और ज्ञानवर्धक। मैं हूँ गँवार यानि मूर्ख नहीं गाँव का रहनेवाला।

Anonymous said...

हमेशा की तरह..रोचक जानकारी... ग्राम से संग्राम के नए अर्थ की जानकारी देने का शुक्रिया...

डॉ .अनुराग said...

हर्षदेव जी की बात से सहमति है

महेन said...

हमेशा की तरह ज्ञानवर्धक। सोच रहा हूँ आप कहां से जुगाड़ करते हैं इस सब का यदि भाषाविद् नहीं हैं तो।

PD said...

bahut badhiya sir..
kitni baar aapko badhaayi doon.. har baar dil jeet lete hain.. :)

Abhishek Ojha said...

पंचायत = संग्राम, ये तो बिल्कुल नई बात हो गई... संग्राम और महासंग्राम से तो युद्ध ही समझते थे हम अभी तक.

Udan Tashtari said...

अति रोचक प्रस्तुति..कहाँ का शब्द कहाँ विश्राम लेगा, बड़ा ही दिलचस्प रहा जानना. आभार.

Smart Indian said...

ग्राम से संग्राम तक - क्या बात है. आपकी पोस्ट बहुत ही रोचक और जानकारी देने वाली होती हैं. धन्यवाद.

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