Friday, February 13, 2009

बन रहा ब्लॉग कुटुम्ब…

या साल भोपाल में ब्लागरों की आमदरफ्त से शुरू हुआ है। बीते पूरे जनवरी में माह देश के अलग अलग हिस्सों से ब्लागर बंधुओं का भोपाल आना होता रहा। यह क्रम अभी फरवरी में भी जारी है। ब्लागिंग अब कौटुम्बिक पहचान बना रही है। यह अच्छा संकेत है क्योंकि अपने

कौन कौन पधारे

RangeOfPaperColoursHg नवरी के पहले हफ्ते में सबसे पहले तो पुणे से देबाशीष आए। वे भोपाल के ही हैं और यहां उनके माता-पिता रहते हैं। देबाशीष और रवि रतलामी हमारे घर भी पधारे। उसके कुछ दिनों बाद 15 जनवरी को वाराणसी से अफ़लातून आए। अविनाश बाबू के सौजन्य से उनका चंद घंटो का भोपाल प्रवास एक यादगार आयोजन बन गया। पर इसी वजह से उनसे खुलकर मिलने की इच्छा पूरी न हो सकी। 25 जनवरी को इंदौर से अंकित का आगमन हुआ। उस दिन हम बेहद व्यस्त थे सो उसे दफ्तर में ही बुला लिया। 27 जनवरी को कोटा से दिनेश राय द्विवेदी का आगमन हुआ। दिनेशजी से ये हमारी दूसरी मुलाकात थी। जनवरी के पहले सप्ताह में अजय ब्रह्मात्मज आए और कुछ दिनों पहले ही मनोज वाजपेयी के चरण भी भोपाल में पड़े। हालांकि उनसे हमारी मुलाकात नहीं हुई मगर अविनाश बाबू मिल आए।
अपने काम  धंधों में फसें हम लोग अब नए सामाजिक सम्पर्कों के लिए खुद को विवश पाते हैं। कम से कम मेरे साथ तो ऐसा ही हो रहा है कई वर्षों से । जो नए परिचय बन रहे हैं उन्हें सहेजने-पोसने की फुर्सत नहीं मिलती। ब्लागिंग ने इस पीड़ा से उभारा है।
हिन्दी ब्लागिंग को दिल्ली-मुंबई-पुणे- बेंगलूर जैसे महानगरों के चंद अति सुसंस्कृत-अभिजात-कुलीन ब्लागर चाहे गरियाते रहें ( हिन्दी ब्लागिंग करते हुए ) इसके बावजूद हिन्दी ब्लागिंग ने सोशल नेटवर्किंग का वह चमत्कार दिखाना शुरु किया है जिसके लिए सोशल नेटवर्किंग शब्द ईज़ाद किया गया था। ( हालांकि प्रमोदसिंह अभी हम पर चिल्लाना शुरू करनेवाले हैं कि कुलीन-ऊलीन जैसा शब्द उछाल कर नाम छुपा लिया जाए ? ई कौनो शऊर का बात है? कुलीन बिलागर का नाम बताया जाए...:) बहरहाल हिन्दी ब्लागिंग की सोशल नेटवर्किंग वाली सूरत के आगे आर्कुट जैसे मंच फेल हैं- सुन रहें हैं अनामदासजी? आपकी ही बात दोहरा रहा हूं। ब्लाग पर साहित्य नहीं रचा जा रहा है और इस मुगालते में कम से कम हम नहीं हैं। मगर लिखने-पढ़ने के बहाने जो सामाजिकता पनप रही है वह अभूतपूर्व है। अच्छे-बुरे हर तरह के लोग समाज में हैं। मगर बुराई का जो प्रभाव वास्तविक समाज में नज़र आता है उससे यहां हम बचे हुए हैं। फिलहाल तो ऐसे ताने सुनने की नौबत आने का अंदेशा नहीं है कि चले थे मेज़बानी करने…अब भुगतो !!! बड़े आए ब्लाग कुटुम्बी!!! बाकी तो आपके हाथ में है-सार सार सब सब गहि लहै, थोथा देय उड़ाय…बुजुर्ग कहते हैं कि नौकरी, बीवी और अच्छा पड़ौसी भाग्य से मिलते हैं। हमारा मानना है कि इस सूची में ब्लागर नाम का जीव जुड़ने नही जा रहा है। क्योंकि किसी ब्लागर को कुटुम्बी बनाना या न बनाना आपके हाथ में है। उसकी पूरी जन्मपत्री आपके पास है:)
हिन्दी के ब्लागर अब सफर पर निकलने से पहले अपने रिश्तेदारों के अलावा ब्लागरों को भी खबर करते हैं कि भाई, आ रहे हैं। हो सके तो मुलाकात की जाए !!! दरअसल वर्च्युअल वर्ल्ड की शख्सियत की भौतिक उपस्थिति को देखने की इच्छा के साथ यह उसके असली व्यक्तित्व से वर्च्युअल की आजमाइश का क्षण भी होता है। यूं हम भारतीय अच्छे प्रशंसक चाहे न हों पर अच्छी मेजबानी निभाने या मिलनसार दिखने का पूरा प्रयास करते हैं। ऐसे में कोई ब्लागिया कहे कि मैं आ रहा हूं, तो लगातार सामाजिक तौर पर सबसे कटता जा रहा मेरे जैसा पत्रकार अपने शहर के शर्माजी से मुलाकात तो मुल्तवी कर ही सकता है, संभव हुआ तो एक दिन की छुट्टी भी ली जा सकती है। 
भोपाल में इन ब्लागर-मित्रों से हुई मुलाकातों का ब्योरा अगली दो कड़ियों में। आपने हमारी ये बकवास पढ़ी उसके लिए शुक्रिया। रोज़ हमें अपनी पोस्ट बनाने में चार घंटे लगते हैं। आज आधे घंटे में छुट्टी हो गई…इसीलिए कहा….

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24 comments:

  1. हाँ यह नवीन प्रवृत्ति उभर तो रही है ! शुभ संकेत !

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  2. हिन्दी ब्लागिंग ने सोशल नेटवर्किंग का वह चमत्कार दिखाना शुरु किया है -बिल्कुल सत्य वचन...हमने भी इस मार्फत ढ़ेरों मुलाकाते और मित्र बनाये.

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  3. ये बहुत अच्छी बात है.और आपको इसके ज्यादा मौके मिलते रहेंगे क्योंकि आप मध्य मे हैं. वहां से होकर आना जाना लोगो का लगा रहता है. आज कल तो ये भी एक सशक्त पारिवारिक समूह जैसा बनता जा रहा है.

    रामराम.

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  4. अच्छी जानकारी दी आपने
    इन सभी ब्लागर मित्रों का काम
    बहुत महत्वपूर्ण है
    हमारा भी नमस्कार उन्हें.
    ==========================
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  5. अजित भाई!
    मैं तो धन्य हो गया। नया समाज बन रहा है। यही नए मार्ग भी सुझाएगा। उम्मीद की किरणें दिन दूनी रात चौगुनी हों। यही महत्वाकांक्षा है।

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  6. यह सचमुच में 'वर्ग विहीन' और 'जाति विहीन' समाज बन रहा है जिसका ण्‍क मात्र आधार और कारण केवल 'ब्‍लाग' है। छोटे मुंह बडी बात करने का मूर्खतापूर्ण दुस्‍साहस कर रहा हूं किन्‍तु कहने से खुद को रोक भी नहीं पा रहा हूं कि मुमकिन है कि जो काम गांधी और लोहिया छोड गए हैं वह यह 'ब्‍लाग' पूरा करता दिखाई दे।

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  7. इससे बढ़िया सोशल नेट्वर्किंग मुझे कहीं और नही दिखती है.. ना तो ऑरकुट में और ना ही फेसबुक में..

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  8. इसमें क्या शक है? आज जितने लोगों से फोन पर बात होती है उनमें से ज्यादातर ब्लोगर्स ही हैं. सोशल नेट्वर्किंग का काम यह इतनी खूबी से कर रहा है कि चिरकुट हो चुकी ओर्कुटिंग से अपना वास्ता लगभग ख़त्म हो चुका है.

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  9. पहले आए सभी विद्वानो से सहमत हूं,और ने समाज के उतरोत्तर फ़लने-फ़ूलने की कामना करता हूं।

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  10. सच कहून तो मेरे जसे छोटे से शहर मे रहने वलों के लिये तो ये पूरी दुनिया क सफर कुछ पल मे है ये इस मयने एक वर्दान हुआ सब को शुभकामनायें

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  11. जय हो ब्लॉग कुटुंब की ।

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  12. सही है किंतु शय ये "मुमकिन है कि जो काम गांधी और लोहिया छोड गए हैं वह यह 'ब्‍लाग' पूरा करता दिखाई दे।"नही विष्णु भैया .
    अजित भाई हिन्दी ब्लागिंग आने वाले दो-तीन बरस में ५० हज़ार का आंकडा पर सार्थक ब्लागिंग की दरकार तब भी रहेगी
    अच्छा विमर्श आभारी हूँ

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  13. सत्य वचन महाराज ! वरना हम आपको कैसे जान पाते, और कितने ही महानुभावों को आज जानते हैं. एक से बढ़कर एक उत्तम लोग. हमारा तो सुसंस्कृत वर्चुअल परिवार बढ़ता जा रहा है.

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  14. ब्लाग कुटुम्ब बने यह तो अच्छी बात है पर ब्लाग जगत खेमों में बटें तो यह एक अशुभ संकेत होगा।

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  15. इस नए गांव में
    एक हमारी भी

    झुग्‍गी है।

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  16. अच्छा संकेत है तो ..कहीं से तो आपस में जुड़ रहे हैं सब

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  17. सचमुच यह बड़ा ही सुभ संकेत है.....

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  18. बिल्कुल सही बात है अजित भाई. हमारी मुलाकात ढेर सारे लोगों से हुई. जिनसे नहीं हो सकी है, आशा है एकदिन ज़रूर होगी. पहले मैं कहता था कि इतनी बड़ी दुनिया में जितने लोगों को जानते हैं, अगर उंगली पर गिनना शुरू करें तो नाम कम पड़ जायेंगे.

    अब ऐसा नहीं कहते.

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  19. सच ही तो लिखा है आपने ... सहमत

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  20. ... वर्च्युअल वर्ल्ड की शख्सियत की भौतिक उपस्थिति को देखने की इच्छा ... असली व्यक्तित्व से वर्च्युअल की आजमाइश का क्षण भी ...
    ... लगातार सामाजिक तौर पर सबसे कटता जा रहा ...

    आपने एक सच को शब्दों में ढ़ाला

    और PD का कहना भी सच्चाई है कि इससे बढ़िया सोशल नेट्वर्किंग मुझे कहीं और नही दिखती है.. ना तो ऑरकुट में और ना ही फेसबुक में

    ब्लागिंग की यह अनोखी कौटुम्बिक पहचान, ऊँचाईयों को छुये -मेरी शुभकामनायें

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