खुमार शब्द मूलतः अरबी भाषा का शब्द है और हिन्दी में उर्दू के जरिये दाखिल हुआ है। फारसी में भी इसका इस्तेमाल होता है। खुमार की व्युत्पत्ति दिलचस्प है। इसकी जन्मपत्री में नक़ाब, आवरण, मदिरा, सिरदर्द जैसे अनेक भाव समाए हैं। अरबी भाषा में एक शब्द है खम्र जिसका अर्थ है आवरण, कवर या ढका हुआ होना। इसी से बना है ख़िमार यानी ओढ़नी या दुपट्टा। अरबी समाज में आमतौर पर लंबे और समूचे शरीर को ढकने वाले परिधान पहनने का चलन रहा है। जैसे बुर्का, जलाबिया , एहराम आदि। नकाब भी एक आवरण है जो समूचे जिस्म को तो नहीं बल्कि चेहरे को ढकता है। दुपट्टे या स्कार्फ की तरह का एक कपड़ा होता है जिसे ख़िमार कहते हैं जो आंख और नाक को छोड़ कर समूचे चेहरे और वक्ष को ढक कर रखता है। खिमार भी खम्र से ही बना है।
...नशे के बाद मनुष्य को खुद की क्षमताओं में वृद्धि अनुभव होती है...
अनाज अथवा फलों से मदिरा के निर्माण की अवस्था को किण्वन या फर्मेंटेशन कहते हैं। बोलचाल की हिन्दी में कहें तो ख़मीर उठने की प्रक्रिया से ही शराब का निर्माण होता है। इसके लिए फल या अनाज में विभिन्न ओषधियां डाली जाती हैं और सड़न की प्रक्रिया के बीच खमीर उठना शुरू होता है। खमीरी शब्द का अर्थ होता है खमीर से बनी या खमीर संबंधी। अरबी में खमीर का अर्थ ही मादक पदार्थ होता है। मोटे तौर पर इसमें शराब आती है। इसके लिए खम्रः , ख़ुमूर या खम्रा जैसे शब्द भी हैं।
सवाल उठता है कि जब खम्र शब्द के मायने आवरण अथवा ढका होना है तो इसमें नशा का संदर्भ कहां से जुड़ गया ? दरअसल ढकने वाला भाव ही यहां प्रमुखता से उभर रहा है बस, व्याख्या थोड़ी दार्शनिक है। जिस तरह से ख़िमार चेहरे को ढक कर रखता है उसी तरह से नशा , प्रमाद बुद्धि को ढक लेता है जिसे दिमाग पर पर्दा पड़ना कहते हैं। जाहिर है नशा भी एक आवरण है और जब यह बुद्धि पर छा जाता है तो विवेक काम करना बंद कर देता है। सही गलत का निर्णय लेने की क्षमता भी जाती रहती है। यही है खमीर और खुमार। खुमार नशे के बाद वाली यानी उतार वाली अवस्था तो है मगर चढ़ते नशे के लिए भी खुमार शब्द का प्रयोग होता है। मदमस्त , नशे में चूर व्यक्ति को उर्दू में मख्मूर कहते हैं। यह भी खम्र से ही बना है। शायरों का यह उपनाम भी होता है। कर्नल रंजीत के नाम से उपन्यास लिखनेवाले मशहूर शायर मख्मूर जलंधरी ऐसा ही नाम हैं। मख़मूर सईदी भी इसी कड़ी में आते हैं।
![]() | ![]() | ![]() | खमीरः में एक और भाव है वृद्धि का...अत्यधिक नशा होने पर एक की जगह दो वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं और एक ही बात बार बार कही जाती है | ![]() |
अरबी का एक शब्द है खमीरमायः अर्थात किसी वस्तु में बढ़ोतरी करना। खम्रः या खमीरः में एक और भाव है वृद्धि का । ख़मीरी रोटी सामान्य से बड़ी नज़र आती है। ब्रेड को ख़मीर उठा कर ही तैयार किया जाता है इसीलिए उसे डबलरोटी कहा जाता है। वृद्धि साफ नज़र आ रही है न ! खमीर में एक विशेष गुण होता है कि वह गुंथे हुए आटे में भौतिक वृद्धि करता है। ऐसा जीवाणुओं द्वारा की जाने वाली जैविक क्रियाओं के चलते होता है। नशे में भी यही गुण नज़र आता है । नशा होने के बाद मनुश्य खुद की क्षमताओं में वृद्धि अनुभव करता है। विज्ञान की निगाह में भी यह आंशिक सच है कि मदिरा से सोचने समझने और शारीरिक क्षमता में थोड़े समय के लिए वृद्धि होती है। यही नहीं अत्यधिक नशा होने पर एक की जगह दो वस्तुएं दिखाई पड़ती हैं और एक ही बात बार बार कही जाती है। ख़म्र से बने कुछ अन्य शब्द हैं जो हिन्दी में इस्तेमाल तो नहीं होते मगर इनके बारे में जान लें। उर्दू में शराब की सुराही या मदिरा कलश को खुम कहते हैं। इसी तरह मदिरालय को मैंकदा की तरह ख़ुमकदः भी कहा जाता है।-जारी
ख़मीर, कीमियागरी और किमख़्वाब
ख़मीर, कीमियागरी और किमख़्वाब
sir
ReplyDeletebahut hi achhi jaankari hain
aapne jo ladki wali photo ladai hai
wo to sach mein aisa lagta hai jaise hangover ho gaya hai.
फोटो देख कर तो वाकई एक बीयर में खुमारी सी आई लगती है...अब बस नहीं पीता..सो जाता हूँ. पहले कभी भी एक बीयर में ऐसा नहीं हुआ भाई..आप जो न करा दो!! बहुत वैसे हो!! :)
ReplyDeleteपड़ गया अकल पर परदा दिख्खे है मन्ने!!
आपकी यह पोस्ट अच्छी लगी, अक्सर माता जी कभी फ्रिज में आटा रखना भूल जाती है तो सुबह यही सुनने को मिलता है कि आटे में खमीर उठ गया है।
ReplyDeleteसुना है खुमारी ऐसी ही चीज है। सामने वाले की चार आँखें नजर आती हैं। विजया का तो अनुभव है। लेकिन उस में ऐसा नहीं होता।
ReplyDeleteबड़े भईया... शब्द तो ठीक से दिख रहे हैं.. फोटु देख के थोड़ा डर गयी... लगा कि शायद देर तक मेडिटेशन कराने से ऐसा असर होता है क्या... अगर ऐसा होता होगा तो मेरे क्लाईंट्स!!!
ReplyDeleteपर निचे टिप्पणी पढ़ के लगा कि ना ना सबको ऐसा ही दिख रहा है :D
अच्छी जानकारी दी... शुक्रिया... और फोटु का का तो जवाब नही... :)
इस फोटो को देख तो झाईं छूट रही है।
ReplyDeleteबहुत सुंदर आलेख और तस्वीर...... लगता है खुमार अभी बाकी है..
ReplyDeleteहमें तो शब्दों के सफर का ही
ReplyDeleteखुमार रहता है. क्या करें ?
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शुक्रिया
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
खमीरी अँदाज़ वाकई ज्ञान मेँ वृध्धि कर गया ! :)
ReplyDelete& the pic was dynomite !
खमीर और खुमार क्या बात है ।
ReplyDeleteBahut acha, nye nye shabdon ki jankari ke liye aapka aabhar.
ReplyDeleteतो ये खुमारी खमीर से आई !
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