Thursday, July 10, 2008

जड़ से बैर , पत्तों से यारी

जाड़े में जड़मति को जूड़ी का बुखार तही सोच-समझ और मतलबपरस्ती के लिए एक कहावत है जड़ से बैर , पत्तों से यारी । इसी तरह खुद को प्रतिष्ठित करने या दूसरे को नुकसान पहुंचाने, पूरी तरह नष्ट कर देने के अर्थ में हिन्दी में दो मुहावरे आमतौर पर इस्तेमाल होते हैं । जड़ जमाना और जड़ उखाड़ना। यहां चाहे जड़ का शाब्दिक अर्थ वृक्ष के मूल से है मगर मगर भाव उस आधार से है जो किसी भी चीज़ को मज़बूती प्रदान करता है। हिन्दी में जड़ शब्द का तीन तरह से प्रयोग होता है। दिलचस्प बात यह कि तीनों ही प्रकारों में जड़ शब्द का अर्थ अलग अलग है। जड़ -1 मतौर पर इस जड़ का प्रयोग विशेषण के रूप में होता है। निष्क्रिय, निष्चेष्ट या आलसी को जड़ शब्द प्रचलित है। यह बना है संस्कृत के जड से जिसका मतलब होता है अत्यधिक शीत, ठंड, ठिठुरन या जमाव बिंदु तक सर्दी होना। दिलचस्प बात यह कि जड शब्द का निर्माण जल् धातु से हुआ है जिसका मतलब भी स्फुर्तिहीन, ठंडा या शीतल ही होता है। इसी से बना है पानी के लिए जलम् शब्द । जाहिर सी बात है कि तरलता के बाद पानी का सबसे बड़ा गुण उसकी शीतलता ही है और अपने मूलस्रोत पर तो यह हिमशीतल रहता है। शीतलता के इन्हीं भावों से एक और नए शब्द का जन्म हुआ जाड्यम् जिसमे यही सारे अर्थ समाहित हैं। गौर करें कि अत्यधिक सर्दी में मनुष्य का मन कुछ काम नही कर पाता इसी लिए जाड्यम् में अनासक्ति, आलस्य और निष्क्रियता जैसे अर्थ भी जुड़ गए। लगातार बर्फीले क्षेत्र में निवास अवसाद तक उत्पन्न कर देता है। जाड्यम का ही अर्थविस्तार हिन्दी शब्द जाड़ा के रुप में हुआ । सर्दी के मौसम को जाड़े का मौसम भी कहा जाता है। ठिठुरन के साथ आने वाले बुखार को देहात में जुड़ी का बुखार कहते हैं जो इसी मूल से उपजा शब्द है। त्य़धिक शीत या बर्फ में निवास से शरीर निष्क्रिय होते होते निश्चेत होने लगता है। इस अवस्था में मस्तिष्क बहुत ज्यादा नहीं सोच पाता । इस अवस्था को उदासीन या चेतनाशून्य भी कहते हैं। इसी अवस्था के लिए जड शब्द का प्रयोग होता है जिसे हिन्दी में जड़ कहा जाता है। कालांतर में निष्क्रिय या निश्चेत की बजाय मंदबुद्धि, मूर्ख, बुद्धू आदि के लिए जड़ शब्द का प्रयोग किया जाने लगा। गौरतलब है कि अक्लमंद की बुद्धि तीक्ष्ण होती है सो इसी के विपरीत मूर्खों को मोटी बुद्धिवाला कहा जाने लगा। जड़ यानी मोटी बुद्धिवाला । जड़बुद्धि वाले को पहले जाड़ा या जाड्या कहा गया। इसी मुकाम पर आकर लोकभाषा सक्रिय होती है और जड़ से जाड़ा यानी मोटा जैसा शब्द बना लेती है। मालवा, महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ हिस्सों में मोटे या मोटी के लिए जाड़ा या जाड़ी जैसा शब्द भी है। मूर्ख के लिए हिन्दी में जड़ भरत विशेषण भी है। दरअसल ये पौराणिक पात्र हैं। ये ऋषभ के पुत्र थे और बहुत बड़े विद्वान थे । सांसारिक मायामोह से उचाट के चलते ये अपने ज्ञान का परिचय किसी को नहीं देते थे और उदासीन , जड़वत रहते थे। उनके व्यक्तित्व को सम्मान देते हुए तत्कालीन समाज ने उन्हें जड़ भरत कहना शुरू कर दिया। मगर कालांतर में समाज ने मंदबुद्घि और मूर्ख की उपमा के तौर पर इस शब्द को सीमित कर दिया। बुद्ध से बुद्धू , पाषंड से पाखंडी और वज्रबटुक से बजरबट्टू वाला किस्सा यहां भी दोहराया गया । जड़ -2 ह जड़ दरअसल संज्ञा के रूप में हमेशा प्रयोग में आता है। जड़ यानी वृक्ष का वह अंग जो धरती के अंदर होता है और जिससे पेड़ को भरण-पोषण प्राप्त होता है। जड़ बना है संस्कृत धातु जट् से जिसमें पेचीदा, उलझाव, जुड़ाव, गुत्था और सम्मिलित होने का भाव है। जिस तरह पोषण के अतिरिक्त जड़ का प्रमुख काम वृक्ष को थामे रखने का भी है । जड़ की विशेषता होती है जितना वृक्ष सतह के ऊफर ऊंचा-फैला रहता है उतनी ही वह भी धरती के अंदर गहरी-फैली रहती है -अपने सभी लक्षणों यानी मिट्टी-पत्थर में उलझती, गुत्था बनाती, पेचीदा राह तलाशती और चट्टानों से जुड़कर मज़बूत पकड़ बनाती हुई। इस तरह जड़ पेड़ को सहारा देती है सो जड़ में एक और भाव समाहित हुआ आधार का । यही भाव जड़ से उखाड़ना या जड़ जमाना जैसे मुहावरों में प्रमुखता से उभर रहा है। जड़ें बड़ी गुणकारी होती हैं इसलिए छोटे पौधों की जड़ कहलाई जड़ी और उसमें बूटी जुड़ कर औषधि के लिए जड़ीबूटी जैसा शब्द भी बन गया । जड़ -3 किसी वस्तु में दूसरी वस्तु को समाहित करना , बैठाना या संयुक्त करने के लिए इस जड़ का प्रयोग किया जाता है। जड़ का यह तीसरा प्रकार क्रिया के रूप में ही प्रयुक्त होता है। इसका जन्म भी जट् धातु से हुआ है जिसमें जुड़ाव, सम्मिलन आदि का भाव प्रमुख है। जड़ना, जड़ाऊ, जड़ित जैसे शब्द इससे ही बने हैं। जड़ देना जैसा मुहावरा खासतौर पर इस शब्द की देन है जिसमें झूठी बातें बनाना जैसा भाव है तो दूसरी ओर अचानक जोर से मार देना अर्थात थप्पड़ जड़ देना भी शामिल है।

9 कमेंट्स:

Dr. Chandra Kumar Jain said...

जड़-मति भी पढ़े तो सुजान हो जाए,
शब्दों की दुनिया के जड़ से जुड़ जाए.
जड़ना हो जीवन में जगमग नगीना
इतना ही कहता हूँ सफर में वो आए.
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जड़ भरत की जानकारी भी रोमांचकारी है.
अजेय शब्द साधक को बार-बार बधाई !

शुभ भावनाओं सहित
डा.चन्द्रकुमार जैन

Dr. Chandra Kumar Jain said...

कृपा कर'के'जड़ को'की'जड़ पढ़ें.
आभार
चन्द्रकुमार

रंजू भाटिया said...

बहुत अच्छी जानकरी देते हैं आप शब्दों के संसार की शुक्रिया

Satish Saxena said...

इसी तरह खुद को प्रतिष्ठित करने या दूसरे को नुकसान पहुंचाने, पूरी तरह नष्ट कर देने के अर्थ.....

अजीत भाई !
धन्यवाद देता हूँ , आपकी विद्वता को , जड़ शब्द के तीनो अर्थ समझाते हुए, आपके संदेश मे समाज के लिए मार्मिक संदेश भी छिपे है ! आपका यह लेख समाज के कटु पहलुओं को भी उजागर कर रहा है ! दिखने में नीरस शब्दों का सफर अपने आप में समाज के लिए धरोहर है !
अपने अपने ब्लाग को आगे ले जाने की होड़ में लगे हम लेखको के लिए आपकी सौम्यता आदरणीय है !

दिनेशराय द्विवेदी said...

अब समझ आया, आप जड़ से ही अर्थ खींच कर लाते हैं और वट शाखाओं की तरह फैलाते हैं। फिर जड़ निकाल कर जमीन में घुसा देते हैं।

Abhishek Ojha said...

जड़ की जड़ता तो समझ गए.. एक निराला के 'ताक कमसिनवारि' पर भी व्याख्या लिख डालिए, बहुत मन है पढने का.

Anonymous said...

शब्दों के सफ़र का एक साल पूरा होने की बधाई, दुआ करते हैं कि इस ब्लोग की जड़े दूर दूर तक फ़ैलेगीं और शब्दों का सफ़र आसमान से टक्कर लेगा।

अमित पुरोहित said...

किशोरावस्था से आपको पढे जा रहा हूँ, शुरुआत प्रिंट से हुई थी. एक रजिस्टर भी बनाया, जयपुर से बीकानेर और बीकानेर से फ़िर जयपुर घर बदलने के चक्कर में वह खो गया. अब इन्टरनेट पर आपको पाकर ऐसा लगता हैं वह खोया रजिस्टर मिल गया हैं. फर्क बस इतना हैं की पहले आपको पढ़ कर, उसे मैं अपडेट करता था, अब यह काम आप ख़ुद मेरे लिए कर रहे हैं. आपका बहुत-बहुत शुक्रिया !

डा. अमर कुमार said...

जड़ बुद्धि और बुद्धि की जड़ों में भेद करने के उदाहरण मुझे नहीं मिल रहे,
सहायता करें, अजित जी !

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