Sunday, March 1, 2009

खुशमिजाज, बातूनी और स्नेही हैं दिनेशराय द्विवेदी

वकील साब की मुद्राएं lokrang 400lokrang 399lokrang 401
क सार्थक आभासी समाज को रचती हिन्दी ब्लागिंग की सबसे महत्वपूर्ण उपलब्धि इंटरनेट पर हिन्दी में मुद्रित सामग्री के अभिलेखीकरण से कही ज्यादा सोशल नेटवर्किग मानता हूं। इसी की वजह से दुनियाभर में हिन्दी प्रेमी एक दूसरे से मिल जुल रहे हैं, विचार-विमर्श कर रहे हैं। कोटा निवासी दिनेशराय द्विवेदी जैसे शानदार मित्र को हमने ब्लागिंग की बदौलत ही पाया है। दिनेश जी जनवरी के अंत में भोपाल आए थे। यह उनसे हमारी दूसरी मुलाकात थी। इससे पहले भी साल भर पहले वे निजी कार्यक्रम में भोपाल आए थे मगर तब उनके साथ इत्मीनान से बैठना नहीं हुआ था।
विषय वैविध्य की दृष्टि से धीरे धीरे हिन्दी चिट्ठाजगत ने जो रूप अख्तियार किया है, सूचना संसार से जुड़े लोग अब उसकी अनदेखी नहीं कर सकते हैं। शुरुआती दौर में हिन्दी चिट्ठो नें परस्पर संवाद के जरिये इस सिलसिले को आगे बढ़ाया। नारद की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका रही। यह विषय-सामग्री को परखने का दौर नहीं था बल्कि एक नए माध्यम की हिन्दी में आजमाइश का वक्त था और नारद से जुड़े तमाम साथियों का भारी योगदान रहा। इन्ही के प्रयासों ने लोगों का ध्यान हिन्दी ब्लागिंग की तरफ खींचा। फिर बहसों वाले समसामयिक ब्लाग शुरू हुए। बहसें कुछ इस कदर चलीं कि बारहा हिन्दी ब्लागिंग को चिरकुटई का फतवा मिला। पर इस दौर से भी उबर गए और विषय विशेष के ब्लाग सामने आने लगे। संगीत, विज्ञान, कविता, कानून, रसोई और भाषा जैसे क्षेत्रों में हिन्दी ने सफलतापूर्वक खुद को अभिव्यक्त किया। इस भूमिका के जरिये हम ब्लागिंग का इतिहास नहीं बताने जा रहे हैं बल्कि पुख्ता होती हिन्दी ब्लागिंग के कारकों का उल्लेख सिर्फ इसलिए करना चाहते हैं क्योंकि इसमें दिनेशभाई जैसे सजग, सक्रिय और निष्टावान ब्लागर की उपस्थिति की भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। दिनेश जी हिन्दी ब्लागजगत में अन्जान लोगों से जुड़ते जाने और फिर एक मित्र-मंडल बनते जाने से खुश हैं।
द्विवेदी जी की इस बार की भोपाल यात्रा में उनके साथ बहुत सारी बातें करने का मौका मिला। वे अपने बेटे के साथ भिलाई जाते हुए सत्ताइस जनवरी को  कुछ घंटों के लिए भोपाल में हमारे मेहमान थे।  पेशे से वकील दिनेश जी कोटा में रहते हैं। उनके तीन ब्लाग  हैं अनवरत, तीसरा खंभा और law and life. ब्लागिंग में उन्हें एक साल पूरा हो चुका है और इस बीच उन्होंने दोनो चिट्ठों के जरिये ब्लागजगत में अपनी सक्रिय उपस्थिति दर्ज की है। अनवरत में वे समसायिक विषयों-समाचार-विश्लेषण से लेकर यात्रा वृत्तांत, भाषा-व्याकरण, मीडिया-ब्लागरी, ग़जल-कविता, दर्शन, प्रकृति और रसोई जैसे तमाम विषयों पर दिलचस्प अंदाज़ में लिखते हैं। तीसरा खंभा न्याय और संविधान से जुड़े विषयों पर गंभीर जानकारी देने का ब्लाग है। अगर आप कापी-पेस्टिंग नहीं कर रहे हैं तो एक से ज्यादा ब्लागों पर निरंतर लिखना बेहद मुश्किल है। दिनेश जी यह काम लगातार कर रहे हैं क्योंकि वे अध्ययनशील हैं। सामान्य वकील से हटकर उनके पठन-पाठन के विषयों में वैविध्य है। दिनेश भाई अगर वकील न होते तो पत्रकार होते, ऐसा वे हमें कई बार बता चुके हैं। विभिन्न विषयों पर उनकी सजग नजर और पैनी पकड़ है। हम सोचते हैं कि वे पत्रकार नहीं है यह ज्यादा अच्छा है क्योंकि मीडिया का आज क्या रूप है यह सब जानते हैं। लिखने-पढ़ने वाले विचारशील व्यक्ति को प्रिंट माध्यम भरपूर संतोष प्रदान कर रहा होता तो आज ब्लागिंग इतनी तेजी से न बढ़ रही होती। खासतौर पर हिन्दी ब्लागिंग में पत्रकारों की भारी तादाद तो यही साबित करती है।
दिनेश जी मूलतः कोटा के पास बारां के रहनेवाले हैं। सनातनी ब्राह्मण। बातूनी। स्नेही। घरेलु। जल्दी घुल-मिल जाने वाले। खुशमिजाज। पुस्तकों से लेकर रसोई तक हर क्षेत्र में उनकी दिलचस्पी है। कोटा में उनका अपना मकान है और छोटा परिवार। पति-पत्नी दो बच्चे। एक पुत्री, एक पुत्र। बेटे ने इंदौर से कम्यूटर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है और इन दिनों भिलाई में है। बेटी सांख्यिकी विश्लेषक है। हाल ही में वह मुंबई से फरीदाबाद-दिल्ली शिफ्ट हुई है। द्विवेदी जी से हम भाभीश्री के हाथो बने भोजन की बड़ी तारीफ सुन चुके हैं। अनवरत ब्लाग पर भी कभी कभी उनके सौजन्य से दिनेश जी छौक-बघार लगाते रहते हैं। जब तक हमें भोजन करने का अवसर नहीं मिल जाता ,

वकील साब के साथ अपनेरामlokrang 408

हमारा अनुरोध है कि ब्लाग-रसोई भी अनवरत चलती रहे।
द्विवेदी जी अनुभव के धनी है। घर गृहस्थी और सामाजिक सरोकारों के बीच उन्होने खुद को गढ़ा है। संघर्षो का सामना किया है और  सकारात्मक नजरिये से  सफलता पायी है। कोटा की पहचान अभी तक राजस्थान के औद्योगिक शहर के तौर पर होती रही मगर बीते डेढ़ दशक में यहां के कोचिंग इंस्टीट्यूट्स ने उसे शैक्षिक केंद्र के तौर पर राष्ट्रीय ख्याति दिलाई है। यह इसलिए हु्आ क्योंकि दो दशकों से कोटा औद्योगिक मंदी का शिकार होना शुरू हो गया था और जेके, श्रीराम जैसे बड़े घरानो ने अपनी इकाइयां बंद कर दी थीं। कोटा की अदालतों में औद्योगिक मामले ज्यादा आते थे। बदलते हालात का असर इस व्यवसाय पर भी हुआ। यह वह दौर था जब दिनेशजी की जिम्मेदारियां बढ़ चुकी थीं, बच्चे बड़े हो रहे थे। वे बताते हैं कि उन्होंने वक्त को पहले ही भांप लिया था इसलिए समय से पहले ही औद्योगिक मामलों के साथ साथ सिविल अर्थात दीवानी मामलों में दिलचस्पी लेनी शुरू कर दी।  नतीजा अच्छा रहा और बुरा वक्त आया ज़रूर मगर वे इंतजाम पहले कर चुके थे। कई अन्य वकीलों को मुश्किलों का सामना करना पड़ा। व्यवसाय तक बदलने की नौबत आई। यह उदाहरण हमें काफी प्रेरक लगा।
पनी भोपाल यात्रा का क्षण-क्षण का ब्योरा वे अनवरत पर दे चुके हैं इसलिए हमारे पास कहने को ज्यादा कुछ नहीं है। यूं भी बकलमखुद में अभी उन्हें बहुत कुछ कहना है। यह ज़रूर कहेंगे कि दिनेश जी को हम अपना बड़ा भाई, शुभचिंतक मानते हैं। वे हमारे लिए परिजन जैसे हो गए हैं। [जनवरी की मुलाकातें समाप्त]

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27 comments:

  1. आदर्णीय दिनेश जी के बारे में जा्नकर अच्छा लगा. वैसे उनकी ट्रेड मार्क फ़ोटो और आपने जो फ़ोटो दिये हैं उनमे काफ़ी फ़र्क दिख रहा है. असली कौन से हैं?:)

    रामराम.

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  2. सबेरे-सबेरे दर्शन करके आनन्दित हुये!

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  3. भाई मेरे दिनेश जी के फैन तो हम पहले से ही हैं और उनके विपुल अध्ययन से चमत्कृत भी !
    मगर रास्ता अभी बहुत लम्बा है और हमें चलते रहना है !

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  4. अजित भाई आपको दिनेश भाई जी से मिलकर जितनी खुशी हुई हमेँ आप दोनोँ को सँग देख कर हुई !! :)
    अच्छा लिखा मिलन का वृताँत --

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  5. दिनेश जी के बारे में जानना बहुत अच्छा लगा शुक्रिया ...

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  6. बहुत ही उम्दा. अगर कभी आपको वक्त मिले to मेरे ब्लॉग पर भी aayen.

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  7. वडनेर साहब बड़ी पते की बात ये है कि इस तवील से किस्से में कोई एक हिस्सा भी अगर मुझे याद रहे तो लिख गया मानी-बेमानी सब धरोहर हो जाता है आप इतनी आत्मीयता से आठ से साठ तक वालों को सम्मान प्रदान करते है कि कई बार मुझे लगता है आपका दिल शायद कमल के पत्तों से भी बड़ा है. द्विवेदी जी असीम प्रतिभा का मुरीद तो मैं उनकी एक पोस्ट पढ़ के ही हो गया था १६ दिसम्बर २००८ को लिखी गयी "कहाँ है अब्दुल करीम तेलगी? उसे बुलाओ !" व्यवस्था पर गंभीर चोट करती इस रचना में कालजयी होने के कई गुण मुझे दिखे, हालांकि ये अलग बात है की द्विवेदी जी अपनी सादगी के कारण साहित्यशिल्पी होने का ढोंग नही रचते है.उस पर कई बड़े टिप्पणीकार और धुरंधर लिख्खाड़ आए किंतु मैंने कुछ इसलिए नही लिखा की मेरा दिल दुःख से भर गया था काश इन तमाम में से किसी एक ने रचना की गंभीरता पर सही बात कहते हुए इसे एक जरूरी बहस बताया होता. वकील साहब का हिन्दी ब्लोगिंग को एक बहुमूल्य योगदान है मुझे ये बताएं कि ये सारे साधू संत आपके पास क्यों खींचे चले आते हैं? बंगाल के काले जादू के कुछ असर आप अपने शब्दजाल में जरूर बिछाते होंगे?

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  8. @किशोर चौधरी
    शुक्रिया भाई...आपने भी खूब लिखा...सब शब्दों के सफर में हमसफर हैं...बस , यही वजह है मेल मुलाकातों की। आप कब आ रहे हैं ?

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  9. पंडित जी में एक अपनत्व है। पहली बार उनसे मिलना हुआ उनके रायपुर प्रवास के दौरान, करीब चार घंटे की इस मुलाकात के दौरान एक पल के लिए कहीं लगा ही नही कि मैं उनसे पहली बार मिल रहा हूं।

    वाकई वे सभी विषयों में दखल रखते हैं।

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  10. ना मानों तो पत्थर हैं,
    और मानों तो भगवान।
    आदरणीय दिनेश द्विवेदी,
    भले लगे इनसान।।

    हे शब्दों के सफर कभी,
    मेरे द्वारे भी आना।
    तुम जाने पहचाने हो,
    पर मैं तो अनजाना।।

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  11. पहले पाबलाजी और अब आप। द्विवेदीजी के बारे में जानकारी अब धीरे-धीरे बढने लगी है। यह सब पढकर अच्‍छा लगता है। 'अकेलापन और एकान्‍त' रच रहे इस समय में चिट्ठाकारी एक नई दुनिया रच रही है और अनजानों को अपना बनाने के रास्‍ते खोल रही है। दूरियां कम कर, परिवार में व़ृध्दि कर रही है।
    इस पोस्‍ट के जरिए, चिट्ठाकारी' के शुरुआती स्‍वरूप और तत्‍कालीन स्थितियों की जानकारी भी मिली।
    धन्‍यवाद।

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  12. अजित दो कोशोँ पर साथ साथ काम कर रहे हैँ . यह उनकी खूबी है कि दोनोँ के साथ न्याय कर रहे हैँ .

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  13. द्वीवेदी जी कभी मिलना नहीं हुआ। उन्हें उनके चिट्ठे और टिप्पणियों से ही जाना। उनके साथ समय गुजारना - अवश्य ही प्यारा अनुभव होगा।

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  14. दिनेशजी की विभिन्न मुद्राओं के चित्र छापने के लिये बहुत आभार. अपने इष्टजनों को छायाचित्र में देखना अच्छा लगता है. इसमें उनके साथ आप का चित्र भी अच्छा आया है. इसी तरह आप ने चिट्ठे के दाईं ओर अपना जो चित्र लगा रखा है वह वाकई में धांसू है. तुरंत ही उसे फेसबुक पर लगा दें. बहुत अच्छा लगेगा.

    दिनेश जी अनुभव और आदर्श के धनी मानवप्रेमी व्यक्ति हैं. उनकी उपस्थिति चिट्ठापरिवार को नित समृद्ध करती है.

    उनका चिठ्ठा तो एक अद्वितीय कार्य कर रहा है

    सस्नेह -- शास्त्री

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  15. आपका आभार कि आपने पंडित जी से मुलाकात को हम तक पंहुचाया। वैसे मैं उनके चिट्ठों पर भ्रमण कर ज्ञान अर्जित करता रहता हूं लेकिन उनके बारे में इतना कुछ जानकर अच्‍छा लगा।

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  16. दिनेश जी के विस्तृत परिचय के लिए धन्यवाद

    --
    चाँद, बादल और शाम
    गुलाबी कोंपलें

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  17. वकील साब से मिलकर लगता है कि आप अपने परिवार के किसी बड़े बुज़ुर्ग से मिल रहे हैं।उनकी सादगी ही उनका बडप्पन है,और उनकी विनम्रता उनकी विद्वता की पहचान है।स्नेह तो जैसे बरसता है,बस महसूस करने वाला चाहिये।बहुत अच्छा लिखा आपने।

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  18. इतनी वृहत्त विरूदावली में,
    मैं पंडित जी को एक शब्द में समेट दूँ..
    हर दृष्टिकोण से असाधारण !!

    किशोर चौधरी जी का कष्ट ज़ायज़ है,
    मैं भी इस बिन्दु पर उनसे सहमत हूँ ।

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  19. दर्शन दिल्‍ली में
    दिनेश द्विवेदी जी के
    किए हैं हमने भी
    सौभाग्‍य हमारा है
    जय हो
    द्विवेदी जी की
    जय हो
    अजित वडनेरकर जी की
    जो करा रहे हैं
    शब्‍दों के सफर के साथ
    दिल दिल का सफर।

    बस अपनेराम का फोटो
    नहीं खिचा है
    अरमां यही रह गया
    पर मिल लिए हम
    दिल में जो चित्र छपा
    दिल में ही रह गया।

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  20. वडनेरकर भाई, एक पत्रकार किसी भी साधारण व्यक्तित्व को असाधारणता प्रदान कर सकता है। यह तो आप ने प्रमाणित कर ही दिया है। साथ ही यह भी कि किसी भी साधारण व्यक्ति के संघर्ष असाधारण व्यक्ति से अधिक कठोर होते हैं। यदि उन संघर्षों का शतांश भी अभिव्यक्त हो जाए तो व्यक्ति को असाधारण का दर्जा मिल सकता है।

    वैसे जीवन संघर्ष का नाम है। आज भी संघर्ष जारी हैं और जीवन भर इन से छुटकारा नहीं मिलेगा, ये दोनों एक दूसरे के पर्याय जो हैं। मूल बात तो यह है कि व्यक्ति कुछ तो अपने जीवन में सार्थक करे और करता रहे।

    आप के दिए विशेषणों पर आपत्ति करने के लिए मुझे अनूप जी ने उकसाया जरूर। पर मुझे तो मित्रों के दिए सभी विशेषण सर-माथे रखने होंगे। क्यों कि ये तो दृष्टा का मूल्यांकन है। मैं उस में बाधक क्यों बनूं। हाँ अनूप जी की आपत्ति जायज है। आखिर उन के विशेषण मेरे लिए जो प्रयोग कर लिये गए।

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  21. श्रद्धेय द्विवेदी जी को पढ़ना हमेशा आनन्ददायी होता है। आज उनके बारे में आपकी रिपोर्ट पढ़कर अनेक उत्सुकताएं शान्त हुई। धन्यवाद।

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  22. अच्छा लगा दिनेश राय जी के बारे में जानकर...

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  23. आदरणीय द्विवेदी जी से
    हम निरंतर बहुत कुछ
    सीखते...जानते आ रहे हैं.
    उनका सहज सौजन्य-भाव लुभाता है.
    ============================
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  24. जमीनी लोगों की ऊँचाइयों से परिचय करवाने के लिए आपको साधुवाद |

    श्रद्धेय द्विवेदी जी को नमन | सकारात्मकता और शुचिता के संगम के रूप में उनका जो रूप हम देख पा रहे हैं, हमें प्रेरित करता है |

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