1.कौवे और कोयल की रिश्तेदारी
2.और यूं जन्मी कविता...
3.कहनी है कुछ कथा-कहानी
4.कवि साथियों से क्षमा याचना सहित
5.गीता और गीत-संगीत की गाथा
[चित्र साभार -cispackage.com/]
इस क की महिमा कुत्ते के नाम में भी नज़र आती है। कुत्ते की पहचान के लिए चाहे भौं भौं की आवाज़ सर्वाधिक स्वीकार्य हो मगर इस भौंक के अंत में जो ध्वनि शेष रहती है वह क का उच्चार ही है। मूलतः कुत्ता शब्द भी संस्कृत के कुक्कुरः से बना है जिसका मतलब कूंकूं या कूरकूर ध्वनि करना ही है। कुत्ते को रोटी देने के लिए बुलाते समय भी इसी ध्वनि का उच्चार अक्सर किया जाता है। दरअसल इसके मूल में कुत्ते के खांसने की आवाज़ है। खांसी के एक प्रकार को भी कुकुर खांसी ही कहते हैं। गौरतलब है कि कुत्ते के कुक्कुरः नामकरण में मनुष्य ने उसके गुर्राने या भौंकनेवाले गुण की बजाय उसके खांसने वाले गुण को लिया है। खांसी शब्द के पीछे भी यही ध्वनि अनुकरण काम कर रहा है। खांसी बना है संस्कृत के कास् जिसका मतलब होता है रुग्णता प्रदर्शित करनेवाली आवाज़, खांसी , सर्दी जुकाम आदि। कास् > कासिका > खासिआ > खांसी इस तरह विकासक्रम रहा इसका। कलकल और फिर कोलाहल जैसे शब्दों का रिश्ता भी इसमें साफ हो रहा है और क या कु की महिमा भी। खांसना, खखारना, जैसे शब्द इसी श्रंखला से जुड़े हैं।
यूं कुत्ते के लिए संस्कृत में श्वान शब्द है । भाषा संस्कार के नज़रिये से मानव के इस आदिम साथी का कुत्ता नाम हिन्दी में गाली समझा जाता है । कुत्ते के लिए भी सभ्य शब्द श्वान ही समझा जाता है। गांव देहात में कुकुर महाराज, टेगड़ा आदि भी कहते हैं। वैसे श्वान शब्द का जन्म शुन् या श्वि से माना जाता है। इनमें साथ-साथ चलने , फलने- फूलने, बढ़ने, विकसित होने का भाव है। कुत्ता आदिकाल से ही मानव-सहचर रहा है। महाभारत में पांडवों के स्वर्गगमन के प्रसंग में उनके साथ कुत्ते के होने का भी उल्लेख मिलता है। शुरू से ही मानव बस्तियों में कुत्तों का भी आवास रहा है और उनकी वंशवृद्धि होती रही है सो इसी वृत्ति के चलते
कुक्कुर को मिला एक सभ्य नाम श्वान। कुत्ता शब्द का स्त्रीवाची शब्द तो हिन्दी में कुत्ती या कुतिया है मगर श्वान का नही मिलता। दरअसल संस्कृत में श्वान के अलावा शुनकः शब्द भी है। इसी से बना है शुनी जिसका मतलब है कुतिया ( बुरा नहीं है यह नाम भी !)। डॉ रामविलास शर्मा के अनुसार संस्कृत श्वान का यूरोपीय प्रतिरूप हाऊन्ड है। उनका तर्क है कि इंडो यूरोपीय भाषाओं में संस्कृत का श या स अक्सर ग्रीक, अरबी, फारसी के ह में बदलता है। सिन्धु का हिन्दू , सप्ताह का हफ्ता आदि मिसालें भी देखी जा सकती हैं। यह क्रम आप सौ के अर्थ में संस्कृत के शतम् और अंग्रेजी के हंड्रेड में देख सकते हैं। संस्कृत का श्वान ही कुत्ता के अर्थ में कश्मीरी में हून बनता है। अलबत्ता अंग्रेजी के डॉग की व्युत्पत्ति अज्ञात है।
कुत्ता और श्वान शब्द मुहावरों , कहावतों में भी लोकप्रिय हैं। कच्ची नींद, या सिर्फ झपकी यानी हलकी नींद लेने को श्वान निंद्रा कहते हैं। कुत्ते में चौकसी की वृत्ति होती है और इसीलिए वह बहुत कम सोता है। एक और मुहावरा है श्वानवृत्ति जिसका मतलब होता है नौकरी-चाकरी करना, हुकुम बजाना आदि। इसी तरह बुरी अवस्था में मृत्यु को कुत्ते की मौत मरना कहा जाता है। हरदम चापलूसी –खुशामद में लगे रहने को को दुम हिलाना ( कुत्ते की तरह ) कहते हैं।
आपकी चिट्ठियां-एक अलौकिक आत्मा पर
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14 कमेंट्स:
Ajit bhai aapko badhaee ki aap apana safar aur bakalam Khud ka safar bhi jari rakhe hue hain . Ab shabdon ke safar ki to kitab chap jana chhiye aur isaki sabse pahali grahak main hi houngi. Bahar hal kukur aur, shwan se kutte tak ke safar pasand aaya.
बहुत अच्छी जानकारी है - बधाई स्वीकार करें.
ज्ञानवर्धक...जय हो, महाराज.
bahut acchi jaankari is baar bhi shukriya
रोल न. 63 हाज़िर है सर.. आज की क्लास भी बढ़िया रही
जानकारी बढ़ाने वाली
रोचक पोस्ट. ========
कम सोने वाले वफ़ादार
की मौत मरना
इतनी बुरी बात क्यों है ?
जो लोग पूरी ज़िंदगी सो कर
ज़िंदगी से बेवफ़ाई करते हैं
उनके लिए कौन-सा
मुहावरा माकूल होगा ?
ऐसे कुछ सवाल उभरने लगे
सफ़र की इस प्रस्तुति को पढ़कर.
...खैर,यहाँ तो आनंद शब्द-यात्रा का है.
ये ज़ुदा बात है कि इसमें इन्सान की फितरत के
कई अनछुए पहलू बरबस उजागर होते जा रहे हैं.
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आभार अजित जी,
डा.चन्द्रकुमार जैन
rool no ek हाज़िर है...
यही तो वह जीव है जो परलोक तक मानव का साथ निभाता है।
खांस खखार के बहाने अच्छी जानकारी दी है।
श्वान शब्द मेरी शब्दावलि में पहले नहीं था, मेरी शब्दावली में इजाफ़ा करने के लिए धन्यवाद, श्वान निद्रा के बारे में भी हमने नही सुना हुआ था और सप्ताह ही हफ़्ता बना ये भी बिल्कुल नयी जानकारी है, धन्यवाद्। अगली पोस्ट का इंतजार है
बहुत ही ज्ञानवर्धक और सुंदरतम जानकारी। वैसे कुत्ते के लिए कुछ विद्वानों ने अपनी रचनाओं में गृहप, सालावृक, दीर्घजिह्वी, दीर्घरत, दीर्घ-सु-रत, सुनहा जैसे शब्दों का प्रयोग भी किया है। और कुतिया के लिए श्वानी और तुंबुरी भी साहित्यकारों द्वारा प्रयोग में है।
अजित भाई, साइकिल में जो कुत्ता होता है, क्या उस कुत्ते का संबंध भी इस कुत्ते से है या यह संयोगमात्र है।
स्कूल छोड़ कर जाते हुए अपने छात्रों को संस्कृत का एक श्लोक
लिख कर दिया करते थे...जिसमें काक दृष्टि , वको ध्यान के साथ साथ श्वान निद्रा का महत्त्व बताते थे... आज श्वान-वृत्ति के अर्थ में चाकरी के रूप में नई जानकारी मिली...
कुक्कुर पर जानकारी अच्छी लगी... कहाँ से कहाँ ले जाते हैं आप. भौकने से खांसी तक रोचक सफर !.
बहुत ही रोचक जानकारी."शुनि" वाकई बहुत प्यारा शब्द है.
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