Friday, July 18, 2008

कहनी है कुछ कथा-कहानी

क्सर कहा जाता है कि कथा-कहानियों के दिन गए मगर ये सच नहीं है। ये अलग बात है कि दादी-नानी से अब ये सुनने को नहीं मिलती क्योंकि वे खुद अब टीवी सीरियलों की सास-बहू मार्का कहानियों में गुम हो गई हैं। किस्से -कहानियां तब से इन्सान के इर्दगिर्द हैं जब से उसने बोलना सीखा है। कथा या कहानी दरअसल मनोरंजन के सबसे आदिम उपकरणों में हैं और उनकी उपयोगिता आज भी बनी हुई है।

 

था या कहानी एक ही मूल mosaic9403861से उपजे दो अलग अलग शब्द हैं। मगर इनका भाव एक ही है काल्पनिक वृत्तांत, घटना , उल्लेख, चर्चा करना। कथा शब्द बना है संस्कृत धातु कथ् से । इस धातु से हिन्दी में कई शब्दों की रचना हुई है जिनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल बोलचाल में खूब होता है। कथ् का अर्थ है बताना , समाचार देना, वार्तालाप करना, वर्णन करना आदि। हिन्दी में सर्वाधिक व्यवहृत कहा या कहना जैसे शब्द इसी कथ् धातु की देन हैं। गौर करें कि देवनागरी का वर्ण त+ह से मिलकर बना है। कथ् से का लोप होने से कह् बचा रह गया जिससे कह, कहा, कहना जैसी क्रियाएं बनीं। कथ् से बना कथनम् जिससे हिन्दी में कथन शब्द बना। उक्ति , वचन, सूक्ति, आदेश आदि के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है। कथनी और करनी जैसे मुहावरे से यह स्पष्ट है।  इसका देशज रूप कहन भी इन्हीं अर्थो में प्रयोग किया जाता है। इसी तरह कहाना, कहलाना, कहलवाना जैसे रूप भी बने हैं जो बोलचाल में प्रचलित हैं। यूं कथनम् का अर्थ कथा कहना भी है। यहां भी त+ह अर्थात मे से का लोप करें तो कहानी की उत्पत्ति समझ में आ जाएगी।

गौरतलब है कि कथ् , कथा , कहन , कहानी, कथन आदि शब्द भी मूल रूप से वर्ण से ही जुड़ रहे हैं जिसमें प्रकृति की आदिम ध्वनियों अर्थात झरनों की कलकल, कौवे की कांवकांव और कोयल की कुहूक प्रकट होती है। इसी से बने कव् में स्तुति का भाव समाया और कवि, कविता, काव्य जैसे शब्द बने। इसी से कथ् भी बना जिसने कविता के गद्य रूप कथा का सृजन किया। कहनेवाले के लिए कथक रूप बना अर्थात जो कथा कहे। इसने ही नृत्य-संगीत की दो विशिष्ट शैलियों कत्थक और कथकलि के नामकरण में भूमिका निभाई। गौरतलब है कि क्रमशः उत्तर और दक्षिण की इन नृत्यशैलियों में आख्यान अथवा प्रसंग ही प्रमुखangrakhas होते हैं इसीलिए इनके नामकरण में कथा प्रमुख है। इससे बने अन्य शब्दों में कथोपकथन, कथाकार , कथित, कथनी, कहासुनी, कथानक, कथावस्तु, कथावाचन और कथावाचक आदि अनेक शब्द बने हैं।

स संदर्भ में भजन, नाटक और एकांकियों के जरिये किसी ज़माने में देशभर में धूम मचा देने वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का जिक्र किए बिना बात अधूरी रह जाएगी। बरेली में करीब एक सदी से भी ज्यादा पहले जन्में कथावाचक जी ने पारसी और नौटंकी शैली के रंगमंच में खूब अपना हुनर दिखाया । इनके पिता भी कथावाचक थे। बाद में राधेश्यामजी ने अपनी खुद की रामकथा शैली विकसित की। उन्होने राधेश्याम रामायण भी लिखी। उनकी रामकथा के निरालेपन की वजह वह छंद था जिसे लोगों ने राधेश्याम छंद नाम ही दे दिया था।

            टिप्पणी - प्रसाद के लिए आपका शुक्रिया

फर की पिछली कड़ियों – कौवे और कोयल की रिश्तेदारी, रवीश की ब्लागवार्ता में शब्दों का पुरोहित, जड़ से बैर , पत्तों से यारी, योग के 'अर्थ' में मगन, थप्पड़ जड़ने की जटिलता और और यूं जन्मी कविता... पर आप सबने टिप्पणियों का जो प्रसाद भेजा उसे पाकर धन्य हुआ हूं। शुक्रिया आप सबका।

Raviratlami यूनुस रंजना [रंजू भाटिया] अरिमर्दन कुमार त्रिपाठी राज भाटिय़ा उमेश कुमार अमित पुरोहित शैलेश भारतवासी समरेंद्र sushant jha Mired Mirage sidheshwer सतीश सक्सेना  Manish Kumar siddharth vipinkizindagi डा० अमर कुमार Smart Indian... E-Guru Maya Kalp Kartik Ashok Pande Lavanyam - Antarman श्रद्धा जैन कुश एक खूबसूरत ख्याल Nilotpal PD बलबिन्दर anitakumar mohan महेन नीरज गोस्वामी Arun  सजीव सारथी अभिषेक ओझा मीनाक्षी  Pramod Singh   हर्षवर्धन Sanjeet Tripathi  Dr. Chandra Kumar Jain neelima sukhija arora  परमजीत बाली Udan Tashtari दिनेशराय द्विवेदी  Ghost Buster अरुण DR.ANURAG अभिषेक ओझा  Pratyaksha arvind mishra  सागर नाहर vinitutpal  प्रभाकर पाण्डेय neelima अनूप शुक्ल  pallavi trivedi मीत विष्‍णु बैरागी सतीश पंचम  और शहरोज़ । आप सबको मेरी शुभकामनाएं । सफर में बने रहें।

20 कमेंट्स:

दिनेशराय द्विवेदी said...

इस नाचीज से कुछ अधिक अनुराग है, दो दो बार विराजमान है आप के आभार-कथन में।

अनूप शुक्ल said...

कथा कहानी के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी दी।

Udan Tashtari said...

आभार, बहुत सही जानकारी दी.

रंजू भाटिया said...

कहाँ से तलाश कर लाते हैं आप यह अनमोल जानकरी ..रोचक लगा इसको पढ़ना ...

Dr. Chandra Kumar Jain said...

'क' की महिमा का क्या कहना !
कथा....कविता....से लेकर कथक तक.
कहना न होगा कि कहा सुनी से कुछ
वक्त निकालकर यहाँ जो कहा गया है
उसे यदि सुन लें तो ये 'क' ही कहानी
बन के जीने की राह आसान कर दे !
आप कहते रहिये...हम सुनते रहेंगे....
=============================
शब्दों के जीवन में कितना जीवन है !
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन

कुश said...

कुछ दिनो के अवकाश पर गया था सर.. फिर आ गया हू.. आते ही क्लासरूम में मज़ा आ गया..

Sajeev said...

सही सफर शब्द का, यही malayalam में aakar "kadaa" बन गया, mool sanskrit जो thahra

Arun Arora said...

माफ़ कीजीयेगा मै पिछले दो दिनो मे बहुत ज्यादा ही वयस्त रहा अत: आपका कार्य जो आपने अब स्वंय कर लिया है नही कर पाया, चलिये अब आपसे ही सीख लेगे जी :)

PD said...

बहुत खूब सर जी..
कथा का संसार तो सबसे निराला है..
वैसे भी कहानी कभी रूकती नहीं है, क्योंकि जिंदगी चलती रहती है.. और जिंदगी से बढकर और कोई कहानी नहीं होती है.. :)

Anil Pusadkar said...

kya baat hai,badhai

Abhishek Ojha said...

अजितजी इतनी अच्छी जानकारी देंगे तो सफर कैसे छोड़ सकते हैं. और आप तो साथ में धन्यवाद भी दिए दे रहे हैं... गुरु दक्षिणा लेने की जगह प्रसाद दिया जा रहा है यहाँ तो हर कथा के बाद !

डा. अमर कुमार said...

This post is a collector's item. Nice work, sir ji !

Arvind Mishra said...

जानकारी परक आलेख ,धन्यवाद !

लावण्यम्` ~ अन्तर्मन्` said...

"क" वर्णमाला का प्रथम स्वर इसीलिये चुना गया जिससे सारे शब्द और व्यँजन आगे बढे -
बहुत रोचक जानकारी बाँटने का शुक्रिया अजित भाई !
- लावण्या

Anonymous said...

जानकारी से भरा रोचक लेख...सच है कि कथा कहानियों की उपयोगिता आज भी है..बचपन की यादों को कहानी के रूप मे बच्चे आज भी चाव से सुनते हैं..

Sanjay Karere said...

आज गुरु पूर्णिमा है सो सोचा की आपको नमन कर आऊं. यहाँ बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है. पिछले कई दिनों से टिप्पणी नही कर पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ लेकिन पढने तो निरंतर आता रहता हूँ. कथा कहानी पर रोचक जानकारी का शुक्रिया

Unknown said...

भले ही आज की दादी-नानी सीरियल देखने में मशगूल रह्ती हो पर उससे कथा-कहानी की महत्ता में कोई फरक नही पडता.उसका अपना अलग ही मज़ा है.

राज भाटिय़ा said...

पता नही भारत मे कथा कहानीया अब चलती हे या नही, लेकिन जब भी मेरी मां ने मेरे बच्चो को कोई भी कथा कहानी सुनाई बच्चे कहते हे दादी मां कोई नई सुनाओ यह तो मेने सुन रखी हे,यानि हमारे बुजुर्गो ने जो कहानियां ओर संस्कार हमे दिये वो सब तो हम अपने बच्चो मे डाल रहे हे, ओर दे रहे हे

राज भाटिय़ा said...

अरे आप का धन्यवाद कहना तो भुल ही गया इस सुन्दर लेख के लिये , धन्यवाद

श्रद्धा जैन said...

jaankari ke liye dhanyvaad
meri tush si upsthiti ko nazar main rakhne ke liye bhi dhaynvaad

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