रा जनीति के लिए हिन्दी में सियासत बहुत प्रचलित है। प्राचीनकाल में सियासत हमेशा घोड़ों पर ही सवार रहती थी। महत्वाकांक्षी शासक हमेशा राज्यविस्तार के लिए युद्धों में व्यस्त रहते थे। उनके लिए सियासत का रास्ता घोड़ों की टापों से शुरु होता था यही टापें किसी की सियासत को खत्म भी कर देती थीं। कुल मिलाकर सियासत में राज्यनीति कम और राज्यविस्तार ज्यादा था।
दरअसल सियासत का घोड़े से इतना ही रिश्ता नही है कि उसकी सवारी कर सियासत की जाती थी बल्कि इस शब्द की रिश्तेदारी ही घोड़े से है। सियासत अरबी शब्द है और फारसी उर्दू के साथ हिन्दी में भी यह दौड़ता है। अरबी में घोड़े के लिए फरास शब्द है। सियासा या सियासत शब्द का प्रयोग मध्य-पश्चिम एशिया के मुस्लिम समाज में घोड़ों की परवरिश के संदर्भ में होता रहा है। इसमें घोड़ों की देखभाल से लेकर उन्हें दौड़ने, सैन्यकर्म और अन्य खेलों के लिए प्रशिक्षित करने का भाव शामिल है।
प्राचीन काल में जिस तरह अरब क्षेत्र में ऊंट ही हर तरह के आवागमन का जरिया थे उसी तरह मध्य एशिया भौगोलिक विविधतावाले दुर्गम इलाके में घोड़े ही आवागमन से लेकर ढुलाई तक के काम में इन्सान के मददगार थे। घोड़ों की आमद जब अरब में हुई तो वे इस चौपाए की भारवाही क्षमता, रफ्तार और अक्लमंदी से बेहद प्रभावित हुए। उन्होने इसे बड़ी इज्जत से अपनाया और नाम दिया फरास।
अरबों ने घोड़ों को रेगिस्तानी आबो-हवा के लिहाज़ से इस तरह प्रशिक्षित किया ताकि वे उनकी साम्राज्यविस्तार की मुहीमो में खरे साबित हो सकें। यही घोड़े बतौर अरबी नस्ल दुनियाभर में जाने गए। फरास से बना फुरुसिया शब्द जिसका मतलब होता है घोड़े की तरह अक्लमंद या घोड़े जैसी समझ रखना। फुरुसिया का अर्थ बाद में हो गया पैदाइशी अक्लमंद। इसी तरह फ़रासत भी इसी मूल से उपजा शब्द है जिसका अर्थ होता है जन्म से बुद्धिमान। फुरुसिया शब्द से आदि वर्ण फुरु का लोप होकर नया शब्द बना सियासत जो राजनीति का पर्याय कब हो गया, कहा नहीं जा सकता। हॉर्स ट्रेनर को उर्दू-अरबी में साईस कहते हैं जो इसी मूल से उपजा शब्द है। जिस कुशलता और लगन से अश्व की देखभाल की जाती है, उसे सिखाया जाता है, विश्वस्त और कुशल बनाया जाता है ताकि वह लंबे समय तक साथ दे सके, उससे इतना तो स्पष्ट है किसियासत में निश्चित ही शासक के प्रजाकर्म, प्रजापालन और प्रकारांतर से राजकाज के कुशल संचालन का कुछ ऐसा ही भाव रहा होगा। आज सियासत लफ्ज पूरी तरह राजनीति या पॉलिटिक्स का पर्याय हो चुका है। बजाय इसके कि ये बेलगाम सियासी घोडे अवाम द्वारा हांके जाएं, सियासी ताकतें घोड़ों की जगह अवाम पर सवार रहती हैं।
... राजनीति जोड़-तोड़ और सत्ता हासिल करने का माध्यम नहीं बल्कि राज्य के संचालन का शिष्ट तरीका है। लोग अब कूटनीति को राजनीति कहने लगे हैं और राजनीति आदर्शों में कैद हो गई है...
राजनीति शब्द का अभिप्राय शासन पद्धति, राज-काज संबंधी विनियमन और चिंतन से है। वर्तमान में इस शब्द का अर्थ संकुचित हुआ है और इसमें सत्ता प्राप्ति के लिए जोड़-तोड़ का भाव समा गया है। राजनीति शब्द राज्य+नीति से मिलकर बना है। राज्य शब्द बना है राज्यम् से जिस का अर्थ शासन, हुकूमत, प्रशासन, साम्राज्य, प्रभुसत्ता, राजधानी, शासित क्षेत्र आदि हैं। राज्यम् बना है राजन् से जिसमें युवराज, शासक, मुखिया, प्रधान आदि। इसका एक रूप राज् भी है। राजन् में क्षत्रिय या मार्शल कौम का भाव भी है। राजपूत से यह स्पष्ट है। राज् या राजन् की व्युत्पत्ति ऋज् धातु से है। संस्कृत के ऋज् में सीधा, सरल, जाना, अर्जित करना, स्पष्टता, प्रभाव जैसे भाव हैं। ये सब प्रभुता या अधिकार संपन्नता के साथ मार्गदर्शन से भी जुड़ते हैं। एक राजा से यही उम्मीद की जाती है कि वह प्रजा का पालन सही रीति से करे। प्रजा-प्रमुख होने के नाते वह मार्गदर्शक भी है और सर्वाधिकार सम्पन्न रक्षक भी। उसकी सारी शक्तियां राज्य में निहित हैं जिसके संचालन के लिए उचित नीति पर चलना आवश्यक है।
नीति शब्द नी धातु से बना है जिसमें ले जाना, संचालन करना, निर्दिष्ट करना जैसे भाव हैं। इसी धातु से नेता, नेत्री, नेतृत्व, अभिनेता, अभिनेत्री जैसे शब्द बने हैं। आंख के लिए नेत्र शब्द भी इससे ही बना है। दृष्टि से ही हम संचालित होते हैं। न्याय भी इसी मूल से उपजा शब्द है क्योंकि वह किसी निष्कर्ष तक पहुंचाता है। नेता वह जो सबकुछ सम्यक देखे और समाज को आगे ले जाए, उसका संचालन करे। नीति शब्द का अभिप्राय संविधान, नियम, प्रबंध, आचारशास्त्र आदि से है। इसके जरिये जो शासन चलाए वही राजनीतिज्ञ है। इस तरह देखें तो राजनीति जोड़-तोड़ और सत्ता हासिल करने का माध्यम नहीं बल्कि राज्य के संचालन का शिष्ट तरीका है। लोग अब कूटनीति को राजनीति कहने लगे हैं और राजनीति आदर्शों में कैद हो गई है।
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क्या खूब बात है, साईस से सियासत का संबंध। आज तक ध्यान ही नहीं गया। अब तो लगता है कि पार्लियामेंट भी एक घुड़साल की तरह है। जिसे संभालने का काम कोई बेहतर साईस ही कर सकता है।
ReplyDeleteसियासत का सफर बहुत ज्ञानवर्धक रहा!! आभार. दिनेश जी ख्याल मस्त सवारी पर निकला है. :)
ReplyDeleteसईस सिर्फ घोड़े सँभालता है. गधों और अन्य पशुओं के बारे उसकी कोई expertise नहीं होती.
ReplyDeleteप्रणाम |
ReplyDeleteमध्यपूर्वी फरास (घोडे) की सियासत तक बहुत दुरूह यात्रा रही | सर्वथा अकल्पनीय सी |
धातु से उपजा 'राज्य' का मूल शब्द 'ऋज' उत्कृष्टता की दृष्टि से अनुकरणीय तथा प्रचारयोग्य लगा | राजा / राजनीति की चर्चा करते समय 'ऋज' का मूल भाव सदा विचार का केंद्र बिंदु होना चाहिए ताकि उत्कृष्टता पुनः लौटे |
इसी प्रकार यह निष्पत्ति कि 'नेता वह जो सबकुछ सम्यक देखे और समाज को आगे ले जाए, उसका संचालन करे' बड़ी महत्वपूर्ण है | नेता शब्द का श्रापमुक्त होना अनिवार्य होना अनिवार्य हो गया है और इसे नेता ही कर सकते है |
- RDS
प्रणाम |
ReplyDeleteमध्यपूर्वी फरास (घोडे) की सियासत तक बहुत दुरूह यात्रा रही | सर्वथा अकल्पनीय सी |
धातु से उपजा 'राज्य' का मूल शब्द 'ऋज' उत्कृष्टता की दृष्टि से अनुकरणीय तथा प्रचारयोग्य लगा | राजा / राजनीति की चर्चा करते समय 'ऋज' का मूल भाव सदा विचार का केंद्र बिंदु होना चाहिए ताकि उत्कृष्टता पुनः लौटे |
इसी प्रकार यह निष्पत्ति कि 'नेता वह जो सबकुछ सम्यक देखे और समाज को आगे ले जाए, उसका संचालन करे' बड़ी महत्वपूर्ण है | नेता शब्द का श्रापमुक्त होना अनिवार्य हो गया है और इसे नेता ही कर सकते है |
- RDS
सच है, कितना अद्भुत है यह शब्दों का सफर !
ReplyDeleteअब तो अपने यहां साईस शब्द भी यदा-कदा ही सुनने को मिलता है... :)
ReplyDeleteवैज्ञानिक और सभी ज्योतिषी,
ReplyDeleteघोड़ों से मजबूर हो गये।
गधों और ऊँटों के सारे सपने,
चकनाचूर हो गये।।
माया का लालच भी जन, गण, मन को,
कोई रास न आया।
लालू-पासवान के जादू ने,
कुछ भी नही असर दिखाया।।
जिसने जूता खाया, उसको,
हार,-हार का हार मिला है।
पाँच साल तक घर रहने का,
बदले में उपहार मिला है।।
लोकतन्त्र के महासमर में,
असरदार सरदार हुआ है।
ई.वी.एम. के भवसागर में,
फिर से बेड़ा पार हुआ है।।
सियासत शब्द का यह विवेचन ज्ञानवर्धक रहा..
ReplyDeleteआभार.
सर जी ,
ReplyDeleteनमस्कार, ये सभी जानकारी बहुत अच्छी लगी.
धन्यवाद,
मयूर
एक और प्रश्न पूछना चाहता हूँ , सियासत करने वाले को क्या सियास कहते हैं , मैंने सियासतदान शब्द भी सुना है ,
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद,
मयूर
सियासत के घोडे पर सवारी करना चाहता हूँ साईस की जरूरत है
ReplyDeleteअजित जी,
ReplyDeleteसही समय पर सही पोस्ट !
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अब सियासत और तिज़ारत के
प्रगाढ़ संबंधों पर कोई संदेह नहीं रहा.
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
अस्तबल तो बन गया। साईस कौन है?
ReplyDeleteसियासत का सफर भाया
ReplyDeleteअपने यहाँ जो फर्रास शब्द है वह कैसे आया है?
ReplyDeleteअपने यहाँ जो फर्रास शब्द है वो कहाँ से आया है?
ReplyDelete@शरद कोकास
ReplyDeleteशरद भाई,
सही शब्द फ़र्राश है जिसके जिम्मे बिछायतदारी का काम है। किसी ज़माने में यह सरकारी कर्मचारी होता था जिसके जिम्मे महफिलों के मौकों पर फ़र्श बिछाने का काम होता था। यह फर्श से बना है।
विस्तार से फिर कभी।
साईस लगाम कस के रखे ..
ReplyDeleteतभी सवारी डगमगायेगी नहीँ
' शब्दोँ का सफर'
आज फिर
एक नये सफर पर ले चला है
स स्नेह,
- लावण्या