Wednesday, May 27, 2009

गुप्ताजी का राजकाज

ww11-secret
वि कासक्रम में मनुष्य ने जो सबसे महत्वपूर्ण बात सीखी वह थी रक्षा करना अर्थात खुद का बचाव करना। यह बचाव या रक्षा कई तरह से थी। प्रकृति के कोप से, हिंस्र जीव-जंतुओं से और प्रतिस्पर्धी मानव समूहों से। रक्षा करने की क्रिया में छुपने या छुपाने का भाव प्रमुख है। इन्ही क्रियाओं से जुड़ा है गुप्त शब्द।
संस्कृत का गुप्त शब्द विविध रूपों में हिन्दी में प्रयोग होता है। यह बना है गुप् धातु से जिसमें रक्षा करना, बचाना, आत्मरक्षा जैसे भाव तो हैं ही साथ ही छुपना, छुपाना जैसे भाव भी हैं। गौर करें कि आत्मरक्षा की खातिर खुद को बचाना या छुपाना ही पड़ता है। रक्षा के लिए चाहे युद्ध आवश्यक हो किन्तु वहां भी शत्रु के वार से खुद को बचाते हुए ही मौका देख कर उसे परास्त करने के पैंतरे आज़माने पड़ते हैं। यूं बोलचाल में गुप्त शब्द का अर्थ होता है छुपाया हुआ, अदृश्य। गोपन, गोपनीय गुपुत जैसे शब्द इसी मूल से आ रहे हैं। प्राचीनकाल में गुप्ता एक नायिका होती थी जो निशा-अभिसार की बात को छुपा लेने में पटु होती थी। इसे रखैल या पति की सहेली की संज्ञा भी दी जा सकती है। इस गुप्ता नायिका का आज के गुप्ता उपनाम से कोई लेना देना नहीं हैं। यह ठीक कमल से कमला और स्मित से स्मिता की तर्ज पर गुप्त से गुप्ता बना स्त्रीवाची शब्द है। गुप्ता की ही तरह गुप्त से गुप्ती भी बना है जो एक छोटा तेज धार वाला हथियार होता है। इसका यह नाम इसीलिए पड़ा क्योंकि इसे वस्त्र-परिधान में आसानी से छुपाया जा सकता है।
पुराने ज़माने में राजाओं-नरेशों के नाम के साथ गुप्त जुड़ा रहता था। व्यापक अर्थ में देखें तो छुपने छुपाने में आश्रय देना या आश्रय लेना का भाव भी समाहित है। गुप्त का एक अर्थ राजा या शासक भी होता है क्योंकि वह प्रजा को आश्रय देता है, उसे छांह देता है। उसे अपने भरोसे और विश्वास के आवरण से ढकता है। संस्कृत में राजा या संरक्षक के लिए गुपिलः शब्द भी है। history-of-india1गोपः शब्द में भी संरक्षक या राजा का भाव है। अर्थात जो अपनी प्रजा को आश्रय प्रदान करे। एक अन्य गोप भी हिन्दी में बोला जाता है जिसका अर्थ ग्वाला है। यह गोप मूलतः गोपाल शब्द का संक्षिप्त रूप है। गोपाल शब्द में भी पालने, संरक्षण देने की बात तो है पर उसका रिश्ता सिर्फ गाय अर्थात गो+पाल से जुड़ता है यानी जो गायों का पालन करे, वह गोपाल। यूं गो का एक अर्थ होता है पृथ्वी। गो यानी गमन करना। पृथ्वी जो लगातार अपनी धुरी पर घूम रही है इसीलिए उसे गो कहा गया है।  इस तरह पृथ्वी को पालनेवाला हुआ गोपाल यानी भूपति अर्थात राजा। यहां पृथ्वी को पालने से तात्पर्य पृथ्वीवासियों से है। गोपी या गोपिका शब्द का मतलब होता है ग्वाले की स्त्री।
गुप्त के पालक या शासक-सरंक्षक वाले भाव का विस्तार इतना हुआ हुआ कि यह एक राजवंश की पहचान ही बन गया। भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहलानेवाला समय गुप्त राजवंशियों का ही था। साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में इस कालखंड में वृहत्तर भारत ने अभूतपूर्व उन्न्नति की। कालिदास, आर्यभट्ट, वरामिहिर जैसे महापुरुषों वाले इस दौर में चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त जैसे शासक हुए। रामायण, महाभारत, गणित, ज्योतिष के प्रसिद्ध ग्रंथ इसी दौर में पुनर्प्रतिष्ठित हुए और उनके वही रूप आज तक प्रचलित हैं। उस दौर में क्षत्रियों के साथ साथ श्रेष्ठिवर्ग में भी गुप्त उपनाम लगाने की परिपाटी चल पड़ी थी। वाशि आप्टे कोश के अनुसार ब्राह्मणों के नामों के साथ प्रायः शर्मन् अथवा देव, क्षत्रियों के नाम के साथ वर्मन् अथवा त्रातृ, वैश्यों के साथ गुप्त, भूति अथवा दत्त और शूद्रों के साथ दास शब्द संयुक्त होता था। - शर्मा देवश्च विप्रस्य, वर्मा त्राता च भूभुजः, भूतिर्दत्तश्च वैश्यस्य दासः शूद्रश्य कारयेत्। आजकल जो वणिकों में गुप्ता उपनाम प्रचलित है वह इसी गुप्त का भ्रष्ट रूप है। गुप्त का गुप्ता अंग्रेजी वर्तनी की देन है। भारतीयों को अंग्रेजों की देन बहुत प्यारी है।

ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें

18 comments:

  1. सचमुच गुप्त काल भारतीय इतिहास का एक स्वर्णिम अध्याय था। बढ़िया आलेख।

    ReplyDelete
  2. "गुप्त का गुप्ता अंग्रेजी वर्तनी की देन है। भारतीयों को अंग्रेजों की देन बहुत प्यारी है।"
    गुप्ता शब्द की अच्छी पोल खोली है और व्यंग भी करारा किया गया है।
    धन्यवाद।

    ReplyDelete
  3. गुप्त से गुप्ता...मित्र जैसे ही साहित्यकार हुए-गुप्ता जी से फिर गुप्त हो लिए..जैसे अपने शुक्ला जी शुक्ल हुए..काफी ज्ञान मिल गया एकाएक.

    ReplyDelete
  4. गुप्‍त, गुप्‍ता, गुप्‍ती की सारी जानकारी दी है खोल
    अच्‍छी जासूसी से शब्‍दों के सफर के हैं अद्भुत बोल

    ReplyDelete
  5. "गुप्त का गुप्ता अंग्रेजी वर्तनी की देन है। भारतीयों को अंग्रेजों की देन बहुत प्यारी है। "

    सुन्दर!

    ReplyDelete
  6. कुछ शंकाएँ मेरे मन में हिलोरे ले रहीं हैं ,कृपया समाधान करें आपनें लिखा है कि ""प्राचीनकाल में गुप्ता एक नायिका होती थी जो निशा-अभिसार की बात को छुपा लेने में पटु होती थी। इसे रखैल या पति की सहेली की संज्ञा भी दी जा सकती है।""
    इसका सन्दर्भ कहाँ है .
    2.आपने लिखा है कि ""भारतीय इतिहास का स्वर्णयुग कहलानेवाला समय गुप्त राजवंशियों का ही था। साहित्य-संस्कृति के क्षेत्र में इस कालखंड में वृहत्तर भारत ने अभूतपूर्व उन्न्नति की। कालिदास, आर्यभट्ट, वरामिहिर, चाणक्य जैसे महापुरुषों वाले इस दौर में चंद्रगुप्त, समुद्रगुप्त जैसे शासक हुए।""
    मेरी जानकारी में चाणक्य का सम्बन्ध गुप्तकाल से कभी नहीं रहा है .
    ३-आपनें और लिखा है कि ""उस दौर में क्षत्रियों के साथ साथ श्रेष्ठिवर्ग में भी गुप्त उपनाम लगाने की परिपाटी चल पड़ी थी।"" मेरे दृष्टिकोण से इसे और स्पष्ट करनें की आवश्यकता है कि उस दौर में ऐसा क्यों था ?

    ReplyDelete
  7. gupt ko gupta kilya angrez ne,
    rang kya pukhta kiya rangrez ne,
    kahne ko aazad to ham ho gye,
    zehan pe qabza kiya angrez ne.

    m.h.

    ReplyDelete
  8. It's a good article with satirical flavour. YOu opened hidden agenda of GUPTA JI .congrat & best wishes .

    ReplyDelete
  9. gupt ko gupta kiya angrez ne,
    rang kya pukhta kiya rangrez ne,
    kahne ko aazad to ham ho gaye,
    zehan pe qabza kiya angrez ne

    ReplyDelete
  10. @मनोज मिश्र
    शुक्रिया मनोजभाई ध्यान दिलाने के लिए। आलेख में त्रुटिवश चाणक्य चला गया। मैं सुबह पांच बजे पोस्ट पब्लिश करता हूं और दोपहर को ईमेल देखता हूं। अभी इसे देखा और ठीक कर लिया है।

    ReplyDelete
  11. @मनोज मिश्र
    नायिकाभेद के बारे में साहित्यशास्त्र में भरपूर लिखा गया है। गुप्ता नायिका का संदर्भ तो ज्ञानमंडल शब्दकोश में भी उपलब्ध है। भानुदत्त के षोडस भेद वर्गीकरण में गुप्ता नायिका का उल्लेख है। इस नाम से आप यह न समझें कि ऐसा कोई नाम होता था। यह नाम लक्षणों के आधार पर दिया गया है। ठीक वैसे ही है जैसे किसी ग्रंथ में छह तरह की नायिकाएं बताई हैं, किसी में आठ और किसी में सोलह। विषय मीमांसा और विवेचना का सिलसिला तो लगातार चलता है।

    ReplyDelete
  12. गुप्त-> गुप्ता, शुक्ल-> शुक्ला, मिश्र-> मिश्रा, योग-> योगा ये सिलसिला भी कुछ कम नहीं चल रहा...

    ReplyDelete
  13. सुन्दर सफ़र....आभार.

    ReplyDelete
  14. ज्ञानवर्धक , ऐतहासिक तथ्य का ज्ञान प्राप्त हुआ . वर्मन के बारे में तो पता था क्षत्रिय अपने नाम के आगे लगाते थे .

    ReplyDelete
  15. अजित भाई आपका लेख 2-3 गुप्ता जीयों को फॉरवर्ड कर रहा हूँ..शर्माजीयों और शुक्लाजीयों की भी डिमांड है..और भी बहुत से है एक लेख माला चल सकती है

    ReplyDelete
  16. मैंने अपने जीवन में अनुभव किया है कि गुप्ता (बनिक) लोग स्वभाव से ही व्यापार में बड़े कुशल होते हैं,क्योंकि सफल व्यापारी वही हो सकता है जो भली प्रकार यह जानता हो कि किस बात को गुप्त रखना है किस बात को सार्वजनिक करना है.

    बड़ी ही रोचक यात्रा रहियो यह ...आभार.

    ReplyDelete
  17. गुप्ता एक नायिका? एकदम नयी जानकारी है हमारे लिए। माना आज कल के गुप्ताओं का गुप्ता नायिका से कोई लेना देना नहीं तो फ़िर ये उपनाम कैसे बन गया। अब तो किसी भी मिस गुप्ता को मिलेगें तो सोचेगें………॥:)

    ReplyDelete