Tuesday, November 11, 2008

चांदी का जूता, चंदन की चप्पल [चन्द्रमा-2]

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चंदामामा की रिश्तेदारी चंदन से भी है और उसके फारसी रूप संदल से भी। चंदा, चांदनी,चन्द्रिमा, चन्द्रिका, चंदर जैसे शब्दों के मूल है संस्कृत की चंद धातु जिससे निहित शीतलता और चमक के भावों से चन्द्रमा से लेकर चंदन तक अनेक शब्द बने। यह क्रम संस्कृत के अलावा फारसी , अरबी, ग्रीक, लैटिन, फ्रैंच और अंग्रेजी में भी नज़र आता है।
चंदन chandan को अंग्रेजी में सैंडल भी कहते हैं जो मूलतः फारसी के संदल से बना है। पुराने ज़माने में भारतीय चंदन की यूनान में बड़ी मांग थी। कारोबारियों के जरिये यह शब्द ग्रीक भाषा में सैन्डेलियन/सेन्टेलोन में बदला। ग्रीक से यह लैटिन में सैडेलियम हुआ जहां से पुरानी फ्रैंच में सैडेल और फिर अंग्रेजी में सैंडल बन गया। अंग्रेजी में इसे सैंडलवुड कहा जाता है। दिलचस्प है कि अंग्रेजी के सैंडल अर्थात sandal का एक अन्य अर्थ होता है एक किस्म की चप्पल जो फीते के जरिये पैर से बंधी होती है। यह सैंडल शब्द भी इसी संदल/चंदल/चंदन/सैंटेलोन/सैंडेलियन श्रंखला का ही शब्द है।
रअसल सभी प्राचीन सभ्यताओं में सैंडलनुमा पादुकाओं की ही परंपरा रही है। यूं कहें की चप्पल का सबसे पुराना रूप खड़ाऊ ही है और इसी किस्म की चरण पादुकाओं के प्रमाण दुनियाभर की प्राचीन सभ्यताओं में मिले हैं जिनमें प्राचीन मनुष्य ने वृक्षों की छाल और लकड़ी से ही चरण पादुकाएं बनाई। भारत में भी लकड़ी से बने खड़ाऊ ही पुराने ज़माने में चलते थे और चंदन के खड़ाऊ सर्वोत्तम माने जाते थे। आज भी बाज़ार में चंदन के खडाऊ मिलते हैं। माना जा सकता है कि प्राचीन भारत में प्रचलित चंदन के खड़ाऊओं की चर्चा कारोबारियों के ज़रिये पश्चिमी देशों तक पहुंची हो और इसीलिए विशेष प्रकार की पादुकाओं के लिए सैंडलवुड से ही सैंडल sandal शब्द चल पड़ा । बदलाव या चिकित्सा की दृष्टि से लकड़ी की चप्पलों यानी सैंडल का प्रयोग आज भी होता है। .
हरहाल आज भी सैंडल सबसे आरामदेह चरणपादुकाओं में शुमार हैं। हिन्दी का खड़ाऊँ शब्द ही अपने आप में लकड़ी की पादुकाओं का पर्याय है। यह बना है संस्कृत के काष्ठपादुका से जिसके खड़ाऊँ में तब्दील होने का क्रम कुछ यूं रहा- काष्टपादुका > कट्ठपाउआँ > खड़ाऊआँ > खड़ाऊं । लकड़ी की पादुकाओं यानी खड़ाऊँ के प्रयोग की शुरूआत इसीलिए हुई क्योंकि यह पुराने ज़माने मे सबसे सहजता से उपलब्ध पदार्थ था। हालांकि लकड़ी से भी पहले मनुश्य ने चमड़े की चप्पल बना ली थीं जो मूलतः तलवे के बराबर का चमड़े का टुकड़ा भर होती थी। खड़ाऊँ का उल्लेख होते ही ऋषिमुनियों का ध्यान आता है जो अक्सर इन्हें ही धारण करते थे। इसकी वजह थी अन्य प्रकार की चरण-पादुकाओं में चमड़े का प्रयोग होना जिसे वे अपवित्र मानते थे। खड़ाऊँ
1-shoe हिन्दी में जूता खूब चलता है, साथ ही उर्दू में भी । भाषा के सवाल पर हिन्दी-उर्दूवालों में आपस में भी जूता चल जाता है क्योंकि यह मुहावरा है और इसका भाव बढ़ाने के लिए इसके साथ कभी कभी चप्पल भी आ खड़ी होती है।
शब्द की महत्ता त्रेतायुग में इतनी जबर्दस्त थी कि राम के वनगमन से खिन्न और अयोध्या पर शासन के अनिच्छुक भरत ने ज्येष्ठ भ्राता की खड़ाऊँ को राज सिंहासन पर शासन के अधिकारी का प्रतीक माना और चौदह वर्षों तक अयोध्या का राज-काज संभाला। तभी से खड़ाऊँ-राज एक मुहावरा भी बन गया जिसका मतलब  है सत्तासीन व्यक्ति का असली हकदार न होना ।
मड़े से बनी पादुकाओं दो प्रमुख प्रकार हैं चप्पल और जूता  । दुनियाभर में प्रचलित सर्वाधिक लोकप्रिय शैली की चरण पादुका है जो ऐड़ी की तरफ़ से खुली रहती है और पैर के अगले हिस्से की ओर से फीते या बंद से बंधी होती है जिसे पहननेवाले की ऊंगलियां जकड़े रहती हैं। चप्पल की व्युत्पत्ति संदिग्ध है। संभव है यह ध्वनि अनुकरण प्रभाव से बना शब्द हो। ऐड़ी की तरफ से खुली होने की वजह से चप्पल शब्द चप् चप् ध्वनि करती है इसीलिए इसे चप्पल नाम मिला। वैसे जान प्लैट्स इसकी व्युत्पत्ति चर्प-ला से बताते हैं मगर इसकी व्याख्या नहीं करते और न ही चर्प् धातु का अर्थ बताते हैं। आप्टे कोश में भी चर्प् या इससे मिलते-जुलते शब्द नहीं हैं। हवाई चप्पल hawai slippers दुनिया में सर्वाधिक लोकप्रिय है। हवाई द्वीप पर इसका प्रचलन था और वहीं से चप्पल का यह प्रकार लोकप्रिय हुआ जो अपनी तिकोनी बद्दी या ग्रिप की वजह से बहुत सुविधाजनक भी है। गौरतलब है कि हवाई चप्पल की ग्रिप के लिए बद्दी संस्कृत के बंध् शब्द से बना है।
स्तेमाल में जूता shoe चाहे चप्पल के पीछे हो मगर बोलचाल और मुहावरों में यह कही उससे पीछे नहीं है। पैरों को पूरी तरह ढंके रहने के गुण के चलते जूते के भीतर पैर डालना पड़ता है जिसमें थोड़ा वक्त लगता है इसीलिए यह तत्काल इस्तेमाल में चप्पल जितना सुविधाजनक नहीं है। जूते का नामकरण इसके आकार या ध्वनि-अनुकरण के आधार पर नहीं हुआ है बल्कि यह समुच्चयवाची शब्द है। दरअसल दो पैरों की जोड़ी के चलते पादुकाओं की जोड़ी को संस्कृत में युक्तम् या युक्तकम् कहा गया जिससे प्राकृत में जुत्तअम होते हुए जूता शब्द बन गया। यह उसी युज् धातु से बना है जिससे जुआ, युग्म, युगल और युक्ति जैसे शब्द बने हैं। वैसे देखे जाए तो पैरों की रक्षा के लिए चमड़े से ढकने की युक्ति से ही जूता बना है ।

13 comments:

  1. बहुत उम्दा
    regards
    do visit my post if have a time

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  2. संदल/चंदल/चंदन/सैंटेलोन/सैंडेलियन के बारे में जानना सुखद रहा

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  3. लगता ऐसा है कि मूल संस्कृत से प्राकृत या अपभ्रंस की ओर स्वाभाविक ढलान रही है. प्राचीन ईरानी से आधुनिक ईरानी में शब्दों के परिवर्तन की प्रवृत्ति ऐसी नही है शायद. हिन्दी भी तत्सम शब्दों को अपनी तासीर के अनुकूल ढालती रही है फ़िर पारिभाषिक शब्दावली कोष में क्यों सारे ही तत्सम शब्द डाल रखे है. वैसे आपकी शब्द अन्वेषण यात्रा साहसिक खोजी यात्राओं की तरह का रोमांच देती है, शुक्रिया.

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  4. अच्छा याद दिलाया। अपनी खड़ाऊं तलशता हूं आज घर जा कर। अपने पारम्परिक होने के प्रतीकों में एक वह भी है!

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  5. ये तो हद कमाल पोस्ट है !

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  6. हिन्दी में जूता खूब चलता है, साथ ही उर्दू में भी । भाषा के सवाल पर हिन्दी-उर्दूवालों में आपस में भी जूता चल जाता है क्योंकि यह मुहावरा है और इसका भाव बढ़ाने के लिए इसके साथ कभी कभी चप्पल भी आ खड़ी होती है।
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    भई ये तो कलम की धार से
    ख़बरदार और समझदार बनाने वाली
    बात कह दी आपने.
    आपका सफ़र
    ज़िंदगी के तज़ुर्बात भी साझा कर रहा है.
    जानकारी बोध की जन्म दात्री शायद
    इसी तरह बनती होगी.....आभार अजित जी.
    =================================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  7. बढ़िया रहा यह जानना भी. आभार.

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  8. सैंडल में संदल की खुशबू? वाह क्या बात है।

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  9. आजसे हम युक्तं ही कहेंगे हमारी चप्पल को ! :)बहुत बढिया संशोधन

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  10. आपने बहुत अच्छी जानकारी दी है,यहां स्पेनिश में चंदन को सान्दलो
    और सेन्डिल को सन्दालिया कहते है/जो शायद इसी से संबंधित जुडी कडी है/

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  11. चन्‍दन को गुजराती में 'सुक्‍खड' कहा जाता है जिसे अंग्रेजी में SUKHAD लिखा जाता है जिसे 'सुखद' पढा और उच्‍चारित किया जाता है । सो, भाषा के घालमेल की सुविधा उठाकर 'चन्‍दन' को 'सुखद' कहा जा सकता है । वैसे भी, चन्‍दन तो है ही सुखद ।
    आप अपने सम्‍पूर्ण पाठक वृन्‍द की शब्‍द सम्‍पदा बढाने का पुण्‍य काम कर रहे हैं ।

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  12. आप की शब्द saamarthya अद्भुत है ,भास्कर mey आप को पढ़ा ,maja आ गया .आप का buddhu baksa सही respond नही ker रहा per आप को sanyogvash मिले awasar का labh लेकर धन्यवाद देना धर्म है .kripaya मेरे ईमेल bksrewa@gmail.कॉम per subscribe ker deve, aabhari rahunga.
    sadar dr.bhoopendra rewa m.p

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