नमस्कार !
सोमवार को जब ऑनलाइन हुई तो स्वयं को शब्दों का सफर और कबाड़खाना पर पाया , देखकर आश्चर्य हुआ और आनंद भी।
आज के युग में शास्त्रीय संगीत से परहेज करने वाले तो बहुत मिल जायेंगे, उससे प्रेम करने वाले बिरले ही नज़र आएंगे। मैं खुशनसीब हूं कि मेरे ही घर में मुझे मेरे संगीत को समझने वाले गुनिजन मिले । कलाकार के लिए सबसे बड़ा धन होता हैं,श्रोताओ का प्रेम। सबसे बड़ा सम्मान है श्रोताओं की वाह , सबसे बड़ी उपलब्धि होती हैं प्रशंसा के के दो बोल । मेरे वीणा वादन को आप पाठको में से किसीने अद्भुत कहा किसी ने अमित पुण्य का संचय। सच ! आपके ऐसा कहने से मुझे एक नया बल, एक नया उत्साह मिला हैं कि मैं और अधिक साधना करूं ,रियाज़ करू।
सम्मान्य Udan Tashtariji, रंजना [रंजू भाटिया]जी अनूप शुक्लजी, Sanjeet Tripathiji आप सुनते हैं , यही बहुत बड़ी बात हैं। शास्त्रीय संगीत की पूरी समझ होना जरुरी नही हैं। आप सुरों का आनंद लेते हैं और हमें सुर साधने की धुन में डुबोते हैं यही काफी है। आपका धन्यवाद। Asha Joglekarji , दिनेशराय द्विवेदीजी, Rajesh Roshanji, बालकिशनजी,Parulji,लावण्याजी ,प्रभाकर पाण्डेयजी ,मीनाक्षीजी,महेन,सिद्धेश्वरजी , स्मार्ट इंडियन , अभिषेक ओझाजी और Mohit Ruikarji को मैं धन्यवाद ज्ञापित करती हूं कि उन्होंने मेरी वीणा को सुना और सराहा। सच कहू तो धूम -धडाका संगीत के इस युग मैं अगर मैं विचित्र वीणा जैसे वाद्य का चयन कर पाई और उसको अपना जीवन ध्येय बना पाई तो आप जैसे श्रोताओ के कारण ।
सम्मान्य डॉ चंद्रकुमार जैन ने मेरे वीणा वादन के लिए जो सुंदर पंक्तिया लिखी हैं,इन पंक्तियों को मैं हमेशा याद रखूंगी। इन पंक्तियों ने मेरी बहुत हौसलाअफजाई की है। आपका बहुत बहुत आभार । पुनः आप सब श्रोताओ को दिल से धन्यवाद देती हूं की उन्होंने विचित्र वीणा वादन सुना, सराहा। मेरी पोस्ट पढ़ी और उनके पर अपनी टिप्पणियां दी। दादा ( अजित जी ) ने बहुत अपनत्व से मुझे अपने ब्लॉग पर स्थान दिया। उनका ब्लॉग मैं पढ़ती रहती हूं।
सधन्यवाद
वीणासाधिका,
राधिका
हमारी शुभकामनायें हमेशा आपके साथ है।
ReplyDeleteआपकी लेखनी एवं संगीत सदा हमारे दिलों के तार को झंकारता रहे।
अभी तक राधिका जी की वीणा के स्वर गूँज रहे हैं। दूसरी बंदिश कब सुनवा रहे हैं?
ReplyDeleteअजित जी, यहाँ पर वीणा वाली पोस्ट का लिंक भी सरका देते तो ब्लोगजगत में हमारे जैसे यदा कदा ही विचरणे वाली प्राणी को भी ये स्वर सुनने को मिल जाते।
ReplyDeleteवैसे मै नही जानता की कौन सा राग कब और कैसे बजता है लेकिन इन कबाडियो के यहा आने जाने से मै भी कबाडी होता जा रहा हू और वाकई एक रस जो मुझ जैसे संगीत के नासमझ को पुराने गानो से मिलता था यहा भी आने लगा है , वाकई बहुत अच्छी लगी थी आपकी वीणा , आगे भी इंतजार रहेगा :)
ReplyDeleteवीणा साधिका राधिका जी,
ReplyDeleteआपकी सुर-सधी आराधना से
सर्व-मंगल का नित्य अनुष्ठान हो
यही अशेष शुभ कामना है अंतर्मन से.
अजित जी के हम विशेष आभारी हैं.
वही तो हमें अपने सफ़र में साथ लेकर
शब्द-सुर-संस्मरण की नई-नई मंज़िलों तक
पहुँचा देते हैं... सफ़र से परिचय के बाद कोई ऐसा
दिन याद नहीं जब इस शब्द-यात्रा से हटकर दो पाँव
चलना मुमकिन हुआ हो.....आपने उन्हें ( दादा को )
नित्य पढ़ने का उचित संकल्प किया है....बधाई.
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शुभ भावनाओं सहित
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
आभार व शुभकामनाएं।
ReplyDeleteआपकी वीणा सुन ने का बेसब्री से इंतज़ार है राधिका जी--
ReplyDeleteबहुत बहुत शुभकामनये राधिका जी
ReplyDeleteआभार आपका ! और हम तो फैन हो गए हैं आपके.
ReplyDeletebahut hi achha laga padgkar...aabhaar sweekaren.....ajitji ne to bahut hi prabhavit kar diya
ReplyDeleteaap bajate rahiye humen suron ka anand dete rahiye.
ReplyDeleteआपके सँगीत साधना के सफरको
ReplyDeleteईश्वर उतरोत्तर सफलता दे
यही सस्नेह आशिष है
और लिखती रहीये,
वीणा बजाती रहीये :)
-लावण्या
एक अनमोल हीरा चुनकर लाए हैं आप, इसका आभार। कुटुम्ब का सदस्य ऐसा मिला, इसकी बधाई।
ReplyDeleteमधुर और कर्णप्रिय संगीत सुनने को मिला यही बहुत अच्छा है। चाहे इसके शास्त्र को न भी समझें इससे हमारा आनन्द कम नहीं हुआ।