दुनियाभर में हिन्दी के सर्वाधिक प्रचलित शब्दों में गुरू के बाद अगर कोई है तो मेरे विचार में वह योग ही है। गुरू से तो गुरूडम जैसा समास भी अंग्रेजी में बन गया मगर योग ने सिर्फ एक मात्रा की बढ़त ली और अंग्रेजी में योगा हो गया। अब विदेशियों की बात छोड़ दें, तो योग की जन्मस्थली भारत में भी लोग योग को उसके सही अर्थ में न पहचानते हुए सिर्फ शारीरिक व्यायाम में ही 'योगमग्न' है और ऐसा इसलिए हुआ क्यों कि योग के आठ साधनों में से एक योगासन को ही योग मान लिया गया और बाकी सात साधनों को भुलाते हुए योग को योगा कर दिया गया। अब जब एक साधन से ही अर्थ यानी मुद्रा कमाई जा सकती है तो बाकी सात को याद रख योग के विशिष्ट अर्थ को जानने की आवश्यकता भी क्या है ?
योग का मूल
हिन्दी का योग शब्द अपने आप में सिर्फ एक शब्द भर नहीं बल्कि एक दर्शन है। सबसे पहले बात संस्कृत के योगः की जिससे योग बना। इसकी उत्पत्ति हुई संस्कृत के युज् से जिसमें सम्मिलित होना, जुड़ना , प्रयुक्त होना , काम में लगना आदि शामिल हैं। युज् बना है यु धातु से जिसके भी यही सारे अर्थ हैं। युज् से बने योगः में इन सारे अर्थों के अलावा जो भाव महत्वपूर्ण है वह है संपर्क, युक्ति, प्राप्ति, भाव चिंतन, मन का संकेन्द्रीकरण, परमात्मचिंतन आदि।
योग क्या है ?
मूल रूप से मन-मानस का परमात्मा से जुड़ाव या मिलन । यही पतंजलि योगदर्शन कहता है। आज योग का स्थूल अर्थ शारीरिक व्यायाम तक सीमित हो गया है तो भी मन और शरीर की क्रियाओं के मेल से स्वास्थ्य लाभ करने की प्रणाली इसे सामान्य व्यायामों से अलग करती है। कहावत है कि स्वस्थ शरीर में ही ईश्वर निवास करते हैं , सो जाहिर है योग ईश्वर से जुड़ाव का ही साधन हुआ। महर्षि पतंजलि ही योगदर्शन के प्रतिपादक माने जाते हैं । योगदर्शन का उद्देश्य उन उपायों की शिक्षा देना है जिनके जरिये मानव मन परमात्मा में लीन हो जाए या प्रकारांतर से मनुश्य को मोक्ष प्राप्त हो
जाए।
योग के मार्ग और साधन
योग के आठ अंग हैं और इसके लिए योग अपने आप में अष्टांगयोग कहलाता है। डॉ. राजबली पांडेय के हिन्दू धर्म कोश के मुताबिक आठों अंग इस प्रकार हैं – 1.यम 2. नियम 3.आसन 4. प्राणायाम 5. प्रत्याहार 6.धारणा 7. ध्यान और 8. समाधि । स्पष्ट है कि इन आठ अंगों में से सिर्फ आसन जिसमे अनेक प्रकार की शारीरिक क्रियाएं हैं, को ही योग मान लिया गया है। इसमें प्राणायाम को भी शामिल कर लिया जाता है। योग के तीन मार्ग भी बताए जाते हैं। पर्वतीयजी के भारतीय संस्कृति कोश के मुताबिक ज्ञान, भक्ति और कर्म प्रमुख योगमार्ग हैं। तार्किक व्यक्ति के लिए ज्ञानयोग, भावुक के लिए भक्तियोग और कर्मठ के लिए कर्मयोग बताया गया है। योग के दो प्रकार भी बताए जाते हैं। हठयोग जिसका मूल तन्त्रशास्त्र में है और राजयोग जिसका मूल वेदांत में है ।
योगपंथ
हिन्दू धर्म में योगविद्या से संबंध रखनेवाले कई पंथ , सम्प्रदाय या वाद हैं। एक है शब्दाद्वैतवाद । छठी सदी में सिद्ध योगी भर्तृहरि ने इसका प्रवर्तन किया था। इसे प्रणववाद या स्फोटवाद भी कहते हैं। इसमें शब्द अथवा नाद को ही ब्रह्म मानकर उसकी उपासना की जाती है। नाथ सम्प्रदाय भी योगसाधकों का पंथ है। चरनदासी पंथ और राधास्वामी सम्प्रदाय भी इसमें शामिल है।
आपकी चिट्ठियां
सफर की पिछली कड़ियों - किस्सा ए बेवकूफी यानी एटलस, जुग जुग जियो जुगल जोड़ी और थप्पड़ जड़ने की जटिलता पर सर्वश्री सतीश पंचम, समीरलाल, अनूप शुक्ल, विष्णु बैरागी, मीनाक्षी, दिनेशराय द्विवेदी, प्रशांत प्रियदर्शी, डॉ चंद्रकुमार जैन, मीत, ऋचा तैलंग, पल्लवी त्रिवेदी , डॉ अमरकुमार , अभिषेक ओझा, प्रभाकर पाण्डेय, घुघूति बासूती, श्रद्धा जैन, उड़नतश्तरी , लावण्या शाह और नीलिमा की टिप्पणियां मिलीं। आप सबका तहेदिल से शुक्रिया
Saturday, July 12, 2008
योग के 'अर्थ' में मगन
प्रस्तुतकर्ता अजित वडनेरकर पर 2:56 AM
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11 कमेंट्स:
साहब जी,
प्रथम दो..यानि कि यम और नियम के पालन के बाद ही आसन की उपादेयता है,
किंतु शार्टकट चल रही दुनिया में, आसन को लोकप्रिय बनाने हेतु इनका उल्लेख
भी नहीं किया जाता । एक किसिम की उपभोक्ता संस्कृति की शिकार है, अपना योग !
प्रत्याहार तक जाते जाते लोग टूट कर अलग हो जाते हैं, सो यह समझौता नाज़ायज़
भी नहीं लगता, जैसे कि शरीर को जी्वित रखने के लिये किया जाने वाला एम्पुटेशन !
संदर्भित करने योग्य है, यह आलेख !
कुछ लोग धनयोग में ही जुटे रहते हैं। एक गणित का योग (+) भी है। एक योग पंचांग में देखने को मिलता है। एक ग्रह-योग भी है। सूची बहुत लम्बी है।
योग पस्चिमी देशोँ मेँ प्रचलित हुआ है
पर "ओम" OM को " आम " aam
बोलते सुना है :)
आपने अच्छा लिखा है
- लावण्या
सम्मान्य, अति महत्वपूर्ण जानकारी दी आपने....पहली बार आपका ब्लॉग देखा और बस देखता ही रह गया...अगले पोस्ट की तीव्र प्रतीक्षा में..... धन्यवाद
अधीर मानव को दिलासा,
सुविधा और तुरत-फुरत का निबटारा
सहज रूप से प्रभावित करता है.....
इसलिए आश्चर्य नहीं कि
योग भी ऊँची छलांग लगाने में मग्न है.
आपने योग के साधनों का उल्लेख किया है,
दरअसल उनमें से किसी की उपेक्षा उचित नहीं है.
शब्द व्युत्पत्ति की चर्चा के निमित्त
आपने इस पोस्ट में भी
अहम संदेश छोड़ दिया है.....आभार.
यह भी कि योगी की यश देह अर्थात्
कीर्ति कभी नष्ट नहीं होती......
परन्तु आज योग की कीर्ति के बहाने
कीर्ति-योगियों की संख्या बढ़ती जा रही है !
बलिहारी है समय की !
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डा.चन्द्रकुमार जैन
यह पोस्ट भी बहुत जानकारी देने वाली है अजीत जी .आज जीवन उर्जा में मैंने भी कुछ योग के बारे में लिखा है .आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है .धन्यवाद
अजीत जी सच मे बहुत जानकारी हे आप के सभी लेखो मे, ओर इस योगा यानि योग के बारे पढ कर पिता जी याद आ गये, वह यह सब बाते मुझे समझाया करते थे, आप ने विस्तार से योग के बारे मे बताया हे धन्यवाद
यूँही ज्ञान बाँटते रहें गुरुवर। जितना ही यहाँ आओ और पढ़ो उतना ही अपने अज्ञानी होने का अनुभव होता है।
शुभम
महेन
दो दिन पहले ही योग पर यही जानकारी कॉलेज के छात्रों को देने के लिए एक प्रोग्राम रक्खा था। डर रहे थे कि बच्चों को इन सब चीजों से क्या मतलब्। लेकिन बड़ा सुखद अनुभव रहा जब तीन घंटे बच्चों ने न सिर्फ़ इसके बारे में सुना, नोटस लिए, बल्कि दूसरे दिन हमसे कहा कि उस योगी को फ़िर से बुलाया जाए। अब जरा मुद्राओं के बारे में भी बता दिजीए ।धन्यवाद
shabad gyan too anant hain lakin aap us gagar main dagar bharna jaisa bhagarithi kaam kiya hain. sadhuwad
योग हमारे जीवन का वह नियम है जिसका पालन करने से हम या कोई भी एक लंबी आयु प्राप्त कर सकता है और निरोग काया भी
जय हिन्द
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