... किसी भी धर्म के नवदीक्षितों को मूल संस्कृति में दोयम दर्जे का समझा जाता है...
हि न्दी में असभ्य, उजड्ड के भाव उजागर करनेवाला एक शब्द है मवाली। हिन्दी फिल्मों में बदमाश को मवाली कहा जाता है। यह शब्द भी विभिन्न समाजों द्वार गैर समाजों या विजातीयों को हेय दृष्टि से देखने की प्रवृत्ति का प्रतीक है। ताकतवर जन समूहों के आचार-व्यवहार से छोटे समूहों की संस्कृति हमेशा प्रभावित होती रही है। दुनियाभर में सामाजिक बदलाव के दौर में वैचारिक क्रांतियां हुई हैं जिसके मूल में कुछ महान सुधारक रहे हैं। उनकी शिक्षाओं को समाज ने पंथ या धर्म का रूप दे दिया। नए धर्म में कुछ लोग स्वेच्छा से दीक्षा लेते हैं और कुछ को जबर्दस्ती दीक्षित किया जाता है। दोनो ही तरीकों से बने नवदीक्षितों को मूल संस्कृति में दोयम दर्जे का समझा जाता है। धार्मिक-जातीय आधार पर यह वर्गभेद भी दुनियाभर के समाजों में देखने को मिलता है। हिन्दू, ईसाई, इस्लाम और बौद्ध, कोई भी धर्म इस प्रवृत्ति से अछूता नहीं हैं।
मवाली शब्द अरबी ज़बान का है और इसमें मूल रूप से गैर अरबी समुदाय का भाव है। यूं मवाली शब्द की उत्पत्ति भी वली wali से ही मानी जाती है जिसका अर्थ होता है संरक्षक, पथप्रदर्शक, स्वामी, मित्र आदि। सातवीं सदी में जब इस्लामी विचारधारा के प्रसार-प्रचार का दौर पूरे जोरों पर था तब यह शब्द अस्तित्व में आया। अरब में रहनेवाले मिस्री, ईरानी, तुर्की और अन्य अफ्रीकी लोगों को सबसे पहले धर्मान्तरण की स्थिति का सामना करना पड़ा। अरब में इस्लाम से भी पहले इन तबकों के लोग गुलाम की हैसियत से गुज़र बसर करते रहे थे। इस्लाम के समानता के संदेश के आधार पर इन तबकों के लोगों को किसी न किसी वली के संरक्षण में धर्मान्तरित होने का अवसर मिला। इस तरह इन नवदीक्षितों को नाम मिला मवाला जिसमें पंथ अथवा धर्म के नए संरक्षक या धर्ममित्र का भाव था। मवाला का बहुवचन हुआ मवाली। बड़ी तादाद में गैर अरबी समुदाय सदियों तक इस्लाम की शरण में आता रहा और अरबों की मुख्यधारा में उनकी पहचान इस्लाम के नवदीक्षितों अर्थात मवालियों के तौर पर बनीं।
दीक्षा के बावजूद इस्लामी आराधना पद्धति को स्वीकार करने के अलावा बाकी बातों में इन तबकों के लोगों के आचार-व्यवहार और रंगरूप में गैर-अरबीपन बना रहा। अरब समाज में इन्हें हीन भाव से ही देखा जाता रहा और ये दोयम दर्जे के नागरिक बने रहे। इस तरह धर्ममित्र कहलाने के बावजूद वली से बने मवाली तबके को अरब में अवांछित ही माना जाता रहा। बाद में इसकी और अवनति हुई और इसमें असभ्य और उजड्ड का भाव स्थायी अर्थ लेता चला गया। गैर इस्लामियों के लिए मुकर्रर सभी तरह की पाबंदियां और टैक्स इन पर तब तक आयद रहे जब तक अरब में उमय्या वंश का शासन रहा। इस दौरान इन्हें न सिर्फ सामाजिक उपेक्षा झेलनी पड़ी बल्कि इन्हें शासकीय उपक्रमों में भी रोज़गार से वंचित रखा गया। उमय्या के बाद जब अब्बासी वंश का दौर आया तब मवालियों के दिन फिरे, खासतौर पर सेना में इनकी भर्ती शुरू हुई। इनके सामाजिक अधिकार भी बढ़े। इनमें से कई लोग खलीफा के विश्वसनीय बने और सत्ता में ऊंचे ओहदों पर काबिज हुए। एक तरह से सुदूर मिस्र, तुर्की से लेकर भारत तक में जिस गुलाम वंश ने एक कालखंड में सत्ता सुख भोगा, उसके पुरोधा यही रसूखदार मवाली थे। ये राजवंशी गुलाम इतिहास में मम्लूक के नाम से भी जाने जाते हैं।
कुछ शब्दकोशों में मवाली का अर्थ दक्षिण भारत की एक जाति भी बताया गया है। यह कहा नहीं जा सकता कि भारत में इस शब्द का आगमन अरबी-फारसी के जरिये कब हुआ या फिर अरबों के द्वारा दक्षिणी तट से लेकर उत्तर भारत तक में जो धर्मान्तरण का क्रम चला उसके तहत धर्मान्तरितों को यहां भी मवाली कहा गया, कहना मुश्किल है मगर मवाली शब्द हिन्दी में तो सिर्फ असभ्य, बदमाश, गुंडे का पर्याय बनकर ही आया। भारत में इस्लाम का आगमन इन्हीं रसूखदार मवालियों के वंशजों के जरिये हुआ जिन्होने फारस पर कई सदियों तक शासन किया और अपना राज्य विस्तार सिंध तक कर लिया जो भारत का द्वार था। गज़नवी वंश भी मवालियों का ही था। बहुत संभव है कि जिस तरह उज्बेक लोगों की असभ्य और लूटमार वाली शैली के चलते भारत में उनके लिए घृणास्पद सम्बोधन उज़बक प्रचलित हुआ, उसी तरह मवाली शब्द का प्रयोग भी इन विदेशी हमलावरों के लिए असभ्य और बर्बर के रूप में होने लगा हो। मुंबई के मवालियों से पूरा भारत परिचित है। किसी ज़माने में मवालियों के नाम महमूद गज़नवी, इल्तुत्मिश जैसे होते थे। आज के मवालियों के नाम पप्पू काणा, सलीम चश्मा, इकबाल मिर्ची जैसे होते हैं।
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वडनेकर जी!
ReplyDeleteआप अच्छे समय पर शब्दों के सफर में
मवाली को लेकर आये हो।
"निकल पड़े झण्डे लेकर, अब गुण्डे ओैर मवाली,
ये सत्ता मे आते ही, कर देंगे राजकोष खाली।"
बधाई हो! जय-जय!!
जमाना बहुत बदल गया है।
ReplyDeleteमवाली का क्या हाल कर दिया बेचारा शरीफ था बदमाशो में शुमार कर दिया .
ReplyDeleteजानकारी के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteरसूखदार मवाली..!
ReplyDeleteकमाल है भाई !!
आप शब्दों की हैसियत
के साथ-साथ ऐसी हैसियत
वालों को भी अद्भुत शब्द दे देते है.
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यह कड़ी भी पसंद आई,
शास्त्री जी की बात भी रास आई.
आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
बिलकुल नई जानकारी.
ReplyDeleteजिस तरह से गुलाम वंश ने शासन किया था, उसी तरह दिन दूर नहीं कि मवालवंश भारत पर राज करेगा।
ReplyDeleteशिक्षा और जागृति के अभाव में प्रजातंत्र मवालवंश का सबसे बड़ा संरक्षक होता है।
गुलाम वंश = मवालवंश :)
ReplyDeleteकोई बडी बात नही है, ऐसा हो सकता है, क्या सटीक बात कही है ज्ञान जी ने भी?
अरे ,,,ये मवाली कहाँ से आया ..अब समझे ..!!
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