कविता जन्मी प्रकृति के संगीत से । पंछियों के कलरव से, धाराओं की कलकल से। यह अनायास नहीं कि जिस तरह क वर्ण में ध्वनि करने का भाव अन्तर्निहित है उसी तरह इस वर्णक्रम में [क-ख-ग-घ] आने वाले ग में गायन का भाव पैठा हुआ है। जिस तरह कै धातु से बने कव् में स्तुति , वर्णन अथवा काव्य-रचना का भाव है उसी तरह गै धातु का अर्थ भी वर्णन करना है मगर इसका निर्वाह सस्वर करने का भाव प्रमुख है। गै अर्थात गाना, पाठ करना, वर्णन करना, आदि।
कथा कहानी के पर्याय के रूप में हिन्दी में गाथा शब्द भी प्रचलित है। गाथा यानी कहानी से बड़े आकार की कथा। आमतौर पर प्राचीनकाल में धार्मिक पात्रों पर आधारित कथा-विन्यास को गाथा कहा जाता था । कालांतर में समसामयिक चरित्रों और ऐतिहासिक पात्रों के इतिवृत्त गाथा कहलाने लगे। गाथा बना है गै धातु से बने गाथ् शब्द से । गौरतलब है कि गै का मतलब है सस्वर वर्णन करना, पाठ करना आदि। गाथ् का अर्थ हुआ गीत , भजन आदि। संस्कृत में गीत शब्द क्रिया है जिसका मतलब है गाया हुआ जबकि हिन्दी का गीत बना गीतम् या गीतकम् से जिसके मायने हैं स्तोत्र, भजन आदि। हिन्दी का गाना शब्द भी इसी कड़ी में आता है और संस्कृत के गानम् से बना है। गाथा शब्द के अन्य पर्याय है उपन्यास, कथा,कहानी, विरुदावली, जीवनी, महाकाव्य, प्रबंधकाव्य आदि। हिन्दी साहित्य के एक पूरे कालखंड का नाम ही वीरगाथा काल है।
महाभारत के निष्काम कर्मयोग के सिद्धांत की स्थापना वाले अंश को दुनियाभर में गीता कहा जाता है। गीता भी गै धातु से बना है जिसमें गुरू-शिष्य संवाद का भाव है। गौरतलब है कि भीष्म पर्व के उक्त अंश में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश ही दे रहे हैं । आप्टे कोश के मुताबिक गीता का अर्थ है पद्य विधा में लिखे गए संस्कृत के ग्रंथ जिसमें धार्मिक-आध्यात्मिक सिद्धांतों का प्रतिपादन हुआ हो। इस आधार पर कई गीताएं हैं। निष्काम कर्मयोग वाले भीष्मपर्व उक्त अंश का भी पूरा नाम श्रीमद्भगवद्गीता है। हिन्दी-संस्कृत में छोटे गीत को गीतिका कहते हैं। इस नाम का एक छंद भी है।
गै से बने गायः शब्द से हुई गायक की उत्पत्ति । गायक यानी गानेवाला। हिन्दी का गवैया शब्द भी इससे ही बना है। प्रसिद्ध गायत्री मंत्र के मूल में भी यही गै धातु है। गै से बने गायः से जन्मा है गायत्रम् जिसका मतलब होता है सूक्त , गीत। हिन्दी में सर्वाधिक बोले जानेवाले शब्दों में संगीत भी एक शब्द है। यह एक ऐसा शब्द है जिसका पर्याय हिन्दी में मिलना मुश्किल है । यह बना है सम+गीत के मेल से अर्थात साथ साथ गाना। सामूहिक गान, वृदगान के साथ इसमें गायन,वादन व नृत्य की संगति शामिल है। गीत वाद्य के साथ गायन की कला को भी संगीत कहा गया है। संगीत शब्द की सिर्फ व्याख्या की जा सकती है। मोटे तौर पर प्रकृति में उत्पन्न सुरीली ध्वनियों को संगीत कहा जा सकता है। इसमें जीव धारियों के कंठ से उत्पन्न ध्वनियों से लेकर पक्षियों के कलरव और निसर्ग में व्याप्त सभी मधुर आवाजें आ जाती हैं।
आपकी चिट्ठियां : छंद और कविता पर |
सफर की पिछले पड़ाव कवि साथियों से क्षमा याचना सहित पर कई मित्रों की टिप्पणियां मिलीं। मैं उम्मीद कर रहा था कि ये पड़ाव बहस की शक्ल ले सकता है, मगर ऐसा हुआ नहीं। मैं मुक्तछंद के खिलाफ नहीं हूं । चिंता सिर्फ इस बात की है कि क्या अब हिन्दी में लोकोक्तियों, कहावतों और सूक्तियों के लिए गुंजाइश नहीं बची है ? बिना छंद का शास्त्र जाने जिस कबीर ने छंदों में समाज से संवाद कर लिया वहां आज के कवि के सामने ऐसी क्या मुश्किल आ गई है जो छंदमुक्ति की इकलौती राह उसे नज़र आ रही है कविताई के लिए ? जैसा vijay gaur लिखते हैं मैं उस बहस में ही नहीं हूं । यहां तो एक विधा के लुप्त होते जाने की चर्चा भर की गई थी कि क्या आनेवाली सदियां पिछली सदी तक गढी गई कहावतों पर चलेंगी ? आधुनिक कविता द्वारा रची गई कितनी सूक्तियां हैं जो याद रखी जा सकें। जब कुछ याद ही नहीं रखा जाना है तो ऐसी छंदमुक्ति का क्या करेंगे हम ? नाम नहीं लेना चाहूंगा, एक बडे कवि की काव्य रचना की हर पंक्ति में पूर्णविराम लगा कर उसे गद्य के रूप में अपने मित्रों को पढ़ा चुका हूं । ज्यादातर ने उसे अच्छा विचार कह कर नवाज़ा मगर किसी ने यह नहीं कहा कि उसे कविता होना चाहिए। कहना यही चाहता हूं कि लंबवत लिखने से कोई वाक्य रचना कविता कहलाएगी या लय होने से ? हर विधा के कुछ नैसर्गिक लक्षण होते हैं जिससे उसकी पहचान होती है। ग़ज़ल के सभी शेर चाहे एक पंक्ति में लिख दीजिए तो भी पढ़ने वाले उसे शायरी ही कहेंगे। बहरहाल सर्वश्री अनूप शुक्ल अफ़लातून अभय तिवारी रंजना [रंजू भाटिया] पंगेबाज Gyandutt Pandey vijay gaur Dr. Chandra Kumar Jain प्रभाकर पाण्डेय Shiv Kumar Mishra मीनाक्षी अभिषेक ओझा AnonymousLavanyam - Antarman श्रद्धा जैन परमजीत बाली Swati सतीश सक्सेना Mired Mirage दिनेशराय द्विवेदी और Udan Tashtari आप सब साथियों का शुक्रिया जो सफर के हम सफर हैं और लगातार बने हुए हैं। |
17 कमेंट्स:
बहुत ही नए तरीके प्रस्तुतिकरण
आप निश्चिंत रहें और बॉन्ड लिखवा लें कि हम इस सफर में बनें रहेंगे वरना तो दुनिया के सबसे बड़े मूर्ख बने रह जायेंगे अगर ज्ञानसरिता से किनारा कर लिया तो. :) आभार आपका कि आप हमें साथ रखे हैं.
लाइवराइटर में पिक्चर सलेक्ट कर Margins में Custom Margins के अंतर्गत दायें/बायें/ऊपर/नीचे पर्याप्त मार्जिन भरें। तब शब्द चित्र से कम सटे प्रतीत होंगे। और अगर आपने मर्जिन भर रखे हैं तो थोड़ा बढ़ा दें विशेषत: दायीं या बाईं ओर (चित्र के बायें या दायें अलाइन होने के अनुसार।
सँगीत शब्द की व्याख्या भी वाकई असाधारण रही -
दूसरी बातेँ भी , नया सीखला रहीँ हैँ
स्नेह,
-लावण्या
बिना व्याकरण ही सुसंस्कृत भाषा बोलना, कविता को समझना, उस की तरलता को महसूस करना। यह स्वाभाविक प्रक्रियाएं हैं। जब अंतर्मन इन गणितिय सूत्रों को बिना व्याख्या के भी समझना सीख जाता है तो वह नैसर्गिक गुण ही कहा जाता है। कवि में यह नैसर्गिक गुण होना आवश्यक है। लेकिन इस के बिना भी लोग कवि होने का प्रयत्न करते और अभ्यास से हो जाते हैं। अभ्यास ही है जो इस गुण को मांजता है।
मोटे तौर पर प्रकृति में उत्पन्न सुरीली ध्वनियों को संगीत कहा जा सकता है। इसमें जीव धारियों के कंठ से उत्पन्न ध्वनियों से लेकर पक्षियों के कलरव और निसर्ग में व्याप्त सभी मधुर आवाजें आ जाती हैं। ...
अजीत जी विश्लेषण अच्छा लगा। लेकिन ऊपर दी गयी परिभाषा में मानव निर्मित सैकड़ो प्रकार के वाद्य यंत्रों से निकलने वाली सुरीली और कर्णप्रिय ध्वनियों तथा बहुतेरे कानफोड़ू शोर शराबे वाला कथित संगीत छूट गया लगता है। ऐसा संगीत किसी प्राकृतिक श्रोत से कहाँ निकलता है?
कविता...कलरव....कलकल निनाद
गीत.....गीता.....गाथा.....संवाद...!
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सफ़र तो जिंदगी और समझ के
सारे मौसम
हमराहियों को सौगात की तरह
सौंप जाता है भाई...इस बार फिर बधाई.
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डा.चन्द्रकुमार जैन
समीर जी की तरह हम भी बोंड साइन करने को तैयार हैं :-)
एक संगीतमयी पोस्ट, गीता का आधार लिए
सिद्धार्थ भाई ,
आपने सही याद दिलाया। दरअसल यह पूरी पोस्ट पब्लिश करने से पहले उड़ गई। सेव भी नहीं हो पाई। दोबारा स्मृति के आधार पर लिखी। उसी वजह से चूक रह गई। शुक्रिया आपका ।
हमे भी हाजिरी डाल दे सरकार
आपकी पोस्टों से भी अधिक अच्छी इस पोस्ट की भूमिका लगी। आपसे विनम्र निवेदन है कि बीच-बीच में ऐसी भूमिकाएं लिखते रहें, इससे साहित्य और ब्लॉगजगत दोनों का भला होगा।
छंद के संबंध में आपके विचारों से सहमति है।
मुक्त छंद और छंदमुक्त में अंतर किया जाना चाहिये। मुक्त छंद में लय के रूप में छंद का बंधन रहता है। मुक्त छंद की कविता का कथ्य सबसे अधिक असरदार रहता है। लय की मौजूदगी के कारण यह कविता लंबे समय तक पाठक की स्मृति में भी रहती है। महाकवि निराला अथवा केदारनाथ अग्रवाल की मुक्त छंद की कविताएं बेहतरीन उदाहरण हैं।
छंदमुक्त कविता में छंद का बंधन बिल्कुल नहीं रहता और इसी कारण यह कभी-कभी कविता लगती ही नहीं।
लाजवाब लिखा है आपने, एक ऐसा विषय छेड़ा है, जिस पर दिग्गज भी लिखते कतराते हैं ! मेरे विचार में जिसे भी लिखने का नया शौक पैदा हो वह छन्दमुक्त कविता से बेझिझक शुरू कर सकता है, और "बुद्धिजीवी" वर्ग तालियाँ बजायेगा ही !मगर इस कविता लेखन में बहुत बड़े बड़े नाम शामिल है, आपने हिम्मत की इस अछूते विषय पर लिखने की ! आशा करता हूँ कि कुछ मशहूर नाम आगे आकर इस विषय पर नयी दिशा व् मान्यताएं देने कि कृपा करेंगे ! हिन्दी आपका आभार मानेगी अजित जी !
गीत- संगीत की जानकारी बहुत रोचक और ज्ञानवर्धक थी.शुक्रिया,दादा.
यहाँ आओ और कुछ नया न पढने को सीखने को न मिले ऐसा हो ही नही सकता ..कई चीजे हम जानते हैं पर वक्त के साथ साथ भूलते जाते हैं ..यह लेख बहुत ही सर्तःक लगा इस दिशा में ...शुक्रिया अजित जी
Bahut dino bad aapke blog par aana hua aur itane sureele vishay ki jankari mili. Badhaee !
अजितजी, इसमें कोई शक नहीं कि प्रकृति हो या जीवन ... नियम से ही चल कर गति पाते हैं...लेकिन बदलते समय में लेखन के नए नए रूप लुभाते हैं तो पुराने का मोह भी नहीं छूटता..
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