बोलचाल की हिन्दी में सर्वाधिक प्रयोग किए जाने वाले शब्दों का रिश्ता अक्सर संस्कृत या इसके वैदिक रूप से निकल आता है। इसके अलावा अरबी, फारसी और अंग्रेजी के ढेरों लफ्ज हैं जो हिन्दुस्तानी जबान पर चढे़ हुए हैं। डॉ भगवत शरण उपाध्याय जैसे विद्वानों का मानना है कि अन्य सभ्यताओं से भी भारतीय संस्कृति ने बहुत कुछ लिया है । और इसी कड़ी में कुछ शब्द ऐसे भी हैं जो न तो संस्कृत के हैं और न ही इंडो -यूरोपीय भाषा परिवार के बल्कि ये सुमेरी( मेसोपोटेमियाई), बाबुली( बेबिलोनियन) और इब्रानी(हिब्रू) आधार से उठ कर किसी न किसी वजह से संस्कृत और इसके जरिये भारतीय भाषाओं में समा गए।
हिन्दी में प्रचलित
बल, बलमा , बलराम, बलदेव, बैल, बालक और
बालिका जैसे कई शब्दो के मूल में वैदिक शब्दावली या संस्कृत नहीं बल्कि हिब्रू है । सुमेरी यानी मेसोपोटेमियाई भाषा में यह शब्द बेल और हिब्रू में
बाल Baal के रूप में मिलता है और इसी रूप में हिन्दी, उर्दू व फारसी में भी प्रचलित है।
डॉ भगवत शरण उपाध्याय अपनी पुस्तक भारतीय संस्कृति के स्रोत पुस्तक में लिखते हैं कि वेदों में इस शब्द का उल्लेख नहीं है जबकि अपने सुमेरी मूल से उठकर बाद में
बेल या
बाल शब्द संस्कृत में समा गया। सुमेरी संस्कृति में इसका मतलब होता है -सर्वोच्च, शीर्षस्थ या सबसे ऊपरवाला। हिब्रू में इसका मतलब होता है परम शक्तिमान, देवता अथवा स्वामी । गौरतलब है कि लेबनान की बेक्का घाटी में बाल देवता का मंदिर है। जानकारों के मुताबिक सुमेरियंस के बाल देवता का रूपांतरण ही बाद में रोमन जुपिटर के रूप में हुआ ।
[ऊपर चित्र में लेबनान के बालबेक स्थित मंदिर के अवशेष ]
हिब्रू के
बाल (baal) में निहित सर्वोच्च या सर्वशक्तिमान जैसे भावों का अर्थविस्तार ग़ज़ब का रहा। संस्कृत में इसी बाल या बेल के प्रभाव से
बलम् शब्द प्रचलित हुआ जिसका अभिप्राय शक्ति , सामर्थ्य , ताकत, सेना, फौज आदि है। बल के पर्याय बैल का
बलीवर्दः नामकरण भी इसी धातु से हुआ है। एक सुमेरी देवता का नाम
बेलुलू है। गौर करें कि संस्कृत में भी इन्द्र का एक विशेषण
बललः है । ये सभी समानताएं जाहिर करती हैं कि वृहत्तर भारत दरअसल विभिन्न संस्कृतियों के मेल से ही बना है। अनिष्टकारी शक्ति के , आसमानी मुसीबत, विपत्ति आदि के लिए हिन्दी में
बला शब्द खूब प्रचलित है। यह अरबी फारसी के जरिये हिन्दी में आया । अरबी में इसका प्रवेश हिब्रू के
बाल की ही देन है अर्थात
बला में
बल की महिमा तो नज़र आ रही है। इससे कुछ हटकर संस्कृत में
बला शब्द मंत्रशक्ति के रूप में विद्यमान है।
महाशक्ति , सर्वशक्तिमान को प्रसन्न करने के लिए दी जानेवाली आहूतियों में जब जीवित प्राणी भी स्वीकार्य हो गए तो इन्हें
बलि कहा जाने लगा। नामों के साथ प्रत्यय के रूप में
बल शब्द लगाने का चलन सुमेरी संस्कृति में भी रहा है । हेन्नीबाल ,हस्रूबाल जैसे प्राचीन यौद्धाओं के नाम यही साबित करते हैं। यही परम्परा भारत में भी इसी के साथ शुरू हो गई और बलदेव, बलराम, बीरबल, बलवीर ,बलभद्र जैसे नाम चल पड़े।
बेल या बाल के सर्वोच्च या ऊपरवाला जैसे शाब्दिक अर्थ अन्य भाषाओं में प्रमुख हो गए। नतीजतन
बाल ( सिर के ऊपर), अनाज के पौधे का ऊपरी हिस्सा
(बाली) जैसे शब्द भारतीय-ईरानी परिवार की भाषाओं में भी आ गए। यही नहीं
बलम, बालम या बलमा ( सर्वाधिक प्रिय, सवोत्तम पात्र, पति)
जैसे थोड़े भिन्न अर्थ वाले शब्द भी बने।
भगवत् शरण उपाध्याय के मुताबिक
बालक, बालिका , जैसे शब्दों का मूलार्थ किसी ज़माने में घोड़े की पूछ था जो उठाए जाने पर घोड़े के शरीर का सबसे ऊंचा हिस्सा बनती है। बाल के सर्वोच्च या शीर्षस्थ अर्थ का संस्कृत में और भी विस्तार हुआ और इससे बल यानी शक्ति और बाद में
बैल जैसे शब्द भी बन गए।
गौर करें की दूध के ऊपर जो क्रीम जमती है उसे हिन्दी में
मलाई कहते हैं। मलाई को उर्दू, फारसी और अरबी में
बालाई कहते हैं क्योंकि इसमें भी ऊपरवाला भाव ही प्रमुख है। जो दूध के ऊपर हो वही बालाई।
ब की जगह
म ने ले ली। गौरतलब हैं कि ये दोनों ही अक्षर एक ही वर्णक्रम में आते हैं और अक्सर इनमें अदल-बदल होती है। पुराने ज़माने में मकान की ऊपरी मंजिल को
बालाख़ाना कहते थे । बाला यानी ऊपर और खाना यानी स्थान। गौर करें कि अग्रेजी में छज्जा , दुछत्ती को
बालकनी कहते हैं । इसमें भी ऊंचाई का ही भाव है। रूस की
बोल्शेविक क्रांति दुनिया में प्रसिद्ध है। बोल्शेविक का शाब्दिक अर्थ हुआ बहुसंख्यक। मगर इसमें भी कुछ लोगों को बाल यानी
सर्वशक्तिमान की महिमा नजर आ रही है।
14 कमेंट्स:
अद्भुत… शब्द कहाँ कहाँ हो आते हैं और कहाँ कहाँ पहुँच जाते हैं।
शुभम।
वाह प्रभु! आप भी एकदम कमाल के ज्ञाता हो.
वाह प्रभु! आप भी एकदम कमाल के ज्ञाता हो.
पुनः आभार. एक तो इस पोस्ट के लिए और दूसरा साईड पैनल मैने देख लिया है. :)
शुक्रिया जी !
"बलरामजी" हिब्रू भाषा से आये ?
ये तो नई बात बताई आपने अजित भाई --
-लावण्या
दरअसल भाषा वही चिरायु रहती है जो समयानुसार अपने कोष में नए शब्द जोड़ती चली जाए, अंग्रेजी तभी इतनी समृद्ध है की उसे अन्य भाषाओँ से शब्द उधार लेने से परहेज नही है, हिन्दी को भी यही करना चाहिए
प्यारा भाई का चारा. किस-किसके रोज़ का गुजारा.
आपका शब्द भंडार लाजवाब है।
उपयोगी जानकारी। शब्द की उपासना से बड़ा कर्म और क्या हो सकता है। शुभकामनाएं आपके इस प्रोजेक्ट के लिए।
बलि आहुति है तो बली या फ़िर महाबली भी आहुति की तरह ही है .उम्मीद तो इनसे यहीं रहती है कि किसी ख़ास मकसद के लिए "बली" लड़े चाहे लड़ते-लड़ते "बलि" हो जाए . इस तरह धीरे धीरे या फ़िर अचानक बली को
ही "बलि" होना होता है .
बल्ली ,बल्ला , बल पड़ जाना ,बलैया, चर्चा से रह गया .
अजित भाई शब्दों का सफर में आदिम ग्रन्थ वेद से आप शब्द क्यों नही लेते ? पता तो चलता कि वेद के कितने शब्द ,कहाँ तक सफर किया है .आपको रूचि है इसलिए कह दिया मैंने बस .
SANJAY SHARMA
http://maaydivyadrishti.blogspot.com
आज की जानकारी तो कमाल की रही. रजा बलि और बाली भी तो कहीं इधर से ही नहीं आए.
हर बार एक नई जानकारी...शब्दों की शक्ति शब्दों के सफ़र में ही समझ पा रहे हैं..
बलम की एक व्युत्पत्ति वल्ल्भ से भी बताते हैं..
अजित जी,
शब्दों का पीछा करने के लिए बधाई। एक गुजारिश है कि कभी शेयर बाजार से जुड़े शब्दों की पड़ताल की जाए। सेन्सेक्स, बुल, बियर, डिबेंचर आदि के बारे में पता नही् क्यों मुझे गहरा संदेह है कि ये सब जुआघर या अन्य असामाजिक समझी जाने वाली जगहों या संस्थाओं से आए होंगे।
खैर यह इंटीयूशन के करीब की झक है अगर खोज आगे चले तो कुछ दिलचस्प जरूर निकलेगा।
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