क म आयु के बच्चे के लिए हिन्दी में कई शब्दों का प्रचलन है चुन्नू, मुन्नू, मुन्ना, मुनिया, मुन्नी, छोटू जैसे शब्दों से बच्चों के शैशव का अहसास होता है। कई बार बच्चों के युवा होने तक ये नाम प्रचलित रहते हैं। मुनिया बड़ी होकर मुनिया दीदी बन जाती है। छोटूजी बड़े होकर छुट्टन चाचा बन जाते हैं। ये सभी मूल संस्कृत शब्दों के तद्भव रूप हैं।
हिन्दी की कई शैलियों, बोलियों समेत भारत की कई ज़बानों में बच्चों के लिए मोड़ा-मौड़ी या मौड़ा-मौड़ी जैसे शब्दों का प्रचलन है। बुंदेलखंडी, ब्रज और अवध में तो यह शब्द खूब प्रचलित है। पंजाबी में इसका रूप मुंडा-मुंडी है। यह बना है संस्कृत के मुण्डः से जिसका मतलब होता है घुटा हुआ सिर। मुण्डः या मुण्डकः से मौड़ा बनने का क्रम कुछ यूं रहा होगा। मुण्डकः > मोंडअं > मौडा । बच्चे के अर्थ में मुण्ड का जो निहितार्थ है वह दिलचस्प है। आमतौर बच्चों के सिर पर जन्म के वक्त जो बाल होते हैं उन्हें जन्म के कुछ समय बाद साफ किया जाता है जो बालक का पहला धार्मिक संस्कार होता है। इसे मुण्डन कहा जाता है। घुटे हुए सिर वाले बच्चे को मुण्डकः कहा गया। हिन्दुओं की कई शाखाओं में कन्याशिशु का मुण्डन नहीं होता है। मगर ऐसा लगता है कि प्राचीनकाल में सभी शिशुओं का मुण्डन होता रहा होगा इसलिए इससे बने मोड़ा शब्द का स्त्रीवाची मोड़ी भी प्रचलित है। अनुमान है कि बच्चों के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय मुन्ना या मुन्नी जैसे शब्दों का जन्म भी मुण्डः से ही हुआ होगा जिनके मुन्नू, मुन्नन, मुनिया, मन्नू जैसे न जाने कितने रूप मुख-सुख की खातिर बने हैं।
हिन्दी की लगभग सभी ज़बानों में बच्चों के लिए छोरा-छोरी का सम्बोधन भी बड़ा लोकप्रिय है। हिन्दी के मध्यकालीन साहित्य खासतौर पर ब्रज भाषा में छोरा शब्द का प्रयोग खूब हुआ है। छोरा शब्द प्रायः शैशवकाल में जी रहे बच्चे के लिए ही इस्तेमाल होता है। यूं शैशव से लेकर कैशोर्य पार हो जाने तक छोरा या छोरी शब्द का प्रयोग खूब होता है। यह बना है संस्कृत धातु शाव से जिसमें किसी भी प्राणी के शिशु का भाव है। यह बना है शाव+र+कः से। शावक आमतौर पर चौपाए के सद्यजात शिशु के लिए प्रयोग किया जाता है। हिन्दी का छौना शब्द भी शावक से ही बना है। गौर करें कि मृगशावक अर्थात हिरण के बच्चे के लिए ही हिन्दी मे छौना शब्द का प्रयोग होता है। बच्चों के लिए चुन्नू, चुन्नी, चुनिया, छुन्नी जैसे नामों के मूल में संभवतः शैशव और शावक से संबंध रखनेवाला यह छौना शब्द ही है। हिन्दी में आमतौर पर छोकरा-छोकरी शब्द भी प्रचलित हैं पर इसकी अर्थवत्ता में बदलाव आ जाता है। छोरा-छोरी जहां सामान्य बच्चों के लिए प्रयोग होता है वहीं छोकरा में दास या नौकर का भाव भी है।
बच्चे के लिए छोटू शब्द बड़ा आम है। यह शब्द इस मायने में समतावादी है कि गरीब के झोपड़े से अमीर की अट्टालिका तक बच्चों के लिए यह प्रिय सम्बोधन है। छोटू बना है संस्कृत की क्षुद्र से। यह वही क्षुद्र है जिसमें सूक्ष्मता, तुच्छता, निम्नता, हलकेपन का भाव है। इसके मूल में है संस्कृत धातु क्षुद् जिसमें दबाने, कुचलने , रगड़ने , पीसने आदि के भाव हैं। जाहिर है ये सभी क्रियाएं क्षीण, हीन और सूक्ष्म ही बना रही हैं। क्षुद्र के छोटा बनने का सफर कुछ यूं रहा– क्षुद्रकः > छुद्दकअ > छोटआ > छोटा। जाहिर सी बात है कि संतान या बच्चों के अर्थ में क्षुद्र शब्द में कमतरी का भाव तो है मगर आयु और आकार की दृष्ठि से। आमतौर में क्षुद्र शब्द में हीनभाव ही नज़र आता है। असावधानीवश कई लोग इसका उच्चारण शूद्र की तरह भी करते हैं। इस शब्द में पन, पना या अई जैसे प्रत्ययों से छुटपन, छोटपन, छोटपना, छोटाई जैसे शब्द भी बने हैं। देहात में अंतिम संतान को सबसे छोटा मानते हुए यह शब्द उनके नाम का पर्याय बन जाता है जैसे छोटी, छुटकू, छोटेलाल, छोटूसिंह, छोटूमल, छोटन, छुट्टन आदि।
इसी कड़ी के कुछ और शब्द अगली कड़ी में
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मोडा, मोडी, छोरा, छोरी शब्द तो बचपन से सुनते आये हैं पर उनका मूल मुण्ड यया मुण्डक से है और छोरा छोरी का मूल शावक से है ये इस लेक को पढकर जाना । जानकारी पूर्ण लेख का आभार ।
ReplyDeleteछोरा-छोरी और मोड़ा-मोड़ी के जन्म की कहानी अच्छी लगी।
ReplyDeleteमोड़ा-मौड़ी सुनकर जबलपुर की याद हो आई. :)
ReplyDeleteबालक-बालिकाओं के प्रचलित देसज शब्दों की व्याख्या सुन्दर ढंग से की गई है।
ReplyDeleteइन शब्दों के विकास का भी इतना व्यवस्थित प्रस्तुतिकरण । आभार ।
ReplyDeleteइन सब शब्दों का स्रोत गलत बताया गया है। यथार्थ में इन शब्दों का स्रोत तो बच्चों के प्रति परिजनों के स्नेह और प्यार में है।
ReplyDeleteहर बार की तरह
ReplyDeleteश्रमपूर्वक लिखी गई
यह पोस्ट भी उपयोगी है!
हिरन के छौनों के साथ
उल्लू के पट्ठों
और
मुर्गी के चूज़ों को
याद करना भी जरूरी था!
क्षुद्र और शूद्र का उद्भव अलग अलग है?
ReplyDeleteदेसज शब्दों के बारे में मेरी की गई फरमाइश इतनी जल्दी पूरी होगी, सोचा न था.
ReplyDeleteधन्यवाद,
काफी रोचक हमारे मोहल्ले में एक नोनी भी है.आभार.
ReplyDeleteसफ़र का एक और रोचक पड़ाव.
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कम्प्यूटर में कुछ तकनीकी खराबी
के कारण आप तक हमारा सन्देश
पहुँच न सका हफ्ते भर से...पर हर
सुबह सफ़र से ही शुरू होती है अजित जी.
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आभार
डॉ.चन्द्रकुमार जैन
सुन्दर और ज्ञानवर्धक विवेचना। वाह।।
ReplyDeleteसादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
मेरे छोटे भांजे का जो अब दो माह का होने जा रहा है,का नाम भी छोटू ही पड़ गया है।सब उसे छोटू ही कहने लगे हैं।
ReplyDeleteलोंडा और लोंडिया भी प्रयोग में आता है हमारे यहाँ , सभ्य समाज में यह शब्द अच्छे नहीं माने जाते लेकिन समाज ही प्रयोग करता है ऐसे शब्द
ReplyDeleteशानदार जानकारी के लिए धन्यवाद
ReplyDeleteऔर हाँ लल्ला और लल्ली भी कहा जाता है
ReplyDeleteशायद गुड्डू ,गुड्डी अगली बार आने वाले है ।
ReplyDeleteफिर एक अच्छी पोस्ट .
ReplyDelete्मजेदार
ReplyDelete१.आप ने लिखा है "पंजाबी में इसका रूप मुंडा-मुंडी है।" पंजाबी में छोटी लड़की को 'मुंडी' बिलकुल नहीं बोलते, हाँ लडके के लिए 'मुंडा' आम शब्द है. लड़की के लिए पंजाबी शब्द है 'कुड़ी' जो शायद मुंडा भाषा से आया है ! सो 'मुंडा-मुंडी' की जगह 'मुंडा-कुड़ी' चलता है . व्यंग की बात है कि पंजाब में सिख धर्म का जोर होते हुए.भी 'मुंडा' शब्द चलता है हालां कि सिख मुंडन नहीं करवाते.
ReplyDelete२.आप ने 'क्षुद्रकः' से 'छोटू' कि व्युत्पति बताई है, इस से मुझे लग रहा है पंजाबी शब्द 'छिन्दा' जो बच्चों के लिए आम शब्द है इसी से बना होगा. छिन्दा शरारती बच्चे को भी कहते हैं और 'छिदरी' शब्द का पंजाबी में मतलब तो होता ही शरारती है . टिपण्णी करेंगे ?