Monday, May 4, 2009

सुलझानें-संवारने की बातें…

बा ल संवारने का काम भी रोजमर्रा में उतना ही ज़रूरी है जितना सुबह उठकर नित्यकर्म निपटाना। बाल संवारने की क्रिया कंघे द्वारा सम्पन्न होती है। यूं इसके लिए बाल बाहना शब्द भी है जिसे उत्तर भारत में बाल भाना भी कहा जाता है पर यह मुख सुख के लिए होता है। असल शब्द है बाल बाहना जो बना है संस्कृत के वहनम् या वहनीयं से जिसमें ले जाने, सहारा देने, खोलने, सुलझाने से है। बाल जब नहीं सुलझते हैं तब उन्हें कम करवाना पड़ता है। यूं उलझन जब हद से ज्याद बढ़ जाती है तो बाल नोचे भी जाते हैं, इस तरह गुस्से और खीझ का मुजाहिरा करने का रिवाज़ है।
comb बाल संवारने में लोग काफी वक्त खर्च करते हैं मगर मूलतः बाल बाहने में यानी संवारने में बालों के उलझेपन को दूर करने का ही भाव है। बालों का गुण ही होता है उलझना, गुत्थम-गुत्था होना। बाल अगर संवारे न जाएं तो वे जटा बन जाते हैं। जिनके सिर पर बड़ी बड़ी जटाएं होती हैं उन्हें इसीलिए जटिल कहा जाता है। बाद में कठिन, दुष्कर के अर्थ में जटिल शब्द चल पड़ा क्योंकि जटाओं को सुलझाना आसान काम नहीं होता। मूलतः जटिल का अर्थ होता है जटावत या जटायुक्त। सो बाल बाहने में उलझे हुए, बिखरे हुए बालों को सुलझा कर तरतीब देने का ही भाव है। बालों की व्यवस्था से ही किसी के भी व्यक्तित्व के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है। बिखरे बाल अस्तव्यस्तता की सूचना देते हैं। मनुष्य दिन में दस बार अपना चेहरा आईने में देखता है और हर बार दर्शनीय नजर आने के लिए सामान्यतौर पर बाल संवार लेता है। जाहिर है कि क्रियाशील रहते हुए अक्सर बाल ही बिगड़ते हैं, जो व्यक्तित्व के बारे में चुगली करते हैं।
बाल संवारने के लिए दुनियाभर में दांतेदार उपकरण इस्तेमाल किया जाता है जिसे कंघा कहते हैं। कंघा बना है संस्कृत के कङ्कतः या कङ्कतिका से जिसका अपभ्रंश हुआ कंघा या कंघी। महाभारत के नायकों में एक युधिष्ठिर ने अज्ञातवास के दौरान राजा विराट के यहां निवास करते हुए अपना नाम कङ्क (कंक) ही रखा था। कंघे की दांतों जैसी संरचना की वजह से ही उसे कङ्क नाम मिला। कोंकणी में कंघे को दान्तोणी ही कहते हैं जबकि मराठी में उसे कंगवा कहा जाता है। अंग्रेजी का कॉम्ब शब्द भी भारोपीय भाषा परिवार से ही जन्मा है और उसके मूल में प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का गोम्भोस gombhos शब्द है। बाल शब्द यूं तो संस्कृत में भी है मगर भाषा विज्ञानी इसे सुमेरी सभ्यता का शब्द मानते हैं। सुमेरी मूल से निकल कर बाल baal शब्द हिब्रू भाषा में समा गया जहां इसमें निहित सर्वोच्च जैसे भाव का अर्थविस्तार ग़ज़ब का रहा। इन्हीं अर्थों में एक अर्थ शीर्ष अर्थात सिर पर होने का भी रहा जिसकी वजह से इसे भी बाल नाम मिला। पौधे का सर्वोच्च सिरा बाली होती है, इसीलिए उसे यह नाम मिला। गौरतलब है हिब्रू में बाल का अर्थ है स्वामी, परमशक्तिवान, सर्वोच्च।

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16 comments:

  1. आपके इस लेख से कुछ नयी जानकारी मिली। वाह। शीर्षक और कुछ अंश के आधार पर किसी शायर की पंक्तियाँ याद आ गयी-

    कल अगर वक्त मिला तो जुल्फें तेरी सुलझा दूँगा।
    आज उलझा हुआ हूँ वक्त को सुलझाने में।।

    सादर
    श्यामल सुमन
    09955373288
    www.manoramsuman.blogspot.com
    shyamalsuman@gmail.com

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  2. मैं तो छोटे बाल रखता हूँ जिन्हें सुलझाने व सवारने का झंझट ही नहीं .

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  3. जुल्फ और कंघा का दोनों ही एक दूसरे के पूरक रहे हैं. इन पर विवेचना सुंदर रही परन्तू गंजों के लिए तो कंघा किसी काम का ही नहीं है.

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  4. ज्ञानपरक जानकारी वाले लेखों के लिए आपका सदा आभार

    ---
    तख़लीक़-ए-नज़रचाँद, बादल और शाम

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  5. जैसे जैसे केश कम होते जाते हैं कंघे की आवश्यकता बढ़ती जाती है।

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  6. Ajit sa
    darasal maine kuch samay purv hi aapka blog padhna shuru kiya hai is vajah se aapko meri baat gustakhi lag rahi hai.bas sorry hi kah sakti hu.
    Rajasthani dehati me patta /pati padna bhi bal sawarna arth me hi hota hai.

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  7. बहुत उम्दा जानकारी दी आपने.

    रामराम

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  8. अरे वाह !!! बाल संवारने से सम्बंधित इतनी अच्छी जानकारी.....मैं तो अभी चला बाल संवारने भैया.
    गुलमोहर का फूल

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  9. This comment has been removed by the author.

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  10. किसी दुसरे ब्लॉग का कोमेंट यहं पब्लिश हो गया था :-) बालों के बारे में जानना अच्छा रहा. आजकल अपने सर पर भी 'झोंटा' (बड़े बाल) हो रखा है.

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  11. ....अरे साहब आज ये पोस्ट
    क्या पढी बहुत तरतीब देकर बालो को
    हम निकले हैं घर से...!
    ===============================
    आभार
    डॉ.चन्द्रकुमार जैन

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  12. कुछ स्थानों पर बाल शरीर के अश्लील स्थान के बाल को कहते हैं। पता नहीं क्यों?

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  13. रोचक विषय और लेख भी.

    आप ने लिखा-'मनुष्य दिन में दस बार अपना चेहरा आईने में देखता है'

    यह वाक्य एक आम इन्सान के लिए ,आज के सन्दर्भ में नहीं लगता ,आज कल तो दो ही बार आईना देख सकें तो बहुत है.इतना समय कहाँ है?दस बार ?

    [हिदुओं में 'श्रीमान ,श्रीमती ,,सुश्री, आदि नाम से पहले लगने वाले शब्दों के बारे में भी जानने की उत्सुकता है. ]

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  14. @अल्पना वर्मा
    दिन में दस बार तो मुहावरा है अल्पना जी:)
    यूं भी घर पर रहे या दफ्तर में, चौबीस घंटों के दौरान मनुष्य इतनी ही बार प्रसाधन कक्ष में जरूर जाता है, जहां वाश बेसिन के साथ आईना होता ही है और लगाने का उद्धेश्य भी यही होता है कि खुद को संवार लें:)

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  15. फ़ोटो आपने ज़ोरदार लगाया है.

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  16. बाल की बात पर गेसू याद आ गए , वह इस तरह से:-

    किस्मत हमारी गेसुए जानाँ से कम नही,
    जितना संवारते गये उतने ही बल पड़े.
    -मंसूर अली हाश्मी

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