दनी हिन्दी का बड़ा खूबसूरत लफ़्ज़ है जो उर्दू में भी इस्तेमाल होता है। चांदनी यानी शुक्लपक्ष की रातें जब आसमान में चांद अपनी बढ़ती कलाओं के साथ धरती पर रोशनी बिखेरता है। जाहिर सी बात है कि चांद से ही चांदनी शब्द बना है। खुशबुओं की बात करें तो चंदन की महक किसे नापसंद होगी...भारतीय मूल के इस वृक्ष की सुगंध का दीवाना पूरा संसार है। चंदन का वृक्ष दक्षिण भारत में बहुतायत से होता है और इसकी लकड़ी बेशकीमती होती है।
चांदनी और चंदन में बेहद क़रीबी रिश्ता है। चंदन शब्द बना है संस्कृत के चन्दनः से जिसकी व्युत्पत्ति हुई है संस्कृत धातु चन्द से जिसमें चमक, प्रसन्नता और खुशी का भाव है। हिन्दी का चांद यानी चन्द्रमा शब्द इसी चन्द धातु की उपज है। दरअसल चन्द धातु से पहले चन्द्रः शब्द बना जिसका अर्थ है आकाश में स्थित चन्द्र ग्रह जो हम सबका लाड़ला चंदामामा भी है। चन्द्रः के अन्य अर्थ भी हैं मसलन पानी, सोना, कपूर और मोरपंख में स्थित आंख जैसा विशिष्ट चिह्न। दरअसल इन सारे पदार्थों में चमक और शीतलता का गुण प्रमुख है। दिन में सूर्य की रोशनी के साथ उसके ताप का एहसास भी रहता हैं। चन्द्रमा रात में उदित होता है। इसलिए इसकी रोशनी के साथ शीतलता का भाव भी जुड़ गया। चंदन के साथ यही शीतलता जुड़ी है।
प्राचीन काल में मनुश्य को जब चंदन की लकड़ी के आयुर्वैदिक गुणों का पता चला और उसने सर्वप्रथम उसे घिसकर उसके लेप का प्रयोग त्वचा पर किया । शीतलता के गुण की वजह से ही इसे चन्दनः/चन्दनम् नाम मिला जो हिन्दी में चंदन कहलाता है। दक्षिणभारत का मलयाचल पर्वत चंदन के वृक्षों के लिए प्रसिद्ध है। चंदन की अधिकता की वजह से इसे चन्दनाचल, चन्दनाअद्रि या चन्दनगिरी भी कहा जाता है।
दिलचस्प बात यह कि
फ़ारसी का संदल मूल रूप से संस्कृत की चन्द धातु से ही उपजा है। संस्कृत का चंदन ही पर्शियन में चंदल होते हुए फ़ारसी के संदल में ढल गया। चन्द्रः से अनेक शब्द बने हैं जैसे चन्दा, चन्द्रिका अर्थात चांदनी ,चंदू वगैरह । चांदनी शब्द का प्रयोग रोजमर्रा के जीवन में एक अन्य अर्थ में भी होता है। फ़र्श पर बिछायी जानेवाली सफ़ेद चादर या छत से सटाकर बांधा गया गया कपड़ा भी चांदनी कहलाता है। ज्यादातर लोग इस शब्द का रिश्ता भी चंदामामा की चांदनी से जोड़ते हैं जिसमें स्निग्धता, शीतलता और चमक , सब कुछ एक साथ है। प्रख्यात कोशकार रामचंद्र वर्मा के अनुसार यह शब्द मूलतः फ़र्श-संदली से बना है अर्थात् चंदन जैसी रंगत वाली ज़मीन , सतह। दरअसल मुग़लकाल में नूरजहां ने सबसे पहले अपने एक महल में चंदन के रंग वाला फ़र्श बनवाया था और उसे फ़र्श-संदली कहा गया। बाद में उसे सिर्फ संदली और फिर चांदनी कहा जाने लगा। चंद्रमा की चांदनी से इसका कोई रिश्ता हो या न हो, मगर चन्द से बने चंदन से इसका संबंध ज़रूर है और चन्द से ही चन्द्रमा बना है सो ये एक ही कुनबे के ज़रूर कहलाए । यानी रिश्तेदारी तो ठहरी !!!
फ़र्श पर बिछायी जानेवाली सफ़ेद चादर या छत से सटाकर बांधा गया गया कपड़ा भी चांदनी कहलाता है। |
आभार, ज्ञानवर्धन के लिए.
ReplyDeleteआप कई भ्रम तोड रहे हैं और कई भ्रम निर्मित कर रहे हैं । एक 'चन्द' (उर्दू) ('कम' का समानार्थी होने के कारण) मलिनता, खिन्नता और दुख पैदा करता हे और दूसरा 'चन्द' (आपका चन्द) चमक, प्रसन्नता और खुशी देता है ।
ReplyDeleteआपके परिश्रम को सलात ।
फर्श पर चांदनी और छत पर भी !
ReplyDeleteकमाल है भाई !....आज तो आपने
हमें हमारे नाम के गिर्द
और कितनी बातें हैं,
भली भांति समझा दिया है !
काश ! जीवन भी वैसा ही बन सके !!
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आभार अजित जी
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
विष्णु वैरागी जी से सहमत ! आपकी मेहनत को सलाम अजित भाई !
ReplyDeleteचन्दन, चांद और चांदनी का समान गुणी समझ आया।
ReplyDeleteधन्यवाद।
चंदन और चाँद दोनों की शीतलता धीरे-धीरे हम भी समझ रहे हैं.
ReplyDeleteनूरजहाँ की नफीस सोच समझ के हम कायल होते जा रहे हैं ..गुलाब का इतर भी नूरजहाँ ने बनवाया और फर्श संदली भी .. और चांदनी शब्द भी बहुत प्रिय है
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