अ पनी धुन में रहनेवाले मस्तमौला तबीयत के इन्सान को आमतौर पर मलंग की संज्ञा दी जाती है मगर मलंग भी सूफी-दरवेशों का एक सम्प्रदाय है जो रहस्यवादी होते हैं। लंबा-चोगा, लोहे के कड़े और कमर में जजीर, लंबे बाल और बढ़ी हुई दाढ़ी और हाथ में कमंडलनुमा भिक्षापात्र जिसे कश्कोल कहते हैं, इनकी पहचान है। आमतौर पर मलंग मुसलमान होते हैं। हिन्दुस्तान आने के बाद कलंदरों-मलंगों पर नाथपंथी प्रभाव पड़ा और और चिमटा, कनछेदन, भभूत जैसे प्रतीकों को इन्होंने भी अपना लिया। वैसे मलंग उसी फकीर को कहा जाता है जो किसी सम्प्रदाय से संबद्ध न हो। जाहिर है सम्प्रदाय, परंपरा के स्तर भी जिसका कहीं जुड़ाव न हो उसे लापरवाह, बेपरवाह, निश्चिंत, मनमौजी कहा जा सकता है। यही है मस्त मलंग।
मलंगों के प्रभाव में कई हिन्दू वैरागी-विरक्त भी मलंग कहे जाने लगे। महाराष्ट्र की संत परंपरा में कई संतों के नाम के आगे मलंग शब्द लगता है। नाथपंथी नवनाथ अवतार कहे जाने वाले प्रसिद्ध संत मत्स्येन्द्रनाथ यानि मच्छिन्द्रनाथ (मछिंदरनाथ) को महाराष्ट्रवासी मलंगमच्छिंद्र कहते हैं। कल्याण के पास समुद्रतट पर एक किला ही मलंगगढ़ कहलाता है जहां मलंगमच्छिंद्र की समाधि है। यह जगह हिन्दू और मुस्लिमों की आस्था का केंद्र है। संत एकनाथ और पंढरीनाथ के आगे भी श्रद्धालु मलंग शब्द लगाते हैं। सूफियों की तरह ही मलंगों के साथ भी संगीत परंपरा जुड़ी हुई है। कई कव्वालियों में मलंग शब्द मुरीद, भक्त, शिष्य के अर्थ में आता है।
जान शेक्सपियर की इंग्लिश-उर्दू डिक्शनरी के मुताबिक मलंग मुहम्मदिया दरवेश होते हैं जो लम्बा चोगा पहनते हैं और लम्बे बाल रखते हैं। इसी तरह की बात जान प्लैट्स की हिन्दी-उर्दू-इंग्लिश डिक्शनरी में भी है, बस उसमें इनके फक्कड़, घुमक्कड़, यायावर, अबूझ और बेपरवाह शख्सियत का भी संकेत है। मोहम्मद ताहिर संपादित इन्साइक्लोपीडिक सर्वे आफ इस्लामिक कल्चर में सूफी मत पर चीन के ताओवादी प्रभाव की चर्चा करते हुए अहमद अनानी मलंग की व्युत्पत्ति खोजते हुए इसे चीनी मूल का सिद्ध करते हैं। उनके मुताबिक यह ताओवादी मंग-लंग से मिलकर बना है। ताओवादी शब्दावली में एक शब्द है मंग mang जिसमें महत्वपूर्ण या आदरणीय व्यक्ति जैसे भाव हैं।मगर इस शब्द में यायावर, घुमक्कड़, दरवेश का भाव ज्यादा है। अनान इसका साम्य जिप्सियों से बैठाते हैं जो घुमक्कड़ जनजाति है। इनकी समानता चमत्कारी योगियों, सूफियों, कलंदरों से भी बताई गई है। लेखक हरबर्ट जिल्स की चीनी-इंग्लिश डिक्शनरी के हवाले से ल्यियू-मेंग शब्द सामने लाते हैं। ल्यियू शब्द का अर्थ चीनी भाषा में होता है भ्रमणशील अर्थात घुमक्कड़। इसी तरह चीनी शब्द लंग lang का मतलब होता है आदरणीय, सम्मानित, प्रमुख आदि। इस तरह मंग-लंग का अर्थ निकला घुमक्कड़ सन्यासी या दरवेश। लेखक की स्थापना है कि हिन्दुस्तानी, फारसी में यह मा-लंग होते हुए मलंग बना।
हिन्दी-उर्दू में मलंग शब्द फारसी के जरिये ही दाखिल हुआ है। संस्कृत, अवेस्ता, फारसी के किसी संदर्भ में इस शब्द की ठीक ठीक व्युत्पत्ति नहीं मिलती है। इस्लाम का सूफी रूप करीब नवीं सदी में आकार लेने लगा था। चीन का ताओवादी अध्यात्म इससे सदियों पहले का है। तब तक कई बौद्धभिक्षु भारत से मध्यएशिया और चीन की ओर जा चुके थे। जाहिर है ताओवादी परंपराओं का ज्ञान भी बरास्ता सोग्दियाना होकर ईरान की धरती तक पहुंच चुका था। इसलिए मलंग का चीनी मूल दूर की कौड़ी नहीं है। आध्यात्मिक आदान-प्रदान में विचारों के साथ-साथ शब्दावली भी सहेजी जाती है। भारतीय ध्यान के जे़न रूप में यही साबित होता है।
फकीरों कलंदरों की तरह ही मलंग भी मूलतः भिक्षावृत्ति पर निर्भर रहते हैं। ज्यादातर मलंग एकाकी ही होते हैं और फक्कड़ बन कर यहां से वहां घूमते हैं। कई मलंग पहुंचे हुए संतों की दरगाह पर भी पड़े रहते हैं। मलंग भी गृहस्थाश्रम में रहते हैं। ये वे मलंग है जिन्होंने आजीविका के लिए सेवा संबंधी कोई पेशा अपना लिया है। आमतौर पर वैद्यकी इसके अंतर्गत आती है। ईलाज के नाम पर मलग झाड़-फूंक, टोना-टोटका, काला-जादू और जड़ू-बूटी तक पर आज़माइश करते रहते हैं। यह काम इनके यहां पीढ़ी दर पीढ़ी चलता रहता है। मलंगों की अलमस्त जीवन शैली होती है। वे खूब भांग खाते हैं, चरस पीते हैं। शैवों की परंपरा में ये धूंनी भी रमाते हैं। कुछ विशिष्ट नारे भी ये लगाते हैं जैसे- लला है दिले जान नसीबे सिकंदर...। इनकी बोली में ठाठ से महादेवबाबा जैसे शब्द भी सुनने को मिल जाते हैं चाहे वे मुसलमान ही क्यूं न हो। भारत में, खासतौर पर पंजाब में कई स्थानों पर मलंगों की दरगाहें हैं।
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मलंगो के विषय में इतनी गहराई से बताने का आभार. इनकी अलग से दरगाहें भी होती हैं, यह आज जाना. बहुत आभार.
ReplyDeleteमस्त मलंग के बारे मे जाना . एक बात जो हमेशा पॉइंट करती है कि सभी भाषा मे कई शब्द ऐसे है जिनकी शरुआत एक समान अक्षर से होती है .
ReplyDeleteआदरणीय, वडनेकर जी।
ReplyDeleteमलंग पर आपने सुन्दर और खोजपूर्ण लेख लिखा है। आपकी लेखनी की लेखन शैली से मैं इतना प्रभावित हुआ कि पद्य छोड़ गद्य मे ही टिप्पणी करनी पड़ी। आशा है आगे भी इतिहास की पर्तों को खोलते रहेंगे। सम्पर्कः 09368499921
मलंग पर अच्छा आलेख है। तलाश करेंगे तो ब्लागरों में भी मलंग मिल लेंगे।
ReplyDelete'मलंग' संख्या की दृष्टि से नगण्य हैं किन्तु उनका संसार कितना विस्तृत और भव्य है, यह आपकी इस पोस्ट से ही अनुभव हो पाया।
ReplyDeleteसन्त एकनाथ और पंढरीनाथ के आगे 'मलंग' का उपयोग आज तक कहीं भी सुना-पढा नहीं। यह तनिक असहज लग रहा है।
ये भी मस्त है साहब !
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
इस शब्द पर की गई पोस्ट पढ्कर तो बस पवन जी का एक शेर याद आ गया।
ReplyDeleteएलान उसका देखिए कि वो मजे में है
या तो वो फ़कीर है या वो नशे में है।
गोरखपुर में जो अवैद्यनाथ/आदित्यनाथ जैसे नाथ हैं, पता नहीं वे नाथ सम्प्रदाय के हैं या नहीं। उनके मन्दिर पर लिखे दोहे तो इसी तरह के लगते हैं। पर वहां हिन्दुत्व कट्टर है।
ReplyDeleteकुछ समझ नहीं आता।
मलंगों के बारे इतनी सारगर्भित जानकारी का धन्यवाद ।
ReplyDeleteएक बधाई 100 हमसफ़र की भी । कारवां जुड़ता जाय, इसी कामना के साथ ।
@डॉ रूपचंद्र शास्त्री
ReplyDeleteपरमादरणीय डाक्टर साहब,
सफर में आपको साथ पाकर मैं धन्य हूं। बस, मेरे नाम के साथ आदरणीय न लगाए। ज्ञान, अनुभव, आयु - हर मामले में आपसे कमतर हूं।
सफर में बनें रहें साथ।
सादर, साभार
अजित
बहुत अच्छी जानकारी.....
ReplyDeleteमलिंगा उपनाम भी सुनने में ऐसा ही लगता है ?
ReplyDeleteमस्त मलंग लगी ये जानकारी.ये जानने के बाद कि बौध भिक्षु रेशम मार्ग पर बुद्ध के उपदेश बिखेर रहे थे,चीनी मूल के किसी शब्द से मलंग कि व्युत्पत्ति दूर कि कौडी नही लगता, पर ये हमारी जानकारी में अब आया है. कहीं पढ़ा था बुद्ध कि मूर्तियाँ इतनी पहले से बनने लग गई थी कि बुत शब्द भी बुद्ध के प्रभाव से बना है.पता नहीं कितना सच है .शायद वडनेरकर प्रभृति विद्वान ही बता पायें.
ReplyDeleteसंत परम्परा पर आपकी प्रस्तुत श्रंखला अद्वितीय है | एक बात साफ़ होती जा रही है कि भारतीय दर्शन में जिस सत्-चित्-आनंद का विषद उल्लेख पुनः पुनः आता है उसी की प्राप्ति के प्रयास कमोबेश हर पंथ में हुए होंगे | निर्गुणी गहराई से उपजे इस आनंद तक पहुँचने वाले अधिकतर संत इस्लामी शाख के ही इर्द गिर्द पाए जाते हैं | जैसे, दरवेश, फकीर, सूफी, कलंदर और मलंग | कबीर पंथी भी सगुण पंथ से लगभग अलग से ही हैं | इधर बंगाल के बाउल और चीन के ज़ेन संत भी कहाँ सगुणोपासक हैं ?
ReplyDeleteप्रतीत होता है सगुण की भक्ति धारा में हमारे देश का मूल दर्शन न सिर्फ विलुप्त हो गया वरन आडम्बरों के कारण असल आनंद की राह ही खो गयी |
चिंतन को श्रेष्ठ विषय पर केन्द्रित कर देने के लिए आपको किस प्रकार धन्यवाद कहें ! 'शब्दों के हवेनत्सांग' की तारीफ़ में शब्दों का टोटा | प्रणाम ! साधुवाद !!
संजय भाई,
ReplyDeleteशुक्रिया कि लगातार सफर में बने हुए हैं। बुत शब्द बुद्ध से ही बना है। इस पर दो साल पहले पोस्ट छाप चुका हूं। कृपया इसे ज़रूर देखें।समझदार से बुद्धू की रिश्तेदारी
आपसे एक अनुरोध है। कृपया मेरे लिए विद्वान जैसे विशेषण का प्रयोग न करें। मैं बहुत सामान्य शिक्षित हूं। किसी भी क्षेत्र में विशेषज्ञता का दावा नहीं। अपनी जिज्ञासावश कुछ खोजबीन करता रहता हूं और फिर उसे सबसे साझा करता हूं।
उम्मीद है अन्यथा न लेंगे।
साभार
अजित
अच्छी जानकारी!
ReplyDeleteसंत एकनाथ चरित्र मे स्पष्ट लिखा है --- मलंग चामडे के कपडे पहनते थे | मुसलमान तो कभी चामडेके कपडे पहनते नाही . बुद्ध परम्पारमे बुद्ध साधू चामडे के कपडे पहानते थे . इससे याही साबित होता है मलंग लोग बुद्ध संप्रदाय के थे .
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