अं ग्रजी का चेन शब्द हिन्दी में खासा इस्तेमाल होता है। श्रंखला, लड़ी, ज़जीर या सांकल के अर्थ में चेन शब्द संभवतः इनकी तुलना में कही ज्यादा बोला सुना जाता है। हिन्दी में चेन और उससे मिलकर बने कई सामासिक शब्दों का प्रयोग हम रोज़ करते हैं जैसे चेन स्नेचिंग, चेन पुलिंग, चेन पुलर आदि। इन तमाम शब्द युग्मों में चेन का अर्थ सांकल, लड़ी के रूप में ही है मगर चेन स्मोकिंग जैसे शब्द युग्म मे सिलसिला, लगातार या एक के बाद एक का भाव है।
दिलचस्प है कि यह शब्द भारोपीय भाषा परिवार का है चेन और हिन्दी का कड़ी एक ही सिलसिले की कड़ियां हैं। भाषाविदों के अनुसार चेन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और लैटिन से अंग्रेजी में आया है जहां इसका मूल रुप है catena. यह प्राचीन भारोपीय धातु कट् kat से बना है जिसमें गोल करने, मोड़ने या घुमाने का भाव है। गौर करें कि एक चेन या श्रंखला में कई रिंग या वलय होंते हैं। हर रिंग धातु के तार को मोड़ कर या घुमा कर तैयार होता है जिन्हें एक दूसरे में पिरो कर चेन तैयार होती है। हिन्दी में कड़ी या कड़ा शब्द प्रचलित है। कड़ी शब्द बना है संस्कृत के कटिका शब्द से। कड़ी भी रिंग ही है। इसी का पुरुषवाची है कड़ा जो एक गहना भी है। कड़ा धातु, लाख, हाथीदांत या लकड़ी से बनता है जिसे कलाई में धारण किया जाता है। यह बना है कटकः > कडअ > कड़ा के क्रम में।
हिन्दी में चेन के लिए एक शब्द और
प्रचलित है जिसे सांकल कहते हैं। भारतीय भाषाओं में इसके कई रूप प्रचलित हैं। मसलन मालवी राजस्थानी में इसका उच्चार सांखल या सांखली भी होता है जो स्त्रियों का आभूषण भी होता है। पंजाब में यह सांगल हो जाता है। यह बना है संस्कृत के श्रृङ्खलः, श्रृंखला या श्रृंखलिका से जो कि समूहवाची शब्द है। इसका मतलब होता है कमरबंद, परम्परा, श्रेणी, आदि। कई कड़ियों से मिल कर श्रंखला का निर्माण होता है। हिन्दी में संग्रह के अर्थ मे एक शब्द है संकलन जिसका अर्थ हुआ कई वस्तुओं का समूह। कई पुस्तकों को संकलन कहा जाता है जैसे कविता संकलन, निबंध संकलन, कहानी संकलन आदि।
जेवर है सांकल मालवी राजस्थानी में इसका उच्चार सांखल या सांखली भी होता है जो स्त्रियों का आभूषण भी होता है। |
अंग्रेजी का सीरीज series शब्द भी हिन्दी में खूब प्रयोग होता है। क्रिकेट के संदर्भ में सीरीज़ शब्द ज्यादा चलता है मगर कई अन्य प्रयोग भी देखे जा सकते हैं। जासूसी उपन्यासों से लेकर पास बुक्स तक में सीरीज़ शब्द इस्तेमाल होता है। श्रृंखला के अर्थ में सीरीज शब्द बिजली की लड़ियों के लिए इस्तेमाल होता है। यह भी प्राचीन भारोपीय भाषा परिवार का शब्द है और सर (ser) धातु से बना है जिसमें आगे जाना, बढ़ना, फैलना, विस्तार, प्रसार आदि का भाव है जो कतार, रस्सी आदि से जुड़ते हैं। संस्कृत में भी इससे मिलती-जुलती सृ धातु है जिसमें इन तमाम भावों के अलावा सरकने, आगे बढने, गति जैसे भाव भी समाए हैं। हिन्दी का सर्प और अग्रेजी का सर्पेंट जो लैटिन के सर्पेंटम से बना है, इसी मूल से उपजा है। दोनों का अर्थ होता है सांप। स्पष्ट है कि सांप शब्द भी सर्प का ही अपभ्रंश है। सरपट, सरसराना, सरसर जैसे शब्द भी इसके रिश्तेदार हैं। अंग्रेजी का सीरियल शब्द सीरीज से ही बना है। सीरियल या सीरीज में किसी घटनाक्रम, वस्तु या वार्ता को क्रमशः विस्तार देना, आगे बढ़ाने का भाव ही है। बिजली की लड़ी, जिसे सीरीज़ ही कहते है, में भी बल्बों की झिलमिल एक सिरे से शुरु होकर दूसरे सिरे तक पहुंचती है। हिन्दी में इसके लिए धारावाहिक या धारावाही शब्द बनाया गया है जो धारा से बना है जिसका आशय मूलतः तरल का प्रवाही भाव है। धारा के प्रवाह और गतिवाचक अर्थों को ग्रहण करते हुए बने धारावाहिक शब्द का वही अभिप्राय है जो सीरियल का होता है। टीवी के श्रंखलाबद्ध कार्यक्रमों के लिए सीरियल और धारावाहिक शब्द खूब प्रचलित हैं।
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ये सीरियल भी मस्त रहा..लगा था बीच में कोई कामर्शियल आयेगा. :)
ReplyDeleteश्रंखलाबद्ध चल रहा है, शब्दों का सफर।
ReplyDeleteइसकी ये कड़ी भी रोचक रही है।
श्रंखलाबद्ध चल रहा है, शब्दों का सफर।
ReplyDeleteइसकी ये कड़ी भी रोचक रही है।
एक नापने वाली ज़रीब होती है वह चेन जैसी ही होती है। उस के बारे में बताएंगे?
ReplyDeleteसुन्दर। जरीब के बारे में जो द्विवेदीजी ने कहा तो कानपुर में जरीब चौकी है। उसका कुछ संबंध होगा जरीब से, जंजीर से क्या?
ReplyDeleteपढ़ रहा हूँ, पढ़ता ही जा रहा हूँ ।
ReplyDeleteहिमांशु जी के शब्दों में कहूँ तो ,"पढ़ रहा हूँ, पढ़ता ही जा रहा हूँ ।"
ReplyDeleteबहुतेरे शब्दों का उत्स देसज होता है. हिन्दी को सरल बनाने में देसज और दूसरी भारतीय भाषाओं से आए शब्दों का बहुत योगदान है. थोड़ा उनकी ओर भी अपनी पैनी दृष्टि डालें.
जुड़ा हुआ हूँ मै श्रंखला से,
ReplyDeleteकुछ एक कडियाँ फिसल गई थी,
कुछ एक शब्दों से हो के आहत,
सफ़र मै अपना बदल रहा था,
कि....फिर से ज़ंजीर में जकड़ कर,
सफ़र में शब्दों के हमसफ़र बन,
सुखन कि महफ़िल में आ गया हूँ.
iske bare mein jankar achchha laga
ReplyDeleteअजित भाई,
ReplyDeleteये सब नायाब जानकारी किताब की शक्ल में भी आनी चाहिए.
-- मुनीश
आपका ये हिंदी बक्सा ग़ज़ब है.
ReplyDeleteशब्दों को सांकल में पिरोने में तो आप का जबाब ही नहीं
ReplyDeleteहमेशा की तरह अच्छी पोस्ट. जरीब हमने भी सुना है !
ReplyDeleteAjit sa
ReplyDeletemahatvpurn jankariyo ke liye dhanywad.
आपकी यह कड़ी मुझे एक घटना याद दिला गयी...
ReplyDeleteएक बार हम किसी काम से एक इंजीनियरिंग कॉलेज में महीनो से परेशान थे भाग दौड़ करते हुए...पर काम बन नहीं रहा था..
तब वहां एक प्रोफेसर साहब ने हमें बुलाकर चेन रिएक्सन समझाया था....
पहले तो कुछ देर हमें लगा कि वे संभवतः हमें विज्ञानं की कोई बात बता रहे हैं,पर बाद में समझ आया कि वे किस चेन और कौन से रिएक्सन के बारे में कह रहे हैं...
उनका कहना था कि एक चेन में से बीच की कोई भी कड़ी टूट गयी तो हम अंतिम छोर तक कैसे पहुँच सकते हैं.इसलिए आवश्यक है कि प्रत्येक कड़ी को संतुष्ट करते चलें....
हम उनके तर्क से हतप्रभ रह गए थे...
हतप्रभ इसलिए कि इतने प्रतिष्ठित प्रतिष्ठान के ये सम्मानित गुरु किस हद तक gire हुए हैं...
सच मानिये,सामान देने के बाद भी इस घटना को आठ वर्ष हो गए न हम अपना छ लाख रुपया प्रतिष्ठान से निकाल पाए हैं और न ही वह सामान..क्योंकि हम सभी कड़ियों को संतुष्ट करने में नाकामयाब रहे ..
आप के ब्लॉग के बारे में मुझे संजयजी से लिंक मिली .में उनको साधुवाद देना चाहूंगी .आपके ब्लॉग पर अभी पढ़ना शुरू ही किया है बहुत रोचक एवं उपयोगी जानकारी सबको मिल रही है. शब्दों के सफ़र की कोई पुस्तक भी लिखी हो तो उसका नाम अवश्य बताए.
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