अक्सर कहा जाता है कि कथा-कहानियों के दिन गए मगर ये सच नहीं है। ये अलग बात है कि दादी-नानी से अब ये सुनने को नहीं मिलती क्योंकि वे खुद अब टीवी सीरियलों की सास-बहू मार्का कहानियों में गुम हो गई हैं। किस्से -कहानियां तब से इन्सान के इर्दगिर्द हैं जब से उसने बोलना सीखा है। कथा या कहानी दरअसल मनोरंजन के सबसे आदिम उपकरणों में हैं और उनकी उपयोगिता आज भी बनी हुई है। |
कथा या कहानी एक ही मूल से उपजे दो अलग अलग शब्द हैं। मगर इनका भाव एक ही है काल्पनिक वृत्तांत, घटना , उल्लेख, चर्चा करना। कथा शब्द बना है संस्कृत धातु कथ् से । इस धातु से हिन्दी में कई शब्दों की रचना हुई है जिनमें से ज्यादातर का इस्तेमाल बोलचाल में खूब होता है। कथ् का अर्थ है बताना , समाचार देना, वार्तालाप करना, वर्णन करना आदि। हिन्दी में सर्वाधिक व्यवहृत कहा या कहना जैसे शब्द इसी कथ् धातु की देन हैं। गौर करें कि देवनागरी का थ वर्ण त+ह से मिलकर बना है। कथ् से त का लोप होने से कह् बचा रह गया जिससे कह, कहा, कहना जैसी क्रियाएं बनीं। कथ् से बना कथनम् जिससे हिन्दी में कथन शब्द बना। उक्ति , वचन, सूक्ति, आदेश आदि के अर्थ में इस शब्द का प्रयोग होता है। कथनी और करनी जैसे मुहावरे से यह स्पष्ट है। इसका देशज रूप कहन भी इन्हीं अर्थो में प्रयोग किया जाता है। इसी तरह कहाना, कहलाना, कहलवाना जैसे रूप भी बने हैं जो बोलचाल में प्रचलित हैं। यूं कथनम् का अर्थ कथा कहना भी है। यहां भी त+ह अर्थात थ मे से त का लोप करें तो कहानी की उत्पत्ति समझ में आ जाएगी।
गौरतलब है कि कथ् , कथा , कहन , कहानी, कथन आदि शब्द भी मूल रूप से क वर्ण से ही जुड़ रहे हैं जिसमें प्रकृति की आदिम ध्वनियों अर्थात झरनों की कलकल, कौवे की कांवकांव और कोयल की कुहूक प्रकट होती है। इसी क से बने कव् में स्तुति का भाव समाया और कवि, कविता, काव्य जैसे शब्द बने। इसी क से कथ् भी बना जिसने कविता के गद्य रूप कथा का सृजन किया। कहनेवाले के लिए कथक रूप बना अर्थात जो कथा कहे। इसने ही नृत्य-संगीत की दो विशिष्ट शैलियों कत्थक और कथकलि के नामकरण में भूमिका निभाई। गौरतलब है कि क्रमशः उत्तर और दक्षिण की इन नृत्यशैलियों में आख्यान अथवा प्रसंग ही प्रमुख होते हैं इसीलिए इनके नामकरण में कथा प्रमुख है। इससे बने अन्य शब्दों में कथोपकथन, कथाकार , कथित, कथनी, कहासुनी, कथानक, कथावस्तु, कथावाचन और कथावाचक आदि अनेक शब्द बने हैं।
इस संदर्भ में भजन, नाटक और एकांकियों के जरिये किसी ज़माने में देशभर में धूम मचा देने वाले पंडित राधेश्याम कथावाचक का जिक्र किए बिना बात अधूरी रह जाएगी। बरेली में करीब एक सदी से भी ज्यादा पहले जन्में कथावाचक जी ने पारसी और नौटंकी शैली के रंगमंच में खूब अपना हुनर दिखाया । इनके पिता भी कथावाचक थे। बाद में राधेश्यामजी ने अपनी खुद की रामकथा शैली विकसित की। उन्होने राधेश्याम रामायण भी लिखी। उनकी रामकथा के निरालेपन की वजह वह छंद था जिसे लोगों ने राधेश्याम छंद नाम ही दे दिया था।
20 कमेंट्स:
इस नाचीज से कुछ अधिक अनुराग है, दो दो बार विराजमान है आप के आभार-कथन में।
कथा कहानी के बारे में बड़ी अच्छी जानकारी दी।
आभार, बहुत सही जानकारी दी.
कहाँ से तलाश कर लाते हैं आप यह अनमोल जानकरी ..रोचक लगा इसको पढ़ना ...
'क' की महिमा का क्या कहना !
कथा....कविता....से लेकर कथक तक.
कहना न होगा कि कहा सुनी से कुछ
वक्त निकालकर यहाँ जो कहा गया है
उसे यदि सुन लें तो ये 'क' ही कहानी
बन के जीने की राह आसान कर दे !
आप कहते रहिये...हम सुनते रहेंगे....
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शब्दों के जीवन में कितना जीवन है !
आभार
डा.चन्द्रकुमार जैन
कुछ दिनो के अवकाश पर गया था सर.. फिर आ गया हू.. आते ही क्लासरूम में मज़ा आ गया..
सही सफर शब्द का, यही malayalam में aakar "kadaa" बन गया, mool sanskrit जो thahra
माफ़ कीजीयेगा मै पिछले दो दिनो मे बहुत ज्यादा ही वयस्त रहा अत: आपका कार्य जो आपने अब स्वंय कर लिया है नही कर पाया, चलिये अब आपसे ही सीख लेगे जी :)
बहुत खूब सर जी..
कथा का संसार तो सबसे निराला है..
वैसे भी कहानी कभी रूकती नहीं है, क्योंकि जिंदगी चलती रहती है.. और जिंदगी से बढकर और कोई कहानी नहीं होती है.. :)
kya baat hai,badhai
अजितजी इतनी अच्छी जानकारी देंगे तो सफर कैसे छोड़ सकते हैं. और आप तो साथ में धन्यवाद भी दिए दे रहे हैं... गुरु दक्षिणा लेने की जगह प्रसाद दिया जा रहा है यहाँ तो हर कथा के बाद !
This post is a collector's item. Nice work, sir ji !
जानकारी परक आलेख ,धन्यवाद !
"क" वर्णमाला का प्रथम स्वर इसीलिये चुना गया जिससे सारे शब्द और व्यँजन आगे बढे -
बहुत रोचक जानकारी बाँटने का शुक्रिया अजित भाई !
- लावण्या
जानकारी से भरा रोचक लेख...सच है कि कथा कहानियों की उपयोगिता आज भी है..बचपन की यादों को कहानी के रूप मे बच्चे आज भी चाव से सुनते हैं..
आज गुरु पूर्णिमा है सो सोचा की आपको नमन कर आऊं. यहाँ बहुत कुछ नया सीखने को मिलता है. पिछले कई दिनों से टिप्पणी नही कर पाने के लिए क्षमा चाहता हूँ लेकिन पढने तो निरंतर आता रहता हूँ. कथा कहानी पर रोचक जानकारी का शुक्रिया
भले ही आज की दादी-नानी सीरियल देखने में मशगूल रह्ती हो पर उससे कथा-कहानी की महत्ता में कोई फरक नही पडता.उसका अपना अलग ही मज़ा है.
पता नही भारत मे कथा कहानीया अब चलती हे या नही, लेकिन जब भी मेरी मां ने मेरे बच्चो को कोई भी कथा कहानी सुनाई बच्चे कहते हे दादी मां कोई नई सुनाओ यह तो मेने सुन रखी हे,यानि हमारे बुजुर्गो ने जो कहानियां ओर संस्कार हमे दिये वो सब तो हम अपने बच्चो मे डाल रहे हे, ओर दे रहे हे
अरे आप का धन्यवाद कहना तो भुल ही गया इस सुन्दर लेख के लिये , धन्यवाद
jaankari ke liye dhanyvaad
meri tush si upsthiti ko nazar main rakhne ke liye bhi dhaynvaad
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